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१.  जब पाकिस्तान ने १९४७ में भारत पर आक्रमण किया और कश्मीर हड़पने की कोशिश की तब  कश्मीरी  मुस्लमान  सैनिको  ने  भी 1947 में  सेना  से  बग़ावत  कर  दी  थी  और  अपने  अधिकारी  लेफ्टिनेंट  कर्नल  नारायण  सिंह , ब्रिगेडियर  राजिंद्र  सिंह  और  अन्य  अधिकारियों  को  मार  डाला था . उसके  बावजूद भारत में  मुस्लिम रेजिमेंट बनाई गई और उसने फिर देश के साथ गद्दारी करते हुए  पाकिस्तान के खिलाफ १९६५ में युद्ध लड़ने से मना कर  दिया था। उसके  बाद से मुस्लिम रेजिमेंट ख़त्म दी गई ।
 
२. 1989-90 में  मुस्लिम लोगों   ने  कश्मीर  में  हिन्दुओ  की  हत्या  करनी  शुरू  कर  दी . इस  नरसंहार  के  कारण  3 लाख  कश्मीरी  पंडित  पलायन  कर  जम्मू  और  दिल्ली  और भारत के अन्य शहरों में शरण लेनी पड़ी। उस वक्त देश के पहले मुस्लिम गृह मंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद थे। 

३. बांग्लादेश  में  हिन्दू   समाज  पर  जुल्म  की  दास्ताँ  लिखने  वाली  तस्लीमा  नसरीन  को  बांग्लादेश  से  तो  निर्वासित  होना  ही  पड़ा , भारत  में  भी  तिरस्कृत  होकर  भटकना  पड़ा .


 
५. जब  जम्मू - कश्मीर  भारत  में  शामिल  हुवा  तो  वहां  का  राज्यपाल  केंद्र  सरकार  द्वारा  नियुक्त  न  होकर  विधानसभा  द्वारा  नियुक्त  हुवा  और  ' सदरे  रियासत ' कहलाया . मुख्यमंत्री  को  ' वज़ीर - ए - आज़म ' कहा  जाता  था  यानि  ' प्रधानमंत्री '. डॉ . श्यामा  प्रसाद  मुखर्जी ने आंदोलन किया और एक देश , एक प्रधान और एक संविधान का नारा दिया उन्हें शेख अब्दुल्ला ने गिरफ्तार करके कोलकाता भेज दिया जहाँ से उनकी लाश ही मिली। उनकी मौत कैसे हुई कोई जाँच नहीं की गई।  उनकी शहादत  के  बाद  राज्यपाल  और  मुख्यमंत्री  पद  बने . लेकिन धारा ३७० के तहत   राज्य  के  लिए  अलग  संविधान  और  अलग  ध्वज  स्वीकृत  किया  गया .

६. जम्मू - कश्मीर  का  पहला  मुख्यमंत्री  शेख  अब्दुल्ला  को  बनाया  गया . वो  जम्मू  - कश्मीर  को  एक  स्वतंत्र  देश  बनाने  का  पर्यटन  कर  रहे  थे . जिसका  पता  नेहरू   को  चला  और  उन्होंने  8 अगस्त  1953 को  सदरे  रियासत  डॉ . करण  सिंह  के  माध्यम   से  सरकार  बर्खास्त  कर  दी . शेख  अब्दुल्ला  को  बंदी  बना  लिया  गया . उन्हें  22 साल  जेल  में  रखा  गया . 
 
७. जम्मू - कश्मीर  में  दूसरे  राज्य  के  लोग  परमिट  लेकर  घुस  सकते  थे . इस  के   पूर्ण  विलय  के  लिए  जनसंघ  के  अध्यक्ष  डॉ . श्यामा  प्रसाद  मुख़र्जी  ने  दिसंबर -1952 में  आंदोलन  शुरू  किया . 8 मई   1953 को  बिना  परमिट  लिए  डॉ . मुख़र्जी  ने  आंदोलनकारियों  समेत  पठानकोट  जिले  के  माधोपुर  गांव  से  लखनपुर  में  प्रवेश  करने  का  प्रयास  किया . लखनपुर  जम्मू  - कश्मीर  की  सरहद  का  पहला  मुकाम  था . लेकिन  शेख अब्दुल्ला ने  उन्हें  बंदी  बना  लिया . 23 जून  1953 को  हिरासत  में  उनकी  मौत  हो  गई . उनका  पार्थिव  शरीर  कोलकाता  पहुंचा . श्रीनगर  में  उनका  नाम  लेना  भी  गुनाह  है . वे  भारत   के महान   विद्वान और  प्रखर  शिक्षाशास्त्री  थे . 33 वर्ष  की  आयु  में  वो  कोलकाता  विश्वविद्यालय  के  उपकुलपति  बने . उन्होंने  रविंद्रनाथ   टैगोर  को  विश्वविद्यालय  में  बांग्ला  भाषा  की  पढ़ाई  के  लिए  प्रोत्साहित  किया . वे  डॉ  . राधाकृष्णन  को  बैंगलोर  से  कोलकाता  लाये  और  उन्हें  शिक्षा  की  मुख्या  धारा  से  जोड़ा . महात्मा  गाँधी  डॉ . मुखर्जी  को  इतना  चाहते  थे  की  उनके  आग्रह  पर   नेहरू  ने  डॉ . मुखर्जी  को  प्रथम  राष्ट्रीय  मंत्रिमंडल  में  उद्योग  तथा  आपूर्ति  मंत्री  बनाया . 
धारा  370 और  35A 05- अगस्त  -2019 को  समाप्त  कर  दी  गयी . उस वक्त देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री श्री अमित शाह जी थे।  लद्दाख   केंद्र  शासित  प्रदेश  और  जम्मू - कश्मीर  अलग  केंद्र  शासित  प्रदेश  बनाया  गया . अब  जम्मू   कश्मीर  भी  बाकि  राज्यों  की  तरह  आम  राज्य  होगा .

८. सितंबर   1947 में  पाकिस्तान  ने  कश्मीर  पर कब्जा करने के लिए उसकी  आर्थिक  नाकेबंदी  कर  दी . 22 अक्टूबर   1947 को  मुज़फ़्फ़राबाद  और  27 अक्टूबर  1947 को  बारामुल्ला  हथिया  लिया . वहां  के  महाराजा  ने  24 अक्टूबर  1947 को  भारत  से  सैनिक  सहायता  मांगी . लेकिन  भारत  ने  कहा  की  जो  भारत  का  हिस्सा  है  हम  वहीँ  सैनिक  भेज  सकते  हैं . महाराजा  ने  विलय  के  दस्तावेज  पर  हस्ताक्षर  कर दिए . उत्तर  -पश्चिमी  प्रान्त  को  अपनी  इच्छा  के  विरुद्ध  पाकिस्तान  में  शामिल  होना  पड़ा . सीमांत  गाँधी  के  शब्दों  में  उन्हें  भेड़िये  के  सामने  डाल  दिया  गया . उन्होंने  पाकिस्तान   की  जेलों  में  उससे  ज्यादा  समय  बिताया  जितना  स्वाधीनता   आंदोलन  में  अंग्रेजो  की  जेलों  में  बिताया  था . 
 
९. अनुच्छेद - 370 के  जरिये  कश्मीर  को  विशेष  राज्य  का  दर्ज़ा  दिया  गया . उसका  अलग  ध्वज  और  अलग  विधान  मंजूर  किया  गया . रक्षा , संचार  और  विदेश  मामलों  को  छोड़कर  संसद  द्वारा  पारित  कानून  जम्मू  एंड  कश्मीर  राज्य  विधान  सभा  की  संस्तुति  के  बगैर  लागु  नहीं  हो  सकता . दूसरे  राज्य  का  आदमी  यहाँ  सम्पति  नहीं  खरीद  सकता . यहाँ  का  आदमी  देश  में  कहीं  भी  सम्पति  खरीद  सकता  है . एक  बार  राज्य  में  कोई  माल  घुसने  के  बाद  माल  मंगवाने  वाली  पार्टी  की  अनुमति  के  बगैर  वापिस  राज्य  से  बाहर  नहीं  जा  सकता . यहाँ  पंचायती  राज  व्यवस्था  नहीं  है . विभाजन   के  समय  पाकिस्तान  से  आकर  बसने  वाले  लोगो  को  लोकसभा  चुनाव  में  वोट  डालने  का  अधिकार  है  लेकिन  विधानसभा  चुनाव  में  वो  वोट  नहीं  डाल सकते  . कोई भारतीय कश्मीरी से शादी नहीं कर सकता लेकिन पाकिस्तानी कश्मीरी से शादी करके कश्मीर का नागरिक बन सकता है।   

१४. कश्मीर  के  ' हुर्रियत ' गुट  को सरकार की तरफ से तन्खाव्ह, सरकारी  सुरक्षा  और  बीमारी  का  इलाज  करवाने  का  पैसा  मिलता  है . सन  2010 से  अमरनाथ  यात्रा  के  लिए  निशुल्क  भोजन  देने  वाले  लंगरों  पर  टैक्स  लगाया  गया . और  तीर्थयात्रियों  की  गाड़ियों  पर  राज्य  में  घुसने  पर  टैक्स  लगाया  गया .
 

११. कश्मीर  का  क्षेत्रफल  222236 वर्ग -km है . इसमें  से  78114 वर्ग -km पाकिस्तान  के  कब्ज़े  में  है .37555 वर्ग -km चीन  के  कब्ज़े  में  है , जो  उसे  पाकिस्तान  से  मिला  था . लद्दाख  का  क्षेत्रफल  59211, जम्मू  का  26293, कश्मीर -घाटी  का  15833 वर्ग -km है .

१५. सन 1988 में  02- अक्टूबर  को  महात्मा  गाँधी  की  जयंती  पर  श्रीनगर  के  उच्च  न्यायालय  ( हाई  कोर्ट ) में  उनकी  प्रतिमा  स्थापित  करने  का  कार्य  कर्म  था . भारत  के   मुख्य  न्यायाधीश  R.S. पाठक  को  प्रतिमा  का  अनावरण  करना  था . किन्तु  कुछ  मुस्लिम  वकीलों  ने  इसका  विरोध  किया . उन्होंने  कार्यक्रम  में  बखेड़ा  खड़ा  करने  की  धमकी  दी . मुख्यमंत्री  ने  इस  धोंसपट्टी  के  सामने  आत्म - समर्पण  कर  दिया . और  कार्यक्रम  को  रद्द  करना  पड़ा . विरोध  करने  वाला  नेशनल  कॉन्फ्रेंस  का  कार्यकर्ता  था . जिसे नवम्बर    -1989 में  हुए  चुनाव  में  पार्टी  ने  श्रीनगर  से  लोकसभा  का  टिकट  दिया . उस  समय  नेशनल  कॉन्फ्रेंस (F) और  कांग्रेस (I) की  गठबंधन  सरकार  सत्ता  में  थी . इस  घटना  के  विरोध  में  एक  भी  उंगली  नहीं  उठी . कुछ   प्रशासनिक  और  पुलिस  अधिकारियो  ने  आवासीय   जरूरत  पूरी  करने  के  लिए  1985 ईस्वी  में  राजतरंगिणी  को  - ऑपरेटिव   सोसाइटी  का  गठन  किया . इस  पर  तीखा  विरोध  हुआ . विरोध  करने   वालों  का  तर्क  था  की  राज्य  के  बाहर  के  सदस्य  रिहायशी  प्लाट  नहीं  ले  सकते  भल्ले  ही  वो  को  - ऑपरेटिव   सोसाइटी  के  सदस्य  हो . इन  IPS और   IAS अधिकारियों  को  साम्राज्यवादी  शक्ति  का  एजेंट  बताया  गया  और  उनकी  तुलना  ईस्ट  इंडिया  कंपनी  से  की  गई . खिन  अधिकारियों   ने  सोसाइटी भंग   कर  दी . सन  2009 में  अमर - नाथ  यात्रियों  के  ठहरने  के  लिए  राज्य  सरकार  ने  स्थाई  ज़मीन मुहैय्या  की  तो  इसका  मुस्लिम  संगठनों  ने  जमकर  विरोध  किया . सरकार  ने  दबाव  में  आकर  फैसला  वापिस  ले  लिया . तब  हिन्दुओ  ने  प्रदर्शन  किये . तो  उन  पर  पुलिस  ने  लाठिया  चलाई , आशु  गैस  छोड़ी  और  गोलियां  चलाई . लेकिन  यह   विरोध  बंद  नहीं  हुआ, और  23 जुलाई  2008 को  कुलदीप  कुमार  डोगरा (35 साल ) ने  सार्वजानिक  रूप  से  आत्म - हत्या  कर  ली .
  करीब  एक  महीने  के  विरोध  के   बाद  सरकार  की  नींद  खुली  और  उसने  वो  ज़मीं  अस्थाई  तौर  पर  अमर - नाथ  यात्रियों  के  लिए  मुहैया करवाई  .
 

 
१२.  20- सितम्बर  1870 के  दिन  पॉप  के  रोम  पर  इटली  का  अधिकार  हो  गया . पॉप  बनाम   इटली  को  लेकर  मतदान  हुआ . पोपवाद  हार  गया . इटली  की  संसद  ने  1871 में  ' लॉ  ऑफ़  पेपर  गारण्टीज  ' पारित  किया . पॉप  को    उनका  निवास  और  वेटिकन  सिटी  क्षेत्र  देकर  सर्वोच्य  माना  गया . बाकि  रोम  अलग  हो  गया .
 
१३. अमेरिका  में  करीब  55 राजनितिक  दल  हैं . लेकिन  प्रमुख  हैं  रिपब्लिकन  और  डेमोक्रेटिक  पार्टी . रिपब्लिकन  पार्टी  का  चिन्ह  है  हाथी , जो  कार्टूनकार  टॉमस  नश्ट  की  कल्पना  से  उपजा  था . पहली  बार   7 नवंबर  1874 में  हार्पर्स  साप्ताहिक  में  छपा  था . डेमोक्रेटिक  पार्टी  का  चिन्ह  है  गधा . सन  1828 में  जब  एंड्रू  जैक्सन  राष्ट्रपति  पद  के  लिए  खड़े  हुए  तो  उन्होंने  नारा  दिया  ' जनता  का  राज '. उनके  विरोधी  उनकी  तुलना  ' गधे ' से  करने  लगे . जैक्सन  ने  इसे  ही  अपना  चुनाव  चिन्ह  बना  लिया .   

7. - बर्लिन की दीवार--
एक दीवार जिसने रातों रात बांट दिया था एक देश, 9/11 को गिराकर रचा था एक इतिहास।
9 नवंबर का दिन ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद खास है। यह इस लिहाज से भी खास है क्‍योंकि इसी दिन भारत के सुप्रीम कोर्ट ने वर्षों पुराने अयोध्‍या मामले पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। वहीं तीस वर्ष पहले आज ही के दिन यानि 9 नवंबर 1989 को बर्लिन की दीवार को ढहा दिया गया। यह ऐतिहासिक घटना इतिहास के पन्‍नों में दर्ज है। जिन लोगोंं ने इस दीवार को बनते और गिरते देखा उनके लिए भी यह पल काफी खास रहा। यह केवल इस दीवार के ढहने तक ही सीमित नहीं था बल्कि इसके ढहते ही पूर्वी और पश्चिम जर्मनी एक हो गए।बर्लिन की दीवार का निर्माण 13 अगस्त 1961 को हुआ था। इस दीवार को बनाने के पीछे दो बड़े मकसद थे। पहला कई देशों द्वारा पश्चिमी जर्मनी से पूर्वी जर्मनी की हो रही जासूसी को बंद करना तो दूसरा मकसद उस वक्‍त हो रहे पलायन पर रोक लगाना था। दरअसल, लोगों के पूर्वी जर्मनी से पश्चिम की तरफ पलायन करने का असर यहां के उद्योग धंधों पर पड़ रहा था। इसको रोकने के लिए सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने दीवार का निर्माण करवाया। यह शीतयुद्ध का दौर था। इस दौर में यहां पर करीब 60 जासूसी सेंटर मौजूद थे। दीवार बनाने से पहले पूर्वी जर्मनी ने सीमा को रातों-रात बंद कर यहां पर भारी मात्रा में सुरक्षाबल तैनात कर दिए गए। सड़कों की लाइट बंद कर रातों-रात यहां पर कटीले तारों की बाड़ लगा दी गई। इस एक कदम ने रातों-रात एक देश दो भागों में बांट दिया था। दीवार बन जाने के बाद एक दूसरे के इलाके में जाने के लिए नियम बेहद सख्‍त थे। इस दीवार को पार करने के लिए वीजा जरूरी हो गया था। दोनों तरफ के लोगों के लिए यह फैसला काफी बुरा था। इस फैसले से कई परिवार बिछड़ गए थे। इस दीवार की निगरानी के लिए 300 से भी अधिक वॉच टावर बनाए गए थे। इन पर चढ़कर गार्ड यहां से गुजरने वालों पर कड़ी निगाह रखते थे। अवैध रूप से गुजरने वालों को यहां बिना पूछे गोली मार दी जाती थी। अब इनमें से कुछ ही बचे हैं। इसमें से एक है पॉट्सडामर प्लात्स के पास खड़ा एक टावर।
वक्‍त बीतने के साथ लोगों के अंदर इस दीवार को लेकर आक्रोश बढ़ता जा रहा था। लोगों के इस आक्रोश को देखते हुए 9 नवंबर 1989 को पोलित ब्यूरो के सदस्य गुंटर शाबोस्‍की ने इस दीवार को खोलने का एलान किया।इस घोषणा की खबर आग की तरह फैली और लोग अपने परिजनों से मिलने के लिए काफी संख्‍या में दीवार के नजदीक एकत्रित हो गए। इस जनसैलाब को देखते हुए दीवार को पूरी तरह से हटा दिया गया। दीवार के हटने के बाद कई परिवार और लोग ऐसे थे जो वर्षों बाद अपनों से मिले थे। उनके लिए यह अहसास कभी न भूलने वाला था। बर्लिन की यह दीवार करीब 160 किलोमीटर लंबी थी। वर्तमान में यहां पर दीवार के अवशेषों को इतिहास की धरोहर के तौर पर एक म्‍यूजियम में रखा गया है। जब तक यह दीवार थी तब यहां पर चेकपॉइंट चार्ली जो एक क्रॉसिंग प्‍वाइंट था काफी प्रसिद्ध था। आपको बता दें कि पश्चिम जर्मनी जहां पर अमेरिका के हाथों में था वहीं पूर्वी में रूस हावी था। दोनों ही देश एक दूसरे की जासूसी करवाते थे। इस चेकप्‍वाइंट पर अमेरिकी सैनिक हाथों में तख्‍ती लिए खड़े रहते थे, जिसपर लिखा होता था आप अमेरिकी सेक्‍टर में हैं। इस जगह को कोल्‍ड वार डिज्‍नीलैंड भी कहा जाता है।
 
 
 






 

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