मूल भूमिका --- भारतीय समाज , सामाजिक , आर्थिक , क़ानूनी , राजनैतिक परिस्थितियों पर अपना नजरिया।
राम मंदिर ---
राम मंदिर का निर्माण जून 2020 में शुरू हो पाया।बहुत ही जलील करने वाली बात है कि हम 800 साल राम मंदिर का इंतज़ार करते रहे।मुगल शासन फिर अंग्रेज शासन बीच मे हिन्दू राजा भी आये लेकिन राम मंदिर नहीं बना।गांधी जी ने भी कोई कोशिश नहीं की।आज़ादी के बाद भी हम 72 साल अदालतों के चक्कर काटते रहे ।हिन्दुओ का देश, हिन्दू अधिकारी, हिन्दू जज, हिन्दू नेता, हिन्दू मंत्री उसके बावजूद मुस्लिमों ने हमे अयोध्या में राम मंदिर नहीं बनाने दिया।हमारे सबसे बड़े भगवान का उनकी ही जन्म भूमि पर मंदिर बनाने के लिए हमे बेइज्जती ही बेइज्जती करवानी पड़ी। अभी तो मथुरा में कृष्ण मंदिर, वाराणसी में शिव मंदिर समेत बहुत से मंदिर और ऐतिहासिक इमारते हैं जो मुस्लिमों के कब्जे में हैं या उनके नाम से चल रही हैं।
जजों ने भगवान राम का कई बार अपमान किया।उनके पैदा होने के सबूत मांगे गए।जो जज कल पैदा हुए उनके पैदा होने के सबूत नहीं है वो भगवान राम के सबूत मांग रहे हैं।वर्तमान गद्दार पीढ़ी के पास राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के लिए सबूत नहीं हैं फिर भी उन्हें देश में रहने की इजाजत है और बोलते हैं भगवान के पैदा होने के सबूत लाओ।करोड़ों सालों से भगवान राम हमारे दिलों में जिन्दा हैं इससे बड़े क्या सबूत होंगे ।जज अपने आप को भगवान राम से ऊपर समझने लगे।हमे राम मंदिर के लिए बहुत से आंदोलन करने पड़े , बहुत से हमारे भाई शहिद हुए। बड़ी मुश्किल से राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हुआ।ऐसा किसी भी देश में, किसी भी धर्म के आराध्य के साथ नही हुआ।दूसरे धर्मों में तो यहां तक है कि जहां उनके आराध्य का जन्म हुआ उस जगह कोई दूसरे धर्म का आदमी रह नहीं सकता, घुस नहीं सकता।उस शहर में किसी दूसरे धर्म का पूजा स्थल नहीं बन सकता।अगर बाबरी मस्जिद नहीं गिरती तो राम मंदिर भी कभी नहीं बनता। हम उन सभी लोगों का धन्यवाद करते हैं जिन्होंने 1992 में ये महान कार्य किया जैसे- कोठारी बन्धु शरद-रामकुमार कोठारी जी, लाल कृष्ण आडवाणी जी, अशोक सिंघल जी, उमा भारती जी, मुरली मनोहर जोशी जी, कल्याण सिंह जी (उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री), नरसिम्हा राव जी (उस समय देश के प्रधानमंत्री) ,सभी साधु संत,राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता,विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता, सभी कार सेवक, आंदोलन में शामिल सभी आम लोग।
राम मंदिर के लिए आंदोलन अंग्रेजी राज से लेकर 2020 तक चले। अदालत में मुकदमे भी अंग्रेजी राज से ही चल रहे थे. राम मंदिर के लिए सबसे बड़ा आंदोलन गौरक्ष पीठाधीस्वर महंत अवैद्धनाथ जी ( गोरखपुर गोरखनाथ मंदिर ) ने 1984 में शुरू किया था। उन्होंने सभी धर्माचार्यों को इक्क्ठा कर के 21 जुलाई 1984 को राम जन्मभूमि यज्ञ समिति बनाई और आंदोलन किये।
( हृदय विधारक ) --
जिन लोगो ने अंग्रेजो और मुस्लिमो के राज में देश से गद्दारी की, अंग्रेज और मुस्लिमो की चापलूसी की उन लोगो ने कल भी सुख भोगा और उन्ही की पीढ़ियाँ आज सुख भोग रही हैं। कल अगर फिर ऐसी कोई स्थिति बनती है तो ये लोग फिर गद्दारी करेंगें।सुना है महात्मा गांधी जी ने कभी आज़ादी नही मांगी फिर भी वो आज़ादी के अकेले नायक बने हुए हैं। अंग्रेजों से माफ़ी मांगने पर सावरकर जी जैसे योद्धा का इस देश में अपमान होता है, उन्हें देश द्रोही बोला जाता है । सिर्फ एक खून करने पर गोडसे को द्रोही बोला जाता है। गांधी ने हमारी कीमती जमीन मुगलों को दे दी , देश का बंटवारा कर दिया , लाखों लोगों की मौत का जिम्मेदार बना , लाखों महिलाओं के बलात्कार का जिम्मेदार बना , लाखों हिन्दुओं को मुस्लिम धर्म में धकेलने वाला बना , अलग देश देने के बावजूद मुस्लिमों को देश में पनाह देने वाला बना उसे हम महात्मा , राष्ट्र पिता और भारत रत्न की उपाधि देते हैं। मुस्लिमों को भारत में रोकने का फैंसला आज भी नासूर बना हुआ है।
भारत वो विशाल देश है जिसकी आबादी 125 करोड़ से ज्यादा है ।भारत के भाग्य का फैसला चंद लोग करते है।वही कानून बनाते है, 125 करोड़ लोगों को कैसे जीना है वही तय करते हैं- कैसे रहना है,क्या करना है,किस चीज पे प्रतिबन्ध लगना है । जाहिर है वो अपने हिसाब से और खुद के लिए जो महफूज हो वैसे ही नियम बनाएंगे या बनाने के लिए दबाव बनाएंगे।उनमे नेता, उधोगपति,सरकारी कर्मचारी और सेलिब्रिटी लोग शामिल है।ये लोग देश को अपनी मर्जी से चलाते हैं।
जनता ने अगर किसी को विधायक सांसद चुना है तो इसका मतलब ये नही की जो जनता सोचती है वही वो लोग सोचते हैं। जनता के पास विकल्प ही नहीं हैं। लोग जागरूक नहीं हैं। निजी मुद्दों पर वोट दिए जाते हैं। कानूनों को कैसे बदलवाना है या बनवाना है। उनसे कैसे आम जनता को फायदा होगा इसकी जानकारी नहीं है। हर आदमी के विचार अलग होते हैं।जो भी सरकार बनती है उसे सिर्फ 30-35% वोट ही मिलते हैं।और उन लोगो के भी विचार किसी विषय पर अलग अलग होते है।इसलिए सरकार जो नियम बनाती है वो सही है ये कहना बिल्कुल गलत है।
ये लोग ऐसा कोई कानून नही बनाते जो इनके खिलाफ हो।दो पार्टी एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ती हैं।आपस मे एक दूसरे को भला बुरा कहती हैं। जब किसी को बहुमत नही मिलता तो आपस गठबंधन करके सरकार बना लेती हैं।तर्क देते हैं कि हमने ये जनता की भलाई के लिए किया है।
क्या कानून नही होने से कोई अपराध अपराध नही होता या जिस विषय के खिलाफ कानून है वो विषय सही नही है।जिस दिमाग के लोगो की हुकूमत होती है वैसे ही कानून देश मे लागू होते है।आज की सरकार या हुकूमत के लिए जो सही है हो सकता है आने वाली सरकार या हुकूमत उसे गलत बता दे।
इसमे पिसती तो जनता ही है । नुकसान हर बार उसे ही उठाना पड़ता है।
जैसे--सस्ते दामो पर भूमि अधिग्रहण करके अमीरो को दे दी जाती है।प्राकृतिक संसाधनों की गलत बोली प्रक्रिया अपनाई जाती है।एक सरकार नोकरी लगाती है दूसरी हटा देती है।
शहरी , धनाढ्य , सेलिब्रिटी को ध्यान में रखकर कानून बनाये जाते हैं। ग्रामीण जनता के बारे में नहीं सोचा जाता।
70% लोग ग्रामीण है. उनका कल्चर,उनका रहन सहन,उनके विचार,उनका भाईचारा इस देश की सरकारों को,न्यायपालिका को,कार्यपालिका ,मीडिया और पूंजीपतियों को सबको खटकता है। ग्रामीण भारत की संस्कृति को बचाने का प्रयास कर रहे है लेकिन कानून उनके खिलाफ बना दिये गए है।ऊपर के कुछ मुठी भर लोग है जो विदेशी संस्कृति देश पर थोप रहे है और सारे कानून उनके पक्ष में है।गांव में इतनी बड़ी आबादी है जो किसान है।किसान देश के अन्नदाता हैं लेकिन उस अन्नदाता को कोई नही पूछता कितने शर्म की बात है।
किसान को कोई मैडल,कोई सम्मान,कोई अवार्ड नही मिलता।हक़ की आवाज़ उठाते ही लाठिया बरसाई जाती है और गोलिया चलवाई जाती है।फसलो के सही दाम नही मिलते।देश की नीतियां बनाने में उनका कोई योगदान नही है।सीमाओं पर लड़ने के लिए और देश के अंदर लड़ने के लिए वो अपने बेटे बेटियां देते है। किसानों के बेटे बेटियां ही सैनिक हैं , पुलिस के हैं. देश के पद्म श्री, भारत रत्न तो ये लोग हैं।लेकिन हम सम्मानित करते है उनको जिन्होंने इस देश की संस्कृति को तार तार कर दिया।जो पैसे के लिए किसी भी हद तक जा रहे है।अपने जिस्म की नुमाइश कर रहे है।उनके खिलाफ हमारे पास कोई कानून नही है। अगर ग्रामीण सत्ता में होते तो उनके खिलाफ जरूर कानून होते।
दूसरी तरफ मज़दूर है जो दिन रात मेहनत करते है।समय से पहले बूढ़े हो जाते है।उनको इतनी भी मज़दूरी नही मिलती की वो ठीक से जीवन यापन कर सके।मजदूर दुसरो का घर भरते है लेकिन खुद का घर खाली रह जाता है।कोई प्यार से बात तक नही करता।वैसे तो हर इंसान का अपना महत्व है लेकिन मज़दूर वो कड़ी है जिसके बगैर हर निर्माण अधूरा है।कम से कम उन्हें इतना तो मिले की जब वो मेहनत करने के लायक न रहे या कुछ दिन काम न मिले तो उन्हें दो वक्त की रोटी मिल सके।यहां तो उन्हें रोज़ जितना मिलता है उतना खर्च हो जाता है।फिर भी बेचारे तनख्वाह या सुविधाओं के लिए कभी रोना नहीं रोते। जब भी कोई संकट आता है तो गाज इन पर ही गिरती है। तनख्वाह कम कर देना, मजदूरी ना मिलना ,काम ना मिलना , साधन ना मिलना , अस्पतालों में जगह ना मिलना , अन्य कोई सुविधा ना मिलना।
एक तो कुछ बचता नही है।बचता है तो ये लोग दारू या जुए में उड़ा देते है।बीवी बच्चो को मारते पीटते है।इनके बच्चे पढ़ नही पाते।जिससे वो जहां थे वहीं रह जाते है।लोग तो शायद ही उनके लिए कुछ करे लेकिन मज़दूरों को भी अपने लिए कुछ करना होगा।हम देखते है कि उन्ही का एक भाई वर्षों की कड़ी मेहनत से,नशे-पत्ते से दूर रहकर,थोड़ी-थोड़ी पूंजी जोड़कर,बच्चो की अच्छी शिक्षा करवाकर एक अच्छी जिंदगी जीने लगता है या अपने बच्चों को एक अच्छा माहौल दे जाता है।जिससे उसके बच्चों की ज़िंदगी सुधर जाती है।बाकी लोग भी ऐसा ही कर सकते है।
कुछ ऐसे हैं जिनका टारगेट 100- 200-300 रुपये होता है।उससे ज्यादा का अगर काम मिलता भी है तो वो ठुकरा देते हैं।मैंने खुद करीब से देखा है।
जो लोग अच्छी खासी नौकरी कर रहे है उनके लिए स्कूल फ्री,अस्पताल फ्री,किराया फ्री और मकान फ्री है। बाकि कई साड़ी सुविधाएँ और मिलती हैं। यानी इस देश मे जिसका पेट भरा हुआ है उसी को दावत मिलती है।इन फ्री सुविधाओ की जरूरत तो मज़दूर,किसान,फुटपाथ पर रहने वाले गरीब और अनाथ बच्चों को है।
तीसरी तरफ जवान है जो घर से दूर विपरीत परिस्थितियों में रहते है।वो खुद त्याग करते है और साथ मे उनका परिवार भी त्याग करता है।लेकिन उन्हें ठीक से खाना भी नही मिलता।फिर भी वो बिना कोई मांग किये,बिना शिकायत किये देश के लिए लड़ रहे है।देश के लिए अपनी जान दे देते है।उन्हें भी अपनी जान प्यारी है।उनके भी घर वालो के लिए वो अनमोल है।कोई मैच में दो चार छक्के मारकर और कोई फ़िल्म में दो ठुमके मारकर करोड़ो ले जाते है। जवानों को शहीद होने पर भी कुछ नही मिलता।किसी भी बड़े आदमी का बच्चा सेना में नही मिलेगा।इन्हें तो अपनी जान इतनी प्यारी है कि घर से बाहर भी सिक्योरिटी गार्ड लेकर निकलते हैं।देश के संसाधनों पर,पैसे पर और सारी सुख सुविधाओं पर पहला हक़ अमीरो का है।लेकिन जब शहादत की बात आती है तो दूसरों को आगे कर देते हैं।जिस दिन देश पर हमला हो जाएगा उस दिन ये लोग देश छोड़कर भाग जाएंगे।जैसे कमल हासन की फ़िल्म बैन हुई तो उन्होंने देश छोड़ने की धमकी दी।आमिर खान को देश साम्प्रदयिक लगा।
किसान,जवान और मज़दूर ये वो कंधे है जिन पर देश खड़ा है।और ये वो देश है जिसकी शासन प्रणाली में इनकी भागीदारी नही है।ये चिल्लाते है तो कोई नही सुनता लेकिन एक अभिनेता या पूंजीपति बोलता है तो सब सुनते हैं।
कोई खेल की दुनिया का बड़ा नाम है या बॉलीवुड सितारा है तो लोग उसे मुफ्त कार, बाइक,फ्लैट या जमीन दे देते है।तर्क देते है कि हम खेल या हुनर को बढ़ावा दे रहे है।अगर खेल या हुनर को बढ़ावा देना है तो जो लोग संघर्ष कर रहे है उनकी मदद करो।संघर्ष के दिनों में उन्हें सुविधाएं मुहैया करवाओ।जो लोग संघर्ष करके नाम कमा चुके है। पैसा कमा चुके है और अच्छा खासा कमा रहे है।उन्हें तुम्हारे पैसे की या तोहफों की क्या जरूरत। जब आदमी संघर्ष कर रहा होता है तो कोई मदद करने नही आता । जब वो अपने दम पर सफल हो जाता है, एक ब्रांड बन जाता है तो सब फायदा उठाने आ जाते है।
पान सिंह तोमर लोगो को मारता है तो वो डाकू कहलाता है।चाहे वो गलत लोगो को ही मार रहा हो।और जब सेना या पुलिस आम लोगो पर लाठी,गोली और बम बरसाती है तो वो महान कार्य होता है।क्योंकि उनके हाथ मे राजदंड है।वो एक देश का प्रतिनिधित्व करते है।पुष्प कमल दहल प्रचंड कभी नेपाल का आतंकवादी था,बाद में प्रधानमंत्री बन गया।दूसरे देशों ने उसका सम्मानीय व्यक्ति की तरह स्वागत किया।मुशर्रफ कभी पाकिस्तान का राष्ट्रपति था कभी भगोड़ा घोषित किया गया।आतंकवादियों के हाथ भी आम लोगो के खून से रंगे हैं और कुछ राष्ट्राध्यक्षो के हाथ भी।अमेरिका ने भी आम लोगो पर बम बरसाए हैं।लेकिन दोनों की ऐतिहासिक और राजनीतिक स्वीकार्यता अलग अलग है।यहां तक कि एक इंसान को एक देश मे आतंकवादी मानते हैं दूसरे देश मे शहीद।
( मीडिया ) ---
पत्रकारिता बहुत ही साहसिक ,खतरनाक और त्याग का काम है. बहुत कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ता। खतरे मोल लेने पड़ते हैं. संबंध भी तोड़ने पड़ते हैं। अपने परिवार से दूर रहना पड़ता है और खबर के लिए किसी भी वक्त कहीं भी जाना पड़ता है. पत्रकार भाइयों को इतने जोखिमों के साथ काम करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
आजकल पत्रकारिता कुछ स्वार्थी भी हो गई है। पैसा ,सम्बद्ध ,विज्ञापन ,राजनितिक फायदा सब देखकर खबरे दिखाई , बनाई , छिपाई , खरीदी-बेचीं जाती हैं. कई बार मीडिया अति कर देता है , वो चाहता है कि देश उनके इशारे पर चले।मीडिया जो कहता है, करता है वो सब सही है।खुद में उसे कोई कमी नज़र नही आती।दुसरो की हर चीज में खामी नज़र आती है।मीडिया को फालतू की चीजों से ज्यादा लगाव है जबकि देश हित की चीजों से कम लगाव है।मीडिया ने कई अच्छे काम किये हैं।मीडिया की वजह से कइयों को इंसाफ मिला है।लेकिन उन्हें आत्म मंथन की जरूरत है।खबरों का सलेक्शन ठीक करने की जरूरत है।
बाढ़ में डूबते हुए लोगो को बचाने के बजाए उनसे पूछते है कि आपको कैसा महसूस हो रहा है।पटना में एक औरत को नंगा घुमाया जा रहा था ( 2008-2009 के आसपास ) ।पत्रकारों ने उस वारदात को कैमरे में कैद किया।मीडिया ने समाज की इंसानियत पर सवाल उठाए।कई दिन ये न्यूज़ टीवी और अखबारों में आई।इतनी भीड़ में एक महिला को नंगा घुमाया गया लेकिन कोई बचाने नही आया।क्या पत्रकार इन्सान नही थे? वो उस महिला को बचाने के लिए कुछ नही कर सकते थे? उन्हें तो न्यूज़ चाहिए वो चाहे जैसे भी आये।वहां खबर बनाने से ज्यादा जरूरी उस महिला को बचाना था।जितनी बेइज्जती उस महिला की नंगा घुमाने वाले लोगो ने नही की, उससे ज्यादा तो न्यूज़ चैनल वालो ने कर दी।अगर वो महिला को बचाते तो उनका ज्यादा नाम होता।ऐसी ही घटना मुम्बई में होली के दिन हुई थी (2009-2011 के आसपास )।जब सैंकड़ो की भीड़ में एक महिला फंस गई।रंग लगाने के बहाने उससे बहुत छेड़छाड़ हुई।वहां भी मीडिया के लोग सिर्फ फ़िल्म बनाते रहे।आप भी तो समाज का हिस्सा हैं।पत्रकार होने से पहले आप एक इंसान हो।खबर बनाने से पहले आप का काम लोगो को बचाना है।इन महिलाओं को बचाने के लिए अगर कोई और आगे नही आ रहा था तो कम से कम आप तो आगे आते।
जब 2008 मुम्बई में ताज होटल और दूसरी जगहों पर आतंक वादी हमला हुआ तब मीडिया हमारे सैनिको की लड़ते हुए,हेलीकाप्टर से छत पर उतरते हुए,अंदर जाते हुए सारी लाइव तस्वीरे दिखा रहा था। इस कवरेज का फायदा आतंकवादियों को मिल रहा था।जब सेना और सरकार को इस बात का पता लगा तो मीडिया को रोका गया।मीडिया ने बेशर्मी की हद तब कर दी जब कहा कि हमने देशभक्ति में ये फैसला किया है कि हम लाइव तस्वीरे नही दिखाएंगे।
मीडिया ने एक बार भी ये नही कहा कि हमें सरकार ने लाइव ख़बरें दिखाने से रोका है। ना ही मीडिया ने कभी इस कुकृत्य की माफी मांगी।
जब दो आदमियो का आपसी झगड़ा हो और वो दोनों एक ही जाति-धर्म के हो तो मीडिया की सामान्य प्रतिक्रिया रहती है।लेकिन अगर उनमे से एक ऊंची जाति और एक नीची जाति का हो या अलग अलग धर्म के हो तो मीडिया उसे जाति बनाम जाति , धर्म बनाम धर्म बनाकर पेश करता है चाहे वो कितना ही निजी,कितना ही सामान्य झगड़ा हो।क्या मीडिया इसे भी दो व्यक्तियों का झगड़ा बताकर पेश नही कर सकता।मीडिया धार्मिक तनाव का,दंगो का दोष नेताओ के सिर फोड़ देता है।यदि आप भड़काऊ भाषण देने वाले नेताओ को,दंगो को और किसी भी तरह के तनाव को कवरेज नही दोगे तो ये सब एक दो दिन में अपने आप बन्द हो जाएगा।इसलिए मेरा मानना है कि जितने भी दंगे,सामाजिक तनाव होते है उनमें सबसे ज्यादा दोषी मीडिया होता है।आप जितना किसी तनाव को हाई लाइट करोगे वो उतना ही बढेगा।लेकिन मीडिया ने कभी इसकी जिम्मेदारी नही ली।कभी मीडिया पर किसी सरकार ने या कोर्ट ने एक्शन नही लिया।
कोई व्यक्ति तनाव फैलाता है,कोई गलत भाषण देता है तो वो सिर्फ पब्लिसिटी के लिए ऐसा करता है।अगर मीडिया उसका बायकाट करे तो वो व्यक्ति वैसी हरकते बन्द कर देगा।जो अच्छी खबर है अगर वही दिखाई जाए तो देश के लिए अच्छा है।बाला साहब ठाकरे और राज ठाकरे ने मुम्बई में उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगो के खिलाफ खूब उत्पात मचाया।मीडिया ने भी उन्हें खूब पब्लिसिटी दी।और आश्चर्य ये है कि पुलिस ,सरकार और न्यायालय ने कभी उनके खिलाफ एक्शन नही लिया।
न्यूज़ चैनल और अखबार किसी भ्रष्टाचार के खिलाफ जोर शोर से आवाज़ उठाते हैं। और कुछ दिन में वो आवाज़ शांत हो जाती है।उसी प्रोजेक्ट की प्रशंसा भी करने लगते है। इसका क्या कारण है? पैसे में न्यूज़ बिकती है,पैसे में दिखाई जाती है,पैसे में बंद की जाती हैं।हर शहर का बाहुबली किसी ना किसी रूप से मीडिया और राजनीति से जुड़ा हुआ है। मीडिया जिनको कोसता रहता है, अगर वही उनके न्यूज़ चैनल या अखबार की प्रशंसा कर दे तो मीडिया उसे देवता बताने लगता है।
जब आर.बी. आई. अपनी रेपो दर बढ़ाती है तो मीडिया कई दिन तक उसी पर हल्ला मचाता रहता है।कैसे गरीबो की जेब पर डाका डाला गया है लोगो को वही हिसाब किताब समझाने में लगा रहता है।खबर इस तरीके से पेश करता है जैसे कि बहुत बड़ा भूचाल आ चुका है। जैसे किसी ने बीस लाख का लोन बीस साल के लिए लिया है तो उसे एक साल में पुरे पांच सौ रुपये अधिक चुकाने होंगे।ये आर बी आई ने एक महंगाई से झुंझते हुए आम आदमी की कमर तोड़ दी है।मैं ये जानना चाहता हूं कि कौंन सा आम आदमी बीस लाख का होम लोन लेता है। जो लेते हैं उनकी औकात अच्छी खासी होती है।एक साल में पांच सौ रुपये उनके लिए कोई ज्यादा नही है।पांच सौ रुपये से ज्यादा तो उनका एक महीने का पान-गुटके का खर्चा है।
जब कभी अंधविस्वास के कारण या झाड़फूंक के कारण किसी की जान जाती है तो मीडिया इनके खिलाफ आवाज़ उठाता है।लेकिन वही मीडिया पैसे के लिए बाबाओ-मौलवियों के विज्ञापन देता है,उनके लाइव प्रोग्राम दिखाता है।उनकी शक्ति का गुणगान करता है।उनका तर्क होता है कि हमारी आमदनी का जरिया विज्ञापन है और हम उन्हें विज्ञापन के तौर पर दिखाते है।क्या पैसा ही आपके लिए सब कुछ है? इस देश के प्रति आपकी बहुत बड़ी जिम्मेवारी है आप पैसे के लिए गलत चीज को शह नही दे सकते।आपको लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है।
घटिया उत्पादों के घटिया ,भ्रामक ,झूठे विज्ञापन दिखातें हैं. सिर्फ पैसे के लिए जनता में किसी भी चीज का प्रचार कर देतें हैं और नसीहत दूसरों को देतें हैं।
सब्जी दाम अगर थोड़े बढ़ जाये तो मीडिया ऐसे हल्ला मचाता है जैसे परमाणु बम गिर गया।अगर हम देखे तो वर्षो से सब्जी,फल या फसलो के दाम वही के वही है।जबकि बाकी चीजों के दाम बहुत बढ़ चुके है।और तो और सरकारी सेवा क्षेत्र की तनख्वाह कहा से कहाँ पहुंच चुकी है।एक परिवार सौ रुपये की सब्जी में पूरा दिन भर पेट खा सकता है चाहे दाम जितने भी बढे हुए हो।सब्जी में पौष्टिकता भी होती है।सब्जी और फलों के दाम पर हल्ला मचाने वाले यही लोग एक छोटे से पिज़्ज़ा पर तीन सौ चार सौ रुपये खर्च कर देते है।रेस्टोरेंट में एक चावल की छोटी सी कटोरी पर सौ रुपये खर्च कर देते है।जबकि घर पर अगर बनायें तो बिस रुपये के चावल में पूरा परिवार भर पेट खा लेता है।एक समोसा या एक आलू टिक्की पर तीस चालीस रुपये खर्च कर देते है।जबकि इनसे न तो पेट भरता, ना ही इनमे पौष्टिकता होती है।लेकिन इन के खिलाफ कोई आवाज़ नही उठाएगा।ना मीडिया हल्ला मचाएगा, ना लोग सड़कों पर उतरेंगे, न सरकार कोई कदम उठाएगी।क्योंकि इन्हें बेचने वाले अमीर लोग है।जबकि सब्जी ,फल,अनाज बेचने वाले गरीब लोग है।
डीज़ल पेट्रोल के दाम अगर 1-2 रुपैया बढ़ जाते हैं तो मीडिया ऐसे हल्ला मचाता है जैसे आसमान टूट पड़ा।और वो लोग सड़कों पे जुलूस निकालते हैं जिन्हें 1-2 रुपये से कोई फर्क नही पड़ता।ये वो लोग हैं जो रोज दारू,बीड़ी,सिगरेट,पान गुटखा पर इससे ज्यादा खर्च करते हैं।सरकार जायज 1-2 रुपैया ज्यादा लेती है तो इनको दर्द होता है लेकिन पेट्रोल पंप मालिक चोरी से इन्हें लाखो का चूना लगाते,मिलावट का तेल बेचते हैं,कम तेल डालते हैं तो कोई जुबान नही खोलता।रेलवे पांच-दस रुपए किराया बढ़ा देता है तो तूफान आ जाता है लेकिन यही लोग टी टी या एजेंट या पुलिस को 500-700-1000 हंस हंस के दे देते हैं।माल भाड़े से ज्यादा पैसा रेलवे लेबर या बाबू को दे देते हैं।लेकिन माल भाड़े का पैसा देते हुए दर्द होता है।कस्टम ड्यूटी बढ़ जाती है तो हल्ला मचता है लेकिन कस्टम आफिस के बाबुओं को लाखों रुपया रिश्वत देने में कोई संकोच नही।सही बिल से माल परिवहन करने में दिक्कत है लेकिन सेल्स टैक्स वालों को रिश्वत देकर माल परिवहन करने में संकोच नही है ।हमारे देश मे जायज़ पैसा कोई देना नही चाहता और नाजायज़ पैसा देने में किसी को कोई आपत्ति नही है।इस देश मे जितना रुपैया टैक्स के रूप में आता है , उससे कही ज्यादा सरकारी बाबुओं की जेब मे जाता है।हल्ला मचता है तो सिर्फ टैक्स को लेकर।उसमें सब रियायत चाहते हैं।टैक्स कोई भरना नही चाहता। कारोबारी लोग टैक्स की चोरी करते हैं उसे छुपाने के लिए बाबुओं को रिस्वत देते हैं। जब एक बाबू का तबादला होता है और दूसरा आता है तो वो पिछले रिकॉर्ड खंगाल लेता है जिससे दोबारा फिर रिस्वत देकर मामला दबाना पड़ता है। अगर कहीं कोई ईमानदार अधिकारी निकल गया तो पूरा टैक्स भरवा लेता है। ऐसी स्थिति में दोहरा नुकसान होता है। सरकारी रिकॉर्ड और सरकारी नियम कभी दफ़न नहीं होते वो कभी भी , किसी भी समयावधि का रिकॉर्ड खंगाल सकते हैं , टैक्स चोरी पकड़ और भरवा सकते हैं। रिस्वत लेने वाले अधिकारी तो बच निकलते हैं। इनका तो तबादला होता रहता है। लेकिन कारोबारियों की जान हमेशा अटकी रहती है , एक भय बना रहता है। तो क्यों ऐसे काम करने , जायज़ टैक्स भर के चैन से रहो। जितना जायज टैक्स होता है दोहरा तिहरा खिला पीला कर आप उतने में ही पड़ जाते हो। बदनाम होते हो वो अलग। लेकिन अपने आप में आपको ये झूठा गुमान रहता है कि हमने पैसा बचा लिया। क्योंकि हमारी रगो में भ्रष्टाचार का खून दौड़ रहा है जो हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा। और इसीलिए सब कुछ जानते समझते हुए भी हमारी आदत नहीं छूटती।
जब किसी स्कूल- कॉलेज मे बलात्कार होता है तो उसे बंद कर दिया जाता है।दिल्ली में एक ऑनलाइन टैक्सी प्रोवाइडर कंपनी की टैक्सी में बलात्कार हो जाता है।पंजाब में बादल परिवार की बस से एक लड़की को बाहर फेंक दिया जाता है।मीडिया दोनों कंपनियों को बंद और मालिको को गिरफ्तार करवाना चाहता था।कई दिन तक मीडिया हल्ला मचाता रहा।इसमे कंपनी या मालिक की क्या गलती थी। गलती तो उन कर्मचारियों की थी। किसी के माथे पे थोड़े ही लिखा है कि ये सही है और ये गलत व्यक्ति है।संस्था चलाने के लिए कर्मचारियों पर विश्वास तो करना पड़ेगा। एक जज गलत फैंसले देता है,किसी जज पर रिस्वत या बलात्कार के आरोप लगते हैं तो क्या पूरी कोर्ट बन्द कर दी जाती है ।
एक मीडिया हाउस में तमाम गलत काम होते हैं।रिस्वत के बदले न्यूज़ दिखाई और बन्द की जाती हैं।महिलाओ का शारीरिक शोषण होता है तो क्या ये चैनल बन्द हो जाते हैं।या मालिको को सजा होती है।बॉलीवुड में कास्टिंग काउच या अन्य घटनाये होती हैं तो क्यों बॉलीवुड को ताला नहीं लगाया जाता।मीडिया को साफ सुथरी पत्रकारिता करने की जरूरत है।
कोई अगर महिलाओ के छोटे कपड़ो को लेकर टिप्पणी कर दे तो मीडिया और महिला संगठन वाले उसका जीना मुश्किल कर देते हैं।मीडिया औरतो को नंगा क्यों घुमाना चाहता है ये नही समझ मे आता।भारत मे दिक्कत ये है कि यहां खुद का विचार किसी का नही होता।सब भेड़ चाल में शामिल हो जाते हैं। जो महिलाएं पर्दा प्रथा के खिलाफ चिल्लाती हैं वही महिलाएं कॉलेज के दिनों में मुंह पर दुप्पटा बांध के चलती हैं . जब लोग उन्हें पर्दा करने के लिए या सिर पर चुन्नी डालने के लिए बोलते हैं तो यही औरते आज़ादी की बात करती हैं।तब उन्हें दुप्पटा बुरा लगने लगता है.हमारे देश में ये मानसिकता है जिस चीज के लिए मना किया जाता है वो तो लोग करेंगे ही करेंगे।जो लोग बोलते हैं की हम कुछ भी पहने इससे समाज को क्या मतलब उन्हें बताना चाहता हूँ की जब देवानंद के काले कोट पर प्रतिबन्धलग सकता है तो लड़कियों के बड़काउ कपड़ो पर क्यों बैन नही लग सकता? समाज हित में हर फैंसला लिया जा सकता है.
हरियाणा में दो लड़कियों द्वारा बस में लड़को की पिटाई का मीडिया ने कई दिन प्रचार किया।उन लड़कियों को बहादुरी मैडल तक के लिए नॉमिनेट किया गया।पुलिस ने उन युवकों को जेल में डाल दिया .सेना ने भर्ती न करने का फरमान जारी कर दिया।लेकिन जब सचाई सामने आई तो लड़कियों के खिलाफ कुछ नही बोला गया, ना कोई कार्यवाही हुई।क्या उन लड़कों की इज्जत तार तार नही हुई? या लड़को की कोई इज्जत ही नही है।मीडिया ने माफी तक नही मांगी।क्या मीडिया का कुछ बिगड़ा?
कई बार तो मीडिया अति कर देता है। पूरा दिन बॉलीवुड का नंगा नाच और तैमूर को दिखाता रहता है।जो अनाथ बच्चे सड़को पर ,रेलवे स्टेशनों पर पड़े हैं।शोषण का शिकार हो रहे हैं।नशे का शिकार हो रहे हैं।समाज की गन्दी सोच का शिकार हो रहे हैं।या अनाथालयों में बच्चों पर अत्याचार हो रहे हैं।उनकी खबर मीडिया नहीं दिखायेगा।इन बच्चों के लिए समय नहीं है लेकिन तैमूर की फ़ोटो लेने के लिए भूखे प्यासे कुत्तों की तरह उसके घर के सामने पड़े रहते हैं।
मीडिया पंडितों-साधु संतों के कुकर्म के वीडियो तो बड़े जोर शौर से चलाता है लेकिन मौलानाओं के कुकर्मो पर पर्दा डालता है। अजमेर शरीफ चिश्ती दरगाह के मौलानाओं ने हजारों के साथ बलात्कार किये, लड़कियों को विदेश में बेचा मीडिया ने कभी नहीं दिखाया। 1990-92 में पकड़े भी गए, विदेश भी भागे, फिर उनको डिपोर्ट करके वापिस देश में लेकर आये और जेल में डाला लेकिन मीडिया ने कभी नहीं दिखाया या कोई बुद्धिजीवी - सेक्युलर इनका कभी जिक्र नहीं करते। जिक्र करना तो दूर कोई अगर इस मुद्दे को कोई उठाता भी है तो उस बंदे को जेल में डाल देते हैं। जगह जगह से मौलानाओं के वीडियो सोशल मीडिया पर आते रहते हैं। कुकर्म के जुर्म में पकड़े भी जाते हैं सजा भी होती है। लेकिन मज़ाल है कि मीडिया -बुद्धिजीवी - सेक्युलर लोगों की जुबान हिल जाये। अगर मीडिया गलती से दिखा भी दे तो उन्हें बाबा बनाकर पेश करता है , ना कि मौलाना।क्या ये षड्यंत्र नहीं है । क्या ये बिके होने के सबूत नहीं हैं।
( कानून ) ---- अदालत
सुना है कि कानून सबके लिए बराबर है।लेकिन ये बराबरी कभी देखी नही है।आप न्यायलयों या न्यायधीश के खिलाफ कुछ नही बोल सकते चाहे वो कुछ भी सही -गलत करें।न्यायालय प्रजातंत्र के मंदिर हैं।लेकिन क्या आज वो वास्तव में मंदिर हैं।एक आम आदमी वहां तन,मन, धन और वक्त सब कुछ लुटा कर आता है।लेकिन न्याय नही मिलता।आधा साल तो जजों की छुट्टी रहती हैं।बाकी दिन पता नही वो कब आते है कब चले जाते हैं।छोटी अदालतों में तो सारा दिन जज आते ही नही है।सारा सारा दिन लोग बैठकर आगे की तारीख लेकर चले जाते हैं।आधे से ज्यादा मुकदमे तो रीडरों के भरोसे चल रहे हैं।सैंकड़ो पेज की फाइल होती है पता नही उन्हें कोई पढ़ता भी है या नही।
मुख्य न्यायधीश जजो की कमी का रोना रोते हैं लेकिन वो अपने जजो की उत्पादकता नही देखते।जजो ने सारा दिन या सारा महीना कितने केस सुने , कितनो में फैसले दिए या पेंडिंग है तो क्यों है।जजो को भी एक टाइम बांड मिलना चाहिए।अगर आप कोर्ट में आएंगे ही नही मुकदमे सुनेंगे ही नही तो कहां से पेंडिंग केस खत्म होंगे।आपको इतनी सुविद्याये मिली हैं,इतनी तनख्वाह मिलती है,सबसे महत्वपूर्ण जगह पर आप बैठे है,लोगो की आपसे बहुत आशाएं हैं,आपको तो ओवर टाइम करके मुकदमे सुनने चाहिए और आप हैं कि ड्यूटी टाइम में भी कुछ नही करते।एक प्राइवेट कर्मचारी को मामूली सी तनख्वाह मिलती है,कोई एक्स्ट्रा सुविधा नही मिलती,कोई ओवर टाइम नही मिलता और वो दिन रात काम करता है।सारा काम खत्म करके ही घर जाता है।अगर ये मुकदमे किसी प्राइवेट संस्था को दे दिए जाएं तो जितने जज है उससे भी कम कर्मचारियों के साथ एक साल में सारे पेंडिंग केस खत्म हो जाएंगे।
स्टाफ की कमी तो हर जगह है।सरकारी विभागों में भी और प्राइवेट में भी।प्राइवेट सेक्टर में तो वैसे भी 4 कर्मचारी का काम एक कर्मचारी से लिया जाता है।सेना में भी स्टाफ की कमी है।लेकिन वो कभी युद्ध मे जाने का बहाना नही बनाते।तीस सैनिक दुश्मन के 600 सैनिकों से टकरा जाते हैं।जान की बाज़ी लगा देते हैं।क्या सैनिक इंसान नहीं हैं , क्या उनके परिवार नहीं हैं। जजो को तो आफिस में बैठ के काम करना है।हमने जजो को भगवान का दर्जा क्या दिया वो अपने आप को भगवान समझने लगे हैं।माना काम का बोझ ज्यादा है लेकिन आप करोगे तब तो खत्म होगा।
जो हाईलाइट मामले होते हैं जज भी उन्ही में सही फैंसले देते हैं या डांट फटकार लगाते हैं।नहीं तो चाहे उनके सामने खून होता रहे वो चुपचाप निकल लेते हैं।हांसी कोर्ट के मैन गेट पर एक परिवार कई महीनों तक धरने पर बैठा रहा।जिसमे दो तीन बच्चे भी थे।एक तो बिल्कुल ही छोटा बच्चा था जो एक साल से भी कम था।उन बच्चों की माँ गायब थी।पुलिस ने नही सुनी तो वो वहां धरने पर बैठ गए।रोज कोर्ट में जज,वकील,पुलिस,आम और खास लोग आते लेकिन किसी ने भी उनसे बात करने की जहमत नही उठाई।हार कर वो ही धरने से उठ गए।
एक सुप्रीम कोर्ट के जज ने छुट्टी वाले दिन जजो के सेमिनार में जाने से मना कर दिया।उस पर कोई कार्यवाही नही हुई।पुलिस और सैनिक भी तो हैं जो छुट्टी वाले दिन,त्योहार वाले दिन काम करते हैं, जान पर खेलते हैं।तो जज कौंन से आसमान से गिरे हैं।उन्हें दुनियाभर की छुटियाँ तो पहले से ही मिली हुई हैं
एक ही केस में एक जैसे सबूत होते हुए एक जैसी पैरवी होते हुए एक अदालत कुछ फैंसला सुना देती है, दूसरी अदालत कुछ और फैंसला दे देती है।एक बेंच सजा सुना देती है तो दूसरी बरी कर देती है।सुना है अदालत सबूतों के आधार पर फैंसला देती है तो फिर ये सब क्या है।कैसे एक जैसे सबूतों के आधार पर जजो के फैंसले बदल जाते हैं।
चेक बाउंस के केस में कोर्ट 10-15 साल तक क्या करती है ये नही समझ मे आता।जबकि सबूत सामने होता है।पीड़ित चेक और बैंक की स्लिप जिसमे चेक बाउंस का कारण लिखा होता है पेश करता है।और कोर्ट को क्या सबूत चाहिए फैंसला देने के लिए। कोर्ट को मज़ा आता है पेंडिंग केस रखने में,लोगो को परेशान करने में।ऐसे ही छोटे छोटे बहुत केस हैं जिनका फैंसला एक या दो पेशी में हो जाना चाहिए लेकिन कोर्ट में वो केस सालों तक चलते रहते हैं।
हमारे खेत की सनद तकसीम और निशानदेही होनी थी।कोर्ट के आर्डर हो चुके थे।पटवारी और कानूनगोबोलते रहते थे की हमारे पास आर्डर नहीं आया है जबकि हर बार कोर्ट का आर्डर उनके पास जाता था ।फिर कई दिन घुमाते रहे।बीच बीच मे बदली भीहोती रहती थी।फिर दूसरे पटवारी कानूनगो के चक्कर लगाने पड़ते ।एक साल तक कोई रेस्पांस नही मिला।तहसीलदार,एस डीएम,डीएम और मुख्यमंत्री शिकायत सेल में शिकायत की गई।लेकिन पटवारी और कानूनगो टस से मस नही हुए।यहाँ पे कोर्ट की अवमानना नही होती लेकिन एक आदमी कोर्ट के खिलाफ बोल दे तो अवमानना हो जाती है।
आम आदमी के मुकदमे सुनने के लिए जजो के पास टाइम नही है।सेलेब्रेटी के मान हानि के मुकदमे या सेंसर बोर्ड से संबंधित मुकदमे या और हिन्दू धर्म की कुरीतियां बताकर मुकदमे तुरंत सुने जाते हैं और तुरंत फैंसले दिए जाते है।आम आदमी के वक्त की,पैसे की बर्बादी की कोई कीमत नही।पीढ़ियां गुजर जाती हैं लेकिन फैंसले नही आते।
इतने ज्यादा मुकदमे पेंडिंग होने के चार कारण हैं।
1-जजो की छुटियाँ
2-जजो को मिली हुई ताकत ।ताकत इंसान को निरंकुश बना देती है।कोई उनके खिलाफ बोल नही सकता,कोई केस नही कर सकता,कोई इतनी जल्दी हटा नही सकता।कोई छापा नही मार सकता।भ्रष्टाचार फैला हुआ है।पुलिस ,वकील और जज आपस मे मिले हुए है।
3-हद से ज्यादा कानून।एक छोटा सा केस भी 100-200-500 पेज का बन जाता है।भारत मे ऐसे ऐसे कानून हैं अगर उनके हिसाब से सारा काम हो तो एक भी इंसान जेल से बाहर नही मिलेगा।पूरा देश जेल खाना बन जायेगा।एक वाहन के 70-80 तरह के चालान हैं इस कसौटी पर तो राष्ट्रपति की गाड़ी भी खरी नही उतरेगी।
4-पंचायतों को मान्यता नही मिलना।आधे मुकदमे तो पंचायत में ही खत्म हो जाये।मान्यता ना होने के बावजूद करोड़ो मुकदमे पंचायतों में हल होते हैं।अगर वो मुकदमे भी अदालतों में आ जाये तो क्या हाल होगा आप सोच सकते हैं।
2009-10 के चुनाव के बाद हरियाणा जनहित पार्टी के 5 विधायक काँग्रेस में शामिल हो गए।कांग्रेस ने सरकार बना ली।हरियाणा जनहित पार्टी ने पांचो विधायको को अयोग्य घोषित करने के लिए केस किया।कोर्ट ने पांच साल तक फैंसला नही दिया।जैसे ही सरकार का कार्यकाल खत्म हुआ कोर्ट ने पांचो को अयोग्य घोषित कर दिया।हालांकि उनको मिले हुए सारे भते तनखाह जमा करने के आदेश भी दिए।लेकिन क्या फायदा हुआ वो पांच साल सत्ता का स्वाद ले गए जायज़ पैसे से ज्यादा नाजायज पैसा कमा गए।क्या उस जज की जांच या कोई कार्यवाही हुई? सरकार भी पांच साल पुरे कर गई। अगर वो 5-विद्यायक सरकार का हिस्सा नहीं होते तो कुछ भी हो सकता था. क्योंकि सरकार के पास बहुत कम विद्यायक थे .
क्या कानून की किताब में लिखने से कोई नाजायज़ चीज जायज़ हो जाती है और जायज़ चीज नाजायज़ हो जाती है।किसी समान जुर्म की सजा किसी देश या काल मे कम है ,किसी देश या काल मे ज्यादा और कहीं वो जुर्म है ही नही।जैसे भारत मे बलात्कार की सजा पहले 7 साल थी आज उम्र कैद या फांसी है।तो क्या बलात्कार पहले कम भयानक था और आज ज्यादा।
चार लोग खड़े होकर चिल्लाते हैं यो तुरन्त कानून बन जाते हैं ।
कानून बनाने वालों को भी सोचना चाहिए कि 2-4 लाख उच्च वर्ग के लोगों की संस्कृति के हिसाब से तो कानून बना देते हैं लेकिन करोड़ो गरीब लोगों की संस्कृति को अनदेखा कर देते हैं।उनको कोई नहीं पूछता तुम्हे कैसे कानून चाहिए। अदालत भी सिर्फ उच्च वर्ग को देखकर आदेश दे देती है। जैसे समलैंगिग विवाह कानून - कितने लोग समलैंगिग हैं देश मे और उनमें से कितने ऐसे हैं जो शादी करना चाहते हैं और वो कौन सा वर्ग है। अदालत ने महिलाओं के गैर मर्द के साथ सम्बद्ध जायज कर दिए। किन लोगों के फायदे के लिए ये किया है और देश को किस अंधकार में धकेल रहे हैं समझ से बाहर है। यहां देखने वाली बात ये है कि ऊपरी अदालतों के जज या सांसद भी उच्च वर्ग के ही हैं नीचे वाले जज, नेता या अधिकारी उसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाते।मीडिया, बुद्धिजीवी, जितने बोलने की आज़ादी वाले लोग हैं या जिनकी सुनी जाती है देश मे वो सब उच्च वर्ग है।इसलिए कानून भी उच्च वर्ग के हिसाब से ही बनते हैं।
कानून है कि बालिग बच्चे अपनी मर्जी से कुछ भी कर सकते हैं।अपनी जिंदगी जीने के लिए आज़ाद हैं।कैसे ही कपड़े पहने , किसी से शादी करें।माँ बाप या समाज का कोई हक नहीं है उन पर , उनके फैंसलो पर।खराब कपड़ो से समाज की संस्कृति खराब होती है।माहौल खराब होता है।घर का माहौल खराब होता है।लोगों का चरित्र खराब होता है।लोग बोलते हैं कपड़े नहीं मन अच्छा होना चाहिए।जब सामने नँगा माहौल होगा तो मन क्या करेगा।गोवा में समुद्र किनारे नङ्गे पड़े रहते हैं , बिहार में क्यों नहीं ? गोवा , सिक्किम में कैसिनो की लत लगी हुई है।गुरुग्राम, मुम्बई में बार की लत लगी हुई है।बिहार, उत्तर प्रदेश या बाकी ऐसी जगहों पर क्यों नहीं जहां कैसिनो या बार नहीं हैं।किसी से भी शादी करने से समाज का संतुलन खराब होता है।औलादें खराब होती हैं।शारीरिक सरंचना खराब होती है।घर मे झगड़े होते हैं।दोगली संतान पैदा होती हैं।जीन्स खराब होते हैं।संस्कृति खराब होती है।इतने नुकसान के बावजूद कोई सुनने को तैयार नहीं है।इस तरह के रिस्ते भी ज्यादा दिन नहीं टिकते।आपसी भाईचारे से बनाये सम्बधों में पूरा समाज रिस्ते जोड़े रखने में मदद करता है।हर मुसीबत में साथ खड़ा रहता है।फिर भी इसके खिलाफ कानून नहीं बन रहे।माँ बाप का अपनी ही सन्तान पर कोई जोर नहीं चलता।वो अपनी ही सन्तान के खुशी गम में शामिल नहीं हो पाते।यहीं से बच्चे माँ बाप से कट जाते हैं।और बुढ़ापे में उनकी देखभाल नहीं करते।
जब कोई जुर्म करता है तो सब कहते हैं कि कसूर मां बाप का है जो अच्छे संस्कार नही दिए।जब मां बाप कोई हस्तक्षेप ही नही कर सकते तो कहां से अच्छे संस्कार देंगे।दूसरी बात कोई भी व्यक्ति मां बाप से ज्यादा समाज से सीखता है।उसके व्यक्तित्व पर समाज का ज्यादा प्रभाव पड़ता है।क्योंकि ज्यादा व्यक्त वो समाज मे ही बिताता है-चाहे वो स्कुल में हो , खेल के मैदान में हो या यार दोस्तों के साथ हो। ।दुर्योधन,रावण,प्रह्लाद आदि उदाहरण है कि शरीफ के घर बदमाश और बदमाश के घर शरीफ पैदा होता है।
जब मां बाप बूढ़े हो जाते हैं तो बच्चे उनका ख्याल नही रखते।जो कानून शुरू में ही बच्चों को बगावत सिखाता है, मां बाप का बच्चो पर कोई हक नही, ये सिखाता है, वही कानून बुढ़ापे में मां बाप की सेवा करने का आदेश देता है।जो बच्चे बिगड़ गए बगावत सिख गए वो क्या सेवा करेंगे और मां बाप के बूढ़े होने पर कहाँ उनकी बात सुनेंगे।कानून सिर्फ गुजारा भत्ता दिला सकता है, सेवा नही करवा सकता।सेवा तो जो अच्छे बच्चे होंगे वही करेंगे।
गर्ल फ्रेंड -बॉय फ्रेंड को जेड प्लस सुरक्षा मिलती ।लेकिन हज़ारों लाखों असली पीड़ित व्यक्ति थानों में बैठे हैं, अदालतों में बैठे हैं उन्हें कोई नहीं पूछता।
बॉयफ्रेंड ट्वीट करता है या फ़ोन करता है कि मेरी गर्ल फ्रेंड को उसके बाप ने कैद कर रखा है तो पूरा प्रशासनिक अमला हरकत में आ जाता है ।लड़की को बाप के घर से लाकर बॉयफ्रेंड को सौंप देते हैं। लड़की बाप के पास ज्यादा सुरक्षित है या बॉयफ्रेंड के पास।बॉयफ्रेंड की क्या लाइब्लिटी है।काहे का प्यार है उसका वासना खत्म, आकर्षण खत्म और प्यार खत्म।छोड़ देता है बीच मे फिर लड़की को घर ही जाना पड़ता है।माँ बाप धक्का नहीं दे सकते।प्रेमी दे सकते है।लेकिन किसी के यहां हत्या हो जाती है, किसी की जमीन पर कब्जा है, किसी का बलात्कार हो गया है गरीब हैं वो थानों के , कोर्ट के , नेताओं के चक्कर काटते रहते हैं उनकी सुनवाई नहीं होती।कई तो अपना मामला दर्ज ही नहीं करवाते क्योंकि पता है कुछ होना जाना नहीं।
एक छोटा सा उदाहरण है सरकार ने, कानून ने हेलमेट ना पहनने पर जुर्माना लगाया हुआ है।क्यों? आदमी की अपनी इच्छा है वो पहने या ना पहने।यहां बोलेंगे की सरकार को लोगों की जान की परवाह है।हैलमेट से सिर्फ खुद की जान को खतरा है।अपनी जान सबको प्यारी है।जिसे अपनी जान से प्यार होगा वो पहनेगा, जिसे नहीं होगा वो नहीं पहनेगा।जब आदमी अपनी जिंदगी जीने के लिए आज़ाद है तो फिर हैलमेट के केस में ऐसा क्यों नहीं? जब इस पर बैन लग सकता है तो समाज का माहौल, संस्कृति खराब करने की इजाजत क्यों.
( कानून ) ---- पुलिस
रेलवे स्टेशन या ट्रेनों में कुछ अपराधी घूमते रहते है।चोर तो फेमस है ही, चोरी के अलावा कई और अपराध होते हैं। ।बाकी तरह के अपराध भी होते हैं।पुलिस साथ मे मिली रहती है ।जैसे आप किसी भूखे को खाना देते हो तो वो पहले से ही मुंह मे सफेद पाउडर वगैरह डालके रखता है।खाना खाता है और झाग गिराने लगता है।पुलिस आती है और खाना देने वाले को पकड़ लेते हैं।उससे डरा धमका कर पैसे लिए जाते हैं।फिर आपस मे बाँट लिए जाते हैं।इसी तरह किसी रोती हुई औरत को पैसे देते हो तो वो आरोप लगा देती है कि ये मेरे से सेक्स सम्बद्ध बनाना चाहता है और उसके लिए रुपये दिए हैं।फिर वही पुलिस का पकड़ना और पैसे ऐंठ कर छोड़ देना।
इसी तरह पुलिस और धंधा करने वाली औरते मिली हुई हैं।महिला किसी को अपने जाल में फांसती है।उसके साथ कहीं एकांत में चली जाती हैं।पीछे से पुलिस को बुला लेती हैं और बलात्कार का आरोप लगा देती हैं।पुलिस उस व्यक्ति से पैसे ऐंठती है और भगा देती है।
यही काम होटल वालों से मिल कर किया जाता है।दो प्रेमी अगर होटल में चले जाएं तो होटल वाला कमरा दे देता है।पीछे से पुलिस बुला लेता है।पुलिस उनको पकड़ती है,कानूनों का डर दिखाती है और पैसे ऐंठ लेती हैं। सेलिब्रिटी या बड़े शहरों में लोग खुल्लम खुला,होटल या पार्क आदि में गलत काम करते हैं तो तो पुलिस कोई छापा नही मारती, कोई कानून नही सिखाती,कोई गिरफ्तारी नही करती।अगर कभी भूल चूक से पुलिस ने ऐसा किया तो मीडिया और बुद्धिजीवी उसे सबक सिखा देते हैं जब दो आदमी आपस मे सहमत हैं तो पुलिस कौंन होती है पकड़ने वाली।ऐसे कानून गांव, छोटे शहर - कस्बों में क्यों नहीं हैं.
एक लड़के पर उसकी चाची 2 साल तक छेड़छाड़-बलात्कार-मारपीट के झूठे आरोप लगाती रही।एक केस खत्म होते ही दूसरा केस कर देती थी।पुलिस को पैसा दे देती थी।लड़के वाले बेचारे भागे भागे फिरते , किसी की सिफारिश ढूंढते और पुलिस को पैसा देकर केस खत्म करवाते।पुराना केस ख़त्म होता तो नया शुरू हो जाता । सारे गांव ने पुलिस में लिखकर दे दिया कि औरत गलत है लड़का सही है।पुलिस को भी पता था असलियत क्या है।लेकिन वो भी पैसे लेकर रिपोर्ट लिखते रहे।हर चीज की हद होती है।जब पुलिस उसकी रिपोर्ट लिख लिख के थक गई तो उसने रिपोर्ट लिखने से मना कर दिया।फिर उस औरत ने कई बार कोर्ट में केस डाल दिया।कोर्ट से वारण्ट निकल गया।इसी तरह वो परेशान करती रही।निचली अदालत में हार गई तो ऊपरी अदालत में केस कर दिया।बिना किसी वजह के ये परेशान होते रहे और वो मज़े लेती रही।उस पर कोई झूठी एफआईआर का केस नही हुआ, अदालत में झूठा केस करने का कोई केस नही हुआ।जबकि पुलिस और कोर्ट उसे सजा दे सकते थे।
बाकी जगहों का भी यही हाल है।पुलिस के कारण ही गुंडे बनते हैं।पुलिस या तो मज़बूर करके गुंडा बनाती है या शह देकर गुंडा बनाती है।
एक पूर्वोत्तर भारत का केस टीवी पर देखा था।एक सीधे साधे ग्रामीण व्यक्ति को पुलिस उठा ले गई।उसको कभी पता नही चला , उसे क्यों उठाया गया।कभी कोई ट्रायल नही चला,कभी उसे कोर्ट में पेश नही किया।कभी कोई जमानत की बात नही हुई।कभी कोई सजा नही सुनाई गई।फिर भी उस व्यक्ति ने अपनी पूरी जिंदगी जेल में काट दी।एक दिन किसी जज का जेल में जाना हुआ और उसकी नजर उस बूढ़े व्यक्ति पर पड़ गई।जज ने जब उसके बारे में जानकारी ली तो कोई केस नही था।तब उस जज ने उसे बाहर निकलवाया।उसे जवानी में उठाया गया था और बुढ़ापे में छोड़ा।क्या उस पुलिस वाले को इस कुकर्म की सजा मिली? क्या कानून,सरकार उसे उसकी जवानी वापिस दे सकती है?
पुलिस कितने ही फ़र्ज़ी एनकाउंटर करती है।कोई एक दो केस सामने आ पाता है।साध्वी प्रज्ञा जैसे बड़े और धर्मगुरु जैसे लोगों को आतंकवाद जैसे केसों में फंसा दिया,अमानवीय यातनाएं दी। उन पुलिसवालों का कुछ नहीं बिगड़ा।
हांसी में कई व्यापारियों के दिन दहाड़े खून हुए हैं।फिरौती मांगी गई हैं।लेकिन पुलिस ने आज तककिसी भी अपराधी को नहीं पकड़ा है।क्या ऐसा हो सकता है पुलिस कातिल तक पहुंच ना पाए।
एक खास आदमी का पकड़ने से पहले,हवालात में डालने से पहले,जेल में डालने से पहले मेडिकल चेकअप होता है।कई तो हस्पताल में ही पड़े रहते हैं।लेकिन एक आम आदमी को पुलिस जी लगाके तोड़ती है फिर भी उसका चेकअप नही होता।कितना ही बीमार,कितना ही चोटिल हो दवाई नही दिलवाई जाती।
क्राइम पेट्रोल और सावधान इंडिया में पुलिस को बहुत भागदौड़ करते हुए दिखाया जाता है ।कोई लाश मिल गई उसकी कोई पहचान नही है,लाश की तरफ से कोई थाने में जाने वाला नही है , तब भी पुलिस जमीन आसमान एक कर देती है।और हकीकत में लोग अपराधी को पकड़वाने के लिए थानों के चक्कर काटते रहते हैं, पुलिस हिलती भी नही।सिफारिश और पैसे से रिपोर्ट लिखी जाती है फिर उस पर अमल करवाने के लिए रोज थाने में जाना पड़ता है।पीड़ित व्यक्ति आरोपी का पूरा नाम पता दे देता है फिर भी पुलिस नही पकड़ती।कोई सबूत नही जुटाती।हार कर पीड़ित पकड़वाने के लिए पैसे देता है उधर आरोपी छोड़ने के पैसे दे देता है।
वारण्ट तक पर अमल नही किया जाता।उन पर कहीं कोने में धूल जमती रहती है।पीड़ित व्यक्ति खुद जा कर कॉपी देता है तो वो भी साइड में फेंक दी जाती है।गैर जमानती वारंट तक पर अमल नही होता।आरोपी अपने घर पर सामान्य जीवन जी रहा होता है।और उसका गैर जमानती वारंट कहीं कोने में दबा होता है
क्राइम पेट्रोल और सावधान इंडिया में पुलिस जितनी दौड़ती है अगर असलियत में उसका 25% भी दौड़े तो 75% गुनाह खत्म हो जाएंगे।
असल मे भारत मे सारे सरकारी विभाग ऐसे ही हैं।आप कही भी चले जाओ बाबू मिलेंगे नही,मिलेंगे तो काम नही करेंगे,पैसा तो लेते ही है, पैसा लेने पर भी काम नही करते।बातचीत का लहजा तो ऐसा होगा जैसे वो एहसान कर रहे हैं।
एक सौ रुपये के चोर की पुलिस बेदर्दी से पिटाई करती है।उससे सारी बात उगलवा लेती है।लेकिन एक करोड़ो रूपये के घपले बाज़ को हाथ भी नही लगाती।एक आम इंसान को बगैर किसी गुनाह के,बगैर सबूत के उठा ले जाती है।लेकिन एक अमीर को, पावरफुल को हकीकत सामने होते हुए भी हाथ नही लगाती।एक आम इंसान को थर्ड डिग्री टॉर्चर दिया जाता है।अप्राकृतिक यातनाये दी जाती है।सारे पुलिस वाले मिलके एक गरीब को बांधकर पीटते है ।फिर अपने आप को मर्द कहते है।बेगुनाहों के हाथ पैर तोड़ देते है ।गुप्त अंगों में ग्रीस डाल देते है।एक आम इंसान से पुलिस उगलवाती है कि गुनाह उसी ने किया है और उस आधार पर उसे सजा हो जाती है।एक अमीर आदमी से पुलिस कुछ नही उगलवा पाती, ना उस आधार पर उसे सजा होती।उसके खिलाफ सबूत हो तब भी उसे सजा नही होती।वर्षो मुकदमे चलते हैं।मोल भाव होते हैं खरीद फरोख्त होती है।कई बार तो सजा होने पर भी जमानत पर बाहर घूमते रहते हैं।बहुत से ऐसे लोग है जो पुलिस की लापरवाही या किसी रंजिश या वकीलों और जजो की लापरवाही के कारण बेगुनाह होते हुए भी जेल में सड़ते है।झूठे मुकदमो के कारण उनका सब कुछ बर्बाद हो जाता है।या किसी मामूली से केस में कोई गरीब पकड़ा जाता है और कोई जमानत देने वाला नही होता तो वो जेल में सड़ता रहता है।क्या कभी पुलिस वालों को,वकीलों को या जजो को गलती की सजा मिलती है? ऊपर बैठे लोगों को क्या पता एक गरीब आदमी कैसे शारीरिक,मानसिक और आर्थिक पीड़ा उठाता है? कैसे मुकदमो का आर्थिक बोझ उठाता है? एक आम इंसान पुलिस- कचहरी के चक्कर कभी नही चाहता।
पुलिस वाले बड़े गुंडों पर हाथ डालने से डरते हैं।क्योंकि उनके खिलाफ कोई गवाह नही मिलता।कानूनों से खेलना उन्हें आता है।खर्चा पानी टाइम से दे देते हैं।पुलिस सख्ती करके किसी को पकड़ भी ले तो उन्हें जमानत मिल जाती है।बाहर निकल के वो उन पुलिस वालों को नुकसान पहुँचा देते हैं।इसी दुश्मनी से पुलिस वाले दूर रहना चाहते हैं।
पुलिस किसी को पकड़ने, छोड़ने, रिपोर्ट लिखने आदि हर चीज का खर्च लेती है।पुलिस ने किसी केस में किसी व्यक्ति को अगर शक के आधार पर भी उठा लिया और वो व्यक्ति निर्दोष निकलता है तब भी केस से नाम हटाने के उस व्यक्ति से पैसे वसूले जाते हैं। नहीं तो अदालत में सालों तक लड़ो और निर्दोष साबित हो जाओ। दुनिया मे जितने गलत काम होते है सारे पुलिस की मिलीभगत से और सहभागिता से होते हैं।हर सीरियल अपराध की जानकारी पुलिस को होती है।जैसे कोई लगातार चोरी कर रहा है,सुपारी किल्लर है,हफ्ता वसूलने वाला है,नशा बेचने वाला है इन सबकी जानकारी कहीं न कहीं की पुलिस को जरूर होती है।राजीनामा करवाने तक के पैसे लिए जाते है।फिर भी पुलिस गुनेहगार नही है।क्योंकि उनके हाथ मे राजदंड है।अगर आप सरकारी बिल्ला लगाकर जुर्म करते हैं तो वो जुर्म नही है।पुलिस वाले किसी भी बेगुनाह को कुत्ते की तरह मार सकते हैं उनका कुछ नही होता।और एक आम आदमी अपने बचाव में भी पुलिस का हाथ पकड़ ले या हाथ उठा दे तो वो ज़िन्दगी भर केस में उलझा रहता है।
कौंन सा जुर्म है जो पुलिस नही करती।फिर भी उन्हें सजा नही मिलती।एक छोटे से अपराधी को पुलिस कुत्तो की तरह मारती है। पुलिस इतने अपराध करती है फिर भी उनको कोई हाथ नही लगा सकता।रिस्वत लेती है,चोरी करती है,खून करती है,गुंडों से मिली रहती है।जब तक गुंडे से मिली रहती है पैसा खाती है, बाद में उसी गुंडे को सलटा के प्रेमोशन पा जाती है।गुंडे तो कभी ना कभी कहीं ना कहीं पकड़ में आ जाते हैं लेकिन पुलिस का कुछ नही बिगड़ता।ऐसा कोई जुर्म नही है जो पुलिस को ना पता हो।कहीं ना कहीं की पुलिस को जरूर पता रहता है।रिस्वत लेने वाले अकेले जिम्मेवार नही हैं।उनके परिवार,समाज,दोस्त,रिस्तेदार सब बराबर जिम्मेवार हैं।घर वालो की मांगे पूरी नही होती।उनको उत्साहित करते है कि और ऊपर की कमाई करके लाओ।फलां व्यक्ति आपसे ज्यादा कमाता है।घर वाले,रिस्तेदार,दोस्त सब तनख्वाह से पहले ऊपर की कमाई पूछते हैं।ये ऊपर की कमाई किसी पर जुल्म करके ही आती है।पुलिस ज्यादातर केसों की सही से तहकीकात नही करती।जो पैसा देता है उसी का पक्ष लेती है।अंधे केसों में इसलिए हाथ पैर मारती है ताकि कोई पैसे वाली मुर्गी फंसे।आई पी एल क्रिकेट में पुलिस ने सट्टेबाज़ी और मैच फिक्सिंग का केस दर्ज किया।कुछ लोगो को पकड़ा।क्योंकि लोग पैसा कमा रहे थे और पुलिस खाली हाथ थी।जब पुलिस को पैसा मिल जाएगा तो केस कमजोर कर देगी और सब बाइज्जत बरी हो जाएंगे।
पुलिस वाले भी इंसान हैं।वो भी आम आदमी की औलाद हैं।जब लोग सो रहे होते हैं तो ये जागते हैं।जब लोग त्योहार मना रहे होते हैं तो ये ड्यूटी कर रहे होते हैं।पुलिस कुछ करे तो भी उस पर उंगली उठती है और न करे तब भी उंगली उठती है।मीडिया,मानवाधिकार,राजनीतिज्ञ और न्यायलय सब तो पुलिस के पीछे पड़े रहते हैं।दिल्ली में वकील संसद में घुसने की कोशिश कर रहे थे।पुलिस ने उन्हें संसद में नहीं घूसने दिया।वकीलों ने कमिशनर को हटाने के लिए अनिश्चित हड़ताल शुरू कर दी।सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कहा कि सरकार चाहे तो कमिशनर को हटा सकती है।सरकार ने कमिशनर को हटाया तब वकील शांत हुए।अगर पुलिस वकीलों को संसद में घूसने देती तब भी पुलिस पर ही कार्यवाही होती।हमने बार बार न्यायालयों को वकीलों के सामने झुकते देखा है।वकीलों पर कोई कार्यवाही नही होती।क्योंकि वकील ही जजो की काली कमाई का जरिया हैं।उन्ही के जरिये लेन देन होता है।
पुलिस और नेताओं पर इल्जाम लगता है कि वो अपने लोगो का पक्ष लेते है।ऐसा कौंन है दुनिया मे जो अपने घर वालो का,यार दोस्तो का,सगे संबंधियों का पक्ष नही लेता,उन्हें फायदा नही पहुंचाता।यहां तक कि अपने आस पास वालो का,अपने विभाग वालो का भी पक्ष लिया जाता है।पद कुर्सी तो एक सीमा तक ही हैं उसके बाद तो सगे सम्बन्धियो के बीच ही रहना है।घर परिवार के उत्तरदायित्व निभाने हैं।जब मुसीबत आती है तो अपने ही साथ खड़े होते है, बाहर वाले नही।हर एक जिम्मेदारी निभाने में अपनों की जरूरत पड़ती है।आम आदमी भी आपसी भाईचारा निभाने के लिए अपने परिवार,पास पड़ोस , गाँव ,मोहल्ले के कई कुकर्म छिपाता है.
( दहेज ) --
दहेज बहुत बड़ी बीमारी है।आजकल तो शौकिया तौर पर बढ़चढ़ कर दहेज दिया और लिया जाता है।उससे भी बड़ी बीमारी दहेज के लिए किसी की बेटी को मारना पीटना या जान से मार देना है।जब हम हमारी बेटी को खुश देखना चाहते हैं तो दूसरे भी अपनी बेटी को खुश देखना चाहते हैं।हमसे उमीद करते हैं कि हम उनकी बेटी को खुश रखे।जब हम चाहते हैं कि हमारी बहु नेक हो,काम करने वाली हो तो हमे भी हमारी बेटी में नेकी के गुण डालने चाहिए।
दहेज कानूनों का कितना गलत इस्तेमाल हो रहा है सब जानते हैं।ज्यादातर मुकदमे फ़र्ज़ी होते हैं।आजकल बहु काम तो करती नहीं।माँ बाप भी अपनी बेटियों का ही पक्ष लेते हैं और झगड़ा बढ़ाने में मदद करते हैं।सास ससुर ने काम की कह दी तो दहेज का केस हो जाता है।माँ बाप शादी से पहले ही शर्त रख देते हैं कि हमारी बेटी काम नही करेगी।क्या वही मां बाप अपनी बेटी की शादी ऐसे लड़के से करेंगे जो काम न करता हो? मेरे एक दोस्त की बीवी बोलती है कि मै खाना नही बनाउंगी क्योंकि मेरे पति सरकारी नौकरी में है।क्या सरकारी नौकरी वाले खाना नही खाते? आजकल सभी हीरो हीरोइन ही बनना चाहते हैं।दूध पीने के लिए चाहिए लेकिन भैंस नही पालेंगे।छोटी छोटी बातों पर झगड़ा होता है।अपने ही घर का काम करना है किसी दूसरे का तो करना नही है।
पुलिस इन केसों में खूब पैसा कमाती है।पुलिस कोई जांच नही करती।दोनों पक्षो से पैसा बटोरती है।बाद में समझौता हो जाता है या केस चलता रहता है।लड़का लड़की दोनों की जिंदगी बर्बाद हो जाती है।
बिल्कुल अंधे केस में भी पुलिस गुनेहगार तक पहुंच जाती है तो फिर खुले केस में ऐसा क्यों नही होता।
लड़की अगर खुदखुशी भी कर ले तो ससुराल पक्ष पर दहेज के लिए मारने का केस दर्ज हो जाता है और उनकी कोई दलील मान्य नही है।कोर्ट सिर्फ लड़की वालों की बात सुनती है।लड़की वाले अगर केस वापिस ना ले तो सजा जरूर होती है।पुलिस खूब पैसा बनाती है।हर केस में दहेज हत्या का केस दर्ज होता है।एक और ट्रेंड चल पड़ा है कि लड़की वाले केस वापिस लेने का 20-25 लाख रुपया मांग लेते हैं।अगर पैसा मिल जाता है तो केस वापिस नही तो ससुराल पक्ष को सजा।
एक और सयोंग है जहां लड़की वाले शरीफ होते हैं वहां लड़के वाले बदमाश मिलते हैं ।लड़की पर बहुत जुल्म करते हैं।रोज मारते हैं।खाने को नही देते।घर से निकाल देते हैं।जुल्म की इंतहा कर देते हैं।लेकिन लड़की और उसके घर वाले कोई केस नही करते, वो आपसी बातचीत या रिस्तेदारो से ही मामला सुलझाने की कोशिश करते हैं।उनकी बेटी मार भी दी जाती है तब भी बेचारे खून का घूंट पीकर बैठ जाते हैं।इसी तरह जहां लड़की वाले खराब होते हैं वहां लड़के वाले शरीफ मिलते हैं ।लड़की (बहू) को बैठा के खिलाते है सारे नखरे उठाते हैं।जेल जाते हैं।पैसा भरते हैं।अगर कहीं मर जाती है तो जेल काटते हैं।हर केस में एक शरीफ परिवार ही पिसता है।बहुत कम जायज केस पुलिस के पास पहुंचते हैं।उसमें भी एक आध बदमाश को ही सजा होती है , नही तो सारे छूट जाते हैं।बदमाश तो ले दे के छूट जाते हैं मरते हैं बेचारे शरीफ।
एक औरत चूल्हे के पास बैठकर चिठ्ठी पढ़ रही थी जिसकी नई नई शादी हुई थी।पीछे से उसका पति आ जाता है ।वो अपने पति को देखकर डर जाती है और चिठ्ठी चूल्हे में डाल देती है।पति खत के बारे में पूछता है और वो नही बताती।इसी में झगड़ा बढ़ता है।औरत मायके चली जाती है।कुछ दिन बाद दहेज का केस कर देती है।
एक घर मे सास ससुर चाय नही पीते थे।बहु चाय पीती थी।सास ससुर चाय बनाने नही देते थे, बहु चाय छोड़ने के लिए तैयार नही थी।कई दिन झगड़ा चला बाद में बहु ने दहेज का केस कर दिया।
एक बहु अपने ससुराल में मर गई।उसके मायके वालों ने ससुराल पक्ष से कहा कि 25 लाख दे दो हम गौ शाला में दान दें देंगे।लड़के के बाप ने कहा कि दान देने के लिए हम पैसे आपको देंगे इससे अच्छा तो हम सीधा गौशाला में ही दान दे देंगे।यहीं बात बिगड़ गई।मायके वालों ने केस कर दिया और उन्हें सजा हो गई।
मेरे एक दोस्त के साले की बहू फांसी लटककर मर गई।उस वक्त कोई घर मे नही था।केस हुआ सबको पकड़ लिया।मेरे दोस्त की पत्नी का नाम भी एफ आई आर में लिखवा दिया जो मध्य प्रदेश में थी।पुलिस उसको भी पकड़ने में लगी हुई थी।पुलिस कप्तान (एस. पी.) ने उसका नाम एफ आई आर से हटाने का एक लाख रुपया लिया।अभी बाकी लोग जेल में हैं और केस चल रहा है।पुलिस किसी भी मामले में निष्पक्ष तहकीकात नही करती।जो पैसा दे दिया बच गया जो नही दिया फंस गया।मान लिया कोई सालो लड़ने के बाद जीत भी गया तो क्या फायदा हुआ।बेचारे के इतने साल बर्बाद हुए,पैसा बर्बाद हुआ।गलत ढंग से फंसाने वाले पुलिस वालों का कुछ नहीं होता। अगर पुलिस और जज की जिम्मेवारी तय की जाए तो कुछ सुधार हो सकता है।गलत मुकदमे करने,गलत फसाने और गलत फैंसले सुनाने की सजा मिलनी चाहिए।
जिनकी लड़कियां हकीकत में बदमाशों द्वारा मारी जाती हैं ,उनकी तो पुलिस रिपोर्ट ही दर्ज नही करती।मेरे एक ताऊ जी की लड़की को लाठी डंडो से पिट पीटकर मार डाला गया।बहुत बुरी मौत थी।पुलिस ने महीनों तक रिपोर्ट दर्ज नही की।फिर सारे गांव वाले इक्कठे होकर किरण चौधरी के पास गए।उन्होंने पुलिस पर दबाव बनाया।तब भी पांच हज़ार रुपये लेकर रिपोर्ट दर्ज की।फिर एक दो को पकड़ा।कोई सबूत इक्कठा नही किया।उन्हें मार पीटकर जुल्म कबूल करवा लिया।और आरोपियों से पैसा लेकर केस को कमजोर रखा।साल छह महीने में सब छूट गए।
ज्यादातर केस छोटी छोटी बातों पर ही होते हैं।आजकल फैशन चला हुवा है कि माँ बाप रिस्ता करते वक्त ही बोल देते हैं हमारी लड़की काम नही करेगी ।खासकर भैंस का और खेत का काम तो बिल्कुल नही करेगी।माँ बाप की इतनी सपोर्ट मिलने के बाद तो लड़की रानी बन जाती है।घरबार वालों को घर के काम भी करने पड़ते है ,खेत का काम भी करना पड़ता है और भैंसों के काम भी करना पड़ता है।क्योंकि गांव में मुख्य काम धंधा यही है।इन्ही चीजो को लेकर झगड़ा होता है और दहेज के केस होते हैं।
भैंस या गाय का दूध पीने में घी खाने में शर्म नही आती तो उनका चारा पानी करने में और गोबर उठाने में कैसी शर्म।लड़की पढ़ी लिखी है इसलिए खेत का या घर का काम नही करेगी।अच्छा खासा दहेज दिया है नौकरी वाले लड़के के साथ शादी की है इसलिए काम नही करेगी।ये तर्क दिए जाते हैं।लड़के भी पढ़े लिखे होकर और नौकरी वाले होकर भी खेत का काम करते हैं।उनको तकलीफ नही होती।कई लड़कियां भी हैं जो अच्छी पढ़ी लिखी होकर भी काम करती हैं।मुख्य बात है कि आपकी मानसिकता कैसी है,आपके संस्कार कैसे हैं।माँ बाप को अपने बच्चों में काम करने की आदत शुरू से डालनी चाहिए।आदमी जो भी काम करता है अपने और अपने घर के लिए करता है किसी और के लिए नहीं।
हर किसी को काम करना पड़ता है।सबका काम बंटा हुआ है।हर कोई हीरो हीरोइन नही बन सकते।
काम करने से हमारी माताएं और दादियां नही मरी ,न ही उनकी शान में कोई कमी हुई।वो इतनी मजबूत थी कि पानी के 3-4 मटके एक साथ लेकर आती थी।सुबह घर का सारा काम करती थी खाना, झाड़ू,बर्तन,बच्चे,बैल और भैंसों का सारा काम करके खेत मे जाती थी ।सारा दिन खेत का काम करके रात में फिर घर का सारा काम करती थी।हमारे पड़ोस में एक दादी जी थी जिन्होंने अपनी जवानी में मुगदर उठाने का काम किया था जो किसी मर्द से नही उठा था।कभी उन औरतो को कोई परेशानी गिला शिकवा नही हुआ।घर नही टूटे।
शारीरिक काम करने वाली औरतो को कभी बच्चा जनने में परेशानी नही हुई।फिट रहने के लिए जिम का सहारा लेते हैं , घंटो पसीना बहाते हैं लेकिन घर का काम करने में तकलीफ है.आज भी बहुत सी औरत सारे काम करती हैं।डिलीवरी टाइम तक हल्का भारी सारा काम करती हैं।उनको बच्चा आसानी से पैदा हो जाता है।मेरी पत्नी डिलीवरी टाइम तक सारा काम करती रही पानी की टोकनी भी खुद ही उतारती और उठाती रही।जिस दिन बच्चा हुआ वो अकेली गांव से 50 किलोमीटर दूर हॉस्पिटल में गई और नार्मल डिलीवरी से बच्चा जना।जो औरते सारा दिन बैठी रहती हैं उन्ही औरतों की डिलीवरी ऑपरेशन द्वारा होती है।ये महिला अधिकार वाले,हीरो हीरोइन,मीडिया और पूंजीपति ऐसे ही चिल्लाते रहते हैं ।क्योंकि इसी से उन्हें सुर्खियां मिलती हैं।उनके घर नही टूटते, घर किसी और के टूटते हैं।
स्वच्छ इंडिया में झाड़ू लेकर तो सब फ़ोटो खिंचवा लेते हैं लेकिन घर मे कभी झाड़ू नही लगाते।ऊपर से सीना चौड़ा करके बोलते हैं कि हम ये नौकर वाला और बाई वाला काम क्यों करें।मीडिया और टीवी चेन्नल कई बार बोलते हैं कि घर की बहू से या बेटी से बाई वाला काम करवाया जाता था उन पर अत्याचार किया जाता था।क्या बाई औरत नही है? उसकी कोई इज्जत नहीं है.जब वो औरत होकर दूसरों के घरों में काम कर सकती है तो हम अपने ही घर का काम क्यों नही कर सकते।
घर मे काम को लेकर क्लेश करने वाली औरते बाहर वही सारे काम करती हैं जो वो घर मे नहीं करना चाहती।एयरहोस्टेस सभी यात्रियों को खाना परोसती हैं, फिर जूठे बर्तन भी उठाती हैं, उन्हें साफ भी करती हैं।डॉक्टर नर्स भी बहुत से अनचाहे काम करती हैं।ऑफिस में काम करने वाली भी ऑफिस में साफ सफाई करती हैं।हीरोइन दमदार रोल के चक्कर मे गोबर उठाती हैं।लेकिन यही काम घर मे करने में उन्हें तकलीफ होती है।इन्ही कामों के लिए पुलिस, अदालत सब चक्कर पड़ जाते हैं।घर मे पानी का गिलास तक नहीं पकड़ाती।
मैं चंडीगढ़ नौकरी करने गया था।नीचे 5-6 लड़के और ऊपर 5-6 लड़कियां रहती थी।मैं दिन में गया उन लड़कियों से ऑफिस में मिला तो उनकी बातों से पहनावे से बहुत मॉडर्न लग रही थी।इंग्लिश झाड़ रही थी।लेकिन रात में और सुबह वही लड़कियां सबका खाना बनाती थी।ऑफिस में भी काम और सबका खाना बनाना भी उन्ही के जिम्मे।उनका खाना खाकर और उनका रहन सहन देखकर लगा नहीं वो घर पे कुछ करती होंगी।बाहर दूसरे लोगों के लिए ये काम करते हुए उन्हें तकलीफ नहीं होती लेकिन घर मे , घर के लोगों के लिए काम करते हुए तकलीफ होती है।हाई सोसाइटी की औरते ऐसे शो करती हैं जैसे घर के काम करना, खाना पकाना, जानवरों का काम आदि घटिया काम है। उनके घरों में भी कोई ना कोई तो ये काम भी करता होगा। बाई करती हैं, नौकर करते है और इन्हें मैं बता दूं कि ये बाई भी महिला है, नौकर भी इंसान है।
मर्दों के जुल्म का वर्णन नहीं हो सकता बहुत जुल्म किये हैं इन्होने।कितनी ही महिलाओं को तड़फा तड़फा कर मारा है, जलाया है,बलात्कार किये हैं,यौन शोषण किया है,वेश्या वर्ति में धकेला है, विश्वास घात किया है।बच्चों के साथ भी बहुत गलत किया है।बच्चों को मारना, उनके साथ कुकर्म, उनको बेच देना, भूखे रखना, बच्चों के अंग काट देना, अंग बेचना।नीची जातियों के लोगों के साथ भी ऊंची जातियों ने सदियों तक अत्याचार किये हैं।उनकी औरतों पर बुरी नजर,मजबूरी का फायदा उठाकर यौन शोषण, बलात्कार,नीची जाति के लोगों को पीटना, फ्री में काम करवाना,मज़दूरी ना देना।इनके जुल्मो की दास्तान लिखें तो कापियां खत्म हो जाएंगी लेकिन इनके जुल्म खत्म नहीं होंगे।ये आज भी बदस्तूर जारी है।ऐसे लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।इन्हें रोकने के लिए कुछ कानून भी बनाये गए हैं।बच्चों को तो कानूनों का पता नहीं,मासूम भी होते हैं कैसे फायदा उठाये।ज्यादातर लोग सेटिंग करके बच निकलते हैं।औरतें हैं तो जो वास्तव में पीड़ित होती हैं वो कानून के चक्कर मे पड़ना नहीं चाहती।क्योंकि उनके खुद के घर,समाज के संस्कार,बच्चों की फिक्र आदि कुछ चीजें उनको रोक लेती हैं।वो इंतजार करती हैं कि वक्त सब सही कर देगा।
इन कानूनों का कुछ गलत लोग ज्यादा फायदा उठाते हैं।असलियत तो ये है कोई भी कानून हो उसका नाजायज फायदा ज्यादा उठाया जाता है।और सही फायदा उठाने वाले कम हैं।
( बलात्कार ) --
बलात्कार बहुत ही घ्रणित काम है।इसकी कोई माफी नही हो सकती।लड़कियां सबके घरों में हैं।जैसी हमारे घरों की लड़कियां हमारे लिए हैं वैसी ही दूसरों के घरों की औरते उनके लिए हैं।हर कोई आशा करता है कि उनकी घरों की औरते सही सलामत रहें।बलात्कार करने वाले भी हम और आप मे से ही होते हैं वो कहीं बाहर से नही आते।
छोटे बच्चों के साथ बहला फुसला के डरा धमका के संबंध बनाए जाते हैं या और तरह की दरिन्दगी की जाती है।उसके लिए फांसी होनी चाहिए।
बलात्कार उसे कहते है जब कोई जबरदस्ती किसी के साथ संबंध बनाए।आजकल कई तरह के केस किये जा रहे हैं।अदालते उन्हें स्वीकार भी कर रही हैं और सजा भी दे रही हैं।जैसे बहला फुसला कर,डरा धमका कर और शादी का झांसा देकर कई दिन या महीने या साल से बलात्कार हो रहा है। 20-साल से ऊपर की लड़कियां ऐसे आरोप लगाती हैं।वो लड़कियां इल्जाम लगाती हैं जिन्होंने आपसी सहमति से संबंध बनाए।कई दिन महीने साल तक उनके संबंध रहे तो ये बलात्कार की श्रेणी में कैसे आया।ये केस फाइल करने के कोई और कारण होते हैं।मां बाप की सलाह तो आप सुनते नही अजनबियों पर विश्वास कर लेते हैं।
बहुत से फर्जी केस सामने आ रहे हैं और आने वाले वक्त में तो बहुत ज्यादा आएंगे।
कुछ केस में तो पुलिस और औरतें मिली भगत करके फंसाते हैं और शुरू होता है पैसे ऐंठने का धंधा।
आजकल शर्म, बड़े छोटों का डर सब ख़त्म हो गया है , लोग किसी भी हद तक गिर जाते हैं। एक गांव में लड़का लड़की के प्रेम संबंध थे जब लड़की के घर वालो को पता चलता है तो वो लड़की को रोकते हैं।लेकिन वो नही मानती।जब घर वालो का ज्यादा प्रेशर होता है,लड़की को कमरे में बंद कर दिया जाता है, तो लड़की थाने में बाप के खिलाफ शारीरिक शोषण का केस कर देती है।बाप को जमानत भी नही मिलती।लड़की ऐश करती है।
दो प्रेमियों में जब लड़का शादी से इनकार कर दे तो लड़की उस पर बलात्कार का केस कर सकती है।उसके घर जा सकती है, उससे मार पीट सकती है।उसकी शादी रुकवा सकती है।लेकिन अगर लड़की प्रेमी से शादी न करना चाहे तो लड़का कुछ नही कर सकता।ना मनाने के लिए उसके घर जा सकता , ना उसकी शादी रुकवा सकता।अगर कहीं भूलकर उसने ऐसा कर दिया तब भी केस उसी पर होता है।
फिल्मो में काम करने की इच्छुक,नौकरी के लिए या किसी और व्यवसाय के लिए कुछ लड़कियां अपने जिस्म का इस्तेमाल करती हैं।जब उनका काम हो जाये तो ठीक है नही तो वही संबंध बलात्कार का रूप ले लेते हैं।
आजकल फिल्मी टाइप की दोस्ती चलन में है।लड़कियां फ्रैंकली बात करती हैं।लड़को के साथ कही भी चली जाती हैं।कुछ भी खा पी लेती हैं।ज्यादातर बलात्कार के केस जान पहचान वालो में ही होते हैं।विपरीत लिंग में आकर्षण जरूर होगा।इसलिए अपनी सुरक्षा के लिए दूरिया जरूरी हैं।सावधानी में ही बचाव है।
( औरत - मर्द ) --
कामयाब मर्द के पीछे एक औरत का हाथ होता है तो कामयाब औरत के पीछे भी मर्द का हाथ होता है। औरतों को बदनाम करने का एक घिसा पीटा वाक्य है कि औरत को दुनिया मे कोई नही जान सकता। हकीकत ये है कि मर्द को कोई नही जान सकता।मर्द में ज्यादा कमीनापन होता है।
पुराने जमाने की औरतें मर्दो से ज्यादा काम करती थी।सुबह 4 बजे उठना।सरकारी नल से पानी भरना जो एक आध किलोमीटर दूर होता था।गांव में एक या दो नल ही होते थे।फिर भैंसों और बैलों का चारा पानी करना और उनका गोबर बाहर मैदान में डाल के आना। घर की साफ सफाई, दूध दुहना, हाथो से दूध बिलोना,हाथ वाली चक्की से आटा पीसना,खाना बनाना और बर्तन धोना आदि काम करती थी।उसके बाद खेत मे चारा काटना और फसल काटना, कपास चुगना।सारे काम हाथ से ही होते थे मशीन थी नही।दिनभर खेत मे काम करने के बाद शाम को फिर घर का काम करती थी।हाथ वाले गंडासे से चारा काटना,गोबर मैदान में डाल के आना,खाना बनाना,बर्तन साफ करना,बच्चो को खिलाना पिलाना आदि।उसके बाद जब भी वक्त मिलता था तो सूत कातना,दरी बनाना ये काम भी करती थी।शराब पीने वाले पतियों से मार भी खाती थी।फिर भी कोई शिकन कोई थकावट नही थी।खिली खिली रहती थी।शरीर मज़बूत,स्वस्थ और तंदुरुस्त रहता था।आज भी गांव में, कस्बो में, झुगी झोपड़ियों में ऐसी औरते हैं।लेकिन बहुत कम।आज सारी सुख सुविधाएं मिली हुई हैं।घर पे काम वाली औरते रखी हुई हैं।सारी इच्छाएं पूरी होती हैं।उसके बावजूद झगड़े फसाद खत्म नही होते।
ऑफिस में काम करने वाली,फिल्मो में काम करने वाली,लेखक या कोई और नौकरी पेशा औरत ही कामयाब नही होती।इनसे कहीं ज्यादा कामयाब घरेलू महिला होती हैं।लेकिन उनके महान कार्य को कोई मान्यता नही देता।
दुनिया मे जुर्म बहुत बढ़ गए हैं।सभी इसका शिकार हो रहे हैं।महिलाएं, बच्चे और जानवर आसानी से शिकार हो जाते हैं क्योंकि कमजोर होते हैं।जानवर बेचारे कुछ बोल नही पाते कुछ समझ नही पाते।किसी को हम जिंदा जला देते हैं।किसी पर तेजाब फेंक देते हैं।किसी को लाठी डंडो से पिट पीटकर मार डालते हैं।किसी को टुकड़े टुकड़े काट डालते हैं।एक जीव दूसरे जीव को मार के खा जाता है।इंसान के नाम पर हम धब्बा हैं।हमसे बड़ा दरिंदा धरती पर कोई नही है।
आज की नारी को पहले की नारी से ज्यादा मजबूत,ज्यादा कमाऊ बताया जाता है।पहले वाली औरतों जितना काम इन्हें करना पड़ जाए तो दो दिन में आत्म हत्या कर लें।कॉमेडी नाईट विद कपिल के शो में एक औरत ने मलाइका अरोड़ा से कहा कि उसे यमी-मम्मी बनना है।मलाइका ने उसे स्टेज पर बुलाया दो ठुमके मरवाये और बना दिया यमी-मम्मी।औरत और पब्लिक दोनों ही बड़े खुश हुए।यमी-मम्मी,सुपर मोम, मॉडर्न नारी जैसे स्लोगन दिए जाते हैं।
कहीं फिगर खराब न हो जाये इसलिए अपने बच्चों को दूध नही पिलाती।कभी उनकी पोट्टी साफ नही करती।बाई इनके बच्चो की पोट्टी साफ करती हैं।नौकर इनके बच्चो को पालते हैं।ये उन औरतो का अपमान है जिन्होंने राम जी,कृष्ण जी,शिवाजी और महाराणा प्रताप जी जैसे वीरों को जन्म दिया और उन्हें वीर बनाया।जो पुरे देश के घरों को और देश की अर्थव्यवस्था ,चरित्र ,नीव को बनाये हुए हैं। जो सामाजिक कार्यो में जुटी हुई हैं. जो नेता बनके देश का नेतृत्व कर रही हैं , जो सैनिक बनकर देश की रक्षा कर रही हैं।
भ्रूण हत्या की जाती है।पैदा होते ही बच्चियों का गला घोंट दिया जाता है।बच्चो को कचरे में फेंक दिया जाता है।क्या वो मां बाप हैं, क्या वो इंसान हैं जो बच्चों को कचरे में फेंक देते हैं।
बच्चो से भीख मंगवाने के लिए उनका अपहरण करके बिना बेहोश किये आरी से बच्चों की टांग काट देते हैं।कैसे वो बच्चे उस दर्द को सहते होंगे।ऐसा करने वाले लोग कितने दरिंदे इंसान होंगे।बच्चों के अंग बेचने के लिए अपहरण किया जाता है।बेदर्दी से पीटा जाता है।भूखा रखा जाता है।
बच्चो की मासूमियत उनकी मुस्कुराहट सारी थकान मिटा देती है।लेकिन इन दरिंदो का दिल नही पसीजता।
महिलाओं के साथ एक नाइंसाफी जमीन जायदाद के बारे में भी होती है।ना उन्हें मायके की जमीन मिलती है।ना ससुराल वाले जमीन देते हैं।ससुराल वालों को डर रहता है कि अगर जमीन नाम करवा दी और कल तलाक हो गया तो , बहू वापिस चली गयी तो नुकसान हो जाएगा।मायके वाले सोचते हैं कि लड़की तो पराया धन है।शादी के बाद ससुराल जाएगी जमीन नाम करवा दी तो जमीन हाथ से जाएगी।महिलाओं को सम्पति में अधिकार मिलना चाहिए लेकिन या तो बाप की जमीन मिले या पति की।दोनों में हिस्सा नहीं रखना चाहिए।इससे संतुलन बिगड़ता है, आपसी रंजिश भी बढ़ती है।कानून में तो उन्हें अधिकार मिल गया लेकिन हकीकत आज भी वही है।जब घर परिवार अच्छा खासा चल रहा है तब तक तो ठीक है।लेकिन जिन महिलाओं को छोड़ दिया जाता है, या जो हिंसा से परेशान होकर खुद ससुराल छोड़ देती हैं उनके साथ बुरा होता है।मायके की जमीन-सम्पति में शादी के बाद महिलाओं का हिस्सा रहता नहीं है और ससुराल वाले देते नहीं हैं।इसलिए कानून ही नहीं कानून का पालन भी ठीक से हो तो स्थिति में सुधार हो सकता है।ऐसी महिलाएं बेचारी कहीं की नहीं रहती।छोटे शहरों का, गांव का ताना बाना-समाज कुछ इसी तरीके का बना हुआ है।महिलाओं को प्रेम जाल में फंसा कर बेच दिया जाता है।उनको ब्लैकमेल करके शारीरिक शोषण किया जाता है।अपने दोस्तों के साथ सम्बद्ध बनाने पर भी मजबूर किया जाता है।लड़की की इज्जत बहुत मायने रखती है।एक बार इसमें उलझने के बाद वो धंसती ही चली जाती हैं।सामाजिक-ग्रामीण परिवेश में बदनाम होने का डर बना रहता है।विश्वास तो वो कर लेती हैं क्योंकि लड़के झूठ ही इतनी बोलते हैं।शुरू शुरू में बहुत शरीफ बन कर रहते हैं।संबंध बनने के बाद अपना रंग दिखाना शुरू कर देते हैं।औरत को औरत नहीं समझते ।गाली गलौच करने लगते हैं, चरित्र हीन बताने लगते है ।खुद 50 जगह मुँह मारेंगें और औरत को ही चरित्र हीन और रहस्यमयी बताएंगे।दूसरों की लड़कियों को जब अपने घर की औरतों के समान समझोगे तो उनकी मजबूरियां समझ मे आएंगी।
अभी एक लव जिहाद भी शुरू हुआ है।दूसरे धर्म के लोग हिन्दू बनकर या सेक्युलर बन कर लड़कियों को फंसाते हैं ।सब कुछ लूटने के बाद उनकी हकीकत सामने आती है।फिर मारना पीटना, बलात्कार, धर्म परिवर्तन, सामूहिक बलात्कार का दौर शुरू होता है।तड़फा तड़फा कर मार दिया जाता है ।कोई भी दौर हो महिलाओं की इज्जत हमेशा दांव पर लगी रहती है।किसी से बदला लेना हो, युद्ध हुआ हो, दूसरे धर्म को नीचा दिखाना हो, दूसरी जाति को नीचा दिखाना हो,किसी पर किये एहसान की कीमत हो, कोई फायदा पहुंचाया हो बदले में महिलाओं की इज्जत पर बुरी नजर रहती है।लव जिहाद से बचकर रहें उसी में लड़कियों की भलाई है।किसी पर विश्वास करना ठीक है अंधविश्वास करना गलत है।एड़ियां रगड़ रगड़ कर मरने से अच्छा तो बच के रहना है, गरीबी में रहना है।कई बार अमीरी और ऐशोआराम के सपने दिखा कर भी लड़कियों को फंसाया जाता है।साल दो साल में किसी का चरित्र समझ मे नहीं आता।आदमी वो कमीना है जिसे जिंदगी भर भी नहीं समझा जा सकता।बॉलीवुड और हाई सोसाइटी के लोगों को देख लो हर तरह से जांच परख कर- समझ कर शादी करते हैं फिर भी कोई शादी नहीं टिकती।
पहले के जमाने मे स्त्री-पुरुष का संपर्क कम था इसलिए विवाहेत्तर सम्बद्ध कम थे।आज स्त्री -पुरूष का संपर्क ज्यादा है इसलिए विवाहेत्तर सम्बंध ज्यादा हैं।सारा दिन एक दूसरे के साथ रहने में आकर्षण लाजमी है।आकर्षण को नियंत्रित करने में ही फायदा है .
जो लोग बोलते हैं कि महिलाओं का सिर पर पल्लू रखना उनकी उन्नति में बाधक है, पिछड़ेपन की निशानी है। महिलाएं खुद थोड़ा सा पैसा आते ही पल्लू छोड़ देती हैं, या किसी मंच पर जाना हो तो सोचती हैं कि मॉडर्न बनके जाए नहीं तो पिछड़ी हुई लगेंगीं।बेइज्जती होगी। उन्हें रूमा देवी जैसी इक्कीसवीं सदी की औरतों से सिख लेनी चाहिए।जिन्होंने पल्लू के साथ खुद को भी उन्नत किया और दूसरी महिलाओं को भी। उनके बीच में तो कभी पल्लू रुकावट नहीं बना। और भी कई औरतें हैं हमारे समाज में जिन्होंने पल्लू के साथ खुद की भी तरक्की की और समाज की भलाई के काम किये जैसे सिंधु ताई, प्रतिभा पाटिल, ममता बनर्जी,मदर टेरेसा।लड़के भी गलत कपड़े पहनने लगे हैं । उनको भी ध्यान रखना चाहिए मर्यादा में रहकर भी लोगों ने बहुत तरक्की की है, समाज का भला किया है जैसे मोदी जी, योगी आदित्य नाथ जी आदि। जिनमें मादा होता है वो आगे बढ़ते ही हैं। लेकिन मीडिया ऐसी औरतों को दिखाता ही नहीं है ।क्योंकि मीडिया नहीं चाहता कि समाज इन औरतों से प्रेरणा ले और चरित्रवान बने।। वो तो सारा दिन नंगी हिरोइनों को दिखाता रहता है ताकि समाज चरित्र हीन बने। जिन औरतों को पल्लू के साथ कहीं आने जाने में शर्म आती है, स्टेज पर या किसी समारोह में जाने में शर्म आती है तो वो लोग रूमा देवी के हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में दिए भाषण को देख लें, उन्हें कितनी इज्जत मिली, वो लोग स्वामी विवेकानंद जी का शिकागों का भाषण देख लें, वो भारतीय वेशभूषा में रहते थे और आज तक वो भारत का चेहरा बने हुए हैं सिर्फ भारतीय सभ्यता संस्कृति के कारण।
जहाँ हम नौकरी करते हैं उनके सारे निर्देश मानते हैं।उसके अनुसार जीते हैं,उसके अनुसार खाते हैं,उसके अनुसार रहते हैं तो हम माँ - बाप,बुजुर्ग या रिश्तेदारों के अनुसार क्यूँ नहीं चल सकते।क्यों उनकी इज्ज़त नहीं कर सकते।
हमारी खुद की राय कुछ भी हो लेकिन हमें पार्टी के व्हिप के अनुसार चलना पड़ता है।तो हम अपनो के अनुसार क्यों नहीं चल सकते।
कम्पनी या पार्टी में हम पैसे या पद के लालच में हर बात मानते हैं।माँ - बाप भी तो हमें पैसा, ज़मीन - जायदाद बहुत कुछ देते हैं।बुजुर्ग,रिस्तेदार या समाज भी हमें बहुत कुछ देता है।तो हम उस लालच में अपने घर वालोंं के हिसाब से फैसले क्यों नहीं लेते।घर वाले भी हमारा बुरा नहीं चाहते।
सरकार संस्कारवान बनाने वाले क़ानून क्यों नहीं बनाती।क्यों लोगों को बागी बनाती है।जो संस्कृति इस देश के 80% लोग चाहते हैं वो देश में क्यों लागु नहीं होती।
एक तरफ बॉलीवुड की वो औरतें है जो अपने खुद के बच्चे को दूध नहीं पिलाती, बच्चे किसी और से पैदा करवाती हैं, क्योंकि उनका शरीर गलत आदतों के कारण बच्चे पैदा करने लायक रहा नहीं और दूसरी तरफ वो औरतें है जो अपने बच्चों के साथ साथ अनाथालय में अनाथ बच्चों को दूध पिलाती हैं लेकिन राष्ट्रीय सम्मान मिलता है बॉलीवुड की औरतों को। समझ से बाहर है किस कारण से हम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं।जिन औरतों को समाज के आदर्श बनाकर पेश करना चाहिए उन्हें हम पूछते तक नहीं और जिन्हे जूते मार कर देश से भागना चाहिये उन्हें हम राष्ट्रीय सम्मान देते हैं।
जब एक नेता किसी औरत को , हीरोइन को सेक्सी बोल देता है या उसके साथ डांस कर लेता है तो मीडिया उसका इस्तीफा मांग लेता है।बोलते हैं कि देश को शर्मसार कर दिया।लेकिन जब एक अभिनेता सार्वजनिक मंच पर ऐसा करता है तो उसकी तारीफ के पुल बांधे जाते हैं।हीरोइन भी सेक्सी,हॉट,कूल शब्द को अपने लिए कॉम्पलिमेंट बताती हैं।आज कल तो लाइव शोज पर आम औरते भी छाई हुई हैं।
जब औरते ही औरतो का अपमान करती हैं तो महिला संगठन और मीडिया कुछ नही बोलते।अंगप्रदर्शन करती हैं,न्यूड सीन देती हैं,अंतरंग दृश्य करती हैं,खुद को हॉट-कूल-सेक्सी बताती हैं।क्या ये औरतों का अपमान नही है।हीरो रियलिटी शोज में हेरोइनों को छेड़ते हैं,किस करते हैं, हीरोइन भी इसका पूरा लुत्फ उठाती हैं।क्या ये अपमान नही है।छोटे बच्चों से गर्ल फ्रेंड-बॉय फ्रेंड के बारे में पूछा जाता है।बच्चो के सामने किस किया जाता है।लाइव शोज पर अभद्र बातचीत होती है।मीडिया ने यहां कभी हल्ला नही किया।आज सिनेमा में औरत को सिर्फ भोग विलास की वस्तु दिखाया जाता है।हीरोइन कोई विरोध नही करती क्योंकि उसे मिलता है। आज पैसा ही सबकुछ हो गया है। इन कुकृत्यो पर महिला संगठन और मीडिया चुप रहते हैं।अगर कोई भला आदमी ऐसी औरतों को कुछ नसीहत दे दे तो मीडिया और महिला संगठन उसका जीना मुश्किल कर देते हैं. कहाँ जा रहे हैं हम हमे खुद नही पता।
घर पे पानी का गिलास तक नहीं पकड़वाने वाली महिलाओं से ऑफिस में बॉस और फिल्मो में डायरेक्टर कुछ भी करवा लो सब करेंगी।एक हीरोइन ने बयान दिया कि उसके पास अच्छा जिस्म है और लोग उसका जिस्म देखना चाहते हैं तो मैं क्यों ना अपना जिस्म दिखाऊँ।लोग तो और भी बहुत कुछ चाहते हैं तो क्या आप वो भी करोगी।पैसे के लिए ये लोग कुछ भी कर सकते हैं।
देवानंद के काले कोट पर कोर्ट बैन लगा सकती है तो लड़कियों के बड़काउ कपड़ो पर क्यों बैन नही लग सकता?
जब स्कूल में ड्रेस कोड हो सकता है।ऑफिस में ड्रेस कोड हो सकता है।कोर्ट में जजो के लिए या वकीलों के लिए ड्रेस कोड हो सकता है तो फिर समाज मे ड्रेस कोड क्यों नही हो सकता।समाज अपने आप को साफ सुथरा क्यों नही रख सकता।समाज मे,गली मोहल्ले में,गांव में,शहर में हम वहां के हिसाब से कपड़े क्यों नही पहन सकते।फ़िल्म में या टीवी पर हम डायरेक्टर के हिसाब से बिना किसी ना नुकर के कपड़े पहन लेते हैं।क्योंकि हमें पैसे मिलते हैं।समाज मे हमे पैसे नही मिलते।
मीडिया और ऐसे लोग दुहाई देते हैं कि समाज नसीहत देने वाला कौंन है।हमे समाज से क्या मतलब है।जब संकट आता है तो वही समाज काम आता है।समाज के बगैर हमारा कोई अस्तित्व नही है।ये हीरो हीरोइन भी फ़िल्म का प्रचार करने उसी समाज के पास जाते हैं।जब फ़िल्म हिट करवानी होती है तो समाज याद आता है।
( महिला सशक्तिकरण ) ---
महिला सशक्तिकरण की बात वो महिलाएं करती हैं जिन्हें देखकर लगता नहीं कि उन्हें सशक्तिकरण की जरूरत है या उन्हें कोई अधिकार मिलना बाकी है।इनके पास दूसरा कोई काम धंधा नही होता।ये वो औरते हैं जिन्हें घर वालो ने खुला छोड़ रखा है,जिन्हें घर वालो की कोई चिंता नही,जो घर पे पानी का गिलास तक नही पकड़ाती, समाज की जिन्हें फिक्र नही,मीडिया पहाड़ पे चढ़ा देता है।
इनके सशक्तिकरण के भाषण में छोटे कपड़ो के अलावा नया कुछ नही होता।क्या कभी आपने गरीब औरत,झुग्गी झोपड़ी की औरत,मज़दूर औरत को ये बकवास करते हुए देखा है।क्योंकि उनके पास फालतू वक्त नही होता।पेट पालना, परिवार की देखभाल करना गरीब आदमी दिन रात इसी में लगा रहता है।अमीरों के पास वक्त ही वक्त है इसलिए उन्हें अधिकार ही अधिकार दिखाई देते है कर्तव्य दिखाई नही देते।पब्लिसिटी दिखाई देती है पब्लिक दिखाई नही देती।
नंगा घूमना, शराब पीना, रात रात भर बार मे जाना, धूम्रपान, खुला सेक्स क्या यही आज़ादी है ,क्या यही महिला सशक्तिकरण है।
महिला सशक्तिकरण की ब्रांड अम्बेसडर हीरोइनों को बनाना हमारी समाज सेविकाओं और घरेलू महिलाओं का अपमान है। असली सशक्त तो रुमा देवी, अलोला दिव्या रेड्डी, प्रतिभा पाटिल जी, सुषमा स्वराज जी, सिंधु ताई जैसी महिलाएं हैं । असली सशक्तिकरण ये होता है। हीरोइनों में कौन सा सशक्तिकरण है जिन्होंने हमारी संस्कृति की धज्जियां उड़ा दी।
सीमाएं तो मीडिया ने लाँघ दी हैं सारा सारा दिन बॉलीवुड का नंगा नाच दिखाता रहता है लेकिन सामाजिक कार्य करने वाली , स्वम सहायता समूह वाली , घरेलु महिला ,नेता ऐसी चरित्रवान और सशक्त महिलाओं को कभी नहीं दिखाता। जिन लोगों को बच्चें देखेंगे उन्हें ही आदर्श मानेंगे तो क्यों आप अपनी जिम्मेवारी नहीं समझते।
जिन हीरोइनों से अपने बच्चे नहीं पलते, जिनसे अपने ही बच्चों की टट्टी साफ़ नहीं होती , बच्चों को दूध नहीं पिलाया जाता, कई तो बच्चे पैदा ही नहीं कर पाती वो आपको सशक्त, प्रसिद्ध और मज़दूत महिला लगती हैं। इन अश्लील, नंगी, बदचलन औरतों को सशक्त बोलते हुए शर्म नहीं आती।
इन कुछ औरतों के लिए आप पूरे भारतीय समाज की औरतों का अपमान करते हो।किसके इशारों पर ये होता है।देश को चरित्रहीन करने के लिए कहाँ से आपको पैसा दिया जाता है।
महिलाओं को नंगा करके कौन सा सशक्तिकरण कर रहे आप लोग। क्या सिंधु ताई, रुमा देवी, अलोला दिव्या रेड्डी, मेनका गांधी, ममता बैनर्जी, स्मृति ईरानी, हरसिमरत कौर , सुषमा स्वराज जी, शीला दीक्षित जी ,सावित्री बाई फुलेजी, प्रतिभा पाटिल जी,मदर टेरेसा जी जैसी महिलाएं सशक्त नहीं हैं।एक विदेशी महिला सोनिया गांधी देश की बहू बनके अपने को भारतीय परिधान में ढाल लेती हैं। क्या अहिल्या बाई होल्कर जी, झांसी की रानी जी, रानी पद्मावती जी, रानी कर्णावती जी, रानी जीजाबाई जी जैसी औरतें सशक्त नहीं है।क्या माता अनसुइया, माता सीता, माता सावित्री जैसी औरतें सशक्त नहीं हैं।
वो घरेलू महिलाएं आपको बंधक लगती हैं जो अपने हिसाब से, अपने घर वालों की मर्जी से,आपसी सहमति से अपना घर चलाती हैं। अपने परिवार को स्वतंत्र तरीके से चलाती हैं।किसी गैर की नौकर नहीं हैं, किसी गैर ऐरे ग़ैरे के इशारों पर नहीं नाचती।काम के लिए, तरक्की के लिए, पैसे के लिए, झूठी प्रसिद्धि के लिए किसी से किसी भी तरह का समझौता नहीं करती।
घरेलु महिलाओं को भड़काते हैं कि महिलाएं आत्मनिर्भर होंगी तो उनका शोषण नहीं होगा, घर परिवार वाले आपको शोषण करने वाले लगते हैं, भेड़िये लगते हैं, वो महिलाएं जिन्हें आप आत्मनिर्भर बोलते हैं ऐसी महिलाएं अपने बॉस, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर,तथाकथित शुभचिंतक के इशारों पर नाचती हैं, पता नहीं किस ऐरे ग़ैरे से क्या क्या सुनती हैं, घर वाले थोड़ा सा डांट दे तो उन पर मुकदमा कर देती हैं।
मीडिया और कानून भी ऐसी ही औरतों का पक्ष लेता है।लेकिन बाहर वाले दूसरे लोग कुछ भी बोल दो, कितना ही डांट दो, कितना ही फायदा उठा लो वो अच्छे लगते और महान लगते हैं।
( स्वास्थ्य ) --
आज कल बहुत से घटिया किस्म के खाद्य पदार्थ बाजार का हिस्सा हैं।विज्ञापन भी बढ़ा चढ़ा कर पेश किए जाते हैं।फलां पदार्थ में गेहू है,विटामिन है,कैल्शियम है।ऐसे सभी पदार्थ अनाजो से ही बनते है।तो फिर अनाज में ये सब क्यों नही हैं।अगर हैं तो लोग सीधा अनाज ही खा लेंगे आपके प्रोडक्ट क्यों खाये।सीधा अनाज,फल आदि खाने से उन्हें ज्यादा विटामिन,प्रोटीन मिलेंगे।
एक विज्ञापन है कि जब तक दूध में इसे नही मिलाओगे तब तक कैल्शियम नही मिलेगा।ये प्रोडक्ट तो कल बाजार में आये हैं।दूध हज़ारो सालों से है।पहले कैल्शियम कैसे मिलता था।
एक विज्ञापन है कपड़े पानी में डालो और निकालो मैल साफ,दाग साफ।कोई इनपे केस भी नही करता।कोई इन्हें रेगुलेट भी नही करता।
आज जूस और पैकेट जूस का भी दौर है।अगर हम जूस पीते हैं तो फाइबर नही मिलता।फाइबर कच्चे फलों में मिलता है।फाइबर से हाज़मा ठीक रहता है।कच्चे फल खाने से दाँत मज़बूत होते हैं।सलाद खाने से दांत मजबूत होते हैं।जानवर और पक्षी कच्चा खाते हैं इसलिए उन्हें ब्रश की जरूरत नही होती।उनके दांत मजबूत रहते हैं।पैकेड जूस में कैमिकल मिलाया जाता है।जो शरीर के लिए लाभदायक नही है।आप ताजा जूस निकाल के रख दो तो थोड़ी देर में खराब हो जाता है।फिर पैकेड जूस,कोल्ड ड्रिंक आदि तो हम कई महीनों बाद पीते है।कोल्ड ड्रिंक तो सबसे बेकार है।इसमें कार्बन डाई ऑक्साइड होती है।कई जहरीले तत्व होते हैं जो शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं , सॉफ्ट ड्रिंक का एक भी फायदा आज तक किसी भी कम्पनी या डॉक्टर या वैज्ञानिक ने नहीं बताया है। प्यास तो भाई पानी से ही बुझेगी।
और भी पैकेड आइटम होते हैं जो हम धड़ल्ले से खा रहे हैं जैसे भुजिया,चिप्स आदि।जब हम घर मे तेल उबालते है तो वो कुछ घंटे में खराब हो जाता है।तो फिर तेल में उबले भुजिया-चिप्स महीनों बाद कैसे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं।मैगी को आधा पक्का कर पैक किया जाता है। आधा पका खाना कई दिन पैक रहने पर कितना पौष्टिक रहता है आप घर पे ही कच्ची रोटी रख के देख लो। झूठे विज्ञापन पर रोक लगनी चाहिए और हमे नेचुरल खाना ही ज्यादा खाना चाहिए।
आज के पहलवान, सैनिक , जो जातियाँ मास नहीं खाती थी वो सब मास खाने लग गए हैं। उन्हें लगता है कि मास खाने से ताकत मिलती है।क्या झांसी की रानी जी, भीम जी, परशुराम जी, महाराणा प्रताप जी, शिवाजी, दारा सिंह जी ने मास खाया था।उन्होंने शुद्ध शाकाहारी खाना, दूध, दही, घी, खोवा, मेथी के लड्डू, गोंद के लड्डू, हलवा, पूड़े ,गुड़ का चूरमा आदि भारतीय उत्पाद खाये थे।इसीलिए वो वीर योद्धा और चरित्रवान लोग थे.
जो जानवर आप खा रहे हो उसमे पता नहीं क्या बीमारी हो।आप कौन सा उसका मेडिकल टेस्ट करके खाते हो।जानवरों के जीन्स अलग होते हैं , हमारे शरीर को पचाने में काफी मस्कत करनी पड़ती है।
बेजुबान बेसहारा को हम सहारा नहीं दे सकते तो कम से कम उनपर जुल्म तो ना करें।कितनी बेदर्दी,बेरहमी से उन्हें काटा जाता है।
हमारा खान पान इतना गिर चुका है जिसकी बात करने में भी शर्म आती है। फ़ास्ट फ़ूड, सॉफ्ट ड्रिंक आदि ने पूरा स्वास्थ्य हिला दिया है।लोगों को चिभ के चटकारे के सामने अपने स्वास्थ्य की कीमत समझ मे नही आ रही है।होटलों में तो आदमी को बहुत ज्यादा मजबूरी में खाना चाहिए। होटल में खाना बनाने और घर में खाना बनाने में जमीन आसमान का फर्क है। बासी खाना भी वो उपयोग कर लेते हैं, बनाने का तरीका भी साफ सफाई वाला नहीं होता।कुछ लोग घर मे बनाने के झंझट से छुटकारा पाने के लिए कुछ भी अनाप शनाप खा जाते हैं। कुछ सिर्फ रेपुटेशन के चक्कर में होटलों के चक्कर काटते हैं। शरीर भी खराब और पैसा भी बर्बाद। जितना होटल में एक समय के खाने का देते हो उतने में घर मे 5-10 बार खा सकते हो। दो- तीन महिलाएं घर में खाली पड़ी रहेंगी लेकिन खाना नहीं बनाएंगी। खाने का कोई समय भी निर्धारित नहीं है। रात में 10-11 बजे परिवार वाले लोग समोसा, कचौरी, चाउमीन, पिज़ा खाते मिलेंगे। क्या पचेगा, कितना पचेगा और क्या शरीर का हाल होगा कोई मतलब नहीं।
खाने के बर्तन सिल्वर (Aluminium) के आ गए जो एक नम्बर की बेकार धातु है।उसमें खाना बना के खाने से, पानी पीने से और दूध पीने से अनेकों बीमारियां झकड लेती हैं।गरीब तो मान लिया पैसे के अभाव में या जानकारी ना होने की वजह से मजबूर हैं, पढ़े लिखे लोगों को क्या हो गया।वो क्यों अपना जीने का तरीका नहीं ठीक रखते। पानी शुद्ध करने वाले उपकरणों का करोड़ो का व्यवसाय है। ऐसे उपकरण सारे पानी की ऐसी तैसी कर देते हैं।पानी के सारे मिनरल, मिटामिन गायब हो जाते हैं, ये अलग बात है कि कीटाणु शायद ना मरें। पानी का स्वाद भी बिगड़ जाता है। यही पानी मिनरल वाटर के नाम से केम्पर में भर भर के ऑफिस, स्कुल, दुकान, घर में सप्लाई हो रहा है।ना तो वो पानी मिनरल होता है, ना उन कैम्पर को कभी धोया जाता है। शुद्ध-स्वस्थ के नाम पर कितना बड़ा घालमेल चल रहा है। पानी ठंडा होता है उससे बच्चे बीमार और पड़ जाते हैं। या कोई वयस्क भी धूप से आकर अचानक वो पानी पी ले तो वो भी बीमार पड़ जाता है। हमारी जीवन शैली हमें कितना नुकसान कर रही है ये हम नहीं सोचते । एक तो उपकरण का खर्च, उसके बाद बीमारी का खर्च, कालांतर में किसी बड़े रोग द्वारा झकड़न, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म, हड्डियां खत्म और भी कई तरह के नुकसान हैं।
एयर कंडीशनर की डिमांड काफी बढ़ गई है। आफिस, घर, कार ,दुकान हर जगह एयर कंडीशनर है। हद तो ये हो गयी जिम भी ए. सी. ।धूप में लोग निकलते ही नहीं। विटामिन डी की कमी, शरीर का पसीना ना निकलने से शरीर का मैला शरीर मे ही रहता है। जो रोगों का कारण बनता है।
गाँव के लोग या छोटे कस्बों के लोग दुकान या घर के एक कमरे में ए सी लगवा के रख लेते हैं। काम धूप में करते हैं , खेत में धूप में झुलसते हैं और फिर ए सी में घुस जाते हैं। कंभी गर्मी कंभी सर्दी से शरीर को भारी नुकसान होता है।
बिजली बिल बढ़ते हैं, बिजली की खपत बढ़ती है, शरीर की सुस्ती बढ़ती है, बीमारियों पर खर्च बढ़ता है और पर्यावरण का नुकसान होता है।पहले लोग छतों पर सोते थे।जल्दी नींद आती थी, सुबह जल्दी उठते थे। शरीर तरो ताजा- खुला खुला रहता था।शुद्ध हवा मिलती थी।अब कमरों के अंदर से सुस्त होकर उठते हैं। कमरे की घुटन की खराब हवा शरीर में जाती है यही रोगों की जड़ है।लोगों को रेपुटेशन और आराम पसंदगी ले बैठी है।
पश्चिमी स्टाइल लेट्रिन का प्रचलन बढ़ता जा रहा है।उसके साथ टॉयलेट पेपर का प्रचलन। आप बीमारी रोक रहे हो या बढ़ा रहे हो। टॉयलेट शीट पर बैठते हो।उस शीट के सारे कीटाणु आपकी टांगो पर - पिछवाड़े पर, आपकी कमर पर चिपक जाते हैं।उन्ही कीटाणुओं को लेकर आप बिस्तर, सौफे और कुर्सी पर चले जाते हो । आपके कपड़े, अलमारी,पर्स, हर चीज टॉयलेट के कीटाणुओं से भर जाती है। कोई आपको सिर्फ सफाई की शिक्षा दे सकता है ,कैसे करनी है वो आपको तय करना है। इतने पढ़े लिखे लोग सिर्फ आधुनिक और पश्चिमी बनने के चक्कर में इस तरह की आदतों के शिकार हो गए।
टॉयलेट शीट के बाद बात आती है लेट्रिन के हाथ धोने की ।ऐसे ऐसे महानुभाव हैं कि उनसे अपने चूतड़ तक नहीं धुलते। पेपर से झाड़ के चल देते हैं शर्म नहीं आती। फिर अपने आप को सभ्य भी बोलते हैं। चूतड़ पेपर से कैसे साफ हो सकते हैं। मैला सही से साफ़ नहीं होता तो उस गुप्त जगह पर कई और बीमारियां हो जाती हैं। पेपर से साफ करके उन्ही हाथों से पैंट या पजामा पहन लेते हैं, वो लेट्रिन आधा पाजामे के लग जाता है। फिर साबुन से हाथ धोते हैं।क्या फायदा बाद में साबुन रगड़ने का।
कुछ महानुभाव टॉयलेट में अखबार, किताब और मोबाइल लेके जाते हैं।और उनके साथ दुनिया भर के कीटाणु लेके आते हैं। ये सेलिब्रिटी यूं तो बहुत सावधानियां बरतते हैं , नखरे करते हैं, सुरक्षा उपाय अपनाते हैं, तरह तरह के साबुन,सैम्पु , फर्स धोने के पाउडर पता नहीं क्या क्या । लेकिन टॉयलेट ठीक से यूज करते नहीं।
( खेल ) --
पहले खेल शरीर को फिट रखने के लिए,अपने क्षेत्र या देश के सम्मान के लिए , इज्जत के लिए खेले जाते थे।पैसे का लोभ नहीं था।आज खेल में वो खेल भावना नहीं है।खेल व्यवसाय भी बन चुका है।खिलाड़ी खेल से ज्यादा - अपने देश से ज्यादा , पैसे को अहमियत देते हैं।आई पी एल जैसी लीग उदाहरण हैं।कुछ ही खिलाड़ी हैं जो आज भी खेल को अहमियत देते हैं। माइकल क्लार्क सिर्फ अपने देश के लिए खेले ।कभी किसी लीग में नहीं गए।वो बड़े खिलाड़ी थे, उन पर सन्यास का कोई दबाव नहीं था।फिर भी विश्व कप जितवाकर सन्यास ले लिया।गौतम गंभीर ने दो विश्व कप भारत को जितवाये।लेकिन इस खिलाड़ी को क्रेडिट नहीं मिला।गौतम ने अपने मैन ऑफ द मैच के अवार्ड दूसरे खिलाड़ियों को बांट दिए।दूसरे खेलों की भी अपने पैसे से मदद की।एन जी ओ भी है। मीडिया ऐसे खिलाड़ियों का गुणगान नहीं करता।फ्लिंटॉफ, मार्क ट्रेसकोथिक,ग्रीम स्मिथ,ब्रायन लारा जैसे कुछ खिलाड़ी पैसे के पीछे नहीं भागे।
हमारे गांव में कब्बडी के खेल थे।फाइनल मैच हमारे गांव और सिसर खरबला के बीच था।सिसर का एक खिलाड़ी आयोडेक्स लगाकर रेड मार रहा था।जिससे उसे पकड़ना मुश्किल था।हमारे गांव ने शिकायत की।कमेटी हमारे गांव को विजेता घोषित कर रही थी, क्योंकि सीसर की टीम ने नियम तोड़े थे। हमारे गाँव के खिलाडियों ने इस तरह विजेता बनने से मना कर दिया। क्योंकि खेल हमारे गांव में थे।बाद में इल्जाम लगता कि वो धोखे से जीते हैं।कई साल बाद फिर हमारे गांव में कब्बडी के खेल थे।फाइनल मैच था।पहला इनाम डेढ लाख और दूसरा एक लाख का था।कोथ गांव की टीम आगे चल रही थी।दूसरी टीम के मैन रेडर की टांग टूट गई, जिस वजह से उन्होंने मैच बिच में छोड़ दिया। कमेटी कोथ गांव को विजेता घोषित कर रही थी और उनका हक भी था।लेकिन कोथ टीम ने पहला इनाम लेने से मना कर दिया और दूसरी टीम को पहला इनाम देने की सिफारिश की।खुद दूसरे इनाम से संतुष्ट हुए।क्या ये खेल भावना बड़ी टीमो और दूसरे खेलों में है।गांव में खेलों की तरफ किसी का ध्यान नही है।कोई सुविधा नही दी जाती।गांव में मज़बूत खिलाड़ी हैं लेकिन सही मार्गदर्शन नही है।कुछ साल शौकिया तौर पे खेल के अपने काम धंधे में लग जाते हैं।उनका करियर खेल में नही बन पाता।मुझे याद है हमारे खेल के पी टी आई मास्टर स्कूली खेलों में छात्रों को खिलाने के लिए ले जाते थे तो बीच मे ही बस से गायब हो जाते थे,खिलाड़ियों की बस में टिकट नही लेते थे,उनको सारा दिन खाने के लिए नही देते थे।सारा पैसा खुद डकार जाते थे।पूरी टीम को एक दारू की बोतल में बेच देते थे।दूसरी टीम को बिना खेले ही विजेता बनवा देते थे।छात्र बस इसलिए खिलाड़ी बनते थे ताकि क्लास में ना जाने पड़े और पढ़ना न पड़े।जहां ऐसा माहौल हो वहां कैसे अच्छे खिलाड़ी निकलेंगे,कैसे खेलों का विकास होगा।अगर अच्छी सुविधाएं हो,सही मार्गदर्शन हो,ट्रेनिंग के लिए जगह हो,कोच हों तो अकेला हरियाणा ही देश को खेलों की महाशक्ति बनवा देगा।
सारे न्यूज़ चैनल सिर्फ क्रिकेट की ही बातें दिखाते हैं।सारे अखबार सिर्फ क्रिकेट की ही खबर छापते है।बाकी खेलों से तो दुश्मनी है।कबड्डी हमारा अपना भारतीय खेल है लेकिन उसे लाइव दिखाने वाला या उसकी खबर छापने वाला कोई नही है।कबड्डी में हम विश्व कप भी जीत जाए या किसी अन्य खेल में तो कोई बात नही होती।क्रिकेट में एक मैच जीत जाएं तो सारा दिन उसी के चर्चे होते हैं।क्रिकेट के मैच हो रहे हों या नही लेकिन उस पर एक स्पेशल प्रोग्राम जरूर आता है।
क्रिकेट खिलाड़ियों की थकावट की बहुत बातें होती हैं।कहते हैं कि इतने व्यस्त कार्यक्रम हैं जिससे खिलाड़ी थक जाते हैं।खासकर जब हार रहे होते हैं तो ज्यादा बातें होती हैं।एक मैच में दो-तीन दिन का फांसला होता है।टेस्ट मैच में 4-5 दिन का फांसला होता है।तो क्या ये काफी नही है आराम करने के लिए।और कितना आराम चाहिए।एक मज़दूर,एक किसान,एक गृहणी , एक नौकरी पेशा व्यक्ति रोज काम पर जाते हैं।रोज दिन भर काम करते हैं।वो तो कभी आराम की मांग नही करते।कभी थकावट का रोना नही रोते।फिर सिर्फ क्रिकेट खिलाड़ियों की ही बात क्यों होती है।जबकि सारी सुविधाएं हैं खिलाड़ियों के पास। डॉक्टर है, फिजियोथेरेपिस्ट है, मालिस करने वाले हैं, सुरक्षा देने वाले हैं।पौष्टिक खाना मिलता है, प्रोटीन, विटामिन पीने को मिलते हैं।सब फ्री फिर भी ये लोग थक जाते हैं।
एक गरीब आदमी रोज मजदूरी करता है, कोई अच्छा खाना नहीं, कोई डॉक्टर की या और कोई सुविधा नहीं फिर भी वो नहीं थकता।हकीकत ये है कि ये लोग ब्रांड बन गए हैं पैसा अनाप शनाप हो गया है, इन्हें नाटक तो आएंगे ही।
( नक्सल ) --
नक्सलियों को मुख्य धारा में लाने के लिए सरकार ने कई घोषणाएं की लेकिन कोई असर नही हुआ।नक्सलियों को पता है कि कुछ दिन अच्छा व्यवहार होगा बाद में फिर वही परेशानिया शुरू हो जाएंगी।आम आदमी को कोई शौक नही है गुंडा बनने का।लेकिन सरकारी अत्याचार और सामाजिक अत्याचार उसे मज़बूर कर देता है।किसी को इतना परेशान ना किया जाए कि वो हथियार उठाने पर मजबूर हो।
उनकी भूमि छीन ली जाती है।सरकारी योजनाओं का लाभ नही दिया जाता है।उच्च वर्ग अत्याचार करता है।पुलिस सुनती नही।न्यायलयों में सालों लग जाते हैं।
पटवारी वर्ग धोखा कर देते हैं।तो आदमी के पास गुंडा बनने के अलावा कोई विकल्प नही होता।
पुलिस किसी को भी झूठे मुकदमे में फंसा सकती है।उस आदमी को वर्षो न्यायलय के चक्कर काटने पड़ेंगे।पैसा और समय बर्बाद होगा।लेकिन उस पुलिस वाले को कोई चक्कर नही काटने , आदमी के निर्दोष साबित होने पर भी सरकारी कर्मचारी को कोई सजा नही मिलती।
ऐसे ही पटवारी या अन्य कर्मचारी रिकॉर्ड में हेरा फेरी कर दें तो उनका कुछ नही होता।लेकिन पीड़ित व्यक्ति का सारा जीवन तबाह हो जाता है ।कोई एक दो ही केस लड़ और जीत पाते हैं बाकी बेचारे लूट पिट के बैठ जाते हैं या गुंडे बन जाते हैं।
पटवारी कभी भी खेतों में जाकर रिपोर्ट नही बनाते।वो अपने आफिस या सरपंच के घर मे बैठकर रिपोर्ट बना देते हैं।झूठे माल आ जाते हैं।झूठे मुवावजे आ जाते है।जिसको मुवावजे मिलने हैं उन्हें मिलते ही नही।अगर केस करो तो हाल आपको पता है।इसलिए कलम चलाने वाले को सजा मिलनी चाहिए।
हथियार उठाने वाले को तो समाज और कानून दोषी,गुंडा,नक्सली घोषित कर देता है।लेकिन जिनकी वजह से हथियार उठाये वो इज्जतदार ही बने रहते हैं।
( सर्वे ) ---
दुनिया मे सब तरह के सर्वे झूठ का पुलिंदा होते हैं।फील्ड में बैठे आधे लोग तो घर बैठे रिपोर्ट तैयार कर देते हैं।सर्वे करने वाले लोग 500-700 1000-2000 लोगो पर सर्वे करते हैं।किसी खास वर्ग या शहर में सर्वे करते हैं।और उसे पूरे देश की आवाज़ घोषित कर देते हैं।हर आदमी,शहर,गांव, मोहल्ले की सोच,दिमाग,स्वाद,जरूरत अलग अलग होती है।कुछ लोग सबकी आवाज़ नही बन सकते।एक कंपनी ने सर्वे किया भारत मे पिज़्ज़ा कितने लोग पसंद करते हैं।बड़े शहरों के 500 लोगो पर सर्वे किया।और उसे प्रतिशत में भारत की पसंद बना कर पेश कर दिया।किसी खिलाड़ी या सेलिब्रिटी की लोकप्रियता का सर्वे कुछ लोगो और कुछ शहरों में करते है।आजकल इंटरनेट पर करने लगे हैं।यही सर्वे अगर गांव में हो तो रिपोर्ट कुछ और आएगी।इसी तरह के और भी सरकारी और गैर सरकारी सर्वे थोप दिए जाते हैं।सवाल पूछने वाले को आदमी सही जवाब दे ये जरूरी नही है।बहुत से निजी सवाल होते हैं जहां झूठ ही बोला जाता है।आदमी दिखता कुछ है,बोलता कुछ है और होता कुछ है।इसलिए सर्वे का कोई वजूद नही होता।
( चाइल्ड एक्ट ) --
जो बच्चे अनाथ,गुमशुदा,गरीब हैं उन बच्चों को बचपन का मतलब ही पता नही चलता।वो तो रोटी के लिए जंग लड़ते रहते हैं।वो भीख मांगे या चोरी डकैती सीखें।या कहीं काम करके अपना और अपने माँ बाप या भाई बहन का पेट पाले ।बच्चो का काम करना कानूनन जुर्म है।कोई उन्हें काम पर रखता नही।कोई रखता है तो बहुत कम पैसे देता है।कोई भी समाज सेवी आकर उनका काम छुटवा देता है।भीख हर किसी को मिलती नही।तो फिर ऐसे बच्चे कैसे जियें।क्या करें।काम न करें तो भूखे मरेंगे।कुछ बच्चे ऐसे हैं जो काम करते हैं और साथ मे पढ़ते हैं।बच्चो का काम करना या उनसे काम करवाना जुर्म तो घोषित कर दिया ।क्या उनके लिए सुविधा मुहैया करवाई गई।सरकार या समाज सेवी बताएं कि वो लोग कैसे दुनिया मे अपना अस्तित्व बचाएं।
बच्चो को काम करता देखकर सबको बुरा लगता है।जब उनके खेलने कूदने के दिन होते हैं तो उन्हें भीख मांगनी पड़ती है या काम करना पड़ता है।कुछ नशे के आदि हो जाते हैं।चोर डकैत बन जाते हैं।जवानी आते आते कई बीमारियां घेर लेती हैं।सार्वजनिक वितरण प्रणांली का इन्हें लाभ नही मिलता।क्योंकि राशन कार्ड नही है।कोई और पहचान पत्र भी इनके पास नही होता।कानून तो अपने बच्चों से अपने घर का काम करवाने के भी खिलाफ है।अगर माँ बाप शुरू से अपने बच्चों को काम करने नही लगाएंगे तो वो बाद में काम नही कर पाएंगे।हाथ बंटाने से उनकी काम के प्रति लगन पैदा होती है।
फिल्मो में या स्टेज पर बच्चो से काम करवाया जाता है वहां मीडिया,सरकार,कानून और समाज सेवी सब चुप रहते हैं।वहां बच्चो का काम करना जायज है तो बाकी जगह क्यों नही।अमीर लोगो के काम मे कोई हस्तक्षेप नही करता।फिल्मो में काम करने वाले बच्चों की कोई मज़बूरी या पेट का सवाल नही होता फिर भी उन्हें हक़ है काम करने का।लेकिन गरीब बच्चों की मजबूरी होती है फिर भी कानूनी बंदिशें हैं।
बच्चों को काम करने की छूट मिलनी चाहिए।लोग चोरी छिपे काम करवाते हैं।काम करना उनकी मजबूरी भी है।अगर लीगल हो जाएगा तो बच्चों का शोषण रुक जाएगा।खतरनाक जगह पर काम नहीं करना पड़ेगा।अच्छी तनख्वाह और बाकी सुविधाएं मिलेंगी।अभी तनख्वाह कम मिलती है , डर की वजह से उन्हें छुपा कर , गंदी जगह पर रखा जाता है, बाकी सुविधाएं नहीं दी जाती।सभी लोग कानून के डर से काम दे भी नहीं पाते।जिससे बहुत से बच्चे बेरोजगार रहते हैं।सड़कों, रेलवे स्टेशनों पर पड़े रहते हैं।गलत लोगो की संगत में जाते हैं।नशा, आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं।कई तरह के शारीरिक शोषण का शिकार बनते हैं।हमारा बच्चा जब हमारे बगैर एक घंटा भी सुरक्षित नही है तो उन अनाथ बेसहारा बच्चों पर क्या गुजरती होगी।वो तो दिन रात भेड़ियों, बदमाशों और निर्दयी लोगो के बीच मे रहते हैं। उन पर गाली, मार, दुष्कर्म , भूखा सोना आदि कई तरह के जुल्म भी होते हैं। इन गरीब बच्चों को भी अच्छी जिंदगी जीने के लिए कुछ शर्तों के साथ काम करने की इजाजत मिले।
बचपन जिंदगी का सबसे सुनहरा दौर होता है।बचपन की हंसी ही सच्ची हंसी होती है।उसके बाद तो बनावटी पन आ जाता है।आज बच्चों को ढाई तीन साल की उम्र में स्कूल में जाना पड़ता है।स्कूल के अलावा ट्यूशन,डांस क्लास, और किसी चीज की क्लास,टीवी विडियो गेम वगैरह में बचपन उलझ कर रह गया है।
बचपन वाले जो खेल पहले होते थे जिनसे बच्चा मज़बूत और खुशदिल बनता था आज वो गायब हैं।लाखों बच्चे बचपन का आनंद नही ले पाते।
पढ़ाई की उम्र पांच साल करनी चाहिए और पहली क्लास एक साल की होनी चाहिए अभी तीन चार साल में पहली क्लास पास होती है।पढ़ाई जरूरी है लेकिन बचपन उससे ज्यादा जरूरी है।कुछ साल है जिंदगी के उन्ही में हम बच्चों पर प्रेशर डाल देते हैं।
( भ्रष्टाचार ) --
जो ये रोज हड़ताल पर खड़े रहते हैं उनके लिए सरकार को एक बार साहसिक कदम उठाना चाहिए सबको बर्खास्त कर देना चाहिए।रेयर केस कर्मचारियों की एक यूनिट बनानी चाहिए।उनको विपरीत परिस्थिति के लिए एक दम तैयार रखना चाहिए।जैसे ही पहली लाइन के कर्मचारी बकवास करे उनको हटा के तुरंत रेयर केस कर्मचारी बहाल कर दिए जाएं। एक बार साहसिक कदम उठाने की जरूरत है इनकी अक्ल ठिकाने आ जाएगी।
जब तक लोगो को नौकरी नही मिलती हाथ जोड़ते फिरते हैं- कैसी ही ,कितने ही पैसे की सरकारी नौकरी मिल जाये हम ईमानदारी और मेहनत से काम करेंगे। नौकरी मिलने के बाद सरकार और जनता के दामाद बन जाते हैं।क्योंकि एक बार सरकारी नौकरी लग गई तो कोई हटाने वाला नहीं।अवल तो सरकारी कर्मचारी पर कोई एक्शन होता नही अगर हो भी जाये तो कोर्ट उन्हें बचा लेती है।क्योंकि जज भी सरकारी कर्मचारी हैं।हर कम्युनिटी अपनी कम्युनिटी का बचाव करती है आप चाहे किसी भी फील्ड में देख लीजिए।
मैंने एक केस पढ़ा था कि एक सरकारी कर्मचारी को सरकार ने बर्खास्त कर दिया।उसने केस किया और दलील दी कि उसने विभाग से फलां भाषा मे नोटिस या आरोपपत्र मांगा था लेकिन उन्होंने नही दिया।जिस कारण मै अपना बचाव नही कर पाया।कोर्ट ने केवल इस आधार पर उसे बहाल कर दिया।
आंगनवाड़ियों में सरकार ने बहुत सी सुविधाएं मुहैया करवा रखी हैं।लेकिन आंगनवाड़ी संचालिका उसे लोगो तक नही पहुंचाती।जो भी सामग्री बच्चो-गर्भवती महिलाओं के लिए आती हैं उसे बेच देती हैं,घर मे या रिश्तेदारियों में उपयोग कर लेती हैं।जिस दिन चेकिंग वाले आते हैं उसी दिन बच्चो को इक्कठा करके रखती हैं।गांव वाले इसलिए शिकायत नही करते क्योंकि आपसी भाईचारे की बात होती है।दूसरी बात शिकायत पर कोई कार्यवाही भी नही होती है, आपसी दुश्मनी बढ़ जाती है।क्योंकि ऊपर तक सब मिले होते हैं।
मिड डे मील योजना का हाल भी बुरा है।घटिया किस्म का खाना दिया जाता है।सरकारी स्कूल में सिर्फ गरीब बच्चे पढ़ रहे हैं।इसलिए सब सालों से चल रहा है।ये घटिया खाना खा के बच्चों को भविष्य में कई बीमारियों से रूबरू होना पड़ेगा।मिड डे मील और आंगनबाड़ी से अच्छा है पैसा सीधे खाते में ट्रांसफर हो जाये।
गांव में जानवरों के हस्पताल खोले गए हैं।लेकिन डॉक्टर आते ही नही।पशुओं का उपचार करने का पैसा लेते हैं। हस्पताल की निशुल्क वाली दवाइयां बेच देते हैं।प्राइवेट सर्विस साथ मे चालू रखते हैं। हमारे गांव वालों ने एक डॉक्टर की ऊपर तक शिकायत की।कई दिन तक ऑफिसों के चक्कर लगाए लेकिन डॉक्टर का कुछ नही बिगड़ा।एक डॉक्टर अपनी पूरी सर्विस खत्म कर दिया लेकिन उस बंदे ने कभी किसी जानवर को इंजेक्शन नही लगाया,कभी दवाई नही दी, अपनी पूरी नौकरी में अस्पताल में २० प्रतिशत ही गया होगा नहीं तो घर पे पड़ा रहता था। क्योंकि उसे आता ही कुछ नही था।वो आरक्षण वाला नही सिफारिश वाला डॉक्टर था।और अब पेंशन ले रहा है।
राशन कार्ड गलत लोगो के बने हुए हैं।जो अमीर हैं उनके भी गरीबी रेखा से नीचे वाले कार्ड बने हैं।राशन दुकान वाला सामान कम देता है।उसको पीछे से कम मिलता है ।यानी पीछे वाले पहले ही अपना काटा काट कर माल सप्लाई करते हैं।ऊपर तक हिस्सा जाता है।कोई शिकायत भी करे तो कुछ नही होता।सब मिलकर कमाते हैं।
फर्जी वोटर कार्ड बने हैं।एक आदमी दो तीन जगह कार्ड बना रखा है।दूसरे देश वालों तक के वोटर कार्ड बने हैं।वोट पाने के लिए कुछ भी जायज है।
पेट्रोल पंप पर कम और मिलावटी तेल बेचा जाता है।माप तोल और दूसरे विभाग मिले हुए हैं।डिपो से ही मिलावट होकर आ जाती है।लेकिन कोई कार्यवाही नही होती।क्योंकि सबको हिस्सा दिया जाता है।
कोई भी नई स्किम आ जाये, कोई नया कानून आ जाये लूट का एक नया हथियार मिल जाता है।फर्जी फायदा उठाने वाले, रिस्वत खाने वाले सक्रिय हो जाते हैं और खुलकर लूटते है।सरकार नियम बनाती है समाज मे सुधार करने के लिए लेकिन ये लोग उसे असफल कर देते हैं।फिर सारा दोष नेताओं के सिर मड देते हैं।
जहां भी सरकारी निर्माण होता है, बड़ी फैक्टरियां या बिल्डिंग बनाई जाती है वहां जम कर सीमेंट, सरिया, रेत, डीजल आदि चोरी से बेचा जाता है।ट्रक के ट्रक सलटा दिए जाते हैं।ठेकेदार सोचते हैं कि वास्तव में इतना माल लगता है लेकिन कम से कम 20-30% माल कालाबाज़ारी में बिकता है।ठेकेदार को भी नुकसान, सरकार को भी नुकसान। प्रोजेक्ट के खर्चे का आंकलन माल की खपत पर किया जाता है और उसी हिसाब से टेंडर भरे जाते हैं।
विभागों का निजीकरण होने पर सब सरकार पर चिल्ला रहे हैं।सरकार की गलती बता रहे हैं।इसके लिए सरकार नहीं सरकारी कर्मचारी खुद जिम्मेदार हैं।सरकार पालिसी बना सकती है, इन्वेस्ट कर सकती है , सुविधाएं दे सकती है जो वो देती भी है लेकिन काम कर्मचारियों को करना है।इल्जाम सरकार पर लगाते हैं कि वो सरकारी रोजगार खत्म कर रही है।जबकि ये सब आपकी कारस्तानी है।आपको अपने बच्चों की फिक्र नहीं है।आप मुर्गी को मारकर सारा सोना आज ही हड़पना चाहते हो।आप अपने संस्थान को बचाने के लिए हड़ताल के अलावा कुछ नहीं करते ।काम करना पड़ता है।आप आठ घण्टे भी सही से काम नहीं करते।निजी संस्थान क्यों उन्नति करते हैं क्योंकि उनके कर्मचारी प्रोफेसनल हैं।अपनी पूरी उत्पादकता देते है।काम खत्म करके ही घर जाते हैं चाहे उसके लिए ओवरटाइम करना पड़े।ओवरटाइम का पैसा भी नहीं मिलता।अपने ग्राहक से अच्छे से बात करते हैं, उनकी शिकायतें दूर करते हैं।सरकारी कर्मचारियों को बोलने की तमीज़ नहीं है।अच्छी तनख्वाह, अच्छी सुविधाएं,अच्छी रिटायरमेंट, अच्छी पेंशन के बावजूद आप हड़तालों में उलझे रहते हो।पूरा दिन गप्पे मार के घर चले जाते हो।फिर रिस्वत, विभागीय कार्यो में कमीशन खाना आदत बन गयी है।कहाँ से विभाग कमाई करेगा? कैसे सरकार आप जैसे बागड़ बिल्लो को पालेगी? अगर विभाग कमाई ना भी करे सिर्फ जनता का भला हो तो भी सरकार विभाग को चला ले।लेकिन ना कमाई होती ना जनता का भला होता तो सरकार को मजबूरी में निजीकरण करना पड़ता है।अगर आप विभाग को अपने घर की तरह अच्छे से चलाओ, जनता का भला करो तो निजीकरण या बन्दी की नौबत ही ना आये।
अभी कुछ सरकारी स्कूल बंद करने की खबर आई है।क्यों बंद हो रहे हैं? क्योंकि आप स्कूलों में जाते नहीं, बच्चों को पढ़ाते नहीं।आपको खुद कुछ आता नहीं और बच्चों की जोरदार पिटाई करते हो।बच्चों ने सरकारी स्कूलों में पढ़ना ही छोड़ दिया।आपने उन्हें अपने स्कूलों में खींचने का प्रयास भी नहीं किया।क्यों करोगे आपको तो फ्री की तनख्वाह मिल रही है।कभी सोचा है आपके अपने बच्चों को रोजगार कहाँ से मिलेगा।
बीएसएनएल के निजीकरण की बात हो रही है।किसने डुबोया उसको।कर्मचारियों ने। आपने उनके वायर और टावर तक बेच दिए।निजी कंपनियों से सांठगांठ करके रेंज नहीं छोड़ी।सिम कूड़े में फेंक के आ जाते थे।गाड़ी टावर लेके आती थी तो खाली नहीं करवाते थे।गाड़ी वाले से गाड़ी खाली करने का 5000-10000 रिस्वत लेते थे।आपने अपने विभाग की तरक्की की नहीं सोची।अपनी नौकरी या भविष्य की नौकरियों के बारे में नहीं सोचा।
हरियाणा रोडवेज वाले निजीकरण को लेकर हड़ताल कर रहे हैं।कंभी सवारियों से ढंग से बात की आपने।सवारी आपकी ग्राहक हैं।एक व्यापारी ग्राहक को भगवान मानता है।क्या आप मानते हो? भगवान तो दूर आप उसे इंसान भी नहीं मानते।क्योंकि आपको क्या फर्क पड़ेगा नुकसान होगा तो सरकार का होगा।आप मैन बस अड्डो तक पर गाड़ी नहीं रोकते।बाहर के बाहर भगा ले जाते हो।छोटे गाँव देहात के अड्डो पर तो मर्जी आई तो रोक दी नहीं मर्जी हुई तो भगा ले गए।रोड़ पर यमराज बनकर निकलते हो।ओवरस्पीड, रफ ड्राइविंग, असुरक्षित ओवरटेक आपके गाड़ी चलाने के तरीके हैं।मरेंगे तो आम आदमी मरेंगे आप तो गाड़ी से कूद जाते हो।गाड़ी टूटेगी तो सरकार की टूटेगी।केस लड़ेगी तो सरकार लड़ेगी।मुवावजा देना पड़ेगा तो सरकार को देना पड़ेगा।आप तो सिर्फ फायदे के हिस्सेदार हो।रोज आपकी तनख्वाह बढ़नी चाहिए। 5-10 सवारी के टिकट के पैसे खा जाते हो।तेल में घपला, मेन्टेन्स में घपला, सामान खरीदने में घपला, टायर में घपला तो कैसे रोडवेज प्लस में आएगी।सरकार को कुछ बचा कर नहीं दोगे तो सरकार कैसे विभाग चलाएगी।आप कोई खुद का बिजनेस करते हो अगर उसमे नुकसान होगा तो क्या आप चलाओगे।पीछे ओवरटाइम नहीं मिल रहा था तो आप बीच रास्ते मे बस छोड़कर भाग जाते थे , क्या ये आपका प्रोफेशनलिज़्म है। आप अपने घर का काम करवाने के लिए एक दिन का मजदुर लगाते हो तो उसे पूरा दिन रोड़ते है ,थोड़ा सा आराम करने बैठ जाता है तो सैंकड़ो गालिया देते हो। पुरे दिन की मजदूरी ३०० रूपये देते हो। आपको सरकार एक दिन की तनख्वाह १०००-२५०० रूपये देती है ,बाकि सुविधाएं अलग से देती है फिर भी पूरा दिन फाका मार कर चले जाते हो ,आपको कोई शर्म नहीं आती, उल्टा अपने आप पर गर्व करते हो कि आज कोई काम नहीं किया। आप अपने विभाग जो आपको रोजी रोटी दे रहा है उसकी इज्जत नहीं करते। अपने विभाग को बचाने के लिए ओवरटाइम तो दूर ड्यूटी टाइम में भी ठीक से काम नहीं करते। आपके बगल में निजी बसें चलती हैं, उनके ड्राइवर परिचालक ओवरटाइम करते हैं,सवारी का सामान भी उतरवा चढ़वा देते हैं और तनख्वाह आपसे 10 गुना कम होती है।बाकी सुविधाएं जो आपको मिलती हैं उनमें से एक भी इनको नहीं मिलती।फिर भी ईमानदारी से काम करते हैं।
सरकारी कर्मचारियों को 60-70 हजार की तन्खवाह मिलती है।मेडिकल, बच्चों की शिक्षा, रहने के लिए घर , कपड़े धोने के लिए खर्चा, खाने का खर्चा, अच्छी रिटायरमेंट , अच्छी पेंशन मिलती है।उसके अलावा रिस्वत मिलती है।बिना मांगे भी 1000-500 रुपये तो ऐसे ही मिल जाते है।जोर जबरदस्ती से लेते हैं वो अलग।फिर विभागीय कार्य जैसे फर्नीचर खरीदना, रिपेयरिंग करवाना, नया निर्माण करवाना उसमें आधा पैसा डकार जाते हैं।सरकारी काम हमेशा तिगनी चौगनी कीमत पर होता है वो भी 2-नम्बरी सामान के साथ।इतने में भी इनका पेट नहीं भरता।तनख्वाह बढ़ाने और सुविधाओं के लिए हर छठे महीने हड़ताल कर देते है।काम को हाथ नहीं लगाते।ना समय से आते हैं ना समय से जाते हैं।3-4 घण्टा ऑफिस में आते हैं कंभी कंभी तो पूरा दिन नहीं आते।आपस मे गप्पे मार के चले जाते हैं।कुछ लोग तो अपनी जगह 5000-7000 हजार में कर्मचारी रखें है हाजिरी लगाने और काम करने के लिए।खुद घर मे रहते हैं।जिस काम के लिए सरकार इन्हें इतनी सुविधा देती है, इतनी तनख्वाह देती है वो काम ये दूसरे से 5-7 हजार में करवा लेते हैं। खुद की तनख्वाह और सुविधाएं हमेशा इन्हे कम लगती हैं।अगर इनकी उत्पादकता निकाली जाए तो कुछ हाथ नहीं आएगा।कोई बेचारा गरीब हताश-निराश होकर अगर कुछ बोल दे तो हड़ताल शुरू कर देते हैं।खुद का बोलने का तरीका कितना घटिया है वो नहीं देखते।कंभी किसी से तमीज़ से बात नहीं करते।
हड़ताल करते हैं तो बोलते हैं कि सरकार जुल्म कर रही है।अगर जुल्म हो रहा है तो नौकरी छोड़कर निजी क्षेत्र में नौकरी करके देख लो ।कहीं भी आपको नौकरी नहीं मिलेगी।एक तो बोलने का तरीका नहीं, दूसरा आता जाता भी कुछ नहीं।आधों को तो नाम लिखना नहीं आता।लिखी हुई चीज पढ़नी नहीं आती।कई तो ऐसे है उन्हें 15 अगस्त क्यों मनाया जाता है ये नहीं पता।कौन आपको नौकरी देगा और आपके नखरे उठाएगा।जब मन करता है धरना देने बैठ जाते हो ।जब ड्यूटी पे होते हो तो काम नहीं करते, जब ड्यूटी पे नहीं होते तो काम नहीं करते।जनता को चुना लगा रहे हो।निजी क्षेत्र में नौकरी करने वाले दिन रात खटते है,मेहनत से और तमीज़ से काम करते हैं तब जाकर उन्हें 5-10 हज़ार रुपया मिलता है।बाकी सुविधाएं कहीं मिल जाती हैं, कहीं नहीं मिलती।
कई कर्मचारी तो तर्क देते हैं कि उन्हें नेताओ या सीनियर की वजह से रिस्वत खानी पड़ती है।कितना भद्दा तर्क है।ये नेता या सीनियर जब ईमानदारी से काम करने की बोलते हैं तब तो आप एक नहीं सुनते।कोई भी सरकारी कर्मचारी अपने ईमानदार सीनियर की बात नहीं सुनता, उसके आर्डर नहीं मानता।हाँ बेईमान की सारी हाजिरी पुगाते हैं क्योंकि इन्हें खुद भी खाने को मिलता है।ईमानदार अधिकारी का तो ट्रांसफर ही करवा देते है।मान लिए एक ऑफिस में अगर कोई ईमानदार ऑफिसर है जो सबको ईमानदारी से काम करने की बोलता है।पहले तो नीचे नीचे रिस्वत खाएंगे।काम चल जाता है तो ठीक है अगर कोई ज्यादा ही सख्त निकला तो उसके खिलाफ सब लामबंद हो जाएंगे।उसका बहिष्कार करेंगे।अब सरकार या तो उस एक को हटाए या उन सबको हटाये।आप समझ सकते हैं किसे हटाया जाएगा।इसी तरह ईमानदार नेता होता है उसे ये हरवा देते हैं।
मीडिया और जनता हमेशा नेताओं पर इल्जाम लगाते हैं।मैं बोलता हूँ कि नेता हैं तो देश बचा हुआ है , नहीं तो अधिकारी हमे नौच के खा जाते, हमारे शरीर पर खाल भी नहीं छोड़ते।क्योंकि नेताओं की फिर भी जवाबदेही है , उन्हें दोबारा भी वोट लेने हैं।कर्मचारियों को जनता से कोई मतलब नहीं है।अधिकारियों पर कंभी कुछ आफत आती भी है तो अदालतें बचा लेती है।चोर चोर मौसेरे भाई।जाँच अधिकारी भी ऐसे अधिकारियों की ही मदद करते हैं, उनका पक्ष लेते हैं और अदालतों में भी अधिकारी ही हैं तो जाहिर है अधिकारी अधिकारी की मदद तो करेंगे ही।जैसे मौहल्ला मौहल्ले का, गाँव गाँव का, जाति जाति का, धर्म धर्म का,संस्थान संस्थान का , कंपनी कम्पनी का , फिल्म इंडस्ट्री फिल्म इंडस्ट्री का , विभाग विभाग का पक्ष लेते हैं।चाहे उनमें कितनी ही बुराइयां हो।
जितना नेता एक साल में खाते हैं उतना अधिकारी एक दिन में खा जाते हैं फिर भी हम नेताओं को कोसते हैं अधिकारियों को नहीं।काम करना अधिकारियों का काम है कोई हाथ पकड़ कर नहीं करवाएगा ।नेता - सरकार सिर्फ सुझाव, आदेश , मदद कर सकते हैं।हाथ अधिकारियों को चलाने हैं जो ये नहीं चलाते।
टिकट के 10 रुपये देने में इन्हें तकलीफ होती है फ्री सफर करते हैं,सब्जी वालों से फ्री सब्जी हड़फ लेते हैं।गरीब ठेले वालो से रिस्वत खातें हैं।ऑटो वालों से रिस्वत लेते हैं।रेलवे स्टेशन पर छोटे छोटे अनाथ बच्चे कुछ सामान बेचकर अपना गुजारा करते हैं उनसे भी रिस्वत खाते हैं।बिखारियों तक से रिस्वत खाते हैं। 60-70 हजार तनख्वाह लेने वाले सरकारी कर्मचारी 10-20 रुपये में अपना जमीर बेचते फिरते हैं।ऐसे लोग कानून के रक्षक और संविधान के रक्षक हैं।
दस हज़ार तनख्वाह दे दो तब भी रिस्वत चाहिए, एक लाख दे दो तब भी, दस लाख दे दो तब भी रिस्वत चाहिए।पेट भरने में नहीं आता।रिस्वत हमारे डीएनए में , हमारे जीन्स में , हमारी रगो में बहने लगी है।
सेल्स टैक्स वाले सही माल का भी चालान काट देते हैं ।चालान काटने के बाद आपको पेनेल्टी भर के माल छुटाना पड़ता है।बाद में आप केस लड़ते रहो,अदालत के चक्कर काटते रहो।सालों बाद फैंसला भी आपके हक में आ जायेगा।आप सही होके भी परेशान होते हो और अधिकारी का गलत होने पर भी कुछ नही बिगड़ता।
जिंदा आदमी को मरा हुआ और मरे हुए को जिंदा घोषित कर देते हैं।महात्मा गांधी जी का आधार कार्ड बन जाता है,आतंकवादियों के पहचान पत्र बन जाते हैं लेकिन अधिकारियों का कुछ नही बिगड़ता।
लोकायुक्त सिर्फ मध्य प्रदेश में ही अच्छा काम कर रहा है (शिवराज सिंह की भाजपा सरकार-2013-2014) ।हर रोज कोई ना कोई बेईमान कर्मचारी पकड़ा जाता है।ऐसा किसी भी राज्य में देखने को नही मिलता।ऐसा काम अगर बाकी लोकायुक्त भी करे तो भ्रष्टाचार पर कुछ लगाम लग सकती है।
( ईमानदारी ) --
लोग तब तक ईमानदारी के नारे लगाते हैं जब तक उन्हें कुर्सी नही मिलती।जब कुर्सी मिल जाती है तो वो भी बेईमानों की भीड़ में शामिल हो जाते हैं।हम सरकारी महकमो के भ्रष्टाचार की बात करते है लेकिन भ्रष्टाचार तो हमारे घर घर मे फैला है।भाई भाई से बेईमानी करता है उसके हिस्से की संपत्ति भी हड़फ जाता है।बच्चे मां बाप से बेईमानी करते हैं, उनकी संपत्ति अपने नाम करवाके बेसहारा छोड़ देते हैं।मां बाप बच्चो से बेईमानी करते हैं ।एक को ज्यादा देते हैं दूसरे को कम दे देते हैं।जहां घर घर मे भ्रष्टाचार फैला हो वहां ये खत्म नही हो सकता।
आम आदमी रेल टिकट के दस रुपये बढ़ा दो हल्ला मचा देते हैं।लेकिन टीटी को 1000-500 हंस के देते हैं।राजधानी जैसी गाड़ियों में खाना देने वालों को टिप हंस के दी जाती है।हरेक यात्री 50-50 रुपये देता है और सरकारी फ़ीस के 10 रुपया देने में रोते हैं।
कांटा सर्टिफिकेेट बनवाने की फ़ीस 1000 रुपये और रिस्वत 5000 रुपये।कांटा चेक भी नहीं करते, रिपेयर भी नहीं करते।जैसा है वैसा ठीक है।दौगुनी तीनगुनी रिस्वत देने में परेशानी नहीं है लेकिन सरकारी फ़ीस बढ़ जाए तो हड़ताल कर देते हैं। सरकार को लुटेरा बताते हैं।
पेट्रोल डीजल के दाम एक रुपया बढ़ ते ही दंगे हो जाते हैं।हालांकि एक दो रुपये से ज्यादातर लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता।इतने की रोज बीड़ी पी जाते हैं, पान-गुटखा खा के थूक देते हैं।लेकिन पेट्रोल पम्प रोज हज़ारों रुपये की लूट करते हैं कम तेल डाल कर उसके खिलाफ कोई नहीं लड़ता।इस तेल चोरी से आम आदमी को करोड़ो का चूना लग रहा है फिर भी चुप हैं।
गैस के दाम बढ़ जाते हैं तो हल्ला मचता है।ग्राहक खुद एजेंसी से सिलेंडर लेते हैं तो एजेंसी को रिबेट देना होता है लेकिन एजेंसी रीबैट नहीं देती। लोग कोई हल्ला नहीं मचाते , एजेंसी से अपने हक के लिए नहीं लड़ते। ।
हकीकत ये है कि लोगों को सरकारी फीस देने में दिक्कत होती है लेकिन रिस्वत देने में कोई दिक्कत नहीं है।सरकारी पैसे को लूटना सब चाहते हैं लेकिन सरकार को फीस कोई नहीं देना चाहता।
कभी दारू की बोतल में , कभी चावल की बारी में , कभी घर के राशन में वोट बेच देते हैं।कभी कोयले की चोरी करते हैं।निर्माणाधीन सड़कों से भवनों से नदियों से कंभी रेत की, कभी सीमेंट की, कभी सरिए की, कभी गाड़ियों से कोयला चोरी करते हैं।कंभी गाड़ियों से डीजल चोरी करते हैं।ये सभी आम आदमी के भ्रष्टाचार हैं।कोई सरकारी स्किम आती है तो गलत डॉक्यूमेंट के आधार पर फायदा उठाते हैं।गलत मार्क शीट या जाति प्रमाण पत्र से नौकरी पाते हैं।गलत आय प्रमाण पत्र बनवाते है।झुठा मुवावजा ले लेते हैं।नहरों से पानी चुराते हैं।बिजली चोरी करते हैं ।टैक्स नहीं भरते, माल नहीं भरते, लोन का पैसा नहीं भरते।सामानों में मिलावट करते हैं।हर आदमी किसी ना किसी रूप में भ्रष्टाचार करता है।हर आदमी सरकार को, एक दूसरे को लूटने में लगा है।कैसे देश विकसित और खुशहाल होगा।ये सब भी भ्रष्टाचार है और ये आम आदमी करता है। दोष सिर्फ अधिकारी और नेताओ के सर मढ़ दिया जाता है।
जब भी किसी सरकारी फीस के दाम बढ़ते हैं तो ऐसे हल्ला मचाया जाता है खासकर मीडिया द्वारा जैसे परमाणु बम गिरा दिया।रुपया दो रूपया के लिए भी दिन रात कैम्पेन चलती है।हड़ताल हो जाती हैं।लेकिन मैं बता दूं सरकारी फीस से ज्यादा आज भी रिस्वत बांटी जाती है।
तेल का दाम, परमिट दाम बढ़ा दो तो ट्रक चक्का जाम हो जाते हैं।हर चौराहे पर ट्रैफिक, पुलिस और हर आरटीओ को एंट्री के नाम पर रिस्वत देते हैं कंभी चक्का जाम नहीं किया। 900 रुपये की फिटनेस फीस है और 4000 रुपये की रिस्वत देनी पड़ती है ।परमिट बनवाने में, आरसी बनवाने में रिस्वत लेकिन कभी कोई चक्का जाम नहीं।मेघालय में एक ट्रक का 20000-20000 गुंडा टैक्स दिया जाता।बिना वेबिल का माल परिवहन करने के लिए रिस्वत दी जाती है।सच तो ये है कि रिस्वत खुश होकर दी जाती है और सरकारी जायज फीस रोकर दी जाती है या दी ही नहीं जाती।
बहुत लोगो ने उम्र से पहले ही बुढ़ापा पेंशन बनवा रखी है।बहुत लोगो ने स्वतंत्रता सेनानी के झूठे पहचान पत्र बनवाये।सुविधाओं का फायदा उठाया।झूठे गरीबी रेखा से नीचे के कार्ड बनवा रखे हैं।झूठे मुवावजे लेते हैं।बिजली चोरी करते हैं।बिजली के बिल नही भरते।झूठे लोन लेते हैं।लोन नहीं भरते ।फिर वो लोन और बिजली के बिल किसी सरकारी माफी में माफ हो जाते हैं।ये भी एक तरह से भ्रष्टाचार ही तो है जो सरकारी बाबू नही ,आम जनता करती है।
योजना सही हैं लेकिन उनका गलत फायदा उठाया या उठवाया जाता है।जरूरत मंद लोगो को फायदा नही मिलता, दूसरे लोग फायदा उठा ले जाते हैं।इन गलत फायदा उठाने वालों में आम आदमी भी शामिल है और खास आदमी भी शामिल है।गरीब कम पैसों का फायदा उठाते हैं और अमीर ज्यादा पैसों का फायदा उठाते हैं।इस पाप में , भ्रष्टाचार में हम सब शामिल हैं।लेकिन आदमी वो प्राणी है जिसे अपनी कमियां या अपना पाप नज़र नही आता।वो अपने गिरेबान में नही झांकता।
हज़ारो में कोई ईमानदार निकल जाता है तो लोग उसका मजाक उड़ाते हैं।उसका साथ नही देते।अपने भी उस पर ताने मारते हैं।जब ईमानदार आदमी की नौकरी चली जाती है तो जिनके लिए वो लड़ रहा था तब वो भी मुँह फेर लेते हैं।उसे अकेले ही संघर्ष करना पड़ता है।एक ईमानदार व्यक्ति को कभी भी फंसाया जा सकता है।क्योंकि ऊपर नीचे वाले सब उसके खिलाफ होते हैं।सब उसके खिलाफ बोलते हैं।कोर्ट में दो झूठे गवाह खड़े कर दो तो बचने का कोई चारा नहीं।एक बेईमान व्यक्ति का कुछ नही बिगड़ता क्योंकि ऊपर नीचे वाले सब उसके साथ होते हैं।और उसके खिलाफ कोई सच्चा झूठा गवाह भी नही मिलता।
बिहार का एक वाकया है (2009-10) किसी विभाग में एक ईमानदार अफसर आया उसने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई।काम के प्रति जिम्मेवारी तय की ।कुछ ही दिन में सब कर्मचारी इक्कठे हो गए और उस अफसर के साथ काम करने से मना कर दिया।उस अफसर का तबादला कर दिया गया।और उन कर्मचारियों का कुछ नही हुआ क्योंकि वो सब एक थे और अफसर अकेला।
एक वाक्या मध्य प्रदेश का है।एक नगर पालिका (कटनी) के उपायुक्त ने एक कर्मचारी को काम ना करने की वजह से डांट दिया।सब कर्मचारी पहले से उसकी ईमानदारी से परेशान थे और मौके की तलाश में थे।उस दिन सब कर्मचारी हड़ताल पर चले गए और उपायुक्त को हटाने की मांग करने लगे।आरोप लगाया गया कि उपायुक्त ने उस बाबू को गंदी गालियां दी हैं।एक बेईमान अफसर कितनी ही गंदी गालियां दे उसके खिलाफ गोल बंदी नही होती क्योंकि वो रिस्वत खाने का मौका देता है।हड़ताल दो चार दिन चली और उपायुक्त को जाना पड़ा।
लोग और मीडिया चर्चा करते हैं कि सरकारी कर्मचारी काम नही करते।नेता इसके लिए जिम्मेवार हैं।नेता तो फिर भी ठीक हैं जनता की सुन लेते हैं।क्योंकि उन्हें आगे भी चुनाव लड़ना है।लेकिन अफसर की तो नौकरी पक्की है वो किसी के प्रति जवाबदेह नहीं।कई मौकों पर हमने देखा है कि जब नेता ने किसी कर्मचारी को काम के प्रति लापरवाही के कारण फटकार लगाई तो मीडिया ने उन नेताओं के खिलाफ ही अभियान चला दिया।उनका इस्तीफा तक मांग लिया।
वही देश है वही लोग हैं वही माहौल है फिर क्यों निजी और सरकारी सेक्टर के कर्मचारियों में इतना अंतर है।निजी कंपनियों में कर्मचारी जान लगा देते है और सरकारी दफ्तर में काम का माहौल ही नही है।निजी सेक्टर में जिम्मेदारी तय है,समय बाध्यता है।नौकरी जाने का डर है।सरकारी सेक्टर में समय बाध्यता नही,कोई जिम्मेदारी नही है।एक बार नौकरी मिल गई तो कोई माई का लाल हटा नही पाता।सरकारी कर्मचारी रोज हड़ताल पर रहते हैं।जबकि उन्हें अच्छी सेलेरी,जॉब गारंटी,रिटायरमेंट,पेंशन,फ्री इलाज,फ्री पढ़ाई आदि सुविधा मिलती है।निजी सेक्टर में इतनी खास सुविधा नही और काम का बोझ ज्यादा है फिर भी लोग हड़ताल नही करते।
ये लोग जब प्राइवेट सेक्टर में इतना काम कर सकते है शालीनता से बात कर सकते हैं तो इन्हें सरकारी नौकरी मिलते ही क्या हो जाता है।
( साहूकार ) --
साहूकार ब्याज पर पैसा देते हैं।जहां सरकार नही पहुंचती,बैंक नही पहुंचते वहां ये लोग पहुंचते हैं।जिन लोगो को बैंक लोन नही देते उनकी मदद ये लोग करते हैं।हर व्यक्ति अपने बिजनेस से पैसा कमाना चाहता है।इनका भी ये बिजनेस है और ये उसमे मार्जिन (ब्याज) कमाते हैं तो कौंन सा बुरा काम करते हैं।बैंक ब्याज वसूलते हैं,फाइनेंस कंपनियां चक्रवृद्धि ब्याज वसूलती हैं।लेकिन सरकार और मीडिया सिर्फ साहूकारों को निशाने पर रखते हैं।बैंक लोन या क्रेडिट कार्ड के पैसे वसूलने के लिए गुंडों की मदद लेते हैं तो कोई हल्ला नही होता।साहूकार सख्ती करे और कोई बात हो जाये तो उसका जीना मुहाल।फाइनेंस कंपनियों को सरकारी लाइसेंस मिला हुआ है इसलिए वो लूट सकते हैं लेकिन साहूकार अपना धंधा नहीं कर सकते।
बैंको में दुनिया भर की कागज कार्यवाही होती है।गारंटी और रिस्वत देनी पड़ती है।बहुत सी चीजो के लिए तो लोन मिलता भी नही।किसी के घर मे कोई बीमार या गंभीर बीमार है तो वो क्या करे।बैंक ऐसे केस में लोन देते नही।साहूकार तुरंत लोन देते हैं।अगर बीमार व्यक्ति को टाइम पर पैसे ना मिले तो बीमार आदमी मर जाये।साहूकार या आढ़ती हर बुरे वक्त में काम आता है बिना कोई कागज़ी कार्यवाही।
इसी तरह व्यापारी या बिचौलिये किसान की फसल खरीदते हैं।वो भी निशाने पर रहते हैं।सरकार से कोई मदद तो होती नही।बाजार उपलब्ध करवाना,बाजार तक फसल ले जाने के लिए साधन उपलब्ध करवाना,कोल्ड स्टोर उपलब्ध करवाना ये सब सरकार करवा नही पाती है।व्यापारी ये सुविधाएं उपलब्ध करवा के अगर कुछ लाभ कमाते हैं तो क्या गलत करते हैं।कम से कम किसान की फसल तो खराब नही होती।अगर व्यापारी ना हो तो किसान की ज्यादातर फसल बर्बाद हो जाये।इतने गरीब और छोटे किसान है जो फसल को शहर तक भी नही ले जा पाते हैं।
ब्रांडेड कंपनियां दाल,चावल,आटा आदि अपने ब्रांड का लेवल लगाकर तिगने चौगने दाम में बेचती हैं तो कोई हल्ला नही होता।उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। जनता भी ब्रांड के नाम से धड़ल्ले से महंगे दामों पर खरीदती हैं। लेकिन बिचौलिए टारगेट पे रहते हैं। बिचौलियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मदद के लिए साफ़ किया जा रहा है. बिचौलियों के खिलाफ चलने वाले अभियानों को कम्पनिया पैस अखिलाती हैं। ताकि किसान की फसल उन तक पहुंचे और वो मौत मुनाफा कमाएं.
किसान का तो कोई भला होना नहीं , वो चाहे बिचौलियों को फसल बेचे या कंपनियों को। ग्राहक का नुकसान होगा उसे सामान ब्रांड के नाम पर और महंगा खरीदना पड़ेगा।
( एक्सीडेंट ) --
एक्सीडेंट से देश मे हर साल हज़ारो लोग मरते हैं।लेकिन एक्सीडेंट करने वाले को कोई सजा नही मिलती।सिर्फ लापरवाही का केस दर्ज होता है और कुछ दिन में मामला रफा दफा हो जाता है।आधे से ज्यादा केस पुलिस अंडर ग्राउंड में ही सलटा देती है।एक ही ड्राइवर कई बार एक्सीडेंट करता है कईयों को मौत की नींद सुला देता है।फिर भी उसका कुछ नही होता।मज़े से गाड़ी चलाता है,एक्सीडेंट के किस्से मज़े लेकर सुनाता है।उसे कोई आत्म ग्लानि नही होती।कोई कानून का भय नही होता।अपनी लापरवाहियों से वो कोई सीख नही लेता।जब भी रोड़ एक्सीडेंट की बात होती है तो हेलमेट,सीट बेल्ट आदि की बात की जाती है।लेकिन मैन मुद्दे की बात कोई नही करता।रफ्तार और ड्राइवर के ओवर कॉन्फिडेंस की बात कोई नही करता।आप साइड से जा रहे हो और कोई पीछे से आपको ठोक दे तो आप क्या करोगे।तेज गति से गाड़ी चलाना,भीड़ वाली जगह पर,चौराहों पर तेज़ गति से गुजरना,किसी मोड़ पर अचानक मोड़ देना, पास आकर एक दम हॉर्न मारना,साइड मार के चले जाना आदि एक्सीडेंट की बहुत सी मुख्य वजह हैं ।बस वाले,ट्रक वाले ,कार जीप वाले रोड़ को अपने बाप की जागीर समझते हैं।कहीं भी बीच मे घुसेड़ देते हैं।ठोकर मार के चले जाते हैं।फिर गालियां भी दूसरे को ही देते हैं।
तेज़ गाड़ी तो बिल्कुल सुनसान में भी नही चलानी चाहिए।कोई भी जानवर सामने आ सकता है।गाड़ी ऐसी चलाओ की उस पर कंट्रोल हो जाये।आपका समय किसी की जान से कीमती नही है।हर घर मे एक्सीडेंट से कोई ना कोई मरा होगा या मर जायेगा ।किसी का पूरा परिवार बिखर जाता है।बच्चे और जानवर कभी भी कहीं से भी सामने आ जाते हैं।इंसान को तो फिर भी लोग बच्चा लेते हैं लेकिन जानवर बेचारे तड़फते रहते हैं।टांग टूट जाती है या घाव हो जाते हैं।जानवरो के भी बच्चे होते हैं जो अनाथ हो जाते हैं।हम बात करते हैं कि मुस्लिम गौ माता को मारते हैं।लेकिन रोड एक्सीडेंट में जितनी गौएँ घायल या मारी जाती हैं वो ज्यादातर हादसे हिन्दुओ के हाथों से ही होते हैं।
ड्राइवर जब घर पे पड़ा रहता है या यार दोस्तो के पास या होटल पर खड़ा रहता है तो उसे देर नही होती।लेकिन गाड़ी धीरे चलाने में उसे देर हो जाती है।सरकारी बस के ड्राइवर किसी जरूरतमद के लिए गाड़ी नही रोकेंगे लेकिन यार दोस्त या होटल पर खड़े होने के लिए उनके पास टाइम ही टाइम होता है।बस ट्रक वाले तो सुबह दुआ करके निकलते हैं कि एक दो बलि आज जरूर देंगे।ये ऊपर चढ़ाने में कोई कसर नही छोडते।लोग किसी तरह भाग कर जान बचाते हैं।
एक्सीडेंट की सजा सिर्फ फांसी होनी चाहिए।तभी ये कंट्रोल हो सकते हैं।
( धर्म ) --
जब आज़ादी की लड़ाई चल रही थी तब भी हिंदुओ को मुस्लिमों से डर बना हुआ था।हिंदुओ को मारना और धर्मांतरण लगातार जारी था।जो लोग बोलते हैं कि हिन्दू मुस्लिम मिलकर आज़ादी के लिए लड़े उनको सही इतिहास पढ़ने की जरूरत है।कुछ ही मुस्लिम थे जो आज़ादी की लड़ाई लड़े बाकी हिंदुओ को खत्म करने में लगे थे।स्वामी दयानंद जी और स्वामी श्रदानन्द जी हिंदुओ का धर्मांतरण रोकने में लगे थे।हिंदुओ की धर्म वापसी भी करवा रहे थे।स्वामी श्रदानन्द जी को उनके धर्म शुद्धि अभियान की वजह से एक मुस्लिम ने ही मारा था।इनके अलावा भी कई साधु संत धर्म शुद्धि और धर्मांतरण विरोधी अभियान की वजह से मुस्लिमों द्वारा मारे गए। कई समाज सेवी गौ रक्षा के अभियानों में और गौ हत्थे खत्म करने में मुस्लिमों के हाथों मारे गए। विडंबना ये है कि ये आज भी बदस्तूर जारी है। हमारे बुजुर्ग भी बताते थे कि गाँव में और आसपास के गाँव में मुस्लिमों की तादात ज्यादा होने की वजह से खतरा बना रहता था।जिसकी वजह से हरियाणा में राजस्थान या कहीं और से हिंदुओ को लाकर बसाया जाता था।गांव की जमीन, घर और गांव का गौत्र उन्हें निशुल्क दिया जाता था। ताकि मुस्लिमों से सामना किया जाए। एक तथ्य ये भी है कि गौमाता या हमारे भगवानों का अपमान हम हिन्दू खुद भी कर रहे हैं।दूसरों पर उंगली उठाने से पहले हम खुद तो उनकी इज्जत करें।।ए सी कमरों में बैठ के गौमाता की रक्षा के वीडियो बनाते हैं।भाषण देते हैं कि एक गौमाता को अगर काटा न जाये तो पूरे जीवन में कई लिटर दूध देती है।बड़ी बड़ी बातें करते हैं।क्या आपने कभी गौमाता को पाला है।या कोइ गौशाला बनाई या कोई सहयोग किया है।हम गौमाता को पालेंगे नही लेकिन दूध,घी,गौमूत्र हमे चाहिए।क्या आपने कभी दरवाजे पर आई गौमाता को चारा डाला है या पानी पिलाया है।हम लठ मार कर भगा देते हैं।किसी के खेत मे अगर गौमाता घुस जाए तो जेली गंडासी से बेचारी को काट देते हैं।कोई उसका इलाज भी नही करवाता।आज हज़ारो गौमाताएँ हर शहर हर गांव में बेसहारा घूम रही हैं।हम ही उन्हें बीच सड़क पर देख कर दुत्कारते हैं।अपनी जल्दी में उन्हें ठोकर मारकर निकल जाते हैं, हम ही उन्हें अपनी गाड़ियों के नीचे दरड़ कर चले जाते हैं।रोज सड़को पर गौमाताएँ घायल और मरी पड़ी रहती हैं।कोई उन्हें उठाता तक नहीं।
हम खुद गौमाता की सेवा कर नहीं सकते और बातें करते हैं कि दूसरे धर्म वाले उनकी सेवा करें।
अगर हर हिन्दू अपने घर मे एक गौमाता को बांध लें तो कोई भी गौमाता देश मे बेसहारा न रहे।ये जिम्मेवारी सिर्फ ग्रामीण लोगो की नही है , शहर वालों की भी है।शहर वाले ही धर्म के ठेकेदार बने घूमते हैं, या धर्म को भला बुरा कहते हैं।भलाई या सेवा का कोई प्रेक्टिकली काम करते नहीं।क्रेडिट लेने में आगे रहते हैं।
हम ही अपने भगवानों को कोसते रहते हैं।अपने भगवान को भला बुरा कहते रहते हैं।उनका मजाक उड़ाते रहते हैं।फ़िल्म में,स्टेज शो में,रियल्टी शोज में ,न्यूज़ चेन्नल पर या किसी और प्रोग्राम में हम हिन्दू ही अपने देवी देवताओं का मज़ाक उड़ाते हैं।देवताओं पर मज़ाकिया वीडियो बनाते है,चुटकुले बनाते हैं उन्हें सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं।हमें देखकर ही दूसरे धर्म वाले लोगो का दुःसाहस बढ़ता है .हम में से लाखों लोग ऐसे हैं जो रोज भगवान का नाम नही लेते।महीनों सालों गुजर जाते हैं कभी दिया नही जलाते ।कभी मंदिर नही जाते।हमारे किसी भी घर मे भगवदगीता,रामायण,महाभारत आदि धार्मिकग्रन्थ नही मिलेंगे।
पूजा के बाद छोटी छोटी भगवान की मूर्तियां कचरे में पड़ी मिलती हैं।किसी बड़ी पूजा के बाद मंदिरों में रखे दिए और मूर्तियां झाड़ू से साफ की जाती हैं और कचरे में फेंक दी जाती हैं।और ये हम हिन्दू ही करते हैं।हम ही हैं जो मिठाई के डिब्बो पर भगवान की तस्वीर बनाते हैं,कपड़ो पर या अन्य किसी सामान पर भगवान की तस्वीर बनाते है, दुकानदार के रूप में खरीदते हैं और ग्राहक के रूप में प्रयोग करते हैं।प्रयोग करने के बाद उसे कचरे में फेंक देते हैं।
क्या हम सब इसमे शामिल नहीं हैं।जब हम ही अपने धर्म का सम्मान नहीं करते तो दूसरों से क्या उम्मीद कर सकते हैं।दूसरों का तो दुःसाहस बढेगा ही।आज कोई भी एरागैरा नत्थू खैरा कुछ भी बोल के चला जाता है लेकिन उस पर कोई कानूनी एक्शन नही होता।
हिन्दू देवी देवताओं की गलत तस्वीर बनाई जाती हैं, मज़ाक बनाया जाता है।फिल्मों में हिन्दू धर्म को गलत दिखाया जाता है, भगवान का मज़ाक, पंडितो का मज़ाक बनाया जाता है ।पंडितो को गुंडा - कपटी,आतंकी दिखाया जाता है। लेकिन चिस्ती , मौलवी, पैगम्बर के बारे में कोई सचाई भी उगल दे तो उसकी जान पर बन जाती है।सबको पता है आतंक कौन फैला रहा है फिर भी मीडिया, सरकार,सेक्युलर हाथ जोडते फिर रहे है कि आतंक का कोई धर्म नहीं।क्या मुस्लिम खुद बोलते हैं आतंक का कोई धर्म नहीं?
स्कूलों से हिन्दू धर्म की पुस्तकें गायब कर दी हैं।हम अपने बच्चों को अपने धर्म, अपनी संस्कृति नहीं पढ़ा सकते।बाकी सारे धर्म वाले पढा सकते हैं।
बहुसंख्यक लोग ( हिन्दू ) जिंदगी की भीख मांगते फिर रहे हैं क्या दुनिया मे कहीं और ऐसा नजारा है।
हम सभ्य लोग ही हैं जो बेजुबान जानवरों के कटने के कारण हैं।जिन्हें सबसे ज्यादा सभ्य इंसानो की संज्ञा दी जाती है वही चमड़े की बनी वस्तुएं प्रयोग करते हैं। नौकरी पेशा व्यक्ति,बिजनेस मैन और शहरी आबादी चमड़े के जूते,पर्स,कोट आदि तमाम वस्तुएं प्रयोग करते हैं।बेजुबानों का मांस खाते हैं।कैसे एक जीव दूसरे जीव को खा सकता है।जानवरों को बहुत बेरहमी से मारा-काटा जाता है।
शाहीन बाग़ में मुस्लिम लोग रोड़ बंद करके बैठे हैं और उन पर कोई एक्शन नहीं हो रहा।क्योंकि सभी मुस्लिमो से थर थर कांपते हैं- सरकार, मीडिया, पोलिस, अदालतें ,अंतरराष्ट्रीय संस्थाए। मुस्लिमों ने हमारे पूर्वजों को इतनी भयंकर यातनाएं दी हैं कि उनकी नस्ले आज भी मुस्लिमो के नाम से थर थर कांपती हैं।पहली चीज तो इनका भाईचारा आतंकवादियों से है।दूसरा ये खुद भी बहुत बड़े बदमाश हैं।जिनके मोहल्लों में खुलेआम चोरी के सामान बिकते हैं, गाड़िया कटती हैं, हथियार बनते बिकते हैं, आतंकियों को पनाह मिलती है ,साइबर क्राइम , गौ हत्या , हत्या , बलात्कार ,अपहरण आदि कई गैरकानूनी काम होते हैं। लेकिन पुलिस की हिम्मत नहीं होती उन इलाकों में घुसने की।तीसरा इन्हें अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी भरपूर मिलता है।क्योंकि ये , मीडिया, आतंकी, सारे मुस्लिम देश सभी मिलकर ऐसी मुहिम चला देते हैं, खूब पैसा खिला पीला देते हैं, झूठे आंदोलन कर देते हैं। इनकी इसी मुहिम की वजह से सरकार , कानून सब खौफ खातें हैं।दंगाइयों के पोस्टर पर स्वतः संज्ञान लेने वाले जज हिंदुओ पर हो रहे जुल्मो को नहीं देख पाते।कोर्ट में करोड़ो केस पेंडिंग पड़े है वो दिखाई नहीं दे रहे।हज़ारों बेगुनाह जेलों में सड़ रहे हैं उनके केस के लिए टाइम नहीं है।कोर्ट में फैला भ्रष्टाचार दिखाई नहीं दे रहा।कोर्ट में होने वाली छुटियाँ दिखाई नहीं दे रही।इतने केस पेंडिंग होने पर तो युद्ध स्तर पर काम होने चाहिए।क्योंकि केस सीधे सीधेे लोगों के तन, मन , धन तीनों को लेके डूबते हैं।लेकिन जजो को कोई फिक्र नहीं।इन्हें अपनी अवमानना की बड़ी चिंता रहती है।खुद को भगवान समझने लगे हैं।गलत करोगे तो लोगों को बोलने का हक है।आलोचना तो भगवान को भी सहनी पड़ी है।ये खुद जो लोगों की , सविधान की , भगवान की अवमानना कर रहे हैं वो दिखाई नहीं दे रही।भगवान राम का कई साल कोर्ट में मज़ाक बनाया गया।वो देश की अवमानना थी।समय पर इंसाफ ना देना ये सविधान , लोग और देश की अवमानना है।सिर्फ एक धर्म के रीति रिवाज, धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ फैंसले देना, उन्हें कुरीतियां बताना और दूसरे धर्म के रिवाज़ों की सुनवाई ही ना करना ये संविधान का अपमान है।
शाहीन बाग़ की तरह अगर हिन्दू रोड़ जाम कर देते तो उन पर एक दिन में ही लाठी गोली सब चल जाती।किसान महिलाओं पर लाठियां बरसाई थी, मेडिकल छात्राओं पर बरसाई थी, जाट महिलाओं पर बरसाई थी तो शाहीन बाग़ पर लाठियां क्यों नहीं बरसाई।बाबा रामदेव रामलीला मैदान में धरने पर बैठे थे किसी आम आदमी को कोई दिक्कत नहीं हो रही थी।महिलाएं भी उनके धरने में थी। फिर भी उन पर लाठी चार्ज करके रातो रात भगाया गया।किसी मीडिया, मानवाधिकार, अदालतों अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने चुं तक नहीं की।नमाज के लिए रोड़ जाम करते हैं तो पुलिस प्रोटेक्शन मिलती है।हनुमान चालीसा करने पर लाठी चार्ज होता है।पुलिस का ज़मीर कहाँ मर गया?
जब जाट आरक्षण के लिए धरनों पर बैठे थे तो सुप्रीम कोर्ट ने केस सुनवाई के पहले ही दिन उन्हें रास्ते खाली करने के ऑर्डर दिए , नहीं तो सरकार को बलपूर्वक उठाने के लिए कहा। दूसरी तरफ शाहीन बाग़ में वार्ताकार नियुक्त किये, अगली सुनवाइयों को टाला गया, उचित समय का हवाला देकर।हलाला, तीन तलाक,खतना, मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश पर सुनवाई नहीं की।किसी भी मुस्लिम कुरीति पर सुनवाई नहीं होती।हिंदुओ के मन्दिरो के खिलाफ फैंसले दिए जाते हैं, त्योहार बंद करवाये जाते हैं।हद है सुप्रीम कोर्ट , हाई कोर्ट राजनीति कर रहे है।बोलते है कानून,न्याय सबके लिए बराबर है।फिर वो दिखाई क्यों नहीं दे रहा है।
इस देश मे हिंदुओ के द्वारा हिंदुओ को खत्म करने की साजिश चल रही है।मीडिया, बुद्धिजीवी, अदालत,सरकार,कानून, पुलिस,नेता सब हिंदुओ को प्रत्याड़ित करने में लगे हैं।हिन्दू रीतियों, हिन्दू परंपराओं, मन्दिरो,हिन्दू मान्यताओं, हिन्दू संस्कृति के खिलाफ रोज फैंसले दिए जाते हैं, कानून बनाये जाते हैं।लेकिन क्या आज तक मुस्लिम रीतियों के खिलाफ कोई एक भी फैंसला आया।
खतना, हलाला, तीन तलाक , बहु विवाह, बीस बीस बच्चे पैदा करना आदि मुस्लिम कुरीतियों पर सब चुप हो जाते हैं।मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान से ऊपर है उस पर कोई नहीं बोलता। वक्फ बोर्ड की एक तरफ़ा पावर पर कोई नहीं बोलता।
दंगाइयों के पोस्टर पर स्वत संज्ञान लेने वाले जजों को ये केस दिखाई नहीं दे रहे। हलाला से एक औरत का आत्मसम्मान चकनाचूर हो जाता है।उसका पूरा मानसिक संतुलन हिल जाता है।क्या ये औरतें नहीं हैं? क्या इनका कोई आत्मसम्मान नहीं है? इन्हें महिला सशक्तिकरण नहीं चाहिए।इनके मानवाधिकार नहीं हैं। महिला संगठनों , कानून , अदालत , सेक्युलर , समाज सेवी लोगों, विश्व की कल्याणकारी संस्थाओं को और कल्याण विभागों को इन औरतों की क्यों कोई फ़िक्र नहीं है। महिला सशक्तिकरण , मानवाधिकार,अदालत, कानून, सविधान को ये सब पाखण्ड नहीं दिखाई दे रहे।सिर्फ हिंदुओ की रीतियां दिखाई देती हैं।हिंदुओ के शुद्धिकरण के लिए तो कई सन्त भी हुए हैं।मुस्लिमों में कोई सन्त क्यों नहीं हुआ? जो इन कुरीतियों के खिलाफ बोले।जितने कानून हैं सारे हिंदुओ पर लागू होते हैं।इन पर सिर्फ मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू होता है।हमारी हज़ारों साल पुरानी, निशुल्क न्याय व्यवस्था पंचायतों तक को खत्म कर दिया।
एक थप्पड़ पर फ़िल्म बन जाती है, मीडिया सेमिनार होते हैं।एक थप्पड़ से औरत का आत्मसमान-जीवन हिल जाता है।लेकिन हलाला से नहीं हिलता।कितना बड़ा कुकर्म है ये। ये तो एक तरह से कानूनी बलात्कार है।एक तरफ हम बलात्कारियों को कठोर सजा, उन्हें वहसी दरिंदे बोलते हैं दूसरी तरफ हलाला को कानूनी मान्यता है।एक तरफ सालों साथ मे रहकर आपसी सहमति से सम्बद्ध बनाने को भी बलात्कार माना जाता है ,अगर औरत इल्जाम लगा दे, शायद ये धर्म विशेष पर ही लागू है।
दूसरी तरफ हलाला को बलात्कार नहीं माना जाता।
जो सेक्युलर ये सोच रहे हैं कि हम अगर हिन्दुओ को ख़त्म करने में मुस्लिमों का साथ देंगे तो मुस्लिम इस एहसान के बदले उन्हें राजशाही दे देंगे। वो सेक्युलर लोग बहुत बड़ी गलत फहमी में हैं। उन्हें सिर्फ गोलियां मिलेगीं।इतिहास गवाह है ।
हमारे बड़े दुश्मन हम ही है।नास्तिक और धर्मनिरपेक्ष हिंदुओ ने हमारा बेड़ा गर्क किया है।धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारी जड़े खोदने में लगे हैं।जो हमारे धर्मनिरपेक्ष लोगों के साथ अतीत में हुआ वही आगे आज के धर्मनिरपेक्ष लोगो के साथ भविष्य में होगा।लेकिन वक्त लौट के नहीं आता।फिर पछताने से कुछ नहीं होगा।पृथ्वीराज चौहान जी ने मानवता, दयालुपन , हिंदुत्व गुण के कारण मौहम्मद गौरी को 17 बार माफ किया। गौरी को एक मौका मिला और उसने कोई रहम नहीं किया।और भारत का इतिहास बदल गया. हमारे राजा धर्म के अनुसार लड़े और दुश्मन ने जितने के लिए हर अनीति का सहारा लिया। इसलिए हम हारते रहे। मरते रहे और गुलाम बनते रहे।पृथ्वीराज जी और बाकी हमारे राजा सहिष्णुता नहीं दिखाते तो आज इतिहास कुछ और होता।पाकिस्तान का पहला कानून मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल ने भी हिंदुओ के साथ धोखा किया।मार काट में अपने बाकी दलित लोगो के साथ मुस्लिमो का साथ दिया।जिसकी वजह से बहुत सारे हिन्दू मारे गए, महिलाओं की इज्जत लूटी गई।मार काट खत्म होने के बाद भी पाकिस्तान, बंगलादेश में हिंदुओं पर जुल्म होते रहे।जिन दलितों ने मुस्लिमो का साथ दिया था उन्हें भी पाकिस्तान - बांग्लादेश में मारा जाने लगा तो मंडल को भारत मे शरण लेनी पड़ी।भारत के लोगो ने उन्हें इज्जत की जिंदगी दी जबकि उनको उनके कुकृत्यों के लिए फांसी दी जानी चाहिए थी।
दलित मुस्लिमों के भाई बन गए जबकि दलित पाकिस्तान से भगाए जा रहे हैं,मेवात में हज़ारों हज़ार ख़त्म कर दिए गए हैं फिर भी दलित मुस्लिमो के साथ गठबंधन कर रहे हैं ।
आज़ादी के बाद जो जमीनें दलितों को मिलनी थी वो मुस्लिमों को मिली।जो सुविधाएं दलितों को मिलनी थी वो मुस्लिमों को मिली।वक्फ बोर्डो के पास लाखों एकड़ जमीन खाली पड़ी हैं लेकिन दलित भाइयो को रहने के लिए नहीं मिली।पहले भी आप नासमझी में मारे गए।अगर समझदारी दिखाते तो जरूर आपको जमीनें मिलती।आगे भी सबसे ज्यादा नुकसान आपको ही होगा।जिस दिन अल्पसंख्यक होते हिंदुओ को भागने की नौबत आएगी उस दिन बाकी लोग तो शायद सही सलामत भाग जाएं , कहीं शरण ले ले।आपको मार काट का सामना करना पड़ेगा।इसलिए पाकिस्तान और बंगलादेश,मेवात , बंगाल ,केरल ,आंध्र , मलेशिया , मॉरीशस में हो रहे जुल्मों से सबक लो।बाकी मुस्लिम देशों में हो चुके अत्याचार से सबक लो।
आज सिख मुस्लिमों का साथ दे रहे हैं।गुरुगोविन्द जी और बाकी सिख बलिदानियों का बलिदान भूल गए।
झारखंड, बिहार, बंगाल में देखा है दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा या किसी और पूजा उत्सव के अवसर पर पंडालों में फिल्मी गाने बजाए जाते हैं।कई बार तो भद्दे भद्दे गाने बजते हैं ।रथ यात्राएं निकलती हैं उनमें फिल्मी गाने बजते हैं, भक्त दारू पीकर रथ के आगे नाचते हुए चलते हैं।मूर्ति विसर्जन दारू पीकर होता है।मैंने एक से पूछा कि दारू पीकर क्यों यात्रा में शामिल होते हो तो बोलता है बगैर दारू पिये मज़ा थोड़े ही आएगा।घण्टो तक नाचा थोड़े ही जायेगा।क्या फायदा है ऐसी भक्ति का।हालत ये हो गई है पूजा स्थलों पर और धार्मिक यात्राओं में लड़के लड़कियां देखने जाते हैं और लड़की लड़के देखने जाती हैं।कोई अगर रोक दे या कुछ नसीहत दे दे तो धर्म के नाम पर दंगे हो जाएंगे।हम कहाँ अपने धर्म को लेकर जा रहे हैं।उसे बचा रहे हैं या खत्म कर रहे हैं।
हिंदुओ का अंत नजदीक है।कोर्ट-संविधान भगवान से ऊपर हो गए हैं।भगवान राम को पैदा होने के सबूत देने पड़ रहे हैं।उनके वंशजो के सबूत मांगे जा रहे है ।
शर्म बिल्कुल बची नहीं है।कौन ऐसा है जो भगवान राम का वंशज नहीं है।जो भगवान श्रीकृष्ण का वंशज नहीं है।क्या दुनिया मे किसी भी कोर्ट में ,संविधान में, किसी भी और धर्म के भगवान का इस तरह मजाक बनाया गया है।क्या उनसे सबूत मांगे गए है।हम खुद ही हमारे भगवान का सम्मान नहीं करते , उनके बारे में खुद ही अनाप शनाप बोलते रहते हैं।ना हम हमारे भगवान के खिलाफ बोलने वालों का विरोध करते, ना कानून सजा देता है।इसीलिए आज ये हाल है।क्या यही कोर्ट अल्लाह-ईशा का सबूत मांगने की हिम्मत कर सकती हैं।कोर्ट के खिलाफ कुछ बोल दो तो अवमानना में जेल।ना हम राजघरानों का सम्मान करते हैं ,ना शहीदों का, ना देवताओं का।ठीक है आज लोकतंत्र है लेकिन राजघरानों का सम्मान हमारा फ़र्ज़ है।इंग्लैंड को देखो, बाकी देशों को देखो।इन्ही राजघरानों ने जनता के लिए ,मातृभूमि के लिए अपना सब कुछ दाव पर लगाया है ,कुर्बानियां दी हैं।लड़े हैं ,अपने प्राण न्योछावर किये हैं।क्या सविंधान निर्माताओं और जजों ने कुर्बानियां दी हैं?सविधान भी जरूरी है ,कानून भी जरूरी है।लेकिन अपना गौरव, हमारे लिए अपनी जान देने वाले वीर का सम्मान भी जरूरी है।हमारे पूज्य भगवान का सम्मान भी जरूरी है।संविधान जनता से है , जनता संविधान से नहीं है.अगर जनता ही नहीं होगी तो संविधान किस काम का.
संविधान, कानून इंसानों ने बनाये हैं। जैसे हम इन्हें बनाएंगे, जैसे फेरबदल करेंगे ये वैसे ही बनेंगे।कभी किसी कार्य को अपराध बना सकते है कभी किसी अपराध को अपराध की श्रेणी से निकाल सकते हैं।जैसे समलैंगिगता कहीं अपराध है, कहीं नहीं है, चरित्रहीनता कहीं अपराध है , कहीं नहीं है।हाथ जोड़ के विनती है देश को चरित्रवान बनाएं।चरित्रहीन नहीं।
हम अपने ही देश मे बहुसंख्यक होते हुए अपने सबसे बड़े आराध्य देव भगवान राम का जन्मस्थान नहीं ले पा रहे हैं।बाहर से आये हुए आक्रमणकारी हम पर भारी पड़ रहे हैं।सोचो जिस दिन वो बहुसंख्यक होंगे उस दिन हमारा क्या होगा।उस दिन क्यों आज ही देख लो जिस कालोनी या जिस गावँ में मुस्लिम बहुसंख्यक है वहां क्या कोई हिन्दू या दूसरे धर्म का कोई इन्सान रह पाता है।कितने ही गावँ या कालोनियां हिंदुओ से खाली हो गए हैं।कहाँ कहाँ से और कहां कहां तक भागते फिरोगे अपनी जमीन छोड़कर।
इन जजों , बॉलीवुड स्टार या सेक्युलर लोगों का कुछ नहीं होगा ये अपना ठिकाना दूसरे देशों में भी बनाये बैठे हैं।जिस दिन दिक्कत आएगी भाग जाएंगे यहां से या धर्म परिवर्तन कर लेंगे क्योंकि इन्हें धर्म से नही पैसे से प्यार है।
अंतर्राष्टीय बिरादरी हिंदुओं पर अत्याचार करने के जुल्म में जब पाकिस्तान और बांग्लादेश पर एक्शन नहीं ले रही या उनका बहिष्कार नहीं कर रही तो हमारा बहिष्कार क्यों करेंगे।जो आज धर्मनिरपेक्ष, भाईचारे और सेक्युलरिज़्म की बात करते हैं कल जब मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाएंगे और पाकिस्तान- बांग्लादेश वाला हाल हमारे साथ यहां होगा तब ये लोग कहीं नजर नहीं आएंगे।या तो देश छोड़कर भागेंगे या धर्मपरिवर्तन करके मुस्लिमो के चापलूस बनेंगे।
आज भी ये लोग कश्मीर , मेवात, कैराना, दिल्ली, केरल, पश्चिम बंगाल में हिंदुओ पर हुए अत्याचार पर कभी नहीं बोलते।देश मे किसी को भी वो अत्याचार दिखाई नहीं दे रहे। यहां तक के भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वमसेवक संघ भी चुप है।जबकि उनके खुद के कार्यकर्ता मारे जा रहे हैं।वक्त लौट के नहीं आता।कभी हमारा देश बहुत बड़ा था और आज कितने सिमट गये हैं हम, कल और भी सिमट जाएंगे।
हम एक लड़का पैदा करते हैं वो लड़ेगा, परिवार पालेगा, धर्म प्रचार करेगा , अपनी जान बचाएगा या अपनी आत्म रक्षा करेगा। क्या करेगा अकेला। दूसरी बात हम आपस मे ही लड़ते रहते हैं।कुछ आपस की लड़ाइयों में मारे जाते हैं।कुछ साधु बन जाते हैं।उनकी आगे औलादें नहीं होती।कुछ अविवाहित रह जाते हैं क्योंकि लड़कियां कम है। उनका वंश आगे नहीं चल पाता। कुछ किसी और घटना में मारे जाते हैं।उनका वंश वैसे खत्म हो जाता है क्योंकि परिवार में बच्चा एक ही था। दूसरी तरफ मुस्लिम 15-20 बच्चे पैदा करते हैं। कुछ परिवार चलाने के लिए, कुछ धर्म के प्रचार के लिए, कुछ हिन्दुओ को काटने और कुर्बान होने के लिए।उनके तो मौलवी (साधु) भी शादी करते हैं।जिससे जनसँख्या कहीं भी किसी भी लेवल पर कम नहीं होती बढ़ती ही जाती है।
जहां भी मुस्लिम जनसँख्या में आधे हो जाते है वहां इनका उत्पात शुरू हो जाता है।हत्या, चोरी, महिलाओं से बलात्कार, महिला-बच्चों का अपहरण, मार पीट, जमीनों पर कब्जे करके हिन्दुओ को धर्मपरिवर्तन या पलायन के लिए मजबूर किया जाता है। जो उस एरिया के मुस्लिम अधिकारी होते हैं वो भी साथ देते हैं।मुस्लिम अधिकारियों के लिए अपनी कौम सर्वोपरि है और हिन्दू अधिकारियों के लिए पैसा, अपनी जान,संविधान और सहिष्णुता।यही कारण है हमारा खत्म होने का। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि आज बच गए तो कल मारे जाओगे।हिन्दुतान में एक एक करके सब मुस्लिम होता जा रहा है।जितने मुस्लिम देश बने सबमें इसी पालिसी पर काम हुआ था।हिन्दुओ पर बेइन्तहा और दर्दनाक जुल्म होते हैं लेकिन किसी भी नेता जी जुबान नहीं हिलती। जबकि किसी मुस्लिम को कोई उंगली भी लगा दे तो सारे नेता (हिन्दू-मुस्लिम) , अधिकारी सब चिल्लाने लगते हैं।इनको ये समझ नहीं आ रहा है कि जब तक हिन्दू हैं तभी तक आपकी कुर्सी है।जिस दिन हिन्दू खत्म उस दिन आपकी कुर्सी भी खत्म।कोई मुसलमान आपको वोट नहीं देगा।अभी तो इएलिये कुछ वोट मिल जाते है कि उस एरिया से कोई मुस्लिम खड़ा नहीं होता तो किसी ना किसी को तो वोट देना ही है।या मुस्लिम खड़ा भी होता है तो वो इतना मजबूत नेता नहीं होता जिसकी सुनी जाए। आप किसी भी देश का उदाहरण उठा लो। आप भारत मे ही मुस्लिम बहुल इलाकों का इतिहास उठा लो। कौन और क्यों जीतते हैं। और जब कुर्सी नहीं रहेगी तो कटने में आपका भी नम्बर आएगा। उस वक्त कोई अधिकारी- नेता-मीडिया नहीं सुनेगा आपकी। क्योंकि सब उनके होंगे। जब आज हिन्दू अधिकारी और नेता होते हुए इन मरते कटते हिन्दुओ की आप नहीं सुनते तो कल आपकी कौन सुनेगा। पाकिस्तान के कानून मंत्री जोगिंदर मंडल जैसे लोग उदाहरण हैं।
वक्फ बोर्ड़ को भंग किया जाए।जो जमीनें वक्फ बोर्ड के पास हैं वो दलितों में बांटी जाए। 1947 के बंटवारे के वक्त जो मुस्लिम यहां से पाकिस्तान गए उनकी जमीन वहां से आने वाले हिन्दुओ में नहीं बांटी गई बल्कि वक्फ बोर्डों को दे दी।जबकि उन जमीनों पर पहला हक पाकिस्तान से आये हिन्दुओ का था।
एक और काला कानून है आज भी वक्फ बोर्ड अगर किसी जमीन पर हाथ रख दे तो वो जमीन लगभग वक्फ बोर्ड की हो जाती है।क्योंकि वक्फ बोर्ड ही जमीन पर दावा करता है और वही सुनवाई करता है, वही फैसला करता है।आज तो ठीक है इनकी जनसख्या कम है लेकिन कल जब जनसंख्या बराबर होगी तो इसी कानून के सहारे हिन्दुओ को जमीनों से बेदखल किया जाएगा।अभी भी मुस्लिम बहुल इलाकों में ये हो रहा है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड- को भंग किया जाए। जब यहां के मूल निवासियों के लिए उनका अपना बोर्ड नहीं है।जब वो अपनी विवाह पद्दति नहीं अपना सकते है।जब वो अपने धर्म के अनुसार नहीं जी सकते हैं।जब वो अपने धर्म की शिक्षा नहीं दे सकते।जब वो अपने फैसले अपने धर्म के अनुसार नहीं ले सकते तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड क्यों?
मदरसों को अनुदान मिलना बंद होना चाहिए।जब हिन्दू गुरुकुल नहीं खोल सकते, जब हिन्दू अपने धार्मिक स्कूल नहीं खोल सकते तो मदरसे किसलिए।मदरसों में सिर्फ धार्मिक पढ़ाई होती है।चरमपंथ की पढ़ाई होती है।छापे मारे जाते हैं तो आपत्तिजनक चीजे मिलती हैं।देश द्रोह के काम चलते मिलते हैं।मौलानाओं को सरकारी तनख्वाह मिलना बंद हो।जब हिन्दू पुजारियों को नहीं मिलती तो मौलाना को क्यों मिलती है। हिन्दू तो इसी देश के निवासी हैं, क्या इसीलिए उनके साथ अपने ही देश मे सौतेला व्यवहार होगा।
मुस्लिम छात्रों को छात्रवर्ती बंद होनी चाहिए ।एक तो 15-20 औलादें पैदा करेंगे फिर उनको खिलाये-पढ़ाये-पहनाए देश के हिन्दू करदाता।
देश में जितनी भी हमारे पूर्वजों द्वारा बनवाई गई ऐतिहासिक इमारतों को मुगलों ने मुस्लिम नाम दिए हैं उनकी स्वतंत्र जांच करके दोबारा अपने मूल अस्तित्व और मूल नाम से स्थापित किया जाए।जितने भी मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई हैं उन्हें दोबारा मंदिरों के हवाले किया जाए।मस्जिदों को तोड़कर दोबारा मंदिर बनाये जाएं।देश पर आक्रमण करने वाले, बलात्कार करने वाले, हिन्दू महिलाओं को बंधक बनाने वाले, जोहर के लिए मजबूर करने वाले, हमारे वीर राजाओं को मारने वाले कुकर्मियों के महल,मकबरे, उनके नाम के रोड़ , इमारते, मज़ार सबको देश से हटाया जाए।कितने शर्म की बात है जिन्होंने हमारा खात्मा किया, हमारी अस्मिता को रौंदा हम उनकी मज़ारों पर माथा टेकने जाते हैं।और कितने शर्म की बात है वो उसी जगह-उसी भूमि पर बनी हुई हैं जहां हमारे वीरों ने बलिदान दिया।
हलाल सर्टिफ़िकेट- ये कोई सरकारी सर्टिफिकेट नहीं है।ये मुस्लिम निजी संस्था द्वारा दिया जाता है।और जो फीस का पैसा मिलता है उस पैसे से जिहादियों, देश के गद्दारों की मदद की जाती है। मुस्लिम लोग हलाल सर्टिफिकेट वाला ही सामान खरीदते हैं।इसलिए सभी कंपनियों को ये सर्टिफिकेट लेना जरूरी है। अगर हिन्दू बोले कि मै मुस्लिम से नहीं खरीदूंगा तो उसे जेल मिलती है।एक सेक्युलर देश मे एक धार्मिक निजी सर्टिफिकेट कैसे चल सकता है। सामान बेचने की इजाजत सरकार देती है कोई निजी संस्था कैसे सामान बेचने की इजाजत दे सकती है।
रानी संयोगिता जी और पृथ्वी राज चौहान जी की आत्माएं आज कराह रही हैं
जिस मातृ भूमि की रक्षा के लिए उन्होंने अपना जीवन दांव पर लगाया, जिसके लिए अंतिम सांस तक लड़े, जहां पर संयोगिता जी का लाखों भेड़ियों ने बलात्कार किया उस भूमि पर उनके दुश्मनों की मजार बनी हुई हैं।शर्म की बात ये है कि उस मजार को पूजने , दुआ मांगने लाखों हिन्दू जाते हैं। क्या चीज की दुआ मांगते हैं लोग वहां पर।उसी मज़ार के सरंक्षको ने सैंकड़ो लड़कियों का बलात्कार किया जिसका खुलासा 1990 में हुआ।आज भी हो रहे होंगे।क्योंकि जब गुरु हत्यारा बलात्कारी था तो चेले भी वही सीखेंगे।
सिर्फ यही एक मजार नहीं देश में हज़ारों मजारे हैं उन लोगों की जिन्होंने हमारे वीरों को मारा, हमारी वीर सम्मानीय महिलाओं के बलात्कार किये, हमारे छोटे छोटे बच्चों को बेरहमी से काट डाला।क्या एक धर्मनिरपेक्ष - सहिष्णु राष्ट्र ऐसा होता है।क्या कोई राष्ट्र अपने वीर शहीदों को इस तरह सम्मान देता है।क्या मातृ भूमि की रक्षा के लिए मौत को गले लगाने वाले, जोहर करने वाली महिलाओं को इस तरह सम्मानित किया जाता है।क्या देश की महिलाओं से सामूहिक बलात्कार के मुजरिमों को सम्मान देना उन महिलाओं से न्याय है।क्या बच्चों को बेरहमी से मारने वालों को पूज कर हम उन बच्चों की बेइज्जती नहीं कर रहे।और इस सब से आने वाली पीढ़ी पर क्या असर होगा, क्या वो शिक्षा लेंगे और उस शिक्षा से कल क्या क्या कुकर्म करेंगे।जब बलात्कारियों की सरकारी सुरक्षा में पूजा होगी तो बलात्कारी ही पैदा होंगे।हमारी मांग है कि देश के गद्दारों की सारी मजारे देश से हटाई जाएं।
हमने भारतीय जनता पार्टी , विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से उम्मीद की थी लेकिन अब ये भी हिंदुत्व छोड़ चुके हैं।इनको पता है हिन्दू दोगले हैं वोट देंगे नहीं, सरकार बनेगी नही ।बंगाल, केरल में भाजपा के कार्यकर्ता मारे जा रहे हैं क्या भाजपा, आरएसएस ने कोई मुहिम चलाई।क्या उन कातिलों को पकड़ा गया।जबकि केंद्र में बीजेपी की सरकार है।क्या किसी मानवाधिकारी, मीडिया और अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर आवाज़ उठी।मोहन भागवत जी हिंदुत्व की बातें करते थे उन्हें पीटकर सड़क किनारे फैंक दिया-सबसे बड़े संघठन के प्रमुख को।मारने वाले पकड़े नहीं गए।जांच नहीं हुई।उन्होंने खुद भी कुछ नहीं उजागर किया।उन्हें या तो बीजेपी वालों ने खुद मारा या आतंकियों ने मारा, या संघ में शामिल मुस्लिमों ने मारा। उस दिन के बाद से उनकी भाषा बदल गयी।हिंदुत्व छोड़ दिया।रोज हिन्दू संगठनों के प्रमुख मारे जाते हैं।लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।अखलाक जैसों के लिए कयामत आ जाती है।जो चोर, डकैत, खूनी, जानवरों के हत्यारे हैं।भाजपा वाले अपने ही कार्यकर्ताओं के खून पर चुप हैं तो वो आपके लिए क्या करेंगे।आपखुद अपने लिए लड़ो ।तीन काम कर दो एक इनका आर्थिक बहिष्कार, दूसरा इन्हें अपने यहां काम ना देना, तीसरा बॉलीवुड की फिल्मों का बहिष्कार।सारा देश सही हो जाएगा।हमे भाईचारा सिखाया गया है इसलिए हम इन्हें भाईचारे से रखते हैं।अगर इनका भाईचारा देखना है तो मुस्लिम बहुल इलाकों में जाकर देखो।मेवात, केरल, बंगाल, कश्मीर, दिल्ली,उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल इलाके कैसे हिंदुओ के साथ भाईचारा निभा रहे है पता चल जाएगा।कुछ मुस्लिम अच्छे भी होते हैं।लेकिन विंडबना ये है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में कोई हिंदुओं पर जुल्म करता है तो कोई भी दूसरा मुस्लिम उन्हें बचाने नहीं आता।वही अगर एक हिन्दू किसी मुस्लिम को मार रहा है तो 100 हिन्दू उसे बचाने आ जाएंगे।ये फर्क है हममें और उनमें।बुद्धिजीवी,सेक्युलर साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि कश्मीर से हिन्दुओं को आतंकवादियों ने भगाया. मैं बताना चाहता हूँ कि 1000-2000 आतंकी 5 लाख लोगों को नहीं भगा सकते।अगर वहां के आम मुस्लिम बचाने आते तो किसी आतंकी की हिम्मत नहीं थी।सच ये है कि सभी मुस्लिमों ने मिलके हिंदुओ को कश्मीर से भगाया था ।
राष्ट्रीय स्वंम सेवक संघ में मुस्लिम भर्ती हो रहे हैं।वहाँ मुसलमान के हित की बातें होने लगी। कई स्वंम सेवक मुस्लिम धर्म प्रचारक बन गए हैं। कई खुद या उनकी औलाद मुस्लिम धर्म अपना चुके हैं। सर संचालक के सी सुदर्शन ने मुस्लिम धर्म अपना लिया था।पूर्व संघ अध्यक्ष प्रवीण तोगडिया जी ने शायद संघ के बदलते स्वरूप, बदलती नीतियों के कारण ही संघ से अलग होकर अंतर राष्ट्रीय हिंदू परिषद की स्थापना की। इंद्रेश कुमार पहले संघ में थे बाद में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच में शामिल हो गए और हिंदुओं को मुस्लिम बनाने में योगदान देने लगे। संघ ने बहुत अच्छे अच्छे काम किये हैं लेकिन जिस तरह सहिष्णुता हिंदुओ को ले डूबी उसी तरह मुस्लिम को संघ में शामिल करना, मुस्लिमों के प्रति नरमी, उन्हे अच्छा समझने की भूल भविष्य में भारत का काल बनेगी।
आर एस एस ही भाजपा को चलाता था। नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद आर एस एस का प्रभाव भाजपा में कम हुआ है। कौन किसको चला रहा है किस एजेंडे पर काम कर रहे हैं कुछ समझ नहीं आ रहा। मुस्लिम संगठनो से मिलकर हिंदू विरोधी काम किये जा रहे हैं। संघ समेत कोई भी हिंदू संगठन, हिंदू नेता, हिंदू पार्टी, हिंदू मंदिर, हिंदू ट्रस्ट, हिंदू कथा वाचक , हिंदू साधु हिंदुओ की हो रही हत्याओं, हिंदू संस्था के प्रमुखों, साधुओं की हत्याओं, लव जिहाद,महिलाओं के बलात्कार, हिंदुओ के धर्मांतरंण पर कुछ नहीं बोलते। मुस्लिमों के खिलाफ हिंदुओं को जागरूक नहीं करते। मुस्लिम धर्म की असलियत नहीं बताते। उल्टा अपने प्रवचन में, कथाओं में मुस्लिम धर्म को महान बताते हैं, उनसे वैवाहिक संबध रखने में भी कोई बुराई नहीं है ऐसी शिक्षाएं देते हैं। अब तो शुद्ध हिंदू स्कूल, कॉलेज, विश्व विद्यालय में भी एक साजिश के तहत मुस्लिमो का प्रवेश करवाने लग गए हैं। जब मुस्लिम शिक्षक पढायेंगे तो वो बच्चों को क्या बनाएंगे।यहाँ तक की मंदिर में पुजारी मुस्लिम मिल रहे हैं, कहाँ तक हिंदू बच के रहेंगे। और ये सब सहिष्णु के नाम पर हो रहा है। दूसरी तरफ हिंदू मस्जिद में प्रतिबंधित, उनके मदरसों, विश्व विद्यालय में प्रतिबंधित। वो अपने धार्मिक प्रवचनों में हिंदुओं को काटने की, देश को मुस्लिम बनाने की, हिंदुओं के धर्म परिवर्तन की शिक्षाएं देते हैं। यहाँ तक कि प्रधान मंत्री, गृह मंत्री को मारने तक की बात करते हैं। कोई कानूनी कारवाई नहीं होती। एस सी एस टी एक्ट, महिला सुरक्षा एक्ट, बच्चों के उत्पिडंन का एक्ट से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा तक कोई एक्ट इन पर लागू नहीं होता
तर्क ये दिया जाता है कि इसमें गलत क्या है।हिन्दू धर्म का ही प्रचार हो रहा है।वो शिक्षा देंगे, शिक्षा लेंगे, वेद पढ़ेंगे-पढ़ाएंगे,गीता पढ़ेंगे-पढ़ाएंगे ,हिन्दू देवताओं की ही पूजा अर्चना करेंगे तो हिन्दू धर्म के लिए ही अच्छा है।सहिष्णुता बनेगी।मैं उन लोगों बताना चाहता हूँ कि ये एक लंबी प्रिक्रिया होती है।आज एक शामिल होगा, कल दस और ये आंकड़ा बढ़ता ही जायेगा।धीरे धीरे वो हिन्दुओ को हिन्दू धर्म से अलग कर देंगे।नफरत भर देंगे।और इस्लाम के करीब ले जाएंगे।हिन्दू संस्थाओं पर पूरी तरह कब्ज़ा कर लेंगे . एक दिन ऐसा आएगा जब ज्यादातर हिन्दू हिन्दुओ के ही खिलाफ लड़ेंगे।विरोधी बनकर या सहिष्णु बनकर।यही हिन्दू कालांतर में मुस्लिम बन जाएंगे जो बचेंगे वो मार दिए जाएंगे।जो संपन्न होंगे वो देश छोड़कर भाग जाएंगे।
सबसे बड़ा उदाहरण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को ले लो।उन्होंने सोचा मुस्लिमों को संघ में शामिल करके हम उन्हें बदल देंगे।लेकिन उल्टा हो गया और आगे और भी उल्टा होने वाला है। संघ के अध्यक्ष जैसे बड़े पद के लोग मुस्लिम धर्म अपना लिए।कई बड़े बड़े नाम मुस्लिम धर्म का प्रचार करने लगे।नीति-योजना यही है जो भविष्य को ध्यान में रखकर बनाई जाती है।वो दूर की सोच रहे हैं और हम सिर्फ वर्तमान की।अगर हिन्दू धर्म पढ़ना-पढ़ाना-पूजना या प्रचार करना है तो हिन्दू धर्म क्यों नहीं अपनाते। आपके बाप दादा कभी हिन्दू ही थे, आप भी धर्म मे वापसी कर सकते हैं।सुरक्षा एजेंसियों - कानून की रक्षा करने वालों से भी मैं कहना चाहूंगा कि ये आग आप तक भी पहुंचेगी।सारे लालच छोड़कर समय रहते सचेत हो जाओ, हिन्दुओ को बचाने के लिए साम,दाम,दंड, भेद जो नीति अपनानी हो वो अपनाओ।कुछ फैंसले विवेक से भी लेने पड़ते हैं। जब मुस्लिम अधिकारी कानून को छोड़कर अपने विवेक से फैसले ले सकते हैं तो हिन्दू अधिकारी क्यों नहीं।मुस्लिम अधिकारी चाहे जिस पद पर हो वो हमेशा अपने धर्म के हित मे फैसले करता है चाहे वो सिपाही (कश्मीर-मेवात की पुलिस) हो, चाहे सैनिक (मुस्लिम रेजिमेंट) , चाहे वकील, चाहे जज, चाहे सुरक्षा एजेंसी का प्रमुख (हामिद अंसारी) , चाहे उप राष्ट्रपति (हामिद अंसारी ), चाहे ख़ुफ़िया विभाग हो (हामिद अंसारी ), चाहे डॉक्टर हो, वैज्ञानिक हो। और मुस्लिम देशों को तो हम देख ही रहे हैं कैसे वहां हिन्दुओ को सरकारी सहयोग से निपटाया जाता है।
प्रधानमंत्री मोदी जी गौ रक्षकों को गुंडा बोलते हैं लेकिन गौ काटने वालों के लिए कुछ नहीं। गौ माता को काटने वाले,हिन्दुओ का कत्लेआम-बलात्कार करने वाले शांतिदूत हैं।प्रधानमंत्री जी के मुंह से इन अत्याचारी लोगों के खिलाफ कभी एक शब्द नहीं निकलता।लेकिन आरएसएस, विहिप, गौ रक्षक और बजरंग दल को अनुशासन में रहने की हिदायत देते हैं।कानून हाथ में ना लेने की धमकी देते हैं।कश्मीर, मेवात, बंगाल , केरल में मुस्लिमों के द्वारा कानूनों की सरेआम और लगातार धज्जियाँ उड़ रही हैं।देश द्रोही गतिविधियां चल रही हैं उन्हें कुछ नहीं बोलते, ना कोई एक्शन होता।
( मेवात ) ---
मेवात में हिन्दुओ का जीना दूभर हो चुका है।मेवात में ज्यादातर दलित हिन्दू ही बचे हैं।बाकी लोग पलायन कर चुके हैं।विश्व हिंदू परिषद की जांच में सामने आया है कि 103 गाँव हिन्दू विहीन हो चुके हैं और 85 गाँव में एक-दो हिन्दू घर बचा है।ये रिपोर्ट हरियाणा सरकार को मई 2020 में दी गई है।इसके अलावा भी बहुत से लोग जो मेवात में रह चुके हैं, नौकरी कर चुके हैं, वहाँ के हालात का जायजा लेने जा चुके हैं वो लोग भी सामने ला चुके हैं किस तरह हिंदुओं पर जुल्मों की बाढ़ आई हुई है। सुदर्शन न्यूज़ और न्यूज़ नेशन ने भी जून 2020 में अपने चैनल पर मेवात के हिंदुओं पर हो रहे जुल्मों को लगातार दिखाया।हिंदुओं के साक्षात्कार और स्टिंग ऑपरेशन दिखाए गए।
हिन्दू लड़कियों से बलात्कार, शादी के मंडप से अपहरण, हिन्दुओ की हत्याएं, जमीनों पर कब्जा, धर्मान्तरण, गौ हत्या, साइबर क्राइम, मन्दिरो को तोड़ना, चोरी के सामान बेचना, ठगी, पशुओं के अंग बेचना, महिलाओं को बेचना, आतंकवादियों के पैसे से मस्जिदें बनाना कितने ही गैर क़ानूनी काम खुले आम हो रहे हैं। आखिर में तंग आकर हिन्दू या तो धर्मांतरण कर लेते हैं या घर बार, जमीन छोड़कर पलायन कर जाते हैं।
पुलिस में जाते हैं तो उनकी कोई सुनवाई नहीं होती।क्योंकि पुलिस को पैसा खिलाया जाता है।पुलिस को कोई पकड़वाने का पैसा दे तो पकड़ लेती है, छोड़ने का पैसा दे तो छोड़ देती है, मरवाने का पैसा दे तो मार देती है।यही खेल है पुलिस का। पैसा अपराधी ही दे सकता है क्योंकि वो अपराध कर कर के अच्छी कमाई करता है, गरीब आदमी तो दे नहीं सकता।
पुलिस को खुद की जान का भी खतरा है।मुस्लिम बहुल इलाकों में घुसने वाला कोई पुलिस वाला मर्द पैदा नहीं हुआ है।जिन्हें खुद की जान का खतरा हो वो भला दूसरों की क्या रक्षा करेंगे।पुलिस, नेता, मंत्री खुद गौ तस्करी और हिन्दुओ के कत्लेआम, महिलाओं के बलात्कार में शामिल हैं।जबकि वो अपने आप को हिन्दू बोलते हैं।दिक्कार है ऐसे दोगले हिन्दुओ पर।
बिना सरकार, मंत्रियों और पुलिस की मिलीभगत के कोई कुकर्त्य सालों तक नहीं चल सकता।हिन्दू रिपोर्ट भी दर्ज करवाने जाते होंगे।उच्च अधिकारियों से भी मिलते होंगे।नेताओ- मंत्रियों से भी मिलते होंगे ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी को खबर ही नहीं है।लेकिन सरकारें आती रही, जाती रही किसी ने भी उनकी मदद नहीं की।मदद करना तो दूर कंभी मुद्दा उठाया ही नहीं गया।ये देश का अकेला मुद्दा है जिस पर पक्ष-विपक्ष का तगड़ा गठजोड़ बना हुआ है , कोई किसी पर आरोप प्रत्यारोप नहीं लगा रहा है। अल्पसंख्यक आयोग,महिला संगठन, मानवाधिकार , मीडिया , दलित संस्थाए,अदालत सब के सब मूकदर्शक बने हुए हैं।कोई महिला कानून, कोई दलित कानून, कोई बच्चों का कानून अत्याचारी मुल्जिमों पर लागू नहीं होता।इन इलाके में देश का संविधान, देश का कानून नहीं चलता है।
बजरंग दल और गौ रक्षकों को गुंडा बताने वाले लोगों को मेवात के मुस्लिम देशभक्त लगते हैं जिस मेवात में सुरक्षा बल घुसने से डरते हैं। तमाम देश द्रोही और इंसानियत द्रोही काम मेवात में हो रहे हैं।लेकिन पुलिस - मंत्रियों की हिम्मत नहीं है उन लोगों को पकड़ने की, पकड़ने की छोड़ो पुलिस बोलती है हम वहां जा ही नहीं सकते। सुदर्शन न्यूज़ के पत्रकार सुरेश जी और सामाजिक वरिष्ठ पत्रकार मधु किस्वर मेवात के गाँव में रिपोर्टिंग के लिए गए तो पुलिस ने साथ जाने से साफ साफ मना कर दिया और उन्हें भी सलाह दी कि वो ना जाये।इसी तरह पुलिस समाज सेवियों के साथ जाने से मना कर देती है।सोचिए कैसे हालात हो गए हैं । कुछ ऐसे इलाके हैं देश मे जहां संविधान, कानून, अदालत किसी की नहीं चलती।और उन लोगों पर कोई कार्रवाई होना तो दूर किसी की वहां घुसने तक कि हिम्मत नहीं हो रही, आवाज निकालने तक की हिम्मत नहीं होती। उन लोगों के खिलाफ हत्या, बलात्कार, महिला उत्पीड़न, बाल उत्पीड़न, दलित उत्पीड़न,साइबर क्राइम, देश द्रोह,पशु क्रूरता,मानवाधिकार उल्लंघन,मूल अधिकार उल्लंघन, धार्मिक उत्पीड़न, पॉस्को एक्ट, आईपीसी, संविधान विरोधी जैसे कानून तक लागू नहीं हो रहे। मुकद्दमे तक नहीं लिखे जाते।
मज़दूरों, भिखारियों, किसानों, रेहड़ी वालों पर अपनी मर्दानगी दिखाने वाली पुलिस मेवात में कार्रवाई तो दूर रिपोर्ट तक नहीं लिख सकती, पकड़ना तो दूर मौका ए वारदात पर जा नहीं सकती। पुलिस में इतना खौफ है मुस्लिमों का.
दंगाइयों के पोस्टर पर स्वत संज्ञान लेने वाले जज इतने बड़े बड़े कुकर्मों पर संज्ञान नहीं लेते हैं।पुलिस मेवात के मुस्लिमों के नाम से थर थर कांपती है।कितने कश्मीर और बनेंगे देश मे। कश्मीर, मेवात , बंगाल, केरल, आंध्र, तेलंगाना, कैराना, मुजफ्फरनगर, अलीगढ़, दिल्ली सभी नरक बनते जा रहे हैं और देश से कटते जा रहे हैं।
जस्टिस पवन कुमार, सुदर्शन न्यूज़, ज़ी न्यूज़, ऋतू राठौर, मधु किस्वर , विश्व हिंदू परिषद जैसे सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं की मेवात पर रिपोर्ट वहां के भयावह हालात दिखाती हैं।
देश मे कहीं भी एक भी मुस्लिम को सुई भी चुभ जाए तो मीडिया, सरकार और कल्याणकारी संस्थाए हंगामा कर देती हैं, अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन जाता है।यहां तक कि उईगर (रूस) मुसलमानों के लिए भी एक आंदोलन चला देते हैं।लेकिन इन्हें अपने ही देश में राजधानी और राजधानी के पास मेवात का पीड़ित हिन्दू दिखाई नहीं देता।सबसे बड़ी बात वो दलित भी है।बेशर्मों डूब कर मर जाओ इससे पहले कि सारे हिन्दू खत्म हों जाए।देश तो खत्म नहीं होगा आज हमारा है कल किसी और का हो जाएगा।
खाप पंचायतों पर उंगली उठाने वाले, पूरी की पूरी पंचायत को जेल में डालने वाले, स्वतँ संज्ञान लेने वाले, दंगाइयों के पोस्टर पर स्वतँ संज्ञान लेने वाले , आतंकवादी के लिए रात में कोर्ट खोलने वाले लोग मेवात के मुस्लिमों के दमन पर कोई एक्शन नहीं लेते।खाप पंचायतों को तुगलकी बताने वाले लोग , जब एक पूरा मुस्लिम गाँव हिन्दू घर पर हमला कर देता है तो खामोश हो जाते हैं। हिन्दू लड़कियों से बलात्कार, शादी के मंडप से अपहरण, हिन्दुओ की हत्याएं, जमीन पर कब्जा, धर्मान्तरण, गौ हत्या, साइबर क्राइम, मन्दिरो को तोड़ना, चोरी के सामान बेचना, ठगी, पशुओं के अंग बेचना, महिलाओं को बेचना, आतंकवादियों के पैसे से मस्जिदें बनाना आदि में शामिल है वो इन्हें देश भगत और कानून के पूजक लगते हैं।इन दरिंदो पर चुप्पी है।
खाप पंचायत और मेवाती मुस्लिमों के दमन में जमीन आसमान का फर्क है।खाप हमेशा चरित्र निर्माण और आपसी भाई चारे की बात करती हैं।किसी भी अपराध,चोरी-डकैती, हत्या-बलात्कार-धर्मपरिवर्तन या देश द्रोह में शामिल नहीं है।दुनिया का कोई ऐसा अपराध नहीं है जो मेवाती मुस्लिम ना करते हों।ये कानून नहीं मानते, शरीयत पर चलते हैं फिर भी ये देश में सम्मानीय है और हिन्दू अपमानित।हिन्दू धर्म का अपमान करने वाले, पंडितों को लुटेरे दिखाने वाले, खाप पंचायतों पर उंगली उठाने वाले, जातियों को बदनाम करने वाले फिल्मकार क्या मेवात और कश्मीर पर कोई जायज फ़िल्म बनाएंगे।क्या कभी अपने गिरेबान में झाकेंगे।क्या बॉलीवुड किस तरह देश द्रोह में शामिल है उस पर फ़िल्म बनाएंगे।हिन्दू विरोध ,अश्लीलता और नग्नता फैलाने के लिए कौन फंडिंग कर रहा है उसे दिखाएंगे।
जाति बनाम जाति पर लड़वाने वाला मीडिया या सरकारी मशीनरी को मेवात के दलितों के हक, महिलाओं के हक, बच्चों के हक नहीं दिखाई देते हैं।बड़ी जाति वालों ने दलित की बारात नहीं निकलने दी ये तो साजिश के तहत दिखाया जाता है लेकिन मेवात में मंडप से दुल्हन उठा ली जाती हैं ये नहीं दिखाया जाता।मि टू का शौर तो मचाया जाता है लेकिन मेवात की महिलाओं के बलात्कार की खबर नहीं दिखाई जाती।
दलितों को मंदिर में नहीं घुसने दिया, दलित बच्चों को स्कूल में अलग बिठाया जाता है ये खबर तो दिखाई जाती है लेकिन मेवात में मुस्लिम उनके मंदिर तोड़ रहे हैं, उनकी इज्जत रौंद रहे हैं, स्कूलों में पढ़ने नहीं देते , जान से मार देते हैं तो कोई खबर नहीं बनती।
ऊंची जाति ने नीची जाति को प्रत्याड़ीत किया इस खबर पर सारी संस्थाएं, अदालत, बॉलीवुड, मीडिया सब सक्रिय हो जाते हैं चाहे खबर झूठी ही हो।लेकिन मेवात के मुस्लिमों के खिलाफ मजाल है किसी की जुबान भी हिल जाए।
ये जाति बनाम जाति की खबरें फैलाना, उन पर तत्काल एक्शन होना साजिश का हिस्सा है।हिंदुओं को आपस मे लड़ाकर, जेलों में सड़ाकर, भीड़ पर गोली बारी करके हिंदुओं को खत्म करना मकसद है।इसके लिए जरूर फंडिंग की जाती है।पैसे लेकर अपने देश के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है।जो हिन्दू साथ दे रहे हैं वो कल कहाँ छिपेंगे जब आपका भी नम्बर आएगा।मुस्लिमों के पीछे आतंकवादियों का भी हाथ है इसलिए भी मीडिया और बाकी सरकारी मशीनरी उन पर हाथ नहीं डालते।या तो पैसा लेकर चुप बैठ जाओ या मारे जाओगे।और आतंकियों से सबको डर लगता है।वो कहीं भी कुछ भी कर सकते हैं।उदाहरण सामने हैं- हिन्दू साधुओं को मारना, समाज सेवको को मारना, हिन्दू एक्टिविस्ट को मारना, सेना को मारना, कोई पुलिस वाला गलती से किसी मुस्लिम की जांच करने लगे तो उसे मारना , कोई नेता हिन्दुओ की पैरवी करे तो उसे मारने, कोई पत्रकार हिन्दुओ की पैरवी कर तो उसे मार देना ये सब अभियान बड़े षडयंत्र को साबित करते है।इसी डर के कारण कश्मीर, मेवात, बंगाल, केरल, तेलंगाना , आंध्र प्रदेश में हिन्दुओ के कातिल-बलात्कारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती।इसी कारण मौलाना साद को नहीं पकड़ा जाता, इसी कारण शाहीन बाग़ पर एक्शन नहीं होता।लगता नहीं हम एक आज़ाद देश भारत मे रह रहे हैं।हिंदुओं के दमन की ऐसी ही खबरें पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, मॉरीशस, अफगानिस्तान आदि देशों से भी आती हैं।तो क्या फर्क है भारत के हिन्दुओ और बाकी देशों के हिन्दुओं में ।
( पंचायत ) ---
पंचायतों ने कौंन से गलत काम किये हैं।कौंन से गलत फैंसले दिए हैं।गलतियां हर संस्था करती है।अदालते भी गलत फैंसले देती है।अदालतों में पैसे का खेल होता है। अदालत 10 साल - 20 साल में तो फैसला देती हैं तब तक आदमी सब कुछ लुटा चुका होता है।कई बार तो मर भी जाता है।क्या फायदा ऐसे फैंसलो का।यही जज लेट कार्यवाही पर पुलिस और सरकार को झाड़ते हैं लेकिन खुद के गिरेबान में नही झांकते।वास्तव में वो डांटना इनका एक नाटक होता है ये सब आपस मे मिले हुए हैं।मीडिया आवाज़ उठाता है कि पंचायते कानून का उलंघन कर रही हैं।उन्हें किसने अधिकार दिया फैंसले देने का।आज पंचायते गलत हैं फैंसले नही दे सकती , कल कोई कानून बन जाये पंचायतों के पक्ष में तो वो सही हो जाएंगी।मैं पूछता हूँ कि अदालतों को किसने अधिकार दिया? संसद को किसने अधिकार दिया? जिस समाज ने जिस जनता ने उन्हें अधिकार दिया है उसी ने पंचायते बनाई है।अदालतें तो कल बनी हैं पंचायतों का इतिहास बहुत पुराना है।पंचायतों के फैंसले तुगलकी नही होते वो बहुमत का पक्ष होते हैं।और बहुमत संसद से लेकर सड़क तक हर जगह लागू है।यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में भी बहुमत से फैंसले सुनाए जाते हैं।पंचायत में भी ऊपर तक कि व्यवस्था बनी है।गांव की पंचायत,दो-तीन गांव की पंचायत,तपा पंचायत,खाप पंचायत आदि कई स्टेज हैं।अगर आप एक से सहमत नही तो दूसरी पंचायत बुला सकते हैं।कोई खर्च नही है कोई समय की बर्बादी नही है सब भाईचारे से होता है।अदालत में पुलिस सच्चे झूठे सबूत पेश करती है और जज उसी पर फैंसला देते हैं।लेकिन पंचायत को पहले से मालूम होता है कौंन सच्चा है कौंन झूठ क्योंकि मामला एक ही गांव का होता है।गांव में किसके घर मे क्या हो रहा है सबको पता रहता है।
अदालतों में एक मुकदमा सालो चलता है।पुलिस,वकील और जज में से कोई नही चाहता कि वो बन्द हो क्योंकि जब तक मुकदमा चलेगा उनकी आमदनी होती रहेगी।जजो की संपत्ति की जांच करके देखो एक भी जज पाक साफ नही निकलेगा।दुर्भाग्य यही है कि वो कुछ भी करते रहे उनके ऊपर कार्यवाही नही होती।एक जज पर तो सामूहिक बलात्कार के आरोप लगे लेकिन कोई जांच कोई गिरफ्तारी नही हुई।अगर कोई आम आदमी हो तो झूठे आरोप लगे हो तब भी सालों तक तो जमानत नही होती।
पंचायते इसलिए सही विकल्प हैं क्योंकि वहां तुरंत और बिना किसी शारीरिक,मानसिक और आर्थिक शोषण के फैंसले होते हैं।देश की कानूनी लॉबी द्वारा इनका विरोध किया जाता है । इसलिए नही की पंचायते कानून के लिए घातक हैं बल्कि इसलिए क्योंकि पंचायते इनकी आमदनी के लिए घातक हैं।जो मुकदमे पंचायतों द्वारा आपसी भाईचारे से सुलझा लिए जाते हैं अगर वो मुकदमे भी अदालतों में आने लगे तो देश मे मुकदमो की बाढ़ आ जायेगी।जो अदालतें वर्तमान मुकदमो को नही सुलझा पा रही है वो उस बाढ़ को कैसे रोकेंगी।
पंचायतों पर उंगली उठाने वाला बॉलीवुड या मीडिया अपने गिरेबान में नही झांकता।सलमान और संजय दत्त के साथ सारा बॉलीवुड खड़ा था।जबकि वो गुनेहगार थे।दिव्या भारती की मौत का सारे बॉलीवुड को पता था लेकिन किसी ने जुबान नही खोली. ऑनर किलिंग की बात करने वाले उस लड़की की मौत पर क्यों चुप थे।कास्टिंग काउच खुले आम होती है।
दुनियां का कोई भी संगठन,पार्टी,इंडस्ट्री,मीडिया सभी मिल बैठ कर आपसी सहमति से अपने मुद्दे हल करते हैं।कोई असंतुष्ट होता है तो उसे जबरदस्ती दबाव में डाल देते हैं।व्हिप जारी करके आज़ादी छीन लेते हैं।अपने दायरे के लोगो ने गुनाह भी किया हो तब भी उसके बचाव में खड़े होते हैं।उससे रिश्ते रखते हैं।उससे व्यवसाय रखते हैं।जब गरीब और गांव के लोग ऐसा करते हैं तो वो सबको चुभता है।क्या मीडिया हाउसों में महिलाओं का शोषण नही होता? बॉलीवुड वाले अपने फैंसले मिलकर इक्कठे होकर या एसोसिएशन में निपटा लेते हैं।कास्टिंग काउच के मामले दबा दिए जाते हैं।कानून तक नहीं पहुंचने देते।कास्टिंग काउच भी तो बलात्कार ही है।लेकिन उसे नया शब्द देकर बलात्कार से बच जाते हैं।सवाल ये है कि ये आपस मे मामले निपटाए तो सही है लेकिन अगर गाँव के गरीब निपटाए तो गलत है।इनका एसोसिएशन कानूनी है, पंचायतें गैरकानूनी हैं।मीडिया हाउस और बॉलीवुड में भी बहुत से कुकर्म होते हैं।लेकिन फिर भी ये देश के रहनुमा और आदर्श बने हुए हैं।
किसी हीरो को सजा होते ही दलील दी जाती है कि करोड़ो रूपये दांव पर लगे है,तबियत खराब है,परिवार चलाने वाला कोई नही है।इनके पास अनाप शनाप दौलत होती है,परिवार आराम से गुजारा कर सकता है।लेकिन एक गरीब आदमी जिसे छोटे मोटे जुर्म में ही सजा हो जाती है।कई बार जमानत के अभाव में जेल में पड़े रहना पड़ता है।उनका भी घर परिवार है।उनके जेल जाने से उनके बच्चे भूखे मरते हैं।लेकिन उनपर कोई रहम नही करता ।
जब हर जगह आपसी बातचीत से मामले सुलझाए जाते हैं चाहे वो राजनीतिक पार्टी हो ,बॉलीवुड हो,कॉरपोरेट हो या मीडिया हाउस या कोई और सरकारी महकमा हो तो फिर गरीब अपने मामले पंचायतों में क्यों नही निपटा सकते।क्यों पंचायतों पर उंगली उठाई जाती है?
आज हम देख रहे हैं कि खाप पंचायतों में महिला और दलितों को भी शामिल किया जा रहा है।हमारे शादी ब्याह के फंक्शन में भी दलितों को मेहमान बनाया जा रहा है।महिलाएं सरेराह डीजे पर बॉलीवुडिया डांस करती घूमती हैं।शादियों में खाना बनाना और खिलाना भी पूरा दलितों के हाथ से करवाया जाता है।जो समाज बर्तन को भी हाथ नहीं लगाने देता था आज उनके हाथ से खाना खा रहा है,जो समाज अपने पास खड़ा नहीं होने देता था वो आज पंचायतों में उनसे मंत्रणा कर रहा है।आरक्षण के बूते सरपंच या अन्य ऊंचे पदों पर भी वो हैं जिससे उनकी जी हुजूरी भी करनी पड़ती है, डांट भी सुननी पड़ती है और मार भी खानी पड़ती है।
क्यों? मजबूर ही इतने हो गए हैं।पहला कारण - पहले हम सब परिवार के लोग खुद खाना बना लेते थे,खुद मेहमानों को परोसते थे,शादी ब्याह के सारे काम सब मिलकर कर लेते थे।लेकिन आज पैसा दिखाने का शौक,अपने आप को बड़ा साहब दिखाने का शौक,रुतबा-घमंड में हमने ये मेल मिलाप छोड़ दिए हैं।कुछ ऊंची जातियों के लोग जो इस काम में शामिल थे वो भी ये काम छोड़ चुके हैं,पैसा भी ज्यादा हो गया है जिसने प्राथमिकताएं बदल दी हैं।
दूसरा कारण सरकार,प्रशासन,अदालत बिना महिलाओं या दलितों के सवर्ण वर्ग की सुनवाई ही नहीं करते हैं।जिससे मजबूरन उन्हें पंचायतों में शामिल करना पड़ा।क्या हमने कभी सपने में भी सोचा था ये सब होगा।आगे आगे वो होगा जो आज भी हम सपने में नहीं सोच पा रहे।
जो खाप पंचायतों का अस्तित्व,उनकी विश्वसनीयता थी, वो लगभग भंग हो चुकी है।कुछ तो हम खुद ही उनके निर्णय नहीं मानते,कुछ सरकारों ने उनका अस्तित्व मिटा दिया है,कुछ शरारती तत्व शामिल हो चुके हैं।हम भी गलत कानूनों,मीडिया के गलत प्रचार,बॉलीवुड के प्रभाव और पाश्चात्य संस्कृति के दबाव में हैं।हमारी औलादें हमारे हाथों से निकल चुकी हैं,नशा,बॉलीवुड,नग्न संस्कृति,व्यभिचार बड़े कारण हैं।
झूठी शान की खातिर हत्या -- प्रेम संबधो के चलते लड़के लड़कियों की हत्या होती है तो मीडिया,कानून और अमीर लोग उसे झूठी शान की खातिर की गई हत्या का नाम देते है।क्या लड़की की इज्जत झूठी शान है? जिस पल एक निम्न या मध्यम वर्गीय मां बाप को प्रेम संबंध का पता चलता है या अपनी लड़की को गलत हालत में देखते है तो माँ बाप का कलेजा हाथ मे आ जाता है।वो ना मरते हैं ना जिंदा रहते हैं।लेकिन अमीर,बॉलीवुड के लोग या मीडिया के लोग क्या जाने इज्जत क्या होती है।वो तो अपने घर की औरतों को भोग की वस्तु दर्शा कर ही पैसा कमाते हैं . उनको अपने घर की औरतों का तो पता नही रहता कहाँ है क्या रही हैं।उनके घर की औरत तो उनके बस में है नही वो चाहते हैं कि सारे परिवार ऐसे ही हो जाये।उनकी औरतें लगभग नंगी घूमती हैं।खुले आम चिपका चिपकी करती हैं।खुले आम चूमा चाटी करती हैं।नारी सशक्तिकरण का मतलब नंगे घूमना नही है।दुर्भाग्य वश आज जितने छोटे कपड़े होंगे उतनी सशक्त नारी मानी जाती है।बिना किसी शर्म भय के सारी हदें पार करती हैं और अपने आप को भारतीय नारी कहती हैं।मीडिया उन्हें भारत की पहचान बना के पेश करता है।उन्हें आधुनिक नारी सब पर भारी का खिताब देता है।ये हमारी असली भारतीय औरतों का अपमान है।जो सीता जी और द्रोपदी जी के नक्से कदम पर चल रही हैं।
वो उम्र ही ऐसी होती है कि अच्छा बुरा समझ मे नही आता।जब प्यार का बुखार उतर जाता है तो समझ मे आता है, क्या हुआ, तब तक बहुत देर हो जाती है।प्यार वाली शादी में तो कोई बीच बचाव करने भी नही आता।कोई रिश्तेदार कोई भाईचारा काम नही आता।अगर घर वालो की मर्ज़ी से शादी हुई हो तो नाते रिस्तेदार पंचायत शादी टूटने नही देते।सबका दबाव रहता है।
कौन सा इनका हीर रांझे वाला प्यार है जो माँ बाप और समाज को बलि का बकरा बनाया जाता है। मेरे एक पहचान वाले की बहन ने गाँव (हरियाणा ) में उत्पात मचा रखा था , कइयों के साथ उसके संबंध थे। घर से भी कई बार भागी। उसका भाई जोगबनी बिहार में रहता था उसने सोचा यहाँ लेकर आ जाते हैं , यहाँ हरियाणा के लड़के मिलेंगे नहीं तो टिकी रहेगी। जोगबनी में आते ही दस दिन में वो किसी बिहार के लड़के के साथ भाग गई। क्या ये प्यार है , कैसे घर वाले ऐसे रोज बदलते प्यार के साथ रोज शादी करवाएं।
एक लड़का लड़की प्यार करते थे ।लड़का लड़की के जन्मदिन पर उसके घर चला गया।लड़की वालों ने देख लिया और दोनों को मार दिया।अगर कोई किसी के घर जाकर उन्ही की लड़की के साथ रंगरलियां मनाएगा तो कौंन चुप रहेगा।ये झूठी शान की खातिर हत्या नही हैं ।ये सच्ची शान की खातिर खून में अचानक आये उबाल का नतीजा है।एक लड़का लड़की की इज्जत सिर्फ उनकी नही उनके मां बाप की भी इज्जत होती है।दुर्भाग्य से मीडिया की सोच ऐसी है और ऐसे ही कानून हैं कि मां बाप का अपने बच्चों पर कोई हक नहीं। जबकि एक प्रेमी प्रेमिका का एक दूसरे पर पूरा हक है।एक प्रेमी आरोप लगाता है की मां बाप ने मेरी प्रेमिका को कैद कर रखा है।कानून आदेश देता है कि लड़की को मां बाप से छुड़ाओ और लड़के के हवाले कर दो।गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड से बढ़कर आज दुनिया मे कोई रिश्ता नही है।जो मां बाप बच्चो को पैदा करते हैं,पालते हैं,अपने बच्चों के लिए हर तकलीफ उठाते हैं वो अपने बच्चों से काम नही करवा सकते,उन्हें दण्ड नही दे सकते,उनकी शादी नही करवा सकते,उनके किसी मामले में हस्तक्षेप नही कर सकते।मतलब मां बाप का अस्तित्व कानून की नज़र में कुछ नही है।
आज शारीरिक जरूरते पूरी करने वाला प्यार है।पैसा ही सब कुछ हो गया है।लड़की का कौमार्य मायने नही रखता।गांव में सब एक दूसरे को जानते हैं।बड़े छोटे की इज्जत,शर्म लिहाज और डर है।जिस समाज मे ये तीनो नही होंगे वो समाज दरकने लगता है।जब गांव में किसी का कौमार्य भंग होता है तो घर वाले मुह दिखाने लायक नही रहते।उत्तर भारत मे एक ही गांव में या रिस्तेदारी में या एक गोत्र में या आपसी भाईचारे वाले गांव में शादियां नही होती है।जब कोई दो लोग प्यार में पड़के शादी कर ले तो कैसे उनके घर वाले जियें, कैसे गांव में रहें।जब आप उस समाज मे रहकर देखोगे तब आपको वहां के रीति रिवाज, सभ्यता संस्कृति का पता चलेगा।एक समाज के नियम दूसरे समाज पर नही थोपे जा सकते।कुछ हज़ार लोग पूरे देश पर अपनी संस्कृति थोपना चाहते हैं।उन लोगो की संस्कृति को भारत मे मान्यता मिल गई लेकिन इस देश के करोड़ो ग्रामीण या छोटे शहरों की संस्कृति को मान्यता नही मिली।वो कुछ हजार लोग करोड़ो लोगों की तरह नही जियेंगे , अपने आप को उनके अनुसार नही बनाएंगे।लेकिन चाहते है कि करोड़ो लोग उनकी तरह जियें।आज वो कुछ हजार लोग अपनी संस्कृति थोपने में कामयाब भी हो रहे हैं।क्योंकि उनके पास पैसा,ताकत,मीडिया,कानून सब हैं।करोड़ो लोगो की सुनने वाला कोई नहीं ।
जब एक ही जाति के होकर ससुराल में रहना, सामन्जस्य बिठाना मुश्किल होता है , तो सोचो दूसरी जाति की रस्मों, उनके खान पान, उनके रहन सहन में रहना कितना मुश्किलहोगा।दूसरे धर्म की धार्मिक मान्यताओं में रहना कितना मुश्किल होगा।एक शाकाहार परिवार के बच्चे का एक मांसाहार के परिवार में रहना और खाना कितना कठिन होगा।जिंदगी तीन घण्टे की फ़िल्म नहीं है ,बहुत बड़ी है।इतनी आसानी से नहीं कटती।फैंसला होने के बाद पछताने के अलावा कुछ नहीं बचता ।खोई हुई इज्जत वापिस नहीं आती।
गरीब- मध्यम वर्ग की लड़कियों की शादी एक बार ही होती है।सेलिब्रिटी की तरह वो 70 शादी नहीं कर सकती। एक बार तलाक हो गया तो उससे दोबारा कोई शादी नहीं करता।प्यार के चक्कर मे एक कदम अगर गलत पड़ जाए तो अगली की जिंदगी खत्म हो जाती है । जब बच्चे ( तथाकथित प्रेमी युगल ) भागते हैं तो सेलिब्रिटी-मीडिया-पुलिस-अदालत उन्हें हीरो बना देती हैं।फूल लाइम लाइट और सुरक्षा दी जाती है। माँ बाप- रिश्तेदारों को जेल में डाल दिया जाता है। लेकिन जब लड़का लड़की को लूट लाट के छोड़ देता है तो ना मीडिया आता है, ना सेलिब्रिटी ,ना अदालत, ना पुलिस आती है।रिस्तेदार और घर वाले भी कई बार साथ नहीं आते क्योंकि जिसकी इज्जत खाक में मिला दी वो क्यों साथ आएंगे। लड़कीं मजबूर, बेबस, अकेली ही जिंदगी काटती है।ना कमाई का जरिया होता, ना सम्पति मिलती। लड़का कुछ देगा नहीं, मायके से ऐसे ही कुछ नही मिलता। ऐसी लड़कियों की हालत ना घर की रहती है ना घाट की। केस भी अगर लड़े तो वो कोई सेलिब्रिटी नहीं है जो रातों रात फैंसला हो जाये। 15-20 साल लगते हैं फैंसला आने में तब तक तो अगली गरीबी ,भुखमरी और समाज से लड़ते लड़ते मर जाती है।या गलत धंधा अपनाना पड़ता है। बस दो ही रास्ते हैं। कई बार उन्हें लड़के के द्वारा बेच दिया जाता है।
लोग हीरो हीरोइनों के झांसे में आकर, नादान उम्र में बहक जाते हैं और गलत कदम उठा लेते हैं जो नासूर बन जाता है ।लड़कियां एड़ियां रगड़ रगड़ के मर जाती हैं। जो लोग उन्हें भागने के रास्ते बताते हैं , प्रेम विवाह करने के सपने दिखाते हैं, झुठा संसार गढ़ते हैं वो सेलिब्रिटी, मीडिया , कानून उनका जीवन जीने में कोई सहयोग नहीं करते। ये सिर्फ आग लगाना जानते हैं, बुझाना नहीं।
कई लड़के भी बर्बाद हो जाते हैं। हीरोइन जैसी दिखने वाली लड़की से आकर्षण के चक्कर मे प्यार-शादी कर लेते हैं। बाद में जब वो सचमुच हीरोइन निकलती है, काम ना करना, खाना ना बनाना , मेकअप के खर्चे, शाही रहन सहन के खर्चे आदि से तो, प्यार का बुखार उतर जाता है। लड़कीं सोचती है लड़का बैठा के खिलायेगा। जो पैसा लेके भागते हैं वो खत्म हो जाता है फिर जिंदगी से सामना होता है।रोजगार कोई है नहीं, घर से भाग ही गए। लड़कीं अगर अमीर घर की हुई और लड़का गरीब घर का तो फिर लड़के का बैंड बजाया जाता है।वो कहीं का नहीं रहता ना उसकी दोबारा शादी होती।
गाँव की शादियां जीवन भर चलती हैं।क्योंकि उनमें नाते-रिस्तेदार माँ बाप सब शामिल रहते हैं।लड़का लड़की शादी से पहले कई बार एक दूसरे को नहीं देखते है, कई मामलों में घर वालों की सहमति से देख लेते हैं।फिर भी सम्बद्ध अटूट है।प्यार का क्या है प्यार तो कभी भी हो सकता है।शादी के बाद भी।शादियां प्यार से नहीं समर्पण, त्याग, बड़े छोटो का डर- शर्म, समाज की इज्जत से चलती हैं।
बॉलीवुड वाले अच्छी तरह से एक दूसरे को समझने के बाद, लिव इन मे रहने के बाद, आर्थिक-शारीरिक रूप से समझने के बाद शादी करते हैं फिर भी साल दो साल पांच साल में शादी टूट जाती है।क्योंकि ये रिश्ते स्वार्थ पर टिके होते हैं।भोग पर टिके हैं।।कंभी दूसरा पसन्द आता है तो, कभी आर्थिक नुकसान हुआ तो छोड़ के भाग जाते हैं, कभी बीमार हुआ तो छोड़ के भाग जाते हैं।फिर भी अपनी संस्कृति को देश पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं।झूठा घमंड रिश्ते टूटने की प्रमुख वजह है।
अगर लोग माँ बाप के बगैर जी सकते हैं तो प्रेमी के बगैर भी जी सकते हैं।प्यार का क्या जिससे चाहोगे हो जाएगा, जब चाहोगे हो जाएगा।ये तो इंसान के हाथ मे ही है।
जब माँ बाप सालों तक साथ रह के औलाद को नहीं समझ पाते।औलाद बुढ़ापे में धक्का मार देती है।औलाद माँ बाप को नहीं समझ पाती।बच्चों को छोड़कर भाग जाते हैं , किसी बच्चे को कम किसी को ज्यादा देते हैं।भाई बहन आपस मे नहीं समझ पाते तो आप (प्रेमी) चार रात साथ गुजार के कितना समझ लोगे? इंसान वो हरामी है जो किसी को समझ मे नहीं आ सकता।
मीडिया और धनाढ्य वर्ग को ये समझना चाहिए कि उनके और गांव कस्बे के माहौल में, गरीब-मध्यम वर्ग और उनके जीवन मे जमीन आसमान का अंतर है। उच्च वर्ग की संस्कृति इन गरीबों पर लागू नहीं हो सकती। उच्च वर्ग तो बुढ़ापे में शादियां कर लेता है। ना शर्म है उन्हें, ना डर। अनाप शनाप पैसा और प्रोपर्टी है इसलिए उन्हें दिक्कत आती नहीं।
( बॉलीवुड ) --
हीरो हीरोइन तर्क देते हैं कि बोल्ड सीन कहानी की मांग थी।कहानी तो जैसे लिखोगे वैसे लिखी जाएगी।जैसे दिखओगे वैसे दिखाई जाएगी।पहले की फिल्मों में भी तो प्यार मोहब्बत दिखाया जाता था।कोई भी बोल्ड सीन ऐसा नही है जिसके बगैर कहानी पूरी न हो।या फ़िल्म में मज़ा ना आये।
तर्क दिया जाता है कि चुम्बन सीन या बोल्ड सीन देने में हर्ज़ क्या है।ये सब पर्दे पर दिया जाता है।असलियत में नही दिया जाता।पर्दे पर ही सही लेकिन ये सब होता तो असलियत में है।असली चुम्बन होता है।असली में पूरे शरीर को रगड़ा और चाटा जाता है।जब सारे शरीर की चाटा चाटी हो ही जाती है तो बचता क्या है।समाज में गन्दा असर पड़ता है।
सेंसर बोर्ड बोल्ड फ़िल्म को ए सर्टिफिकेट देकर बैठ जाता है।कौंन दर्शक फ़िल्म देखने से पहले सर्टिफिकेट देखता है।कौंन उसके बारे में बात करता है और कौंन उसे पढ़ता है।आधे से ज्यादा लोगों को तो सेंसर और सर्टिफिकेट का भी नहीं पता। मान लिया फ़िल्म टीवी पर आई हुई है किसी परिवार ने आकर टीवी चलाया सामने बोल्ड सीन दिखाई देता है।तो ऐसे केस में सर्टिफिकेट क्या करेगा।टीवी हम या बच्चे कभी भी किसी भी वक्त चला लेते हैं।फ़िल्म को कौंन सा सर्टिफिकेट मिला है वो सिर्फ फ़िल्म की शुरुवात में दिखाया जाता है।हमने टीवी खोला तब फ़िल्म का कुछ हिस्सा खत्म हो चुका था ऐसे केस में सर्टिफिकेट क्या करेगा।
एक गरीब औरत अपना जिस्म ढंकने की कोशिश करती है।अगर कुर्ता फटा हो तो टांका लगाकर या दूसरा कपड़ा जोड़कर अपना शरीर ढंकती है।लेकिन अमीर औरत अपना शरीर प्रदर्शित करती है।पूरा कपड़ा खरीदने के लिए पैसा है फिर भी नही खरीदती।अब इनमे से कौंन सी औरत समाज की आदर्श होनी चाहिए।और मीडिया किसे आदर्श बना कर पेश करता है ।किसके मीडिया साक्षात्कार लेता है किसकी बातें करता है।कभी किसी गरीब या किसान या मज़दूर का साक्षात्कार मीडिया ने लिया है?
समाज को ना मानने वाले बॉलीवुड कलाकारों के कई सामाजिक बुराइयोंं पर ट्वीट आते हैं।क्या ट्वीट करने से क्रांति आ जायेगी ।समाज सुधर जाएगा।क्या समाज में नंगापन फैलाने वाले इन लोगों को हक़ है ।इनका खुद का गिरेबान ही दलदल में धंसा हुआ है।किस मुंह से ये आवाज़ उठाते हैं।एक हरियाणवी कहावत है 'छाज तो बोलअ छालनी के बोलअ' ।सारी फसाद की जड़ यहीं हैं।वैसे इनको अपनी मर्जी से जीना है समाज से ,संस्कृति से ,सभ्यता से कोई मतलब नहीं।लेकिन फ़िल्म बेचने उसी समाज के बीच आएंगे।सामाजिक नियम इन्हें तुगलकी फरमान लगते हैं और अंडरवर्ल्ड के आदेशों का पालन करने में शर्म नहीं आती।वहां इनकी पेंट गीली हो जाती है।वहां ये सारे अधिकार भूल जाते हैं।हर कुकर्म करने के लिए तैयार हो जाते हैं।फिल्में हासिल करने के लिए किसी भी हद तक गिर जाते हैं।फिल्मों में गोबर पाथना मजेदार लगता है।वैसे नाक भौं सिकोड़ते हैं।कोई भी ऐसी फिल्म, टीवी सीरियल, रियल्टी शो ऐसा नहीं है जिसमे नंगापन नहीं।असल जिंदगी में भी नङ्गे घूमते हैं।ना इनके माँ बाप को शर्म आती अपनी जवान बेटी को नँग धड़ंग देखकर , किसी गैर मर्द की बाहों में देखकर।ना इन बच्चों को शर्म आती।
पूरे देश का चरित्र खराब कर दिया इन्होंने।आज लक्ज़री जिंदगी जीने के लिए लोग अपहरण , हत्या, लूट, बलात्कार में लिप्त हो चुके हैं।कहीं पर भी धार्मिक ,संस्कारी फिल्में,सीरियल या मंचन नहीं होते।स्कूलों से भी धार्मिक किताबे गायब हो गयी हैं।बॉलीवुड के चरित्रहीन लोगो को देश का आदर्श बताया जाता है।इन लपंटो को राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया जाता है।क्या मैसेज दे रहे हैं हम?
क्या देश के लिए, इंसानियत के लिए इनका कोई फर्ज नहीं? क्या ये नंगापन नहीं छोड़ सकते।देश ने इन्हें सिर आँखों पर बिठाया है तो क्या ये देश को सिर्फ एक अच्छा चरित्र नहीं दे सकते।
आप अपनी बेटियों को बोटियों की तरह परोसते हो।भोग की वस्तु बनाकर पेश करते हो।जनता से अपील करते हो कि ज्यादा से ज्यादा वो उन्हें देखे।फिर बोलते हो कि जनता की नजरें गलत हैं।शर्म नहीं आती आपको आपकी बेटियां अपना जिस्म दिखाती घूमती हैं।उस नग्न शरीर की कमाई खाते हैं आप लोग।इनसे तो वैस्यायें अच्छी जो मजबूरी में गलत धंधे करती हैं।
एक कहावत थी कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है माता कुमाता नहीं हो सकती।लेकिन तुम लोगों ने उसे भी कुमाता बना दिया।चरित्रहीनता पर तर्क देती हैं कि जब लड़के करते हैं तो हम क्यों नहीं? कोई खून करेगा तो आप भी करोगे? कोई बलात्कार करेगा तो आप बलात्कार करोगे? कोई चोरी डकैती करेगा तो आप चोरी डकैती करोगे? लड़के तो गटर भी साफ करते हैं, मैला भी ढोते हैं ।तो आप क्यों नहीं गटर साफ करते, मैला ढोते? चौधर चाहिए तो गटर में भी उतरो।कहीं बन्दिशें नहीं हैं लेकिन आप लोग जिस तरह से पेश करते हो वो बहुत ही निंदनीय है।
दुनिया भर के कुकर्म होते है बॉलीवुड में , मीडिया घरों में या हाई सोसाइटी में लेकिन ये बाहर नहीं आने देते।खुद के मामले ये अपनी एसोसिएशन- कमेटियों में सुलझा लेते हैं।बलात्कार खून तक के मामले निपटा लिए जाते हैं।कहीं अदालतों में, पुलिस में नहीं जाते।पैसा,काम का बहिष्कार, ऐश की जिंदगी,डरा धमकाकर, लोभ देकर सब कुछ सेट कर लेते हैं और पंचायतों पर उंगली उठाते हैं।वो बेचारे गरीब लोग अगर फ्री में अपने मामले सुलझा रहे हैं तो सबको तकलीफ होती है।सविधान खतरे में आ जाता है।पुलिस और कोर्ट में जाएंगे तो जायज और नाज़ायज़ सब खर्चे होंगे। 5-10 साल बाद कोई फैंसला आएगा।मानसिक परेशानी होगी।वो पेट की आग बुझाए या अदालतों के चक्कर मे पड़े।दुर्भाग्य है कि मुकेश अंबानी और अमीर लोगों को कोर्ट बोलती है कि आपस मे ही अपने मामले सुलझा लो क्यों कोर्ट में आते हो और गरीब लोगों को घसीट घसीट कर लाया जाता है।लाखों लोग भूखे सो रहे हैं।पूरा दिन पेट पकड़ के घूमते हैं।और आपको मानहानि, नग्नता, मेकअप, आज़ादी, स्पेस, गर्ल फ्रेंड, बॉयफ्रेंड , असहिष्णुता, सेक्युलर,जन्मदिन, किटी पार्टी, बैचलर पार्टी, एनीवर्सरी की पड़ी है।
फिल्म वालों-मीडिया को घर बर्बाद करवाने से मतलब है। घर बसाने कोई नहीं जाता। लड़का लड़की भागते हैं तो दो घर बर्बाद होते हैं।शादी टूटती है तो दो घर बर्बाद होते हैं।बॉयफ्रेंड की लात घुसे गाली सब खाती हैं तब इनके आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचती।लेकिन पति, सास ,ससुर यहां तक कि माँ बाप की छोटी छोटी बातों से इन्हें दिक्कत हो जाती है।
इसी तरह मर्दो को कोई ऐसी बदमाश गर्ल फ्रेंड मिलती है जो पूरी तरह लूट लेती है।अच्छा खासा शोषण करती है लेकिन ये भीगी बिल्ली बन के रहते हैं।और अपनी सीधी सादी पत्नी को मारते पीटते हैं।कइयों के साथ तो जुल्म की सारी सीमाएं लांघ दी जाती हैं।जरूरत है सयंम बरतने की अपने घर को चलाने की।मीडिया और बॉलीवुड वाले हाई सोसाइटी के लोग हैं इनका कुछ नहीं बिगड़ना।लेकिन आपका घर एक बार टूटा तो दोबारा नहीं जुड़ेगा।
दो चार हज़ार लोग हैं बॉलीवुड वाले लेकिन पूरे देश की संस्कृति बदल दी।इन पर कोई कार्रवाई नहीं होती है।धर्म , देश, संस्कृति, साधु महात्माओं सब के खिलाफ भोंकते हैं।मज़ाक उड़ाते हैं लेकिन इनके लिए सविधान कुछ और है।आम लोगो के लिए कुछ और।ये तुरन्त कानून बनवा लेते हैं, बदलवा लेते हैं।मीडिया, न्यायालय, सरकार सब इनकी पिछलग्गू बनी हुई है।करोड़ो ग्रामीण आम लोग अपनी मांग रखते हैं तो उन्हें सिर्फ लठ मिलते हैं।कोई नहीं सुनता उनकी।
नंगा घूमना, शराब पीना, रात रात भर बार मे जाना, धूम्रपान, खुला सेक्स क्या यही आज़ादी है ,क्या यही महिला सशक्तिकरण है।बाप, भाई के सामने बिना कपड़ों के जाती हैं और उन्हें कोई शर्म नहीं आती।जवान लड़की पूरा जिस्म दिखा रही है।घर वालों को पता रहता है किस होटल में, किस कमरे में , किसके साथ क्या कर रहे हैं।लेकिन फिर भी घर वाले चैन की नींद सोते हैं।कोई फर्क नहीं पड़ता उन्हें, उनकी इज्जत कहाँ तार तार हो रही है।क्योंकि इन्हें सिर्फ पैसा प्यारा है, पैसा ही इज्जत है। एक आम आदमी के रूप में आप सोच के देखो ये सब। एक तस्वीर आई थी भाई बहन (सैफ और सोहा अली खान) एक साथ अपने पार्टनर के साथ नहा रहे हैं।
जब देश मे कोई अच्छा फैंसला होता है तो ये देशद्रोही उसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं।आग उगलते हैं।नेता या समाज सुधारक इनकी जीवन शैली पर कटाक्ष करता है तो मीडिया और बॉलीवुड दोनों जीना दूभर कर देते हैं।असहिष्णुता, आज़ादी की बाते करते हैं।सविधान को खतरा बताते हैं ।सविधान में नँगा होने की आज़ादी नहीं है।संविधान निर्माताओं ने ये नहीं सोचा था कि बॉलीवुड आज़ादी का मतलब नंगा होना मान लेगा।उस वक्त देशभक्ति, धार्मिक फिल्में, गीत, नाटक बनते थे।सिनेमा समाज को अच्छा नागरिक बनाने का संदेश देता है।भोंडापन दिखाने का नहीं।
बॉलीवुड नशे का कारोबार करता है।इनकी पार्टी में खूब नशा चलता है.खरीदना, बेचना, पीना आदि।नशा उन्हें अंडरवर्ल्ड ही सप्लाई करता होगा।फिल्मों में अंडरवर्ल्ड का पैसा लगता है।कौन सी फ़िल्म में कौन काम करेगा ये अंडरवर्ल्ड निर्णय लेता है।अंडरवर्ल्ड वाले बॉलीवुड से हफ्ता वसूलते हैं, फिल्मों की कमाई में हिस्सा लेते हैं।यही पैसा आगे आतंकवादियों तक पहुंचता है।अपने घरेलू या ऑफिसियल समारोह में बॉलीवुड वालों को निशुल्क नचवाते हैं।लेकिन किसी भी हीरो हीरोइन की हिम्मत नहीं होती आवाज़ उठाने की।अंडरवर्ल्ड इन्हें असहिष्णु ,घातक, कमीना, गुलाम बनाने वाला नहीं लगता।वहां ये आज़ादी के नारे नहीं लगाते ।उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं करवाते।सिर्फ देश और हिंदुत्व के खिलाफ ही बोलते हैं।हिन्दू संस्कृति को बदनाम करने की जो फिल्में ये बनाते हैं वो भी इनसे अंडरवर्ल्ड ही बनवाता है।मजाल है पूरी इंडस्ट्री में से किसी की भी जुबान हिलती हो।
ऐसा कोई कुकर्म नहीं है जो बॉलीवुड में ना होता हो।लेकिन पैसे के दम पर सब दबा रहता है।
गुलशन कुमार जैसे भक्त और भले आदमी को बॉलीवुड वालों ने ही मरवाया।सबको पता है उनको क्यों,किसके इशारे पर और किसने मारा लेकिन कोई भी माई का लाल सामने नहीं आया।बड़े हीरो बने फिरते हैं,फिल्मों में जुल्म से लड़ते हैं और हकीकत में अंडरवर्ल्ड के तलवे चाटते हैं।
अंडरवर्ल्ड के आगे तो ये भीगी बिल्ली बन जाते हैं।टैक्स नहीं भरेंगे लेकिन उन्हें हफ्ता पहुंचाते हैं।उनके समारोह में नाचते हैं।उनकी गालियां खाते हैं।उनके पैर पकड़ते हैं।उनका हर हुक्म मानते हैं।लेकिन देश कुछ बोल दे तो इनकी आज़ादी खतरे में आ जाती है।देश के नियम कानून नहीं मानेंगे।देश से बड़ा इनको अंडरवर्ल्ड है।देश से बड़ी इनको अपनी रंग रलियां लगती हैं।देशभक्ति सिर्फ सैनिकों का काम नहीं है। या सिर्फ सीमा पर लड़ कर ही देशभक्ति नहीं दिखाई जाती।
उसकी सभ्यता संस्कृति की रक्षा करना भी देश भक्ति है।देश की इज्जत को नीलाम ना करना भी देश भक्ति है।सैनिक तो अपना फर्ज निभा रहे हैं।वो देश के लिए जान तक दे देते हैं।भाषण देने और जान देने में बहुत फर्क हैं।उनका भी मन करता है परिवार के साथ रहने का, उनकी भी इच्छा होती है जीने की।एक शहीद के साथ पूरा परिवार शहीद हो जाता है।देश के लिए हम अपनी रंग रलियां नही छोड़ सकते ।उसकी भाषा, संस्कृति को नहीं अपना सकते।शर्म से डूब मरने की बात है।एक अभिनेता फ़िल्म पर बैन लगने पर देश छोड़ने की धमकी देता है।एक जज देश छोड़ने की बात करता है।यकीन मानिए जिस दिन देश पर, अपने हिंदुत्व पर खतरा आएगा उस दिन मीडिया, जज, अभिनेता, सेक्युलर नेता,अधिकारी सबसे पहले देश छोड़ कर भागेंगे ।आज सहिष्णुता और भाईचारे की बात करने वाले उस वक्त दिखाई भी नहीं देंगे।इन्होंने विदेश में अपने ठिकाने बना रखे हैं ।हमारा और आपका क्या होगा।
एक बार इनकी फिल्में, ग़लत सीरियल,रियल्टी शौ देखना छोड़ दो।ये आज़ादी की बात करने वाले सिर से पावँ तक कपड़े पहन के नज़र आएंगे।असहिष्णुता , देश विरोधी गतिविधयां और आज़ादी की बातें छोड़ देंगे।पैर पकड़ेंगे आपके।तब इन्हें पता चलेगा समाज क्या है? 100 करोड़ हो अपनी ताकत को पहचानों।गलत कामों के लिए तोड़ फोड़ मचा देते हो।सही काम के लिए इक्कठे नहीं होते।कानून, सविधान आपके हिसाब से बनेंगे।लोग हैं तो सविधान है।लोग ही नहीं होंगे तो सविधान का क्या बनेगा? समलैंगिगता वैध हो जाती है, व्यभिचार वैध हो जाता है जबकि उसके पक्ष में गिने चुने लोग हैं।आपकी भाईचारा पंचायतों , खाप पंचायतों को तुगलकी बताया जाता है।जबकि इनका अस्तित्व सविधान से कई हज़ार साल पहले से है। 100 करोड़ लोगों के धर्म को गाली देते हैं लोग लेकिन कानून कुछ नहीं करता।आपकी भाषा , आपका धर्म लुप्त होता जा रहा है।स्कूल में उन्हें पढ़ाया नहीं जाता।गुरुकुल व्यवस्था खत्म कर दी।आप सोची समझी साजिश के शिकार हो।आपको खत्म करने का प्लान है।
पैसे के लिए कितना गिरोगे ।निर्माता निर्देशक बॉस के कहने पर गन्दे से गन्दा काम करने के लिए तैयार हो जाते हो।चैलेंजिंग के नाम पर गोबर भी खा जाते हो।इन्ही के नक़्शे कदम पर बाकी समाज चलने लग गया है।घर, समाज, माँ-बाप, पति, पत्नी कुछ अच्छा अपनाने के लिए बोलते हैं तो उन्हें दुत्कार देते हो।
जो सुंदर होता है उसे मेकअप की जरूरत नहीं होती।लेकिन हीरो हीरोइन दुनियाभर का मेकअप करके आते हैं।कुछ महानुभाव तो ऐसे हैं जो मेकअप के बाद भी कौवे लगते हैं।कोई झूठ मुठ ही इनकी अगर तारीफ कर दे तो ये अपने आप को नगीने समझने लगते हैं।आदमी को खुद ही पता होता है वो कितना सुंदर या कितने पानी मे है तो फिर फालतू का भ्रम क्यों पालना।इन्हीं को देख कर जनता का हाल भी ऐसे ही हो गया है।एक तो पैसा खर्च, फिर शरीर भी खराब होता है ।खाने को दाने नहीं लेकिन आशिकी जरूरी है।एक तो पैदा ही मरे हुए होते हैं, ना शक्ल, ना शरीर, ना बाल ऊपर से मेकअप करके बंदर लगते हैं . खुले बाल, बड़े बाल, भिंची हुई पेंट, भिंची हुई टीशर्ट पहन के फुकरे लगते हैं।इनको गोली मारने का मन करता है।अगर मैं तानाशाह होता या आज राजतंत्र होता तो इन्हें बहुत बुरी तरह पिटता।इतना खर्च ये दिखावे में करते हैं उतना अगर अच्छा खाने में करें तो इनका कुपोषण दूर हो जाये।
मीडिया वाले बिकनी वाली हीरोइनों को रोल मॉडल , सम्मानित , सभ्यता-संस्कृति की देवी बना के पेश करते हैं।सारा दिन उन्ही की खबर।कभी हॉट, कभी सेक्सी, कभी कुल , औरत को क्या बनाना चाह रहे समझ नहीं आ रहा।करोड़ो महिलाएं हैं जो घरेलू महिला है,स्वयं सहायता समूह चलाती है, पशुओं को पालती है, अन्य अच्छे अच्छे काम करके खुद का और देश का विकास करती हैं।गरीबों का सहारा हैं।करोड़ो घरों की रीढ़ की हड्डी हैं।साथ मे हमारी सभ्यता और संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं।उनके बारे में नेशनल मीडिया में कभी कुछ नहीं आता।मीडिया ने सोच लिया देश मे नँगा नाच करना है।राष्ट्रीय अवार्ड, राष्ट्रीय सम्मान, पदम् भूषण, भारत रत्न, पदम् विभूषण इन हीरो हीरोइनों को नहीं बल्कि जो वास्तव में इसके हकदार हैं ऐसी महिलाओं को ,ऐसे पुरुषों को, साधु संतों को मिलने चाहिए।
चार ठुमके मार के, अश्लीलता फैला के, समाज को गंदा करके ये सम्मान ले जाते हैं।किसलिए उन्हें सम्मानित किया जाता है।ऐसा कौन सा देश भक्ति या सभ्यता संस्कृति को बचाने का काम किया है इन्होंने।इनको सम्मानित करना उस सम्मान की, देश की बेइज्जती करना है।क्या कला ऐसी होती है? कला को सम्मानित करना है तो हमारी और बहुत सी लोक कला की विभूतियां हैं, जिनकी कला में हमारी संस्कृति झलकती है उन्हें सम्मानित और प्रोत्साहित करो।
नँगा होना, अश्लीलता फैलाना, भद्दे गाने बनाना, अन्तरंगी सीन करना कौन सी कला है? सविधान निर्माता या अवार्ड के नियम बनाने वालों ने इस कला के बारे में सपने में भी नहीं सोचा होगा।उस वक्त देश भक्ति की फिल्में, देश भक्ति गाने, सांस्कृतिक फिल्में बनती थी।डर है कहीं कुछ दिन के बाद पोर्न स्टारों को भी ये अवार्ड ना मिलने लगे। बॉलीवुड ही पोर्न फिल्मों के लेवल तक पहुंच चुका।सारे लेवल पार कर लिए हैं।एक लेवल बचा है वो भी बहुत जल्द पार कर जाएंगे।ये पैसे के लिए किसी हद तक भी जा सकते हैं।ये तो इन्टरव्यू में खुद बोलते हैं पैसे के लिए कुछ भी कर लेंगे।इन्हें देश, धर्म ,जाति से कोई मतलब नहीं है।
रुमा देवी, अलोला दिव्या रेड्डी, हरसिमरत कौर, हरियाणा पंजाब की विधायक-नेता सार्वजनिक हस्ती हैं।अच्छे काम किये हैं वो भी अपनी संस्कृति को अपनाते हुए।हमेशा सिर पर पल्लू, चुंदड़ी रहती हैं सलवार सूट साड़ी पहनती हैं।मर्यादा में रहती हैं।हरियाणा की नेता तो पर्दा करके भाषण देती हैं, पंचायतों में , मीटिंग में शामिल होती हैं।और भी हमारी विधायक, सांसद , नेता हैं जो हमारा लोक पहनावा अपनाए हुए हैं।सोनिया गांधी विदेश से आकर साड़ी में रहती हैं।कई विदेशी महिलाएं जिन्होंने यहां शादी की या जो साधु सन्यासी बनी उन्होंने हमारा पहनावा अपनाया।क्यों उन्हें सम्मानित नहीं किया जाता? जो हरियाणा के लोक कलाकार है वो भी स्टेज पर पल्लू, सलवार सूट के साथ आती हैं।क्या ये महिलाएं सम्मानित नहीं हैं?इनको आदर्श, रोल मॉडल क्यो नही बनाया जाता?शहरी महिलाएं इन्हें फॉलो क्यों नहीं करती? इनको राष्ट्रीय सम्मान क्यों नहीं मिलते हैं? आधुनिक दिखने के चक्कर मे हम ऐसे कपड़े पहनते हैं की इंसान कम कार्टून ज्यादा लगते हैं।ऐसा खाते हैं कि सिर्फ हड्डियां ही हड्डियां रह गई।हड्डियां दिखा के बोलते हैं कि हम सेक्सी हैं। क्या ये मान लिया जाए कि जो जितना बड़ा जार होगा, जितना बड़ा चरित्रहीन होगा, जितना बड़ा अश्लील होगा उसे उतना बड़ा सम्मान मिलेगा।मीडिया के लिए वो आदर्श इंसान होगा।क्यों कंभी किसी साधु महात्मा को, समाज सुधारक को, महापुरुष को भारत रत्न, पद्म भूषण, पदम् विभूषण के सम्मान नहीं मिले? पैसे के लिए किसी भी हद तक गिर जाते हैं और इन्हें ही सरकार सम्मानित करती है।फिर वैस्याओँ ने क्या गलती की है उन्हें भी राष्ट्रीय सम्मान दो।कुछ तो बेचारी मजबूरी में वैस्या का काम करने पर विवश हैं।वैसे भी सुप्रीम कोर्ट ने चरित्रहीनता को जायज कर दिया है।समलैंगिगता को जायज कर दिया है।पक्का ये अपने घर की भड़ास निकाली गई है।अपने घर मे नहीं रोक सकते तो बोला पूरे देश पर थोप दो।किसान, जवान, मजदूर, उधमी को पद्मश्री, पदम् भूषण, पदम् विभूषण, भारत रत्न क्यों नहीं मिलते? जबकि देश इनके कंधों पर खड़ा है।
हीरो हीरोइनों को स्वच्छ भारत अभियान का ब्रांड अम्बेसडर बनाना उन लाखों सफाई कर्मियों का अपमान है जो गटर साफ करते हैं, मैला उठाते हैं, गलियां और सड़के साफ करते हैं, जो घर- ऑफिस -अस्पताल साफ करते हैं।जो गौ शाला या घर में पशुओं की शालाएं साफ करते हैं।
इनके खुद के घर की सफाई तो कोई और करता है। अपने बच्चों की टट्टी इनसे साफ होती नहीं ये क्या देश की सफाई करेंगे।खुद के चूतड़ तक इनसे धुलते नहीं हैं टॉयलेट पेपर यूज करते हैं, और ये देश की सफाई करेंगे।
आप किसे, क्यों और किसलिए अपना जिस्म दिखाना चाहती हैं।इसका जवाब दे दीजिए।आप जिस्म दिखाकर लड़कों को अपनी और आकर्षित करना चाहती हैं।अगर वो आकर्षित हो जाते हैं तो फिर बोलती हैं कि उनकी सोच गलत है।पहले आप अपनी सोच और अपना चाल चलन तो सही करो।कोई अगर हॉट, सेक्सी बोल देता है तो आप उसे पदवी मान लेती हैं, आपको वो अपनी प्रशंसा लगती है।इससे क्या संदेश मिल रहा है लोगों को कि लड़की छेड़ना सही है।
दंगल फ़िल्म एक सच्ची और प्रेरक कहानी पर आधारित है।लेकिन आमिर खान और बाकी ऐसे लोग एक एजेंडे के तहत काम कर रहे है।पहलवानों को मांस खाता दिखाया जा रहा है।ये मांस इंडस्ट्री को बढ़ावा दे रहा है।जानवरों पर अत्याचार को जायज कर रहा है।हरियाणा में मांस खाते नहीं है।महिलाएं तो आज भी नहीं खाती, घर में मांस आ नहीं सकता।फ़िल्म के हीरो महावीर जी के जमाने मे तो बिल्कुल भी नहीं था।कैसे ये एंगल दिखाया है।
पीके फ़िल्म में भी हिंदुओं पर कटाक्ष किये गए हैं।बिग बॉस में भी बाबाओं को लपण्टी दिखाया है।सेक्स , अश्लीलता और लुचेपन कि हद कर दी।सीधे सीधे घरों में अनजान लड़का लड़की टीवी पर बिस्तर सांझा करते दिखाये।गलती हमारी है जो हम इन्हें देखते हैं, बढ़ावा देते हैं।
सालों से हिन्दू को धर्म से विमुख किया जा रहा है।हमेशा फ़िल्म में पंडित को ठग, डाकू दिखाया जाता है।मुल्ले-मौलवियों को सच्चा, ईमानदार, धर्म रक्षक दिखाया जाता है।हिन्दू धार्मिक मान्यताओं को कर्मकांड दिखाया जाता है।क्या इससे बड़ा झूठ कोई है।कितने ही बलात्कारी, छोटी छोटी बच्चियों को छेड़ते हुए मौलानाओं के वीडियो आते हैं।फिल्मों में अश्लीलता और नग्नता और सेक्स का खेल दिखा कर देश को सेक्स और वासना की आग में झोंका जा रहा है।इनका मकसद साफ है हिन्दू को खत्म करना।उनकी धर्म, संस्कृति को खत्म करना।इसके लिए इन्हें पैसा मिलता है।और ये अपने धर्म के लिए भी रास्ता साफ कर रहे हैं।इनका मकसद है हिन्दू धर्म को खोखला करके खत्म करना, बच्चों को वासना के सौदागर, बलात्कारी, अय्याश, मुजरिम बनाना, लड़कियों को लव जिहाद का शिकार बनाना, पैसे का पुजारी बनाना ताकि देश- धर्म से भी गद्दारी कर जाएं और धीरे धीरे हिन्दुओ का पतन हो जाये।वो लड़ने, समझने के काबिल ही ना रहे।जितनी भी हीरोइन हैं लगभग सभी पैसे के लालच में मुस्लिमों से शादी करती हैं ।हिरोइनों को देखकर आम लड़कियां भी मुस्लिमों के जाल में फंसती जा रही हैं।लव जिहाद एक बड़ा षड्यंत्र बनता जा रहा है।हिन्दुओ की कब्र खोदता जा रहा है और बॉलीवुड उसमें निर्णायक भूमिका निभा रहा है।लव जिहाद की मूल जड़ बॉलीवुड है।सभी हीरो भी मुस्लिम होते जा रहे है ।पहले भी मुस्लिम हीरो हीरोइन थी।पुराने जमाने में भी हिन्दू हीरोइन मुस्लिम हीरो से शादियां करती थी।फिल्मों में हिन्दुओ को कमीने, पंडितों को लुटेरे दिखाया जाता था।लेकिन मुस्लिम हीरो हीरोइन
हिन्दू नाम से अपना परिचय करवाते थे ।लोगों को पता ही नहीं चलता था कि जो उनके धर्म का मजाक उड़ा रहे हैं वो मुस्लिम है।या ये साजिशें कोई मुस्लिम करवा रहा है।अंडरवर्ल्ड बॉलीवुड को चलाता था , आज भी चलाता है।
बॉलीवुड पूरी तरह से मुस्लिम रंग में रंग चुका।आधे मुस्लिम हो चुके हैं।हिन्दू हीरोइन मुस्लिमों से शादी करके मुस्लिम बन रही हैं।कुछ बचे हैं तो उनके भी नाते रिस्तेदार मुस्लिम हो चुके हैं।हिन्दू नाम की चीज उनमें बची नहीं है।खून-जीन्स आपस मे मिक्स हो चुके हैं।मुस्लिमों के इशारों पर नाचना पड़ता है।कंभी अंडरवर्ल्ड कंट्रोल करता है, कभी सलमान-शाहरुख-आमिर कंट्रोल करते हैं।
बचे हुए हिंदुओं को आज़ादी, बोलने की आज़ादी, सहिष्णुता के नाम पर हिन्दुओ के खिलाफ किया जाता है। पैसे देकर, फिल्मों में पैसा लगाकर या धमकी देकर मुस्लिम उन्हें अपने साथ मिला लेते हैं।और ये समझ ही नही पाते क्या कुकर्म करने जा रहे हैं, इसका क्या असर होगा।ताज्जुब की बात है हिन्दू सेलिब्रिटी हिन्दू धर्म के खिलाफ ही बोलते हैं , फिल्में-शो बनाते हैं और मुस्लिम या ईसाई धर्म के खिलाफ चुप रहते हैं लेकिन मुस्लिम सेलिब्रिटी अपने धर्म का हमेशा पक्ष लेते हैं।अनुष्का-एकता जैसी पाताललोक- ट्रिपल एक्स सीरीज से हमारे धर्म का और फौजियों का अपमान करती हैं।एकता ने ऐसे वक्त पर फौजियों का अपमान किया जब देश चीन-पाक से युद्ध की तैयारी में लगा था।इससे ये जाहिर होता है कि एकता के पीछे कोई और है।कोई साजिश है हमारे फौजियों का हौंसला तोड़ने की ताकि वो युद्ध हारें।क्या ऐसी मानसिकता के लोग राष्ट्रीय सम्मान होने चाहिए।क्या ऐसी मानसिकता वाले बॉलीवुड को प्रतिबंधित नहीं करना चाहिए।
निचोड़ ये है लड़कियों को लव जिहाद करके मुस्लिम बना लो, लड़को को अय्याश, धर्म विरोधी बनाकर खत्म कर दो।गद्दार बनाकर देश के खिलाफ खड़ा कर दो। जेएनयू, एएमयू, जामिया जैसे देशद्रोही आंदोलनों को समर्थन देकर सामूहिक हत्याकांड करवा दो। सी ए ए जैसे विरोध प्रदर्शन करके अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल कर लो।धीरे धीरे देश मुस्लिम बन जायेगा।
एक शक्तिशाली,अमीर और प्रसिद्ध इंडस्ट्री को कब्जे में लेकर ये देश को पूरी तरह से अपने तरीके से चलाएंगे।
अगर ये हमारा बहम है, इसमें कोई साजिश नहीं है, बॉलीवुड देशभक्त है, तो क्या कारण है खतना , हलाला, तीन तलाक, मुस्लिम महिलाओं का मस्जिद में बैन, बहु विवाह , अनियंत्रित बच्चे उत्पन्न करने के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठती, कोई फ़िल्म नहीं बनती, कोई शो नहीं बनता।आमिर, सलमान, शाहरुख , नसीरुद्दीन बड़ी बड़ी बातें करने वाले इस्लाम की कुरीतियों के बारे में नहीं बोलते।आतंकवादियों, उन्हें पनाह देने वाले गद्दारों के बारे में नहीं बोलते। कश्मीर के हिंदुओं के पलायन, मेवात से पलायन, बंगाल , केरल से पलायन,दिल्ली-उत्तरप्रदेश से पलायन, मुस्लिम बहुल क्षेत्रो में महिलाओं के सामूहिक बलात्कार, धर्मान्तरण, सामूहिक हत्याएं, जमीनों पर कब्जे , शादी के मंडपो से उठाई जा रही लड़कियों, गौ हत्याओं पर क्यों नहीं बोलते या फ़िल्म बनाते।
कौन बनेगा करोड़पति में अमिताभ एक हिन्दू ग्रामीण महिला को सिर पर चुन्नी रखने के लिए बेइज्जत करते हैं बोलते हैं ये पिछड़ों की निशानी है।क्या उनकी माँ पिछड़ी हुई महिला थी।क्या माता सीता, माता अनसुइया, अहिल्या बाई होल्कर जी, झांसी की रानी जी, रानी कर्णावती जी, रानी पद्मावती जी पिछड़ी थी।क्या आज की नारी रूमा देवी जी और हरसिमरत कौर जी पिछड़ी हुई हैं।इनसे ज्यादा सम्मानित और प्रसिद्ध पूरे बॉलीवुड या अमिताभ के परिवार में कोई है।इनके अलावा सोनिया गांधी विदेशी होकर हमारा पहनावा पहनती हैं, मेनका गांधी- ममता बनर्जी और मथुरा-बनारस-अयोध्या में बहुत सी विदेशी-आधुनिक नारियां हिन्दू बनके भारतीयता में रम गई हैं।क्या ये महिलाएं अमिताभ को दिखाई नहीं देती।लाखों ग्रामीण-आम महिलाओं का अपमान करते हैं।वहीं दुसरी और एक मुस्लिम महिला हिजाब- बुर्के में आती है तो उनका सम्मान करते हैं ।उनको इज्जतदार और धार्मिक बताते हैं।
ये छोटी छोटी बातें लगती हैं लेकिन इनके मतलब , इनका असर बहुत गहराई तक होता है।पूरा हिन्दू समाज तोड़ने की, उनकी सँस्कृति-परंपराओं को खत्म करने की गहरी साजिश का हिस्सा हैं ये लोग।
( राजनीति ) --
लालू प्रसाद यादव के 15 साल के शासन में बिहार में हत्या,अपहरण,फिरौती,रंगदारी,बलात्कार आम बात हो गई थी।सारे उद्योग धंदे बन्द हो गए थे।दिन दहाड़े गोलियां चलती थी।पांच बजे के बाद शहर बन्द हो जाता था।पटना में राजेंद्र नगर टर्मिनल से जंक्शन तक रोज कोई न कोई ट्रेन लूट ली जाती थी।सड़के हकीकत में बनती नही थी लेकिन पेपर में बना दी जाती थी।सारा पैसा आपस मे बांट लिया जाता था।हर पांच सात किलोमीटर पर ट्रक वालो से रंगदारी पैसा वसूल किया जाता था।पंद्रह साल में बिहार 100 साल पीछे चला गया।लालू ने सिर्फ बूथ लुटवा कर जीत हासिल की।सरे आम बूथ लुटे जाते थे।गांव में अनाउंस कर दिया जाता था कि कोई वोट डालने नही जाएगा।एक आदमी सब के वोट डाल देता था।सारी पार्टियां लोकल गुंडों को बूथ लूटने का ठेका देती थी।लेकिन लालू का राज था इसलिए बाज़ी लालू की पार्टी मार ले जाती थी।अखबारों में भी बॉक्स लेकर भागते हुए लोगो की तस्वीरें छपती थी।मैं भी उस वक्त बिहार में था।मैंने भी वो हाल देखा था।मैं गांव में भी गया था।एक गांव के सरपंच ने बताया कि हम लोकसभा या विधानसभा किसी भी चुनाव में वोट नही डालते हैं।चार पांच लोग बूथ पर कब्ज़ा कर लेते हैं और सबके वोट डाल देते हैं।भल्ला हो के.जे.राव जी का जिसने 2005 में साफ सुथरे चुनाव करवाये और इस गुंडाराज से मुक्ति दिलाई।एक आदमी क्या कर सकता है कैसे अधिकारियों से काम करवा सकता है ये उस आदमी ने दिखा दिया।दिन रात उसने एक कर दिए।कहीं भी शिकायत मिली तुरन्त एक्शन लिया गया।
शहाबुदीन ने एक बार कई विधायको को कैद करके लालू की सरकार बनवाई थी।किसी ने उस सरकार को बर्खास्त नही किया।किसी ने आपराधिक मुकदमा नही चलाया।किसी माननीय विधायक ने आवाज़ नही उठाई।
भागलपुर और कहलगांव के बीच मे राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक टेम्परेरी पुल था।जिसे पीपा पुल बोलते थे।वो पुल एक विधायक ने बना रखा था।जिसका हर साल उसे लाखों रुपया ठेके का मिलता था।पुल ऐसा था कि नीचे लोहे के ड्रम उसके ऊपर लोहे के चकोर पत्रे डाल रखे थे जिस पर से हल्के वाहन गुजर सकते थे।हर वाहन से गुजरने का पैसा लिया जाता था।बड़े वाहन कई किलोमीटर दूर से चक्र काटकर कहलगांव जाते थे।या कहलगांव से भागलपुर आते थे।टेम्परेरी पुल के बगल से पक्का पुल बन रहा था जिसे उस विधायक ने सालों तक नही बनने दिया।
जैसे ही भाजपा और जदयू की सरकार बनी सारे गुंडे साफ सुथरे काम करने लगे ।बड़े गुंडे जो विधायक भी थे जेल में डाल दिये गए।जिस तरह रंगदारी,अपहरण रातो रात बन्द हुए उससे साफ जाहिर है कौंन इनके पीछे था।लेकिन देश की किसी भी संस्था में उसे सजा देने की हिम्मत नही हुई।
जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री थी, जब उन्हें भ्रष्टाचार के केस में सजा हुई तो तमिलनाडु के सारे स्कूल,कॉलेज,दुकान और आफिस सब बंद बंद करके हड़ताल पर चले गए।ये लोग वही हैं जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की कसमे खाते हैं।जिन पर अच्छी शिक्षा की जिम्मेदारी है।ये लोग पता नही क्या साबित करना चाहते थे।समाज मे क्या संदेश गया होगा।ऐसे कैसे भ्रष्टाचार खत्म होगा।बाद में जयललिता को ऊपरी अदालत ने ये कह कर बरी कर दिया कि कोई केस नही बनता।क्या निचली अदालत पागल थी जो सजा दे दी।दोनों में से एक जज तो कसूरवार है।इसमें बड़ा गोलमाल हुआ है।लेकिन कोई आवाज़ नही उठा सकता।इसी तरह साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित तथा डी जी बंजारा के केस हैं।जिनमे जजो की भूमिका संदिग्ध है।एक दो केस में अदालते सही और कड़े फैंसले दे देती हैं तो मीडिया खूब चर्चा करता है कि देश को सिर्फ अदालतें ही चला रही हैं।एक दो केस वहां नज़ीर नही बन सकते जहां करोड़ो केस अधूरे पड़े हैं।करोड़ो लोग रोज़ तिल तिल मर रहे हैं।
लालू को चारा घोटाले में सजा मिली लेकिन वो जमानत पर छूट गए।ऐसे ही नवजोत सिंह सिध्दू को भी गैर इरादतन हत्या में सजा हुई लेकिन वो जेल नही गए।जमानत पर बाहर ही रहे।क्या एक आम आदमी को भी ऐसी सुविधा मिलती है।लालू ने 15 साल बिहार में गुंडाराज किया।भारत मे लोकतंत्र था बिहार में गुंडातंत्र था।किसी ने भी इस गुंडा राज के खिलाफ आवाज़ नही उठाई।केंद्र सरकार,राष्ट्रपति,राज्यपाल,मीडिया और अदालतें सबकी बोलती बन्द थी।स्वत संज्ञान लेने वाली अदालतों ने इस मामले में कभी संज्ञान नही लिया।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार जिस भी विभाग को काम करने की कहती है वही विभाग परेशान करने का आरोप लगा देता है।कोई आर्डर नही मानते।क्या काम करने की कहना गलत है।असलियत में ये काम करना नही चाहते।बिना रोक टोक के उनका काम चलता रहे, रिश्वत मिलती रहे ये लोग बस यही चाहते है।असल मे सरकार को केंद्र सरकार , उपराज्यपाल , सरकारी विभाग , विपक्ष कोई काम नही करने दे रहा है।उनके मंत्री फसाये जा रहे हैं।सारी पार्टी और सरकारी विभाग लामबंद हो गए हैं।आम आदमी की राजनीति को खत्म करने की साजिश है।इनको डर है अगर ये पार्टी सफल हो गई तो कल और इस तरह की पार्टियां अस्तित्व में आएंगी।
जब दिल्ली सरकार ने आई ए एस और आई पी एस के तबादले किये तो इनकी यूनियन विरोध में उतर आई।लेकिन बाकी सरकार जान बूझ कर किसी ईमानदार अधिकारी को परेशान करती हैं,उसे सबक सिखाने के लिए तबादले करती है,उस पर केस दर्ज कर देती हैं,पैसे लेकर तबादला और प्रमोशन करती हैं तब ये यूनियन चुप रहती हैं।एक सिपाही से लेकर ऊपर रैंक के अधिकारी ट्रांसफर और प्रमोशन के लिए रिस्वत देते हैं।बड़ा अधिकारी अपने से छोटे अधिकारी को लाभ पहुंचाने का , तबादला करने का पैसा खाता है,तब यूनियन चुप रहती है.
जो कत्ले आम मुगलों ने मचाया था वैसा अंग्रेजों ने नहीं मचाया। हत्या , बलात्कार , गाँव जलाना, धर्मांतरण , अपहरण , महिलाओं से जबरदस्ती विवाह, जोहर के लिए मजबूर करना , बच्चों को आरी से काटना , जिन्दा दिवार में चिनवा देना , उन्होंने जुल्मों की इंतहा कर दी। आज भी जहाँ ये बहुसख्यंक हैं वहां यही रणनीति अपनाये हुए हैं। अंगेजों में फिर भी इंसानियत थी आज़ादी के वक्त वो पूरा देश छोड़ के चले गए।लेकिन मुग़ल यहीं रहे और हमने उन्हें रहने भी दिया।मुगलों ने भी तो हमे गुलाम बनाया था फिर उनसे हमने आज़ादी क्यों नहीं मांगी।क्यों उन्हें देश से बाहर नहीं भेजा।ऊपर से उन्हें दो देश भी दे दिए और इस देश मे भी हिस्सा दे दिया।अब ये देश भी हाथ से जाने वाला है।सोचो अगर अंग्रेज भी अलग देश मांगते तो कितना हिस्सा हमारे पास बचता।वो जबरदस्ती भी ले सकते थे क्योंकि सारी शक्तियां उनके पास थी, और हमारी भी मजबूरी थी अगर वो शर्त रखते तो कॉंग्रेस भी तुरन्त स्वीकार करती जिस तरह मुस्लिम लीग की बात स्वीकार की।बंटवारा एक अच्छा हथियार मिला था उसी वक्त मौका था मुगलों को अफगानिस्तान के पार भेजने का, लेकिन हमारे बुजुर्ग चूक गए।वो आगे की नहीं सोच पाए।
बहुत से मुस्लिम हैं जो स्वीकार करते है कि वो (उनके बाप दादा) हिन्दू धर्म से मुस्लिम धर्म अपनाए हैं। इतिहास भी यही बोलता है।फिर ये आज दोबारा हिन्दू धर्म क्यों नही अपना रहे।क्या चीज है जो उन्हें रोक रही है।उन्हें संशय होगा कि वो किस जाति,किस गोत्र में जाएंगे या शादी ब्याह कैसे होंगे।ये संशय मुस्लिम बनते वक्त भी रहे होंगे।तब भी परेशानियां आई होंगी।जब आप सामूहिक धर्मांतरण करोगे तो शायद ये संशय खत्म हो जाएं।आपके बाप दादा के जो गोत्र थे वही आपके रहेंगे।अब तो कोई तलवार लेकर भी नहीं खड़ा जिससे आप डरें।
सिर्फ इतिहासकारों की वजह से हम अंग्रेजों से इतनी नफरत करते हैं।नेहरू ने भारत एक खोज के जरिये पूरा इतिहास बदल दिया।अंग्रेजो ने अगर लुटा तो हमें बहुत कुछ दिया भी।अगर हम मान भी ले कि उन्होंने हमें लुटा , तब भी सिर्फ धन दौलत लूटी ।हमारी बहन बेटियों की इज्जत तो नहीं लूटी।हमारी जमीन तो नहीं लूटी।धन दौलत फिर कमाए जा सकते है ।जमीन और इज्जत नहीं।
क्या गांधी के बाप का देश था जो उन्होंने उन मुस्लिमों को देश बांट के दे दिया जिन्होंने खून की नदियां बहाई।अगर अंग्रेज़ो से देश छुड़वाया गया तो मुस्लिमों से क्यों नहीं।जिस जमीन को बचाने के लिए हमारे पूर्वजों ने शताब्दियों तक बलिदान दिया, बहादुरी से लड़े। वो जमीन इन कायरों ने एक झटके में गवां दी।बोलते हैं उन्होंने आज़ादी दिलाई।कब उन्होंने आज़ादी मांगी थी।आज़ादी मांगने वाले और स्वतंत्रता सेनानी थे।बोस जी ने गलती की जो गांधी के लिए कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ा।पटेल जी ने गलती की जो उन्होंने गांधी- नेहरु के लिए प्रधानमंत्री पद छोड़ा।इतना बड़ा गुनाह करने वाले गांधी नेहरू को कोई सजा नहीं मिली।नाथू राम गोडसे ना होते तो देश को और नुकसान उठाने पड़ते।उन्होंने कुर्बानी देकर कुछ हद तक देश को बचा लिया।
हमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से नफरत नहीं करनी चाहिए।वहां के मुस्लिम लोगों से नफरत करनी चाहिए।हमारे असली दुश्मन वो हैं।पाक-बांग्ला-अफगान तो हमारी मातृ भूमि थे, हैं और रहेंगे।वो भूमि हमारी है , हमसे गलती हुई जो हमने एक इंसानियत की दुस्मन कौम को वो भूमि दान में दी।किन्ही भले लोगों को देते तो वो एहसान भी मानते।ये तो साले हमें गालियां दे रहे हैं , हमें खत्म करने में लगे हुए हैं।हमारा मकसद इस भूमि को फिर से हासिल करना होना चाहिए।
हम पाकिस्तान के खिलाफ 72 सालों से सबूत इक्कठे कर रहे हैं।अंतरराष्ट्रीय समुदायों को पाकिस्तान पर कार्रवाई करने की गुहार लगा रहे हैं।क्या फायदा हुआ।हम क्यों सबूत इक्कठा कर रहे हैं, क्यों लोगों के सामने हाथ फैला रहे हैं, क्यों अपना समय और पैसा बर्बाद कर रहे हैं।हमें सीधी कार्रवाई करनी चाहिए।जिस दिन हम कार्रवाई करने लगेंगे उस दिन विश्व समुदाय अपने आप समझ जाएगा किसकी क्या गलती है, वो अपने आप सबूत इक्कठा कर लेंगे। रूस-चीन-इज़राइल-अमेरिका भी तो ऐसे ही करते हैं।
विश्व समुदाय हमारी मदद क्यों करे।हम पाकिस्तान से हर क्षेत्र में मजबूत हैं तो फिर खुद क्यों नहीं लड़ सकते। मदद वहां की जाती हैं जहाँ कमजोर पर ताकतवर हमला करे। विश्व के नेता हम पर हंसते होंगे।अगर हम पाकिस्तान से कमजोर होते तो इंसानियत के नाते विश्व समुदाय हमारी मदद करता।एक मजबूत देश अपने से हजार गुना कमजोर देश के खिलाफ मदद मांग रहा है।ऐसा उदाहरण दुनिया में कहीं नहीं है।भारत वीरों की भूमि था हमारी नीतियों ने हमे हिजड़ा बना दिया है।हमने क्यों कश्मीरी अलगाव वादियों को सालों तक पैसा दिया।एक तरफ हम आतंक से लड़ते रहे दूसरी तरफ आतंकियों का वित्त पोषण करते रहे।जो पैसा अलगाव वादियों को दिया जाता वही पैसा आगे आतंकवादियों तक, देश द्रोही अभियानों में, लोगों की भीड़ इक्कठा करके सेना पर पत्थर बाजी में इस्तेमाल होता।कितना हास्यास्पद है ये एक तरफ सरकार आतंक से लड़े दूसरी तरफ उन्हें पैसा देकर पाले पोषे।
कुछ सैनिक, पुलिस, अर्ध सैनिक बलों के जवान भी पैसे के लालच में गलत काम कर जाते हैं और अपने ही साथी जवानों के खून से हाथ रंग लेते हैं।आज आपका तत्कालीन लाभ किसी दूसरे सैनिक की जान ले रहा है, कल किसी और का तत्कालीन लाभ आपकी जान लेगा।इसलिए पैसे के लालच में आतंक वादियों का साथ ना दे।रिस्वत लेकर नकली नोट को देश में घुसने देना, अवैध हथियारों को देश मे घुसने देना, अवैध लोगों को देश में घुसने देना, अवैध वाहनों, अवैध सामान को देश मे घुसने देना , नशीले पदार्थों को, अवैध सोने चांदी को, मूर्तियों की तस्करी करना आगे जाकर किसी की मौत का कारण बनता है।उन मरने वालों में आप, आपका परिवार, आपके रिस्तेदार, आपके दोस्त, हमारे वीर जवान सब शामिल हैं।
तथाकथित सहिष्णु लोग बोलते हैं कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार आते ही मुस्लिम हिन्दू होने लगता है।भाजपा की सरकार आते ही लोगों में होंसला आता है खुलकर बोलने का, अपने खिलाफ हो रहे जुल्मों के खिलाफ आवाज़ उठाने का। जहां जहां हिन्दू कम है वहाँ तो वो सीधे सीधे काटे ही जाते हैं, मंदिरों पर कब्जा,उनकी जमीनों पर कब्जा कर लिया जाता है।बहु बेटियों की इज्जत लूटी जाती है। और अत्याचारियों के खिलाफ कोई पुलिस , अदालती या मीडिया कार्रवाई नहीं होती। जहां पर मुस्लिम 25-30% हैं वहाँ पर हिन्दुओ को दूसरे तरीके से परेशान किया जाता है। चोरी डकैती, फिरौती, गुंडा गर्दी, मंदिरों में लूट, बच्चों का अपहरण, अलग अलग हिन्दू को टारगेट बनाना, जब हिन्दू इक्कठे होकर आएं तो झूठे धार्मिक उत्पीड़न के केस और मीडिया हाईलाइट, हिन्दुओ को खौफ में रखते हैं।वो भी दुबके रहने में ही भलाई समझते हैं।सोचते हैं छेड़ेंगे तो अपना ही नुकसान होगा।एक हिन्दू को क्षति पहुँचाई जाती है तो डर के मारे दूसरा साथ देने नहीं आता। कुछ हिन्दुओ को सहिष्णुता के जाल में उलझा के रखा जाता है। यही योजना गुपचुप तरीके से पूरे देश मे चल रही है।इसीलिए भाजपा की सरकार आते ही पीड़ित लोग , समाज सेवी, कुछ पत्रकार खुल कर बात रखने लगते हैं।
कांग्रेस की सरकार आते ही हिन्दुओ का उत्पीड़न बढ़ जाता है।ना रिपोर्ट दर्ज होती हैं, ना समाचार बनते हैं, ना आंदोलन होते हैं सब नीचे ही नीचे दबा दिए जाते हैं।कांग्रेस जैसे और भी लोकल दल हैं। अधिकारियों को सरकारी पैसा लूटने की पूरी छूट दी जाती है, नेताओ को पूरी छूट दी जाती है।इसलिए वो पैसे में मग्न रहते हैं।लेकिन मुस्लिम नेता, अभिनेता या किसी भी पद का आदमी अपने एजेंडे में लगा रहता है।पत्रकारों, मीडिया हाउसों को या खरीद लिया. जाता है या आतंकवादियों से डराया जाता है। फिर भी अगर कुछ लोग आंदोलन करें तो उन्हें गोलियों से छलनी करवा दिया जाता है।दिल्ली में साधुओं पर गोली चलवाना, अयोध्या में कार सेवकों पर गोलियां चलवाना, दिल्ली में सिखों का कत्ले आम, मकसद हिन्दू जनसंख्या कम करना है।जबरन नसबंदी जैसे फैंसले सिर्फ हिन्दुओ पर लागू होते हैं।
फिर भी कुछ लोग अगर आवाज़ उठाते हैं तो उन्हें आतंकवादियों द्वारा मरवाया जाता है। ना मानवाधिकार का लफड़ा, ना कानून का लफड़ा, ना अंतरराष्ट्रीय दबाव, झूठे दो आंसू बहाकर बोल देते हैं हम आतंकवाद का सामना करेंगे। आतंकवादियों को पैसा देते हो फिर बोलते हो कि आतंकवादियों से सामना करेंगे। कश्मीर के तथाकथित अलगाव वादी नेताओं को अरबों रुपये बांटे गए वो सारा पैसा आतंकवाद के काम आया।भाजपा के स्वामी जी ने बताया था कि राजीव गांधी फिलिस्तीन के हमास को पैसा भेजते थे।
कॉग्रेस केे आते ही कैसे आतंकवादी हमले होने लगते हैं।मंदिरों पर रेड अलर्ट रहता है, हिन्दू बहुल इलाकों पर रेड अलर्ट रहता है।कैसे वैज्ञानिक मारे जाते हैं ,कैसे सैनिक मारे जाते हैं , अगर कोई सैनिक आतंकवादियों के खिलाफ कड़ा कदम उठा ले तो कैसे उसे जेल में डाल दिया जाता है. क्यों कांग्रेस के वकील आतंकवादियों के मुक़दमे लड़ते हैं , देश का पैसा लूट कर भागने वालों के केस लड़ते हैं।
मुफ़्ती मोहम्मद सईद जब कश्मीर का मुख्यमंत्री था तो उन्होंने मंदिरों को तुड़वाया, हिन्दुओ की हत्याएं करवाई, हिन्दू महिलाओं के बलात्कार करवाये, हिन्दुओ की जमीनों पे कब्जे करवाये।जब गृह मंत्री बना तो अपनी ही बेटी के अपहरण का ढोंग किया , फिर गुलाम नबी आज़ाद के साथ मिलकर उनके परिवार के अपहरण का ढोंग किया और हिन्दुओ को कश्मीर से बेदखल करने का षड्यंत्र रचा । भारतीयों को इस भ्रम में रखा कि कश्मीर पर आतंकवादियों का कब्जा हो गया और हिन्दू आतंकवादियों के डर से कश्मीर छोड़ रहे हैं।अपनी बेटी के अपहरण का नाटक करके सेना और सरकार को चुप रखा।तांडव हुआ 5 लाख कश्मीरी हिन्दुओ का पलायन, हज़ारों हत्याएं, हज़ारों महिलाओं के बलात्कार का।
( एन आर सी ) --
भाजपा सरकार का एक महत्वपूर्ण सपना है, नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन ( राष्ट्रीय जनसँख्या रजिस्टर )। जिसे सरकार ने २०१९ में पुरे देश में लागु करने का एलान किया। इसका मतलब जितने भी देश में घुसपैठिये हैं उन सबको देश से बहार किया जाएगा। नेशनल रजिस्टर फ़ॉर सिटीजनशिप एक बहुत लंबी प्रिक्रिया है।शुरू होने में ही सालों लगेंगे।फिर कुछ राज्य मना करेंगे, विपक्ष और देशद्रोहियों, घुसपैठियों से दो चार होना पड़ेगा।इसी मे बहुत सा समय ,पैसा, ताकत लग जायेगी।कई पीढियां खत्म हो जाएंगी।अगर फिर भी किसी स्टेज तक पहुंच गए तो हमारी अदालतों में 400-500 साल लटकता रहेगा।क्योंकि अदालतों की प्राथमिकता तो समलैंगिक, व्यभिचार, बॉलीवुड के मान हानि मुकद्दमे, हिंदुओ पर बन्धन लगाना है।अदालतों के पास सही चीजों के लिए समय कहाँ है ।तब तक मुस्लिम बहुसंख्यक हो जायेंगे और कानून बदल जायेंगे , सविधान बदल जायेगा और मूल निवासी काट दिए जायेंगे। उसके पहले ही कुछ कड़े फैंसले लेने होंगे।
अवैध लोगों के आगमन से कई नुकसान हैं। एक तो वो मूल निवासियों का काम छीनते हैं , किसी भी मजदूरी में काम कर लेते हैं।जिससे मूल निवासी भूखे मरते हैं।दूसरा अपराध बढ़ रहे हैं, अगर मूल निवासी भूखे मरेंगे तो वो अपराध में शामिल होंगे, अवैध घुसपैठिये खुद भी अपराधों में स्लिंप्त हैं, तस्करी - नशे के कारोबार में शामिल हैं। तीसरा हमारे संसाधन खत्म हो रहे हैं।जो जमीन, जल, खाद्यान हमारे काम आता वो उन लोगों पर खर्च हो रहा है।हमारे टैक्स का पैसा उन पर बर्बाद हो रहा है।चौथा घुसपैठ को बढ़ावा मिल रहा है।एक को देखकर दो आये , दो को देखकर आज लाखों आ रहे हैं।कल करोड़ो आएंगे। पांचवा जब इनकी जनसँख्या बढ़ेगी तो मूल निवासियों का कत्लेआम करके उन्हें खत्म किया जाएगा। छठा इनके वोटर कार्ड भी बने हैं और ये वोट के बहुमत को प्रभावित कर रहे हैं।
जगह जगह रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुस्लिम घुस गए हैं।जो काम धंधा हमारे गरीब लोग करते थे उसपर इन अवैध लोगों ने कब्जा कर लिया।सस्ते मजदूरों के चक्कर में हम खेत, सड़क निर्माण, घर निर्माण, छोटी छोटी इकाइयों, फैक्टरियों में हम अवैध घुसपैठियों को बढ़ावा दे रहे हैं।उन्हें पाल रहे हैं और घुसपैठियों को बुलावा दे रहे हैं।हाथ से जहां काम होते हैं उन कारखानों में ये घुस गए,रेहड़ी-फुटपाथ पर ये सम्मान बेच रहे हैं,खाने की रेहड़ी ये लगा रहे हैं, बूट पालिश जैसे काम, फेरी लगाने के काम ये कर रहे हैं।मजदूरी हम इनसे करवाते हैं।अपने लोकल भाइयों को हमने दूर कर दिया। भीख ये मांग रहे हैं।लूटपाट-अपराध ये कर रहे हैं।कई एनजीओ इनको खाना, पीना, रहना निशुल्क सेवा दे रहे हैं।उन एनजीओ को पैसा हम ही देते हैं।हमको एनजीओ को पैसा देने से पहले देखना चाहिए वो किसे और क्यों पाल रहे हैं।हमें भीख देने से पहले सोचना चाहिए हम किसको पाल रहे हैं।कल वो हमें ही काटेंगे।आज के सस्ते मजदूर कल हमें बहुत भारी पड़ेंगे।हमारी जान, हमारे घर जमीन, हमारा पैसा सब खतरे में है।
कुछ चोरी छिपे आते होंगे , कुछ रिस्वत देकर आते होंगे , कुछ कोई और तरीका अपनाते होंगे। ये घुसपैठ रोकना सरकार , अदालत और सुरक्षा एजेंसियों के बस की बात नहीं है या वो रोकना नहीं चाहते लेकिन हम आम नागरिक अगर चाहें तो ये हो सकता है हमें इनका दाना पानी बंद करना होगा। अगर हम इन्हें पालना छोड़ देंगे तो घुसपैठ भी बंद हो जाएगी। सब अपने देश वापिस भाग जाएंगे।ना हमें युद्ध लड़ना, ना सरकारों को कोसना, ना अदालतों को कोसना है हमें सिर्फ बहिष्कार करना है।सस्ते मजदूर और दयालु पन छोड़कर हमें खुद का अस्तित्व बचाने के लिए सोचना होगा।आज का सस्ता काम कल हमारे बच्चों की मौत का सामान बनेगा।
( डॉक्टर ) --
डॉक्टर को भगवान का रूप माना जाता है।लेकिन ये भगवान आज सिर्फ पैसे के लिए जी रहे हैं।दो सौ- तीन सौ-पांच सौ रुपये की पर्ची तो क्लिनिक में घुसने से पहले काट देते हैं। जबरदस्ती हर मरीज की कोई न कोई जांच कर देते हैं।खून की जांच,पेशाब,एक्सरे आदि पर डॉक्टर को 50-60% कमिशन मिलता है।इसलिए जिस मरीज की इन जांचों की जरूरत न हो तब भी जबरदस्ती जाँच करवाई जाती है ।अगर कोई मरीज किसी दूसरी लैब से जाँच करवा ले तो डॉक्टर उस जांच को ही गलत बता देते हैं। दवा भी ब्रांडेड कंपनी की लिख देते हैं।जो बहुत महंगी होती हैं।दवा लिखने के लिए भी डॉक्टर को कंपनियां कई तरह के गिफ्ट और पैसा देती हैं।यहां तक कि मेडिसिन दुकान वाले भी डॉक्टर को पैसा देते हैं।
डॉक्टरों ने लूट मचा रखी है।दो तीन घंटा अस्पताल या दुकान में आते है और नोट छाप के चले जाते हैं।सामान्य सी दुकान में भी 400-500 रुपये फीस लेते हैं।मरीज को बैठने तक नहीं दिया जाता १० टेस्ट लिख देते हैं.।बिहार झारखंड जैसे गरीब राज्यो में भी यही हाल है। टेस्ट 1000-2000 में निपटते हैं।दवाई लेने से पहले तक आदमी 2000-2500 खर्च कर चुका होता है।रही सही कसर दवाई पूरी कर देती है 2 रुपये की दवा के 20 रुपये।किसलिए हर बीमारी के लिए आदमी टेस्ट करवाये।जब ये देखकर बुखार भी नहीं बता सकते तो किस काम की है इनकी डिग्री, किस काम का इनका कोर्स और कैसे ये डॉक्टर हैं।फिर तो नकल की या खरीदी हुई डिग्री है इनके पास।आज से 10-15 साल पहले भी तो बिना टेस्ट के बीमारी बताते थे ।नाड़ी वाले वैध इन्होंने साजिश के तहत खत्म करवा दिए,जिस तरह अदालतों ने लूट मचाने के लिए पंचायते खत्म करवा दी। जहां ऑपरेशन करने की जरूरत नहीं है वहां भी ये जबरदस्ती डरा कर ऑपरेशन कर डालते हैं।शरीर कटता है तो मरीज का, पैसा लगता है तो मरीज का इनका क्या बिगड़ता है।चाहे कोई कर्ज उठाकर इलाज करवा रहा हो ।जैसे गर्भवती महिलाओं की अगर नार्मल डिलीवरी होने वाली हो तो भी उसे क्रिटिकल केस बना देते हैं।कम से कम जो गरीब लोग हैं उनको तो बख्श दो।
आजकल मेडिक्लेम, आयुष्मान और एक्सीडेंट इंस्युरेन्स में अलग ही घपले चल रहे हैं।मेडिक्लेम के दुगने बिल बनाकर फायदा उठाया जाता है।नहीं तो निजी अस्पताल इलाज ही नहीं करते।चाहे मरीज को कोई बीमारी हो उसे मेडिक्लेम लाभ लेने के लिए बिना वजह भर्ती होना पड़ता है। आयुष्मान में दुगने बिल पेश किए जाते हैं।फ़र्ज़ी आयुष्मान कार्ड बनाये और फायदा उठाया जा रहा है।एक्सीडेंट डेथ क्लेम झूठे लिए जा रहे हैं।
सरकारी हस्पतालों में डॉक्टर आते नही,जांच की सुविधा नही है,दवाई नही है।सरकारी डॉक्टर या दूसरे स्टाफ बात बात पर हड़ताल कर देते हैं।ख़ुद जनता के साथ दुर्व्यवहार करते हैं।अगर कोई परेशान व्यक्ति पलटवार कर दे तो डॉक्टरों की हड़ताल शुरू हो जाती है।उस व्यक्ति पर केस हो जाता है।लेकिन सरकारी कर्मचारी पर कोई केस नही होता।सेलरी इनकी रोज बढ़नी चाहिए लेकिन काम ये करेंगे नही।इनकी हड़ताल से कितनो की जान जाती है, इन्हें कोई फर्क नही पड़ता।
सरकारी हॉस्पिटल में कितना घपला होता है। डॉक्टर 2-3 घंटे ड्यूटी पर आते हैं।पशु अस्पतालों की हालत तो और भी बुरी है।तनख्वाह मिलती है लेकिन फिर भी इलाज का मरीजों से पैसा लेते हैं, खासकर जानवरों के इलाज का।दवाई फ्री मिलती है फिर भी दवाई देने का मरीज से पैसा लेते हैं।दवाइयों को दुकानों पर भी बेच देते हैं। निजी दवा दुकान वालों से सेटिंग कर के सरकारी दवाई कचरे में डाल देते हैं या गौदाम में सड़ा देते हैं।निजी प्रैक्टिस करते हैं।सरकार मशीन, एम्बुलेंस देती हैं उन्हें खराब कर देते हैं या इंस्टाल ही नहीं करते, पड़ी पड़ी सड़ती रहती है।लाखों करोड़ों रुपए बर्बाद होते हैं । जनता परेशान होती रहती है।
आपके रिस्तेदार भी तो कही दूसरी लोकेशन पर इसी तरह की परेशानियां उठाता होगा फिर भी आप इस व्यवस्था को सुधारना क्यों नहीं चाहते। या कभी कभी आप खुद भी दूसरे किसी विभाग के द्वारा प्रताड़ित होते होंगे।या अपने ही अस्पताल में रिटायरमेंट के बाद परेशान होंगे क्योंकि व्यवस्था ही चौपट है। इन सारे सरकारी कर्मचारियों से कहना चाहता हूं कि कर्मो का फल यहीं मिलता है।आप अपने सीनियर कर्मचारियों, आपके आस पास के कर्मचारी या खुद का परिवार के इतिहास का अध्ययन कर लो आपको समझ आ जायेगा।जो मिठास जो रस जिंदगी में होना चाहिए, पारिवारिक रिश्तों में होना चाहिए वो आपके जीवन मे नहीं होता।आपकी औलादें दूर रहती हैं पहले पढ़ाई फिर नौकरी के सिलसिले में और फिर परमानेंट दूर ही हो जाती हैं।बदमाश , बदचलन निकलती हैं, आपको बुढ़ापे में रोटी नहीं मिलती, कोई ऐसी आफत आती है कि सब बर्बाद हो जाता है।सरकार, न्यायालय , जनता आपको सजा नहीं दे पाते लेकिन जितना आप लोगों का खून चूसते हो उतनी सजा भगवान आपको जरूर देता है।
लैब उपकरण, सिरिंज ,खून -पेशाब जांच के सामान घटिया क़्वालिटी के आ चुके हैं।जो जांच से पहले ही फैल हो जाते हैं।लैब वालों को सस्ते मिलते हैं इसलिए वो इन्हें खपा देते हैं।लैब वाले ऐसे ही आइडिये से रिपोर्ट बना के दे देते हैं।उसी हिसाब से मरीज को दवाई दे दी जाती है।कुछ मरीज तो सालों भटकते रहते हैं लेकिन उन्हें बीमारी का पता नही चलता।ये सब इन घटिया उपकरणों की वजह से है।ये सब मुझे एक लैब वाले से पता चला।मैंने भी एक लैब से पूरे शरीर की जांच करवाई।उसके दो दिन बाद दो टेस्ट दूसरी लैब से करवाए दोनों रिपोर्ट में जमीन आसमान का फर्क था।उसी दौरान रोहतक पीजीआई में मैंने कुछ टेस्ट करवाये। पीजीआई रिपोर्ट और निजी लैब की जांच रिपोर्ट में बहुत अंतर था।अब कोई ना कोई तो गलत था।यही खेल चल रहा है और मरीज गलत दवाई या गलत उपचार लेने को मजबूर है।
एक साल तक मेरा बुखार नही टूटा था।मैंने छोटे बड़े सभी हॉस्पिटल में दिखाया।पीजीआई में भी दिखाया।सब तरह की जांच करवाई।किसी रिपोर्ट में कुछ नही आता था।यहां तक कि जांच में बुखार भी नही आता था।फिर मैंने एक देशी वैद्य को दिखाया।जिसने नाड़ी देखी और बताया कि तिल्ली बढ़ गई है,जिसे ठीक करने के लिए दो शीशी दवाई दी।जो लेने के बाद मैं ठीक हो गया।
देशी वैद्य या नाड़ियां वैद्य सिर्फ नाड़ी देखकर मरीज़ का हाल बता देते हैं।ये विलुप्त होने वाले हैं क्योंकि सरकार इन्हें मान्यता नही देती।सरकार भी ब्रांडेड कंपनी और डिग्री धारी डॉक्टर के पक्ष में है।डिग्री होनी चाहिए चाहे वो डिग्री कैसे भी ली हो इससे फर्क नही पड़ता।इन देशी डॉक्टरों के लिए सरकार को कदम उठाने चाहिए।ये सस्ते हैं,असरदार हैं,नाड़ी देखते ही हाल बता देते हैं,इनकी देशी दवाइयां भी सस्ती हैं।कुछ तो सिर्फ समाज सेवा कर रहे हैं।
पहले दाइयां होती थी।जो बच्चे पैदा करवाती थी।उनके पास कोई डिग्री नही होती थी।बिना ऑपरेशन के बच्चे पैदा होते थे।आज इतने डिग्री धारी हैं फिर ऑपरेशन से बच्चे पैदा होते है ।बच्चा जनते वक्त कुछ मौत पहले भी होती थी आज भी होती हैं।हस्पताल पहुंचते पहुंचते महिलाएं मर जाती हैं।किसी तरह पहुंच जाती हैं तो डॉक्टर नही मिलते।यही डिलीवरी अगर दाइयां करवाती तो शायद वो महिलाएं बच जाती।कहीं कहीं तो डॉक्टर की गैर हाज़िरी में हॉस्पिटल के चपरासी ऑपरेशन कर देते हैं। हम,हमारे माँ बाप,हमारे दादा परदादा दाइयों के पैदा किये हुए हैं।प्रशिक्षण और अच्छी सुविधाएं जरूरी हैं।हॉस्पिटल जरूरी है।ताकि किसी भी आकस्मिक स्थिति में काबू पाया जा सके।लेकिन हमे देखना होगा कि वो बेहतर तरीके और जिम्मेवारी से काम करें।ना कि सिर्फ पैसा कमाना और ऐश करना ही उनका मकसद बन कर रह जाये।
( ब्रांड ) --
एक गरीब आदमी हमारी गलियों में सामान बेचने आता है या कोई गरीब फुटपाथ पर सामान बेचता है उससे हम सामान नही खरीदते या एक दम कम दाम पर खरीदते हैं।वो व्यक्ति पहले से ही बाकी मार्केट से कम दाम बताता है फिर भी हम और कम करवा लेते हैं।जबकि दुकान शो रूम आदि में हम मुँह मांगी और तिगुनी चारगुणी कीमत अदा करते हैं।दोनों के सामान की क़्वालिटी में कोई फर्क नही होता।फेरी या फुटपाथ वाले के कई सामान तो दुकान से बेहतर होते हैं।लेकिन हम स्टेटस और दिखावे में यकीन करते हैं।
ब्रांड के नाम पर तो हम कुछ भी देने के लिए तैयार हैं।जबकि ये ब्रांड वाले भी अपना सामान वही से बनवाते हैं जहाँ बाकी सामान बनता है।ब्रांड वालों के पास सिर्फ अपना लेबल और मार्केटिंग होती है मैनुफेक्चरिंग वो थर्ड पार्टी से करवाते हैं।नॉर्मल कंपनी की पेंट और ब्रांडेड कंपनी की पेंट एक ही आदमी या कंपनी बनाती है।नॉर्मल कंपनी का पेन्ट-वाल पुट्टी या ब्रांडेड कंपनी का पेण्ट-वाल पुट्टी एक ही कंपनी बनाती है।आपको ब्रांडेड कपड़ों से अच्छे नॉर्मल कपड़े मिल जाएंगे।लेकिन हमें पैसा लुटवाने में मज़ा आता है।और गरीब आदमी की मदद करने में शर्म आती है।ब्रांडेड कंपनियों से खुद को लुटवाते हैं और सब्जी,फल और अनाज के दाम बढ़ जाएं तो हड़ताल शुरू कर देते हैं।स्वाद के नाम पर कुछ भी खा लेते हैं,ब्रांड के नाम पर कुछ भी खरीद लेते हैं।मुँह मांगा दाम चुका देते हैं।लेकिन अच्छी चीज नही खरीदेंगे,स्वास्थ्य वर्धक सामान नही खरीदेंगे . किसी गरीब भिखारी को एक रुपया भीख नही देंगे और शो रूम आदि में दुगने तिगुने दाम चुका देंगे।छूटे पैसे भी वापिस नही लेंगे।होटलो में टिप दे देंगे। रेलवे में टिप दे देंगे जबकि कोई मजबूर मर रहा हो तो उसकी सहायता नहीं करेंगे। १९ रूपये किलो गेहूं किसान से नहीं लेंगे ३५ रूपये किलो ब्रांडेड कम्पनी का गेहूं खरीदेंगे। चावल ,अनाज ,फल सब्जी जहाँ से सस्ते मिलेंगे वहां से खरीदने में दिक्कत है लेकिन शौक के लिए बड़े बड़े शो रूम में महंगे खरीदने में कोई दिक्कत नहीं।
( स्कूल ) --
प्राइवेट स्कूल की फीस तो महंगी है ही साथ मे वो किताब,कॉपी और तीन तरह की वर्दी,जूते आदि भी बेचते हैं या फिर दुकानों से कमीशन लेते हैं।किताब कॉपी की कंपनियां स्कूल को 40% तक कमीशन देती हैं।कमीशन के चक्कर मे महंगी किताबे और ज्यादा किताबे लगवाई जाती हैं।कुछ किताबों का तो कोई मतलब नही होता और पढ़ाई भी नही जाती फिर भी खरीदनी पड़ती हैं।बच्चे खामखाँ में बोझ मरते हैं और मानसिक रूप से परेशान होते है।तीन तरह की वर्दी खरीदनी पड़ती है।पैसे के लालच में घटिया कपड़ा यूज किया जाता है।जो गर्मी में शरीर को तपा देता है।
बड़े स्कूलों में या किसी कोर्स से सम्बंधित स्कूल कॉलेज में तो डोनेशन के नाम पर भी लाखों रुपया लूटा जाता है।
पढ़ाई वहां भी नही होती।बच्चो को कोचिंग क्लास में भेजना पड़ता है।जब कोचिंग ही करवानी है तो महंगे स्कुल में पढ़ाने का क्या फायदा।फीस महंगी वसूलते हैं और अध्यापक सस्ते रखते हैं। लेजर में अध्यापकों की तनखाह कुछ और होती है और हकीकत में कुछ और.प्राइवेट स्कूलों पर नकेल जरूरी है।
सरकारी स्कूलों में बच्चों को बहुत पिटा जाता है। अध्यापकों को कुछ आता जाता तो है नहीं रिस्वत देकर नौकरी लग जाते हैं। मार तो निजी स्कुल में भी पड़ती है , लेकिन शायद सरकारी स्कुल से कम। निजी स्कुल फ़ीस तो बहुत लेते हैं लेकिन अध्यापक रखे जाते है ४०००-५००० वाले जिनका खुद का पढाई का स्तर बहुत निम्न होता है।
हम सरकारी स्कूल में कक्षा पांचवी में पढ़ते थे हमारे साथ पढ़ने वाले एक लड़के की माँ गुजर गई।जिस वजह से वो लड़का एक डेढ़ महीना स्कूल में नहीं आया ।घर वालों ने कैसे इतने छोटे बच्चे को दिलासा दिया होगा। कैसे उसने खुद को संभाला होगा।कैसे अपने मन को रोका होगा। कैसे माँ की यादें सताती होंगी।इस दर्द को वही समझ सकता है जिसकी मां बचपन में गुजर गई हो।जब वो लड़का किसी तरह होंसला करके स्कूल आया तो बेरहम मास्टर ( रामचंद्र मास्टर कुम्बा ) ने उसे बहुत पीटा, कोई रहम नहीं किया।बेचारे को दो शब्द सहानुभूति के भी नहीं बोले।सरकारी स्कूल के मास्टर इतने बेरहम और जालिम होते हैं।कैसे गुरुओं की इज्जत हो और कैसे आज्ञाकारी शिष्य पैदा हों।
एक लड़की तीसरी कक्षा में पढ़ती थी।मास्टर को उसे पीटने में ज्यादा ही मजा आता था। बेचारी को बहुत बुरे तरीके से पिटता था। जमीन पर गिरा कर पांशु में लात घुसे मारता था, वो भी एक लड़की को। हंस हंस के पिटता था। बेचारी रोती रहती थी, दहशत में रहती थी।वो तो हिम्मती थी जो इतनी मार खाने के बाद भी स्कूल में आती थी।क्या उस लड़की की मानसिक स्थिति होती होगी।कितना दर्द होता होगा।कैसे वो पढ़ती होगी ।इतनी दहशत में कोई कैसे पढ़ सकता है।कैसे खा पी सकता है। कैसे सो सकता है।कल्पना करिए उसकी मानसिक स्थिति की। माँ बाप खेतों में उलझे रहते थे। हाड़ तोड़ खेती के कारण उनका स्वभाव भी चिड़चिड़ा रहता था।वो भी बच्चों पर ध्यान नहीं देते थे।वो भी उन्हें डांटते और मारते थे।उनकी सोच थी कि बच्चों को मारने से ही वो सुधरते हैं, सही लाइन पर रहते हैं। इस वजह से बच्चे किसी को दिल की बात नहीं बता पाते थे।और शारीरिक उत्पीड़न सहते थे , मानसिक उत्पीड़न सहते थे। अंदर ही अंदर घुटते रहते थे। वो तो गरीबों के बच्चें हैं जो इतना उत्पीड़न सह लेते हैं अगर आमिर के बच्चे होते तो आत्महत्या कर लेते।
मैं भी छठी कक्षा में पढता था तो एक मास्टर ( महिपाल ) की बहुत दहशत हो गई थी। बहुत मारता था , पूरी घंटी मुर्गा बना के रखता था वो भी बिना वजह। मैं घर से तो स्कुल के लिए निकलता था लेकिन आधी छुटियों के बाद स्कुल नहीं जाता था। उस मास्टर की छठी घंटी होती थी। हम सुनसान में टीले पर जाकर बैठ जाते थे। जब स्कुल की पूरी छूटी होती तो हम भी घर आ जाते। पूरा दिन रात उस मास्टर से बचने के उपाय लगाते रहते थे।
( आरक्षण ) --
नीची जातियों के लोगो को जीने के लिए ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है।उनके पास जमीन नही है, नौकरी नही है,मज़दूरी का काम नही है।पढ़ाई कर नही पाते क्योंकि पैसा नही है।छोटी उम्र में मज़दूरी करनी पड़ती है।जिसकी वजह से जल्द ही बीमारियां घेर लेती हैं। वक्त से पहले बूढ़े हो जाते हैं। सरकारी नौकरी पाने के लिए पैसा और सिफारिश चाहिए।प्राइवेट नौकरी के लिए सिफारिश और पढ़ाई चाहिए।इन जातियों को निजी सेक्टर नौकरी कम ही देता है।आरक्षण इसीलिए लागू किया गया था ताकि पिछड़ी जातियों को भी आगे आने और जीने का हक़ मिले। आरक्षण जारी रहना चाहिए। लेकिन इन पिछड़ी जातियों में भी जो पिछड़े हैं , जो आज भी आरक्षण का लाभ लेने से वंचित हैं उनकी मॉनिटरिंग होनी चाहिए। कुछ विभाग या कुछ सेवाएं आरक्षण से बाहर रखी जा सकती हैं। हरियाणा में सेंसी जाति है जो पढ़े लिखे नही है,सिफारिश नही है,जमीन नही है।चोर का ठप्पा लगा है।इसलिए कोई काम धंधा नही है।ये करें तो क्या करें।जिये तो कैसे जिये।चोरी-डकैती ही आखिरी उपाय है।ये लोग सिर्फ चोरी करते हैं किसी का खून नही करते।इनकी समाज मे और कानून की नजर में गलत छवि है।सरकारी कर्मचारी चोरी, डकैती, रिश्वतखोरी, लोगों का हक़ मारना, लोगों पर जुल्म करना आदि अपराधों में शामिल हैं उनकी साफ सुथरी छवि है।
( उद्योग ) --
उधोग पतियों को लोन तुरंत मिल जाता है।वो अपना खुद का पैसा इन्वेस्ट नही करते बल्कि बैंको का पैसा उपयोग करते हैं।अपना पैसा तो बचा कर और छुपा कर रखते हैं।जब कभी उद्योग डूब जाए तो खुद को दिवालिया घोषित करवा लेते हैं।पैसा डूबता है तो बैंको का पैसा डूबता है।उधोगपतियों का नही।
विजय माल्या बोलता है कि बैंक अगर लोन दें तो मैं एयरलाइन कर्मचारियों को सेलेरी दे दूंगा नही तो मेरे पास पैसा नही है।मान लिया किंगफिशर घाटे में है लेकिन उनकी और कंपनियां फायदे में हैं उनका पैसा वो इसमे लगा सकता है।उसके पास खुद का पैसा भी करोड़ो अरबो है उसे उपयोग कर सकता है।लेकिन उसे तो बैंको का पैसा चाहिए।जब फायदा होता है तो वो उद्योगपति का, जब नुकसान होता है तो वो बैंक का।हर बिजनेस मैन की सोच यही है।बिज़नेस से जो फायदा होता है उसको विदेश में जमा करवा देते हैं या देश मे ही अलग से रखते हैं।जो भारतवंशी विदेश में बिजनेस कर रहे हैं वो अपना फायदे वाला पैसा भारत मे जमा करके रखते हैं।जिस दिन कोई भी ऊंच नीच होती है उस दिन भाग जाते हैं देश छोड़के।डूबेगें तो बैंक डूबेंगे, सरकार डूबेगी।
जिसको भी लोन लेने की सुविधा मिली हुई है वही बन्दा लोन लेकर वापिस भरने का नाम नही लेता।सब सोचते हैं लोन कभी ना कभी माफ हो जाएगा।कुछ लोग तो अपने को दिवालिया घोषित करवाने की सोचते हैं।छोटे से लेकर बड़े आदमी तक सबको लगता है लोन हराम का पैसा है जितना डकार सको डकार लो।किसी का भी लोन माफ नही होना चाहिए सब पर कार्यवाही होनी चाहिए।सरकार किस किस के गड्ढे भरेगी।
मजदूरों को मजदूरी भी बहुत कम दी जाती है।मज़दूर ज्यादा हैं काम कम है।एक मज़दूर अगर कम पैसे में काम करने से मना कर दे तो दूसरा तैयार मिलता है।इनकी मज़बूरी है क्योंकि शाम को खाने के लिए तो कुछ चाहिए।ये रोज़ कमाने और रोज़ खाने वाले हैं जिनके पास बचत नही होती।
उद्योगपतियों को दो चार दिन मज़दूर न मिले तब भी उनका कुछ नही बिगड़ना।
कम्पनियां अपना सामान कई गुना दामो पर बेचती हैं।उसमें राज्य,ज़िला, तहसील के एजेंट और दुकानदार का मार्जिन जुड़ा होता है।कहीं कहीं कंपनी से ज्यादा बीच वाले बचा ले जाते हैं।ब्रांड का नाम जुड़ने से सामान का दाम कई गुना बढ़ जाता है।पच्चीस हजार का इंजेक्शन डेढ़ लाख का खरीदना पड़ता है।कंपनियां अपने सामान की कीमत खुद तय करती हैं।क्योंकि एक तो उनका सामान इतना जल्दी खराब नही होता दूसरा ज्यादा कमीशन ऑफर करती हैं जिससे उनका सामान दुकानदार या अन्य प्रतिष्ठान आसानी से बेचने के लिए राजी हो जाते हैं।
किसान अपने सामान की कीमत खुद तय नही कर पाता।उनका सामान भी जल्दी खराब होने वाला होता है जिसे वो स्टोर भी नही कर सकता।और इतना पैसा भी नही होता कि सामान को कुछ दिन स्टोर करके रख ले।
( मुद्दा ) ---
अप्रैल 2015 में आम आदमी पार्टी की दिल्ली में किसान रैली थी जिसमे एक किसान ने (गजेंद्र सिंह नांगल दौसा) पेड़ पर फांसी लटककर जान दे दी।वहां सब लोग तमाशा देखते रहे।मीडिया,पुलिस,नेता और आम आदमी जो इस रैली में शामिल थे।किसी ने उसे बचाने की कोशिश नही की।सब ने आम आदमी पार्टी की जिम्मेवारी तय कर दी।आम आदमी पार्टी ने कहा ये पुलिस का काम था।हम पुलिस से उसे बचाने की गुहार लगाते रहे लेकिन उन्होंने नही सुनी।पुलिस ने कहा भीड़ उसे तालिया बजाकर,नारे लगाकर उत्साहित कर रही थी।हम भीड़ को काबू में कर रहे थे।मीडिया को तो तमाशा देखने ,दिखाने और बनाने की आदत है।कोई जिये मरे उन्हें उससे कोई मतलब नही।और आम आदमी पर तो किसी ने सवाल उठाया ही नहीं।अगर इनमें से एक आदमी भी उसे बचाने की कोशिश करता तो उसे बचा लिया जाता।
वो व्यक्ति 15-20 फ़ीट ऊंचे पेड़ पर चढ़ा हुआ था।जहां से कोई भी दो व्यक्ति पकड़ कर उसे नीचे ला सकते थे।कोई फायर ब्रिगेड मंगवाने की जरूरत नही थी जैसा कि पुलिस ने बाद में कहा था हमने फायर ब्रिगेड मंगवाई थी।दरअसल हममे इंसानियत बची नहीं हैं।दुसरो के उझडने में हमे मज़ा आता है।यहां कोई अपने दुख से दुखी नही है, दूसरे खुश क्यों है इस बात से ज्यादा दुखी है।
एक सेलिब्रिटी अगर 10-15 साल वैवाहिक जीवन मे बंधा रहता है तो उसकी मिसाल दी जाती है।लोग उससे सफल वैवाहिक जीवन का राज पूछते हैं।गांव कस्बो में 99.99% लोग ऐसे हैं जिनका वैवाहिक जीवक म्रत्यु तक सफल रहता है।शादी भी कम उम्र में होती है।तो सोच लो कितने साल वो एक दूसरे का साथ निभाते हैं। तलाक के मामले ना के बराबर होते हैं।लेकिन कोई इन्हें आदर्श बनाकर पेश नही करता।कोई इनके सफल वैवाहिक जीवन का राज नही जानना चाहता।
वैज्ञानिक बोलते हैं कि भैंस का दूध घी स्वास्थ्य के लिए ठीक नही होता।ज्यादा वसा होती है।दिमाग मोटा होता है।लेकिन हरियाणा वालों को देख के ऐसा नही लगता।सभी हरियाणवी भैंस का दूध पीते हैं घी खाते हैं फिर भी शरीर एकदम मज़बूत और छरहरा है।हरियाणा वालों से चालू कोई नही है।उनके जैसा शरीर,कद काठी किसी की नही है।
हज यात्रा और तीर्थ दर्शन यात्रा पर करोड़ो खर्च हो रहा है।करोड़ो के हज हाउस बनाये हुए हैं।पारसी लोगो को बच्चे पैदा करने पर अच्छा खासा पैसा मिलता है।हर पारसी को बच्चा पैदा करने के लिए सरकार की तरफ से एक प्रोत्साहन राशि दी जाती है जो लाखों में है। तर्क है पारसियों की जनसँख्या बढ़ाना। पारसी समाज गरीब नही है।उनके पास अच्छा काम धंधा है।सभी अमीर हैं। फिर सरकार क्यों जनता का पैसा बर्बाद कर रही है।झुग्गी झोपड़ी,सड़को पर रहने वाले,रेलवे स्टेशन पर रहने वाले या अनाथ लोगो के लिए तो सरकार कुछ करती नही।इनके तो राशन कार्ड , वोटर कार्ड तक नही है।राशन की दुकानों से इन्हें सस्ते अनाज नही मिलते।कुछ लोग भूखे हैं फिर भी उन्हें अनाज नही मिलता और कुछ लोगों के पास अकूत सम्पति है फिर भी उन्हें लाखों रुपये की खैरात दी जाती है।
एन. जी.टी या कोर्ट अक्सर अवैध निर्माण या साधुओं के आश्रम को गिराने के आदेश दे देती हैं और उन्हें गिरा दिया जाता है।जितनी आसानी से वो बने बनाये मकान गिरा देते हैं, क्या उतनी आसानी से बना सकते हैं।मकान बनाना बड़ा मुश्किल है मेहनत,समय और रुपया सब लगता है।वो अवैध निर्माण ही सही लेकिन क्या उसे गिराना सही फैंसला है।उसे गरीबो में बांटा जा सकता है,स्कूल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है । आप ये निर्माण कर नही सकते तो बने बनाये निर्माणों को बचाकर सही इस्तेमाल तो कर ही सकते हो।
डिग्री को महत्व देना बंद होना चाहिए।आज हर कोई फ़र्ज़ी डिग्री लिए घूम रहा है।पैसे दो और कोई भी डिग्री ले लो।बड़े बड़े प्रतिष्ठित एग्जाम जैसे नेट आदि में भी घालमेल हो रहे हैं।पैसे से डिग्री ले लो, पैसे से प्रतियोगी परीक्षा पास कर लो और पैसे से नौकरी लग जाओ।यही आजकल हो रहा है।जिसके पास डिग्री है वो ज्ञानी है ये जरूरी नही है।जब तक आदमी प्रेक्टिकली काम नही करता उसे कुछ नही आता।और प्रेक्टिकली काम अनपढ़ भी कर सकता है।वो भी पढ़े लिखों से बेहतर काम कर सकता है।हमारे सामने अनेको उदाहरण हैं।अनपढ़ होकर या मामूली सी पढ़ाई करके लोगो ने बड़ी बड़ी कंपनियां खड़ी की हैं।बड़े बड़े विद्वान और नाड़ी वैध हुए हैं। जब कोई दूसरी कंपनी से काम किया हुवा बन्दा नौकरी मांगने आता है तो हम सिर्फ उसका अनुभव लेटर देखते हैं, डिग्री नही।आप एक उच्च डिग्री धारी को नौकरी देकर काम सिखाते हो , उसे एक्सपर्ट बनाते हो तो कम पढ़े लिखे लोगो को भी एक्सपर्ट बना सकते हो। एक इंजीनियर से ज्यादा काम तो मज़दूरों को आता है।वही किसी निर्माण को मूर्त रूप देते हैं।इंजीनियर सिर्फ निर्देश देता है।
ऐसा देखने मे आया है कि जिन्हें सुविधाएं मिलती हैं वही सुविधाओ का ज्यादा रोना रोते हैं।उच्च वर्ग की सारी बाते सुनी जाती है।उन्हें कई तरह की सुविधाएं मुहैया करवाई जाती हैं।उनकी समस्या का तुरन्त समाधान होता है।फिर भी उनकी शिकायते और फरमाइश पूरी नही होती।तुरन्त चक्का जाम कर देते हैं।एक गरीब आदमी चुप चाप पड़ा रहता है।किसी बड़ी कॉलोनी में सारी सुविधा होती है साफ सफाई होती है फिर भी वहां रहने वालों की मांग ख़त्म नही होती।सुविधाओ की कमी बताते है।लेकिन झुग्गी झोपड़ी में कोई सुविधा नही होती फिर भी ये लोग कोई हंगामा नही मचाते।कभी गरीब आदमी को हमने सड़कों पर नहीं देखा , हड़ताल करते नहीं देखा , तोड़ फोड़ करते नहीं देखा। लोग छोटी छोटी बातों पर बवाल मचाते है।अधिकारों के नारे लगाते हैं।हड़ताल करते हैं।सरकारी या निजी संपत्ति को जला देते हैं।कभी फुटपाथ पर सोने वालों की सोचो।कैसे रहते हैं,कैसे सोते हैं,कैसे बरसात और सर्दी काटते हैं।उनके मुंह से उफ तक नही निकलती ।कभी हड़ताल नही करते।कोई अधिकार नही है उनके पास,कोई सुविधा नही है।फिर भी चुप चाप पड़े रहते हैं।ना किसी निजी आदमी को कोसते, ना सरकार को कोसते। जिन लोगो के पास रहने के लिए जगह है वो पार्क और खुले मैदानों की मांग करते हैं।उन्हें सैर,पार्किंग,खेलने के लिए जगह चाहिए।सरकार भी उनकी मांग तुरन्त पूरी करती है क्योंकि वो उच्च वर्ग है।लाखों लोगों के पास रहने-सोने के लिए जगह नही है।उन्हें घर तक नही मिलता।
बड़े प्राइवेट आफिस या संस्थान में शिकायत सुनी जाती है, प्यार से समाधान किया जाता है आप गाली दो तब भी वो चुप रहते हैं। लोग उन पर ज्यादा ही मर्दानगी दिखाते हैं।जबकि सरकारी आफिस में या छोटे प्राइवेट आफिस-संस्थान में ये लोग कोई मर्दानगी नही दिखाते क्योंकि ये कर्मचारी उनकी पिटाई कर देंगे और वो कुछ नहीं कर पाएंगे । बड़े होटलों में सारे होटल कर्मचारी ग्राहक के सामने बिछ जाते है।शालीनता से पेश आते हैं।ग्राहक की गलती पर भी खुद माफी मांगते हैं।फिर भी ग्राहकों की शिकायत दूर नही होती।कमियां निकाल ही देते हैं।छोटे होटल में जैसा मिलता है,जितना मिलता है,जो मिलता है खा के विदा हो जाते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है यहां तीन दो पांच की तो मार भी अच्छी खासी पड़ेगी। बड़े निजी स्कूल में पढ़ाई से लेकर खेल कूद तक कि सुविधा मिलती है।बच्चो का ख्याल रखते हैं।अभिभावकों की हर शिकायत या सुझाव सर आंखों पर लिया जाता है।फिर भी शिकायतें दूर नही होती।दुर्भाग्य वश कोई अप्रिय घटना घट जाती है तो लोग उस स्कूल को फांसी की सजा सुना देते है।अगर सरकारी स्कूल में कोई अभिभावक शिकायत लेकर पहुंच जाए तो मारपीट लाजमी है।क्योंकि सरकारी कर्मचारी तो महान प्रेतात्माएं हैं .आदमी आदमी नहीं समझते . निजी हस्पताल-बस आदि में और सरकारी हस्पताल-बस आदि में अंतर देख लो, एक दिल खोल के स्वागत करता है दूसरा तमीज़ से बात नही करता।
शहरों से हमें खूब शिकायतें हैं। प्रदूषण, ऊंची और संकरी बिल्डिंग्स, ट्रैफिक, भीड़, झुग्गी झोपड़ी, गरीबी, अपराध, लूटपाट, संस्कृति का लोप, बदतमीजी आदि। लेकिन शहरों ने बहुत से अच्छे काम भी किये हैं। आज़ादी की लड़ाई से लेकर अधिकारों की लड़ाई तक शहरी ही हैं जो आंदोलन करके सरकारों को मजबूर करते हैं।आज़ादी की लड़ाई में शहरी जनसँख्या ने भीड़ जुटाई, कोई गलत कानून बनता है तो शहरी लोग ही धरने प्रदर्शन करते हैं, अपराध के खिलाफ धरने देकर कार्रवाई करवाते हैं, सरकारी विभागों की मनमानी के खिलाफ सड़कों पर उतरते हैं, भर्ष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ते हैं, लाठियां खाते हैं, भूखे रहते हैं, जान गंवाते हैं। धर्म को बचाने की बात हो, त्योहार बचाने की बात हो या संस्कृति बचाने की बात हो ये शहरी ही हर आंदोलन के अगुवा और रीढ़ हैं। बहुत अहसान हैं जिनके हमपर। गाँव वालों को तो पता ही नहीं चलता है कि देश में किस तरह के षड्यंत्र हो रहे हैं, ना उन्हें मतलब है, ना वो देखना समझना चाहते।वो एक साइड में अपने काम में मगन रहते हैं। लेकिन शहरों ने जागरूक रहके, कठिन हालातों में अपनी रोजी रोटी कमाते हुए हर षड्यंत्र का सामना किया है, खुद भी लड़े और देश को भी प्रेरित किया।
उनके द्वारा किये गए अनगिनत आंदोलन - आज़ादी की लड़ाई, आपातकाल के खिलाफ लड़ाई, धर्मान्तरण के खिलाफ लड़ाई, धार्मिक आयोजन, विस्तारवाद के खिलाफ लड़ाई, भ्रष्टाचार खत्म करने का आंदोलन, पशुओं के अत्याचार पर आंदोलन, बलात्कार पर आंदोलन, सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के लिए आंदोलन, राम मंदिर के लिए कार सेवा, धर्म- मंदिर बचाने के लिए आंदोलन, गौ हत्या के खिलाफ आंदोलन, पुलिस के अत्याचारों, कर्मचारी माफिया के गठजोड़ के खिलाफ आंदोलन, पाकिस्तान-चीन के खिलाफ आंदोलन, शहीदों के सम्मान के लिए आंदोलन। आंदोलनों के अलावा वो हर आंदोलन, धार्मिक संस्था, धार्मिक आयोजन, पार्टियों, एनजीओ, सहायता संगठनों को चंदा देकर सहयोग करते हैं, मन्दिरो में चंदा देकर मंदिरों का उत्थान करते हैं, गरीबों को भीख देकर उनका पेट भरते हैं। ऐसे महान लोगों को बहुत बहुत साधुवाद है।
हमारे त्योहार, लोक गीत, लोक नाच और धर्म बचाने में आज सिर्फ और सिर्फ शहरों का योगदान है। गाँव में तो सब खत्म हो चुका है, थोड़ा बहुत बचा है वो भी कुछ साल में खत्म हो जाएगा।
( किसान ) --
किसान के कर्जे को लेकर बहुत बातें हो रही हैं।मैं भी किसान हूँ।हरियाणा के गांव से हूँ।हकीकत जानता हूँ।हरियाणा पंजाब का किसान लोन ना चुका पाए ये हकीकत नही है।कुछ एक आध किले वाले किसान की माना हालत खराब है।बाकी जो 5-7 किले वाले जमींदार हैं वो लोन चुकाने के काबिल हैं।इन प्रदेशो में नहर भी हैं, ट्यूबवेल भी हैं।सरकार ने लोन की सुविधा देकर पूरे देश को खाने की आदत डाल दी है।जिनको लोन की जरूरत नही वो भी लोन ले लेते हैं। किसान भी इस उम्मीद पर लोन लेता है कि कोई ना कोई सरकार लोन माफ कर देगी।जिनको जरूरत नही होती वो भी लोन ले लेते हैं।माफी के चक्कर में बिजली बिल और माल भी नही भरते।जबकि माल साल का 500 रुपये के आसपास होता है। 500 रुपये की तो महीने में बीड़ी पी जाते हैं लेकिन सरकारी पैसा नही भरेंगे।अपने बच्चे को नौकरी लगवाने के लिए 8-10 लाख की रिस्वत के लिए पैसा है ।लेकिन लोन के लिए पैसा नही है।
पंजाब,हरियाणा,दिल्ली,पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान सबसे ज्यादा खुशहाल हैं और सबसे ज्यादा हल्ला भी यही मचाते हैं।सबसे ज्यादा योजनाओं का लाभ,लोन लेना,लोन माफ करवाना,बिजली बिल माफ करवाना,मुवावजा लेना सबमे इन्ही क्षेत्रों के किसान आगे हैं। हड़ताल करने,सरकारों को कोसने में भी यही लोग आगे हैं।कितना ही दे दो इनका कभी भरता नहीं,ना एहसान मानते।पांच-दस प्रतिशत किसान वास्तव में पीड़ित होते हैं।सुख सुविधा की हर चीज इनके घर मे मौजूद है।सारे जश्न धूमधाम से मनाते हैं।अब तो कुछ नए जश्न के मौके भी शामिल हो गए हैं।रोज दारू,महंगे कपड़े,महंगा खाना, महंगा रहन-सहन,महंगे लेन-देन के रिवाज इनके शौक हैं।एक तरफ रईसी दिखाते हैं दूसरी तरफ सरकार से रियायते मांगते हैं।उन रियायतों को दारू में खो देते हैं।अब तो नए शौक मांस खाना और लड़की बाज़ी भी शुरू कर दी।आज के के युवा किसान बीड़ी सिगरेट, दारू,मीट, गर्ल फ्रेंड, रंडी बाज़ी सब तरह के कुकर्म करते हैं।इनमें भी पैसा खर्च होता है।और भी कई तरह के नशे आ गए हैं।लड़कियां भी नशा करने लग गई।बॉय फ्रेंड एक स्टेटस सिंबल हो गया है।बॉय फ्रेंड के साथ नशे की आदत भी लग गई है।जिन लोगो के सिर पर कर्ज हो क्या वो इस तरह ऐश कर सकते हैं।अपनी बुराइयां तो मिटाते नहीं , सरकारों पर इल्जाम लगाते हैं.
जिनके ऊपर कर्ज हो उन्हें नींद नहीं आती थी।आज के कर्जदार ऐश कर रहे हैं।बिहार के किसान मजबूरी में बेचारे हरियाणा-पंजाब के खेतों में मजदूरी करने आते हैं।क्योंकि वहाँ पानी का सही प्रबन्ध नहीं है।वो मजदूर इनके खेतो में तीन-चार महीना कमा के अपना गुजारा कर लेते हैं और ये खुद मालिक होके बोलते हैं हम कर्ज में फंसे हैं।असलियत ये है कि आप कर्ज में जानबूझ के फसे हो।जिनको जरूरत नहीं वो भी माफी के चक्कर मे कर्ज ले लेते हैं।कुछ उसको बचा के रखते हैं, कहीं सम्पति बढ़ाने में इस्तेमाल करते हैं।सरकार से सस्ते ब्याज पर पैसा लेकर महंगे ब्याज पर आगे लोन दे देते हैं।कुछ लोन के पैसे को गलत आदतों में उड़ा देते हैं।अब तो ज्यादा अय्यासी के चक्कर मे जमीन भी बेचने लगे।कुछ साल में पैसा भी खत्म और जमीन भी खत्म। बिहार-झारखण्ड के किसान शायद ही किसी योजना का लाभ उठा पाते हों।खेती भी खास नहीं होती।क्योंकि कहीं पानी नहीं है,कहीं बाढ़ है।नहरे हैं नहीं।फिर भी वो कर्ज में नहीं डूबे।क्योंकि फालतू के कर्ज नहीं लिए उन्होंने।पैसे का गलत इस्तेमाल नहीं किया।जितना है उसमें गुजारा करना सीखा है।यहां कभी किसानों की हड़ताल भी नहीं हुई।ये देश आपका है,इसका पैसा आपका है।सरकार दे रही है तो इसका मतलब ये नहीं कि उसे गलत आदतों में उड़ा दो।फ्री का पैसा समझ कर दारू पी जाओ।सरकारी पैसा भी किसी की मेहनत का पैसा है जो लोगों ने टैक्स के रूप में सरकार को दिया है।
लोगो की सोच हो गई है सरकार का पैसा जितना खाया जाए उतना अच्छा है।लेकिन वो ये नही जानते वो पैसा सरकार का नही जनता का ही है।
पैसा एक ऐसी बीमारी है जो कई तरह के व्यसन साथ लेकर आता है।आज पूरा समाज व्यसनों से भरा पड़ा है।ना कोई किसी की इज्जत करता है।ना किसी से डरता है। ना बड़े छोटे की शर्म करते हैं।किसान के पास सबसे बड़ी दौलत है जमीन।ये दौलत किसी के पास नही है।लेकिन किसान जमीन की इज्जत नही कर रहा है।आज वो जमीन को बेचना चाहता है।जमीन बेचना आसान है खरीदना बड़ा मुश्किल है।कभी अपनी मेहनत की कमाई से जमीन खरीद के दिखाओ।ये जमीन फ्री की मिली हुई है।दादा लाई है।पूर्वजो की निशानी है।इसे आपको बेचने का कोई हक नही है।
जो किसान एक बार जमीन बेच देता है वो जल्दी ही कंगाल हो जाता है।एक बार तो उसे लाखों रुपया मिल जाता है।रुपया मिलते ही वह गाड़ी, शराब, लड़कीबाज़ी जैसे व्यसनों में पड़ कर कुछ ही दिन में सारे पैसे लुटा देता है। फिर ना जमीन बची , ना पैसा बचा , ना कोई और रोजगार।फिर वो बन्दे चोरी-डकैती-खून करना शुरू कर देते हैं।हरियाणा पंजाब में जुर्म बढ़ता जा रहा है इसकी जड़ यही है। खेतों में सारा काम मजदूरों से करवाया जाने लगा है।पहले बैल थे अब ट्रेक्टर आ गए।धरती बुवाने से लेकर, फसल बोना, काटना, निकालना सब मजदूर करते हैं।तो खेती का खर्चा तो बढेगा ही। और एक नई उलझन शुरू हो गई है पड़ोसी से लड़ाई, रिस्तेदारों से लड़ाई,घर वालों से लड़ाई।छोटी छोटी चीजों के लिए मुकदमो में उलझे हुए हैं।नाली के पानी को लेकर लड़ाई, खेत के पानी को लेकर लड़ाई।बहु को काम की बोल दो तो घर मे लड़ाई।बहु के घर वाले और भी हद कर देते हैं।घरेलू हिंसा या दहेज के केस कर देते हैं।मुकदमा लड़ते रहो।पैसा ठगाते रहो बिना किसी वजह के।बहु कहीं अच्छी आ जाये तो लड़का और उसके मां बाप बदमाश मिल जाते हैं।कहीं बहु नहीं जीने देती कहीं बहु को नहीं जीने देते।
जितनी कमाई होती है उससे ज्यादा मुकदमे बाज़ी में चले जाते हैं।व्यसनों में चले जाते हैं।तो कर्ज में कौन फंसेगा?
जो मुसीबत की जड़ है उस पर कोई बात नही करता।कोई सुनना नही चाहता।इन बुराइयों को छोड़ने का उपदेश देने वाले को गालियां मिलेंगीं, मार पीट भी हो जाएगी।क्योंकि इनको चाहिए लोन माफी की बात करने वाले।लोन माफ होगा दूसरा लोन लेंगे फिर उस पैसे से भी ऐश करेंगे और फिर माफी के लिए खड़े हो जाएंगे।
फसलों की कीमतें बढ़ाना सही फैंसला नही है।कीमते बढ़ना किसान, मजदूर और छोटे छोटे नौकरी पेशा , बेसहारा-अनाथ आदमी के लिए मुसीबत बन के आएगा।जिस इलाके में सिर्फ फल-सब्ज़ी होती है वो किसान इतनी महंगी गेंहू, चावल कैसे खरीदेगा।जिन इलाकों में गेहूं चावल होते हैं वो किसान इतनी महंगी सब्जी कैसे खरीदेंगे।हज़ार दो हज़ार पांच हज़ार कमाने वाले मज़दूर, नौकरीपेशा लोग या कुछ भी ना कमाने वाले बेसहारा- अनाथ लोग कैसे खाने के सामान खरीदेंगे।फसल के दाम बढ़ने से एक एरिये के किसान को फायदा होगा तो दूसरे एरिये के किसान को नुकसान होगा। फल सब्जियों के दाम बढ़ने से एक एरिये के किसान को फायदा होगा तो दूसरे एरिये के किसान को नुकसान होगा। ये वो सामान है जो हर आदमी को जिंदा रहने के लिए चाहिए।जिनके पास एक आध किला जमीन है उनको फसल का दाम बढ़ने से क्या फायदा होगा? उनके खेत मे तो मुश्किल से खाने लायक ही फसल होती है।खाने लायक भी नही होती।क्या वो महंगी खाने की चीजें खरीद पाएंगे? कीमते बढ़ाने की बजाए कुछ और उपाय किये जायें तो अच्छा है।नहर हर जगह होनी चाहिए।नदियों को जोड़कर पानी सुचारू रूप से नहरों में छोड़ा जाए।बीज, कीटनाशक, खाद सस्ता होना चाहिए।प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिले। धीरे धीरे जहरीले कीटनाशन ,खाद और नकली बीज बंद हों। बाढ़ और सूखे की हालत में मुआवजा मिले।
पटवारी, तहसीलदार,बिजली विभाग ,वन विभाग आदि परेशान करते हैं।काम ही करके नही देते।उन पर लगाम लगनी चाहिए।
लोन ले लेते हैं , फाइनेंस करवा लेते हैं , जब नही भरते तो बैंक या फाइनेंस कंपनी वाले आते हैं क़िस्त मांगने तो उनको पीटकर भगा देते हैं ऐसे बेशर्म लोग हैं।क्या इनको कोई शर्म या लोन चुकाने का डर या इच्छा या कोई स्वाभिमान है।इंसानियत के जो गुण थे आज वो हरियाणा में तो सौ प्रतिशत खत्म हो चुके हैं।
महाभारत का युद्ध यूं ही नही कुरुक्षेत्र में लड़ा गया।एक किसान भाई ने अपने ही सगे भाई को जमीन के लिए काट डाला था।तभी कृष्ण जी को ये भूमि युद्ध के लिए उपयुक्त लगी।
हमारे ऊपर दस हज़ार का कॉपरेटिव बैंक का लोन था।मेरी माँ दिन रात बस लोन की ही बातें करती रहती थी।रात को सो नही पाती थी।दिन में डरी रहती थी कहीं बैंक वाले ना आ जाएं।कहीं पुलिस आ जाये और बेटे को उठा ले जाये।बैंक वाले भी आकर धमकी दे जाते थे कि गांव में पोस्टर लगा देंगे।पुलिस में रिपोर्ट कर देंगे।हमने वर्षों मां को डरे सहमे बेबस देखा है।लोन ना चुकाने की बेबसी को सहा है।जब लोन चुकाने लायक हुए तो मैंने सबसे पहले बैंक का लोन चुकाया।
मजदूर, किसान, झुगी झोपड़ी वालों की औलाद गर्ल फ्रेंड बॉय फ्रेंड के साथ दो घंटे में 1000 रुपये की फ़िल्म देख के आ जाते हैं चाहे घर मे खाने को दाने ना हो, स्कूल की फीस ना हो।मैं कई राज्यो में रह चुका हूं सबको देख चुका हूं।उस हज़ार रुपये में उनके कई काम हो सकते थे।
लोन की ऐसी आदत डाल दी है सरकार ने लोग इसके चंगुल से बाहर निकलना नही चाहते हैं।किसी को भी देख लो कोई बन्दा लोन चुकाना नही चाहता है।और काम धंधा करके खाना नहीं चाहता।
जाट जब आरक्षण मांग रहे थे तो 36 जात के भाईचारे की बात करते थे।जब आरक्षण समर्थकों को जेल से निकालना था तो 36 जात के भाईचारे की बात करते थे।अपनी बहादुरी के किस्से सुनाते रहते हैं।ऐसे मांग करते हैं कि सब कुछ जाटों को ही मिलना चाहिए बाकी देश भाड़ में जाये।सार्वजनिक मंच पर बोलते हैं हमने सिर्फ भाईचारा फैलाया नफरत नेताओं ने फैलाई।इल्जाम नेताओं पर लगाते हैं।माना बहुत से अच्छे काम किये हैं आपने।सैनिक, किसान, खाप पंचायत कई योगदान हैं।आप ताकतवर भी हैं।जिन दलितों का आज आप समर्थन मांग रहे हैं उनसे आपने कभी ढंग से बात तक नहीं की।गालियां देकर बात करते हैं।उन्हें घर मे , खाट पर बैठने तक नहीं देते।उनकी औरतों पर गलत नज़र रखते हो ।अभी तो दलितों को काम देना भी बंद कर दिया।100-50 रुपये के लिए बाहर से आये लोगों से काम करवाने लग गए हैं।खेती, घर बनवाना, गलियां बनवाना, सड़क बनवाना, फर्नीचर बनवाना , बाल काटना आदि जितने भी काम हैं सब बाहरी राज्य से आये लोग कर रहे हैं।वो बाहरी लोग कानूनी भगोड़े हैं, घुसपैठिये हैं कौन हैं आपको कुछ नहीं पता।आपके खेतो में ,घरों में रहते हैं।क्या आप उनकी आईडी देखते हो, क्या उनका रिकॉर्ड चेक करते हो।क्या उनका घर बार पता है आपको।सस्ते मजदूरों के चक्कर मे आप अपने ही गांव वालों को बेरोजगार कर देते हो। दूसरे राज्य के लोगों को काम मिलना चाहिए लेकिन पहले आप अपने गाँव के भाइयों को काम दो, बाहर से आये लोगों का पता करो वो अपने ही देश के नागरिक हैं या अवैध हैं।आपने अपने ही भाइयो को बेरोजगार कर दिया।फिर आप 36 जात के भाईचारे की बात करते हो।उनसे समर्थन मांगते हो।वो क्यों आपको समर्थन दें।जब आपने उनके पेट पर , उनके सम्मान पर लात मार दी।जब फैक्ट्री आपको रोजगार ना देकर बाहरी लोगों को रोजगार देती हैं या सरकारी विभाग में बाहरी लोगों को ले लिया जाता है तब जो तकलीफ आपको होती है, वही तकलीफ इन दलित , खाती भाइयों को होती है जब आप खेतों में, घर निर्माण में, गली बनाने में,सड़क बनाने में,बाकी और निर्माण कार्यो में इनको काम नहीं देते।
किसलिए आपको आरक्षण चाहिए।पटेल, गुर्जर, जाटों को आरक्षण की जरूरत नहीं है ।अच्छी आर्थिक स्थिति है , अच्छा रुतबा है।आरक्षण की बात करके आपनेे अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारी है।हाँ इसके ढांचे की बात करते तो आपकी बात जायज होती।
जाटों में एक बुराई और है आप अपने माँ बाप को रोटी तब देते हो जब आपको दूसरे भाई से जमीन का ज्यादा हिस्सा मिलता है।बोलते हो फ्री में रोटी कौन खिलाये।अपने माँ बाप को रोटी नहीं खिला सकते? उन्होंने आपके लिए क्या क्या किया।जो जमीन जायदाद, धन आपके पास है या होगा वो भी तो उन्हीं का है।फिर दूसरे भाई से ज्यादा जमीन क्यों चाहिए।अपने ही भाई को पैसा ब्याज पर देते हो।अगर वो मुसीबत में फंसा हो तब भी बिना ब्याज के सहायता नही करते।कितना लालच करोगे।
आपकी वजह से हिन्दू धर्म की ये दुर्गति है।हिन्दू धर्म के लिए तो कभी कुछ किया ही नहीं।कर्मकांड जरूर करते हो।पुरुष मन्दिरो में पूजा करने कंभी नहीं जाते।हिन्दू धर्म की बात आती है तो उसे ढकोसला बताते हो।बातें कड़वी हैं।लेकिन सचाई हमेशा कड़वी होती है।आपकी नस्ल ऐसी हो गई है कि उन्हें लड़की और दारू के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता।
रविश कुमार ने अभी एक बात बोली (मई-2020) कि जाट और गुर्जर सब को अपना लेते हैं।आपका सीना चौड़ा हो गया।उसने एक तीर से दो शिकार किये ।एक तो वो बिहार का है तो उसने सोचा जाटो की तारीफ से बिहारी मजदूरों को काम मिलता रहे, आसरा मिलता रहे।बिहार के युवाओं को दिल्ली, हरियाणा में रोजगार मिलता रहे।दूसरा उस वक्त चर्चा थी कि जाट और गुर्जर शाहीन बाग़ का धरना हटवाने पहुंचने वाले हैं।रविश कुमार ने तथाकथित शांतिदूतों के लिए रास्ता बनाया।दोनों तीर निशाने पर लगे।वही रवीश कुमार आरक्षण में आपको क्या बोलता था? आपकी खाप पंचायतों के बारे में क्या बोलता है? भ्रूण हत्या के लिए आपके बारे में क्या बोलता है? उसको भी याद कर लेते। उस पर भी अमल कर लेते।
आप सिर्फ सस्ते मजदूर-कर्मचारी समझकर अपनाते हो, भाईचारे में नहीं।यही सोच आपके खुद के लिए नुकसान दायक साबित हुई।अगर इतना ही भाईचारा निभाते तो आपके खुद के बच्चे बेरोजगार नहीं घूमते , आपके गाँव के दलित भाई बेरोजगार नहीं घूमते। आपने दलितों के लिए गाँव का रोजगार खत्म किया और फैक्टरियों ने आपके बच्चों का रोजगार बाहरी राज्य के लोगों को दे दिया।वो कम तनख्वाह और ईमानदारी से काम करते हैं।आपकी ईमानदारी फ्लिपकार्ट और स्नैपडील जैसी कंपनियां देख चुकी हैं।जितना सामान पैकेटों से हरियाणा में चोरी होता है उतना कहीं नहीं।ये उदाहरण है बाकी जगह भी आप ऐसे ही काम करते हो।आपके बच्चे आज बंदूक उठाये घूमते हैं।ये स्थिति आने वाले 10 साल में और भी भयानक होने वाली है।
आज हम किसान अपने पुरखों की कमाई हुई जमीन को बेच रहे हैँ। अपने ऐशो आराम, महंगे शोक, नशे या अन्य किसी गलत संगत के कारण हम जमीनों का मोल समझ नहीं पा रहे।फ्री की मिली हुई चीज की कीमत इंसान कुछ नहीं समझता । इसीलिए आज जमीने बेच रहा है।आज उसे लगता है जमीन बेच के लाखों करोड़ो मिलेंगे , जिंदगी ऐश से कटेगी।मै कहता हूँ कि उस पैसे मे सिर्फ तुम्हारी जिंदगी भी नहीं कटेगी।पैसा तो एक दिन ख़त्म हो ही जाता है।अपनी अगली पीढ़ी को क्या देकर जाओगे। तुम्हारी पिछली पीढ़ी ने जमीने बचाई तो तुम्हे मिली। तुम बचाओगे तो अगली पीढ़ी को मिलेगी। वो भी सम्मान की जिंदगी जियेंगे।जमीने किसान का सम्मान हैँ, इज्जत हैँ, डीठोरा हैँ।उसे यूँ बर्बाद ना करो।
जमीने बेचनी आसान हैँ लेकिन खरीदनी बहुत मुश्किल।अपनी थोड़े से समय की ऐश के लिए,थोड़ी सी लग्जरी जिंदगी के लिए इस बेशकीमती जमीन को मत गवाओ।जब ये नहीं बचेंगी तब क्या बेच के खाओगे?
उद्योगपति, नेता, बड़े बड़े लोग ज्यादा से ज्यादा जमीने क्यों खरीद रहे हैँ क्योंकि उन्हे पता है कल राज उसी का होगा जिसके पास जमीने होंगी। वो बिना काम के भी भविष्य के लिए जमीने खरीद खरीद के रख रहे हैँ।।एक हम हैँ मिली मिलाई जमीनों को बेच रहे हैँ।कल जमीनों के बिना रहोगे कहाँ? हमें अपनी जमीनें सरकारी प्रोजेक्टो मे भी नहीं देनी चाहिए।
सरकारो की नजर हमेशा खेती की जमीन पे होती है। कभी सुना है सरकारी प्रोजेक्ट के लिए कोई फैक्ट्री या शहर की जमीन अधिग्रहण की हो। जब उनकी जमीनें अधिग्रहण नहीं होती तो किसानों की क्यों? तर्क ये देते हैँ की फैक्ट्री अधिग्रहण नहीं कर सकते उससे रोजगार और निवेश जुड़ा है, शहर अधिग्रहण नहीं कर सकते उससे लाखो लोग बेघर हो जाएंगे।
क्या खेत अधिग्रहण करने से लोग बेरोजगार नहीं होते,क्या हमने खेतों मे निवेश नहीं किया हुआ है, क्या हम बेघर नहीं हो रहे। अगर फैक्ट्री किसी की सबकुछ है तो खेत भी हमारे सबकुछ हैँ। खेतों के बिना किसान का अस्तित्व कुछ नहीं है।
हमारी जमीन अधिग्रहण करने की सरकार की हिम्मत इसलिए होती है क्योंकि हम खुद बिकाऊ हैँ।हमें लगता है करोड़ो मिलेंगे। खेत मे लटापीन नहीं होना पड़ेगा, काम नहीं करना पड़ेगा । काम तो भाई फिर भी करना पड़ेगा। दो चार साल बैठ के खा लोगे। अब अपने खेतों में काम करते हो। फिर दूसरों के यहाँ काम करना पड़ेगा।
जिनके पास जमीन नहीं हैँ उनसे पूछो क्या बीतती है।जमीन भी नहीं, नौकरी भी नहीं, और किसी दिन काम भी ना मिले तो रोटी मिलनी भी मुश्किल हो जाती है। आज रोटी कैसे मिलेगी सोच कर ही रूह कांपति रहती है।तुम्हे कुछ नहीं तो जमीन खाने को तो दे रही है। सुबह जाके अपने खेत मे काम पे तो लग सकते हो। मजदूर तो दूसरों के भरोसे है, काम मिले तो मिले, ना मिले तो ना मिले।जो लोग जमीनें बेच चुके हैँ।उनकी हालत आज क्या है, कम से कम उनको देख के सबक ले लो।बाद में पछताने से कुछ नहीं होगा। ना जमीन वापिस आएगी, ना तुम खरीद पाओगे।
सरकार उद्योगों को, पूंजीपत्तियों को, संस्थाओं को, ट्रांसपोर्टरों को सस्ती दरों पे जमीन देती है।जबकी उनके पास अनाप शनाप पैसा है।बोलते हैँ इससे रोजगार बढ़ेंगे। ये किसानों को सस्ती दरों पे जमीन क्यों नहीं देते? हम गरीब भी हैँ, रोजगार भी देते हैँ, सबसे बड़ी चीज दुनियां का पेट भरते हैँ। अनाज की कमी नहीं होने देते।उधोगो से जमीन, पानी तथा वायु सब खराब हो रहे हैं।कई तरह की बीमारियां जन्म ले रही हैं।
उद्योगों से जितना रोजगार मिलता है, उससे ज्यादा लोग बेरोजगार हो जाते हैं।एक परिवार के सारे सदस्य खेती पर निर्भर करते हैं।सबको खेत रोजगार दे देता है।लेकिन उधोग लगने पर उस परिवार के एक सदस्य को नौकरी मिलती है।वो भी गारंटी नही.उस परिवार की आने वाली पीढ़ी को तो नौकरी मिलती ही नही।जमीन पीढ़ियों तक सेवा करती है।जमीन बिकने से जो पैसा मिलता है वो कुछ साल में खत्म हो जाता है।फिर आदमी ना घर का रहता , ना घाट का रहता।एक किसान के लिए जमीन ही उसकी ताकत और जीने का सहारा होती है।जमीन कभी भी धोखा नही देती।एक सर्वे करके जितनी जमीं अधिग्रहण की उसमे कितने परिवार और उनके सदस्य बेरोजगार हुए और वो फैक्ट्री लगने से कितनो को रोजगार मिला उसका आंकड़ा निकाल के देख लो हकीकत सामने आ जाएगी। बेरोजगार का आंकड़ा ज्यादा मिलेगा क्योंकि पुरे के पुरे परिवार बेरोजगार हो जाते हैं।
खेती के प्रति हमारा खुद का नजरिया ही गलत है। हम खेती को हीन दृष्टि से देखते हैँ, खुद को सम्मान नहीं देते।खेती ने हमें सबकुछ दिया है, हमें पाला है, हमारी पिछली पीढ़ियों को पाला है। फिर भी हमारे खेती के बारे मे गलत विचार हैँ।कम से कम हमें अपने विचार तो बदलने चाहिए।
( किसान समस्या - आंदोलन )
किसान आंदोलन में शामिल किसानो पर दो आरोप लग रहे हैं।
1. सिर्फ हरियाणा पंजाब के किसान ही क्यों आंदोलन कर रहे हैं बाकी देश में क्या किसान नहीं हैं।
2. किसान आंदोलन में सिर्फ जाट किसान हैं। बाकी जाति क्यों नहीं. क्या वो किसान नहीं.
तक़लीफ़ तो सबको होती है लेकिन लड़ने का साहस किसी किसी में होता है। मुगलों से मुट्ठी भर लोग ही लड़े थे। सोचो अगर सब लड़ते तो क्या मुगल भारत पे हमले करते, क्या राज़ कर पाते। अंग्रेजो से मुट्ठी भर लोग ही लड़े थे। अगर सब लड़ते तो क्या वो राज़ कर पाते। उन स्वतंत्रता सेनानियों को भी यहीं बोला गया था, मुट्ठी भर लोगों को ही क्यों तकलीफ हो रही है। क्या हमारे क्रांतिकारी पागल थे जो अपना जीवन बलिदान दे गए। वो भी यही सोच लेते बाकी नहीं लड़ रहे तो हम भी नहीं लडेंगे . आज़ादी उनके काम थोड़े ही आई। वो तो आज़ादी से पहले ही बलिदान हो गए। उनको क्या मिला?
हर कोई इतना होशियार नहीं होता कि वो साज़िश समझ जाए। हर कोई नेतृत्व करने वाला भी नहीं होता। कोई कोई होता है जो नेतृत्व कर सके. पहले वो पहले वो के चक्कर में तो कोई सामने नहीं आ पाएगा इसलिए जाट पहले आगे बढ़ते हैं।
अब सरकार की मानसिकता की बात करते हैं।
किसानों की राह में कीलें बिछा दी. उन्हें दिल्ली नहीं जाने दे रहे. किसान शांतिपूर्वक दिल्ली क्यों नहीं जा सकता।
बाकी लोगो को तो सरकार रोकती नहीं। कर्मचारी हर दूसरे महीने आंदोलन करते हैं। सरकार कुछ नहीं कर पाती. तुरंत उनकी सैलरी बढ़ा देती है। सच्च ये है कि ये मिलके देश को लूट रहे हैं।
शाहीन बाग में लोग कितने दिन बैठे रहे सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की।
सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी एक्ट रद्द किया तो एससी एसटी वाले सड़कों पे उतर गए सरकार ने उनके रास्ते में किले नहीं बिछाई। तब तो सरकार तुरंट झुक गई।
1000 समलैंगिक धरना देते हैं, सरकार उनके लिए कानून बना देती है। उनके आगे झुक जाती है.
पहले बॉलीवुड ने देश की संस्कृति को खत्म किया अब सरकार कानून ऐसा बना रही है , देश में भारतीय संस्कृति नाम की चीज नहीं बचेगी।
अब आख़िर में बात करते हैं सरकार देश की सबसे बहादुर कौम को ख़तम क्यों और कैसे करना चाहती है।
अगर लड़ने वाले नहीं रहेंगे तो सरकार मनमानी कर सकेगी। लुटते रहेंगे.
सबसे बहादुर कौम है जाट ( सभी तरह के जाट ). पूरी दुनिया अपनी सर्वश्रेष्ठ चीज को बचाना चाहती है। उनके लिए विशेष प्रबंध करती है। और हमारे देश में उनको नष्ट किया जाता है।
जैसे जैविक खेती, आयुर्वेद, गुरुकुल, नाड़ी वैद्य, हमारी वैदिक विज्ञान, सरकार सब ख़त्म कर चुकी है। अब भैंस को गर्भ नहीं ठहर रहा है, बांझ हो रही है। जब से हस्पताल में बीज आया है तब से ये दिक्कत शुरू हुई है। आगे-आगे इंसान भी बांझ होते जा रहे हैं। क्या इनमें साजिश की बू नहीं आती.
अब बारी है जाट नस्ल की। जाटों को कैसे ख़तम किया जा रहा है , वो देखिये।
कुछ नस्ल खास होती हैं जैसे मुर्रा भैंस। उन्हें बचाने के प्रयास होने चाहिए।
1. खेती की ज़मीन इक्वायर - हरियाणा पंजाब छोटे छोटे राज्य हैं। यहां की सारी जमीन हड़प ली जाएगी। अब ये किसानों को भी समझ नहीं आ रहा है। उनको अच्छा पैसा मिल रहा है, वो धड़ाधड़ बेच रहे हैं। 4-5 साल में पैसा भी खत्म, जमीन भी खत्म, नौकरी भी नहीं मिलती है ।
हमारी जमीन फैक्ट्री, सड़क, हाईवे, हाउसिंग सोसाइटी के नाम पर हड़पी जा रही है। जहां रोड की खास जरुरत नहीं वहां भी रोड निकाले जा रहे हैं। क्योंकी ज़मीन हड़पनी है। जब आपके पास जमीन ही नहीं रहेगी तो उस रोड को क्या चाटोगे, क्या करोगे उसका, उस रोड पर चल के कहां जाओगे। फसल तो रहेगी नहीं , जो उसे बेचने जाओगे। हाउसिंग सोसायटी में आपको घर मिलेंगे नहीं। ये हाउसिंग सोसायटी आपके क्या काम आएंगे। फैक्ट्री में आपको नौकरी नहीं मिलेगी। ज्यादा से ज्यादा एक व्यक्ति को नौकरी दे देंगे।वो फैक्ट्री जो आपकी जमीं पे बनी है वो आपकी अगली पीढ़ी को एक नौकरी भी नहीं देंगी. अगली पीढि़ कहाँ जायेगी। तुम्हारे बाप दादा जमीन छोड़ के गए तो आज तुम इज्जत की जिंदगी जी रहे हो। फैक्टरियो से जितने को रोजगार मिलते हैं उससे ज्यादा बेरोजगार होते हैं।भविष्य उसी का है जिसके पास जमीन होगी। तुम्हारी जमीं हड़प ली जायेगी।
2. आपको विदेश में भगाया जा रहा है। पंजाब विदेश में सेटल हो चुका है। अब हरियाणा विदेश की तरफ भाग रहा है। आधे बच्चे रास्ते में मारे जाते हैं।आधे मंजिल पर पहुंचने के बाद मारे जाते हैं, क्योंकि वहां वो गलत राह पकड़ लेते हैं या गलत लोगो के हाथों में फंस जाते हैं। उनके परिजन यहां उनकी याद में मारे जाते हैं। जो उनकी जमीन, घर-बार यहां है उन पर कल किसके कब्जे होंगे। आप विदेश जा नहीं रहे, आपको बेजा जा रहा है। एक तो आपकी जमीं हड़पने के लिए, दूसरा बहादुर कौम को ख़तम करने के लिए।
3. नशा - आपको नशे का आदी बनाया जा रहा है। पंजाब नशे की गिरफत में है. आधा हरियाणा गिरफ़त में आ चूका है। जो किसानो की राह में किल बिछा सकते हैं, जो लव मैरिज वालों को वीवीआईपी सुरक्षा दे सकते हैं, जो ऑनर किलिंग पर गांव को छावनी बना सकते हैं, जो कोरोना का मरीज मिलने पर गांव को छावनी बना सकते हैं, जो एससी एसटी केस में गांव को छावनी बना सकते हैं, क्या नशा नहीं रोक सकते? लेकिन ये क्यों रोकेंगे इन्हें तो हमारी नस्ल ख़तम करनी है। जो इनके खिलाफ बोलेगा उसे पकड़ लेंगे।
4. अन्तर्जातीय विवाह - ये भी एक साजिश है। जाटों (सिख या हरियाणवी) की शादी दूसरी जाति में होगी तो नस्ल ख़राब होगी। औलाद कमजोर और बुद्धिहिन पैदा होगी। जाट लड़ाकू हैं और लड़ाकू इन्हें पसंद नहीं। अगर ये साजिश नहीं है तो फिर ये अन्तर्जातीय शादियों पर पैसा क्यों दे रहे हैं। अब कुछ बोलेंगे कि ये जाटों को ख़तम क्यों करना चाहेंगे इन्हें सैनिक भी तो चाहिए। भाई भविष्य में युद्ध रोबोट, ड्रोन, मिसाइल लड़ेंगे। अब कुछ बोलेंगे की जाति-जाति खेल रहा है। भाई जाति-जाति तो वो खेलते हैं जिन्होनें संविधान में तो जातियां लिख रखी हैं लेकिन अगर हम जाति का नाम ले दे तो जेल में डाल देते हैं।। जो जाति के नाम पर वोट, आरक्षण, नफा नुकसान , जातिगत जनगणना का खेल खेल रहे हैं और हम जाति का नाम ले तो जेल में डाल देते हैं। जातियाँ जरूरी हैं, बुज़ुर्ग पागल नहीं थे. आज के युग में भी इन्होनें ग्रुप, ब्लड ग्रुप विभाग, पद, यूनिट आदि ये सब बना रखे हैं। हमारे बुजुर्गों ने जाति बनाई थी, अच्छे के लिए। किसी को ऊंचा नीचा दिखाने के लिए नहीं। कुछ लोग किसी चीज में पारंगत होते हैं, कुछ लोग किसी चीज में। सबका अपना अपना हुनर है. एक देश को बनिया भी चाहिए, बहादुर लड़ाके भी चाहिए। गुरु गोविंद सिंह जी ने वो 5 सिख ही क्यों बनाये। वहां तो उनके कई अनुयायी बैठे थे. किसी को भी सिख बना देते।
जातियाँ इसलिए बनाई थी ताकी देश अपना सर्वश्रेष्ठ कर सके। क्षत्रिय युद्ध लड़ेंगे तो जीतने के मौके बढ़ जायेंगे। वो अपना सर्वश्रेष्ठ देंगे। वैश्य व्यापार करेगा तो देश की अर्थव्यवस्था उच्चतम होगी। मजदुर मजदुरी करेगा तो उसमें इतनी काबिलियत है कि वो मकान या फैक्ट्री की नीव को दूसरे से ज्यादा मजबुत बनाएगा।
जब करोड़ो वर्षो से हम जातियो में रहते आ रहे थे, अपनी जातियो की रश्म निभा रहे थे, अपनी जातियो में शादी कर रहे थे, तब कोई दिक्कत नहीं हुई, आज 50-60 साल में कौन सी आफत आ गई। ये आफत आई नहीं लाई गई है.
एक वर्ग है पारसी जो पारस (ईरान) से भाग कर आये थे। व्यापारी वर्ग है, लड़ाकू नहीं। उनको बचाने के लिए सरकार विशेष योजना चला रही है। पारसी समुदाय के लोगों को शादी करने, बच्चे पैदा करने पर सरकार पैसे देती है। बुज़ुर्गो को 10000 रूपये महीना पेंशन देती है। पारसी लड़की किसी दूसरे समुदाय में शादी करे तो पारसी समुदाय से बाहर कर दिया जाता है । ये योजना देश की सर्वश्रेष्ठ नसल को बचाने के लिए क्यों नहीं चल रही। क्योंकि इन्हें व्यापारी चाहिए जो इनकी झोलिया पैसे से भर सके, लड़ाकू नहीं जो इनकी गलत नीतियों का विरोध करे।
5. एससी एसटी एक्ट- जाति क्यों जरूरी है ये मैंने आपको ऊपर बता दिया। एससी एसटी एक्ट हमें आपस में ख़तम करने के लिए लाया गया है। आप लोग जानते ही हो ये केस कितने सही हैं कितने झूठ। इस कानून से पीड़ितों की संख्या बढ़ती जा रही है। एक दिन ऐसा आएगा पूरी सामान्य जाति जेल में होगी। हां आपस में लड़ेंगे मरेंगे. क्योंकि किसी एक वर्ग पर मुक़दमे होंगे और कहीं उसकी सुनवाई नहीं होगी तो वो क्या करने की सोचेगा। आप खुद समझदार हो.
यहीं इनकी चाल है कि हम आपस में ही मरने मारने के लिए लग जाएं। इनकी सत्ता चलती रहे.
6. खाप पंचायत ख़तम कर दी. पहले हम अपने फैंसले पंचायत के माध्यम से करते थे.आज कानून बीच में है. हमने लुटने के लिए वहां जाना पड़ता है। जो झगड़ा पंचायत में सुलझ सकता है , उसके लिए थाना तहसील में जाओ। वहां खर्चा और समय दोनो लगते हैं।
जब ये अपना मामला पार्टी की बैठक, समिति, उधोग संगठन में आपस में सुलझाते है तो हम क्यों नहीं।अपने नेताओ पर व्हिप का बंधन डालते हैं। विधायकों को हाईजैक कर के हॉटलो में रखते हैं। तब संविधान का तमाशा नहीं बनता. बॉलीवुड में भी ऐसी ही एक संस्था बनी है।वो भी अपने मुद्दे संस्था के जरिए सुलझाते है.
7. गाँव में तरह तरह के लोग आते हैं। चोरी, खून, बच्चों की किडनैपिंग होती है। और जब कोई पंचायत ये फैसला करती है कि हमारे गांव में कोई ऐरा गैरा नहीं घुसेगा या गांव का ही कोई गलत आदमी है उसका हुक्का पानी बंद कर दिया जाता है तो कानून वाले पकड़ ले जाते हैं। क्यों ? जब सारे देश में संवैधानिक संस्थाओ में फ़ैसले बहुमत से होते हैं, तो गाव में क्यों नहीं। संसद, कोर्ट , चुनाव हर जगह बहुमत माना जाता है। आप भी संसद से सांसद को बाहर करते समय , सांसद को चुनने वाले लोगो से पूछते हैं। कोर्ट में भी फ़ैसले बहुमत से लिए जाते हैं। आपके कार्यालय में, देश की संपत्ति संसद में, आपके रिहाईशी इलाको में, आपकी सोसायटी में किसी को घुसने नहीं दिया जाता। सुरक्षा बैठा रखी है. तो गाव वालो की जिंदगी सस्ती है क्या। गाव वाले ये तय नहीं कर सकते उन्हें किस्से मिलना है, किस्से बात करनी है। दो बड़े बॉलीवुड स्टार एक दूसरे का बहिष्कार करते हैं, आप वहां कानून क्यों नहीं लेके जाते। दो बड़े टेनिस स्टार अपनी निजी दुश्मनी में भारत के लिए एक साथ टूर्नामेंट नहीं खेलते, देश हार जाता है। आप उन्हें क्यों नहीं पकड़ते. दो बड़े क्रिकेटर आपस की लड़ाई में एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। एक अपनी कप्तानी में दूसरे को बाहर बिठा देता है , देश हार जाता है, आप उसे क्यों नहीं पकड़ते।
( इतिहास ) --
हम सब भगत सिंह जी के दीवाने हैं।मैंने कहीं पढ़ा था कि भगत सिंह जी से किसी अंग्रेज ने पूछा था कि आप भारतीयों ने अंग्रेजो के खिलाफ आज़ादी के आंदोलन छेड़े मुगलों के खिलाफ क्यो नहीं छेड़े? तो उन्होंने बोला अंग्रेज हमारा खजाना लूट लूट कर अपने देश ले गए।और मुगलों ने यहां का खजाना यहीं रखा।वो कुछ लूट कर नहीं ले गए।शिक्षा व्यवस्था ,वेद , आयुर्वेद , वैद्य , भक्ति अंग्रेजों ने जरूर चौपट की. लेकिन हम आज़ादी के बाद इन्हे पुनर्स्थापित कर सकते थे जो नहीं किया गया।
क्या भगत सिंह जी का सोचना गलत नहीं था।अंग्रेजो के घाव तो भर गए।वो तो 300 साल राज किये और देश छोड़ कर चले गए।कोई अंग्रेज हमारे देश मे नहीं बचा।हमारी एक इंच जमीन उनके कब्जे में नहीं बची।पूरी जमीन हमे मिली।धन तो आता जाता रहता है।हमारी औरतों की इज्जत से नहीं खेले।और बहुत सी चीजें हमे देकर भी गए।टेक्नोलॉजी, समय से काम करना, रेलवे, साइंस आदि।रही बात शहीदों पर हुए जुल्मो की तो हुकूमत कोई भी हो अपने खिलाफ उठने वाली आवाज़ को दबाने की ही सोचती है।आज़ाद भारत मे भी आंदोलनों में लाठी चार्ज होता है, गोलियां चलती हैं।हर तरह का जुल्म होता है।पुलिस थर्ड डिग्री देती है।अमानवीय और अप्राकृतिक यातनाएं देती है।अंग्रेजो के जुल्म मुगलों के जुल्मो से कम ही थे।
मुगलो का दौर तो बहुत ज्यादा ख़ौफ़नाक था।सामूहिक जबरदस्ती धर्मपरिवर्तन , बलात्कार, सामूहिक हत्याएं, गावँ के गावँ जलाना,लूटना, जमीनों पर कब्जा,हमारा धन लूटकर ले के जाना ,युद्ध के सारे नियम तोड़ना,छल कपट से हमारे वीर राजाओं, सेनापतियों की हत्याएं करना, मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाना , हमारी ऐतिहासिक इमारतों पर कब्ज़ा करके उन्हें अपने नाम पे करना,बच्चों को जिन्दा चिनवा देना , आरी से काट देता आदि. मुग़लों ने तो हमे हर तरह से लुटा।हमारा खज़ाना भी लूटकर ले गए।हमारी औरतों की इज्जत से भी खिलवाड़ किया।लाखों औरतों ने जोहर किये।लाखों लोगों के धर्मपरिवर्तन हुए।लाखों बच्चे मारे गए।गावँ के गावँ मार दिए गए।मंदिरों को तहस नहस किया गया।मंदिरों का खजाना लूट के ले गए।हमारे भगवानो की मूर्तियां तोड़ी गयी उनका अपमान किया गया।मनुष्यों के साथ साथ पशुओं पर अत्याचार हुए।बूचड़खाने खुल गए, मांसाहार शामिल हो गया।
सबसे बड़ी चीज वो यहीं रहे हमारी जमीनों पर कब्जा किया।हमारे असली नागरिक बिना जमीन सड़कों पे पड़े हैं और वो आज भी यहीं रह रहे हैं।हमसे ज्यादा जमीन उनके कब्जे में हैं।हमारे ही देश को काट के कई देश बन गए है और अब और नए देश बनाने की तैयारी में हैं।हमें टुकड़े टुकड़े कालांतर में किया और टुकड़े टुकड़े भविष्य में होने वाले हैं।मुगलों के घाव कभी नहीं भर पाएंगे।लेकिन फिर भी अंग्रेजो का रोना रोते हैं, मुगलों का जिक्र नहीं।मुझे तो ताज्जुब हो रहा है कि मुग़लों के इतने जुल्म के बावजूद उनके खिलाफ आज़ादी के आंदोलन क्यों नहीं हुए? हमारे धर्म स्थल तोड़े गए, सबसे बड़े राम मंदिर, कृष्ण मंदिर, विश्वनाथ मंदिर तोड़े गए।कोई विरोध नहीं हुआ। अगर मुग़लों के खिलाफ आंदोलन होते तो हम अंग्रेजो के गुलाम ना बनते।आज इतिहास कुछ और होता।मुस्लिम हमारे देश मे स्थाई निवासी ना बनते।हमारी जमीनों के हिस्सेदार ना बनते।हमारे संसाधनों के हिस्सेदार ना बनते।जनसंख्या विस्फोट ना होता।देश का धन बर्बाद ना होता।अनाज की कमी ना होती।जमीनों की कमी ना होती।इतनी गरीबी ना होती।देश विकसित होता।
मुझे लगता है अंग्रेजो का आना हिंदुओ के लिए जीवनदान ही था।अगर अंग्रेज ना आते तो शायद हिंदुओ का नामोनिशान मिट जाता।पूरे दक्षिण एशिया में हिन्दू थे।भारत कितना बड़ा देश था।धीरे धीरे करके हिन्दू खत्म होते गए।नए देश बनते गए।और भारत सिकुड़ गया।वो सिलसिला जारी है आगे शायद और भी बहुत कुछ देखना बाकी है।कल शायद कोई और हिस्सा मुस्लिमों को दे दिया जाए और कोई नया देश बन जाये।अगर नया नहीं बना तो इसी देश से हिन्दू खत्म होकर ये मुस्लिम देश बन जाएगा।जिस तरह से मुस्लिमों की आबादी बढ़ रही है।देश मे अवैध घुसपैठ हो रही है।वो दिन दूर नहीं जब हिन्दू अल्पसंख्यक होंगे और फिर मिट जाएंगे।आज जो सेक्युलरिज़्म की बात करते हैं, मुस्लिमों पर जुल्म का झूठा ढिंढ़ोरा पीटते हैं, कल जब हिन्दू इस देश से भगाये जायेंगे तो ये दिखाई भी नहीं देंगे।आज भी जिन इलाकों में मुस्लिम बहुसंख्यक है वहां हिंदुओ पर हो रहे जुल्मों पर सेक्युलरवादी- मानवाधिकार-सरकार- राजनीतिक पार्टी- पुलिस- न्यायालय सब चुप हैं।चाहे वो दिल्ली के इलाके हों, बंगाल हो, केरल हो, मेवात हो , कैराना हो या कोई और इलाका।ना ही विश्व समुदाय हिंदुओ के खात्मे पर कुछ बोलता है।पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओ का सफाया हो गया। लेकिन विश्व के सारे देश चुप हैं।कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाते।जब तक हिन्दू बहुसंख्यक हैं तब तक ये हमे मानवाधिकार का पाठ पढ़ाते हैं। जैसे ही हिन्दू अल्पसंख्यक होते हैं और मारे काटे जाते हैं सारे मानवाधिकारी बिल में घुसकर गहरी नींद सो जाते हैं. हिन्दुओ के कोई मानवाधिकार नहीं हैं.
कितने मुस्लिम आज़ादी की लड़ाई में शामिल हुए? कितने शहीद हुए? कितने प्रतिशत जनसंख्या थी उस वक्त मुस्लिमो की और कितने प्रतिशत शहीद हुए।कितने प्रतिशत ने आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया।निकाल कर देखो शायद हकीकत सामने आ जाये।ये तो उस वक्त भी हिन्दुओं के जोर जबरदस्ती धर्मान्तरण में लगे हुए थे. स्वामी दयानन्द जी और स्वामी श्रदानंद जी जैसे साधू संतो ने हिन्दुओ को बचाया था. जो ये तथाकथित भीम बनके घूम रहे हैं इन्होंने मुगल और अंग्रेजो के खिलाफ कितनी कुर्बानियां दी,कितनी लाठियां खाई, कितने शहीद हुए।क्या रोल था इनका उस दौर में?
जो अंग्रेजो और मुगलो के चापलूस- मुखबिर थे उन्होंने देश के लिए क्या किया।कितने शहीद हुए? उस जमाने मे भी मलाई खाई।आज भी मलाई खा रहे हैं।जैसे ही अंग्रेज गए उनकी सीटों पर ये बैठ गए।जिन्होंने कुर्बानियां दी वो बेचारे खाली के खाली रह गए।यानी जब भी देश पर मुसीबत आये तो जुल्म कोई और सहे, कुर्बानी कोई और दे, लड़ाई कोई और लड़े, लाठियां कोई और खाये, घर-परिवार कोई और त्यागे।लेकिन संसाधनो का मजा कोई और ले, फ्री की रोटियां कोई और तोड़े, कुर्सियों पर कब्ज़ा किसी और का हो, देश का धन किसी और पर लुटाया जाए।
जब फायदे की बात हो तो पहली पंक्ति में चापलूस - षड़यंत्र कारी लोग मिलेंगे और जब जान से खेलने की, देशभक्ति दिखाने की बात हो तो ये लोग किसी भी पंक्ति में नहीं मिलेंगे।
गुलामी (अंग्रेज और मुगल दोनों दौर में ) के दिनों में भी किसानों का योगदान बहुत जबरदस्त था।चारों तरफ हाहाकार था।काम धंधे नहीं थे।लोग बेरोजगार थे।गरीब थे।लाचार थे।किसी के भी घर मे कभी भी कोई भी मारा जाता था।अनाथ थे, विधवा थी कोई कमाने वाला नहीं था।कमाने का कोई जरिया भी नहीं था। किसी भी वक्त बेमौत किसी की मौत हो जाने पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता था। खाद बीज की समस्या थी। सूखे और पानी की समस्या थी। लगान लगते थे। ऐसी कठिन परिस्थितियों में किसान भरपूर अनाज उगाता था और लोगों की जरूरतें पूरी करता था।खेती करने के इतने संसाधन नहीं थे।सारा काम खुद अपने हाथ से , अपने बैलों के साथ करते थे।महीनों लगते थे फसल निकालने में।लेकिन किसानों ने जुल्मो के बीच , उथल पुथल वाले माहौल में देश को भूखा नहीं मरने दिया।दादा जी बताते थे कि फसल से पूरा घर भर जाता था।रखने की जगह नहीं बचती थी।बचपन मे हमने भी घर भरते देखा है।लेकिन आज सारे संसाधनों के बावजूद, हरित क्रांति के बावजूद, बढ़े हुए सरकारी आंकड़ों के बावजूद हमे घर अनाज से भरा हुआ दिखाई नहीं देता है।सरकार, ठेकेदार, व्यापारी और खुद किसान आज खेती की जमीन को खत्म करते जा रहे हैं।आधुनिकता की दौड़, अय्याश जिंदगी जीने की तमन्ना में सब कुछ बर्बाद होता जा रहा है।वातावरण खराब हो रहा है, लोग मांसाहारी बनते जा रहे हैं, पशुओं पर क्रूरता बढ़ रही है, अनाज की कमी हो रही है, दो तरह की ही फसल बची हैं बाकी फसलों पर कोई ज्यादा ध्यान नहीं दे रहा, खुले खुले गांव- खुले घर-आंगन से हम छोटे छोटे घरों-कमरों में सिकुड़ गए, शहरों में डर का माहौल, प्रदूषण, ट्रैफिक जाम , सामूहिक जीवन- सयुंक्त परिवार से एकांकी-निजी जीवन शैली में तब्दील हो गए हैं।हमें स्मार्ट शहर नहीं स्मार्ट गांव चाहिए।
कश्मीर में हुए हिन्दू नरसंहार और पलायन पर देश के सेक्युलर,कानून , अदालत, सरकार , पक्ष विपक्ष और विश्व बिरादरी चुप थे।मस्जिदों से हिन्दुओ को कश्मीर छोड़ने की धमकी दी गई। सामूहिक हत्याएं हुई। गांव के गांव जला दिए। औरतों के सामूहिक बलात्कार हुए। लेकिन किसी भी संस्था को इस उत्पीड़न में कोई पाप नजर नहीं आया। कोई असहिष्णुता , धार्मिक उत्पीड़न , मानवाधिकार उल्लंघन नजर नहीं आया। १९८४ में सिखों के नरसंहार पर चुप थे।मुस्लिम बहुल इलाकों में हिन्दुओ के उत्पीड़न की घटनाओं से देश का माहौल ख़राब नहीं होता। देश की छवि ख़राब नहीं होती।
एक मुस्लिम प्रधानमंत्री बनता है (जवाहरलाल नेहरू ) और उसके मंत्रिमंडल में एक मुस्लिम (मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ) शिक्षा मंत्री बनता है तो देश की शिक्षा व्यवस्था चौपट कर देता है. हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ पढ़ाना प्रतिबंधित हो जाता है.हिन्दुओ के विरुद्ध कानून बनाये जाते हैं। देश का इतिहास बदल देता है और गलत इतिहास लिखवाया जाता है जो आज तक हमें पढ़ाया जा रहा है। बहुत कम समय के लिए एक मुस्लिम गृह मंत्री (मुफ़्ती मोहम्मद सईद ) बनता है तो कश्मीर से हिन्दुओ का पलायन करवाया जाता है।मुस्लिमों का एजेंडा साफ है हिन्दू खत्म करके मुस्लिमतान बनाना।
वीर सावरकर जी ने आज़ादी में बड़ा योगदान दिया।बहुत जुल्म सहे।लेकिन कॉंग्रेस ने उनका इतिहास बदल दिया।उन्हें गद्दार घोषित कर दिया।आज़ादी में कोई योगदान नहीं माना। सचाई छुप नहीं सकती।वो लोक कहानियों में जिंदा रहती है।नेहरू ने भारत एक खोज किताब के जरिये भारत के इतिहास को बहुत तोड़ा मरोड़ा।कई लोग उसे सबसे सटीक किताब मानकर वही भारत का इतिहास मानते हैं और नेहरू को बड़ा इतिहासकार।सावरकर जी ने अगर जुल्मों से तंग आकर माफी मांग भी ली होगी तो कौन सा गुनाह किया।इतना जुल्म कोई कैसे सहे।क्या गांधी नेहरू सह लेते।उन्होंने तो कभी एक लाठी नहीं खाई।फिर भी हमारे क्रान्तिकारियों का सौदा कर देते थे।भक्त सिंह जी, चंद्र शेखर आज़ाद जी, सुभाष चंद्र बोस जी का सौदा किसने किया।इतिहास को छुपा लिया गया।सही इतिहास सामने आता तो कई क्रांतिकारियों के खून की कहानी सामने आती।कौन गद्दार थे।पाकिस्तान बनाकर लाखों लोगों का खून किसने बहाया।फिर भी सारे सम्मान,संसाधनों पर पहला हक़ उन गद्दारो को ही मिला । देश की सत्ता उन्हें ही मिली। कौन सी कुर्बानी दी इन लोगों ने कोई एक कुर्बानी बताइए।
( विदेश निति ) ---
हमारी विदेश निति कभी भी आक्रामक नहीं रही है। हम बचाव की मुद्रा में रहते हैं. जो देश हमारे साथ हर वक्त खड़े रहते हैं हम उनका ही साथ नहीं देते। किसी से दो टूक बात नहीं कर सकते। छोटे छोटे देश हमें आँखे दिखाते हैं. सही को सही , गलत को गलत बोलने में हमें झिझक होती है.
हम सयुंक्त राष्ट्र संघ में इज़राइल के खिलाफ फिलिस्तीन को वोट देकर आ जाते हैं । मोदी जी की सरकार में भी यही निति अपनाई जाती है ।फिलिस्तीन हमारे किसी काम का नहीं है,और आतंकवादी देश भी है और इज़राइल हर जगह हमारे काम आता है। युद्ध मे हमारी मदद करता है।अंतराष्ट्रीय स्तर पर हमारे समर्थन में बोलता है। हमे हथियार देता है।रूस ने हमे हर युद्ध में बचाया , आगे भी बचाता रहेगा। लेकिन हम कभी भी निर्णायक मोड़ पर रूस का साथ नहीं देते। अमेरिका ने कभी हमारा साथ नहीं दिया. अमेरिका पाकिस्तान को फंडिंग तक करता रहा है. फिर भी हम अमेरिका और रूस की लड़ाई में रूस के साथ नजर नहीं आते। हम अमेरिका ईरान की लड़ाई में ईरान का साथ देते हैं। सरकारों को क्या सोच है क्या नहीं। हैरानी की बात ये है कि चाहे किसी भी दल की सरकार हो विदेश निति यही रहती है।
अभी एक हमला ( 2020 ) अफ़ग़ानिस्तान में गुरुद्वारे पर हुआ और हमारे सिख भाई मारे गए।पूरी दुनिया मे ऐसे ही हिंदुओ- सिखों पर हमले हो रहे हैं।मॉरिशस, मलेशिया,बंगलादेश,अफ़ग़ान, पाकिस्तान, भारत के मुस्लिम बहुल इलाके कहीं भी हिन्दू सुरक्षित नहीं है।लेकिन कोई भी सरकार रही हो कुछ नहीं करती।हम उपरोक्त सभी देशों को अरबों रुपये की सहायता देते हैं, कश्मीर में पूरे देश से ज्यादा पैसा बहाया गया।मतलब हम उन्हें फलने फूलने में मदद कर रहे हैं। हम इन अत्याचारी देशों से कोई सवाल जवाब नहीं करते, किसी को कठघरे में नहीं खड़ा करते। कभी कोई पत्रकार आदि सवाल कर भी दे तो इनके पास एक रटा रटाया जवाब होता है, ये आतंकियों का काम है।हम क्या कर सकते हैं।हम आतंक से मिलकर लड़ेंगे।कब लड़ोगे।सालों से तो दुनिया सुन रही है।क्या 1000-2000 आतंकी कश्मीर से 5 लाख हिंदुओ को भगा सकते थे? सरकार, अधिकारी, कानून , मुस्लिम जनता सब मिले हुए हैं। जिन्हें ये भ्रम है कि भाजपा हिंदुओ की पार्टी है वो अपना भ्रम दूर कर लें।जो देश हिंदुओ पर अत्याचार कर रहे है हम उनको फंडिंग कर रहे हैं भाजपा की सरकार होते हुए।कश्मीर में सेना पर पत्थर बरसाए जा रहे हैं, हिंदुओ को मारा जाता है , हम उन पर कोई कानूनी एक्शन नहीं लेते। पूरे देश मे शाहीन बाग़ बने किसी पर लाठी चार्ज नहीं हुआ।जब एक हिन्दू गरीब अपनी कोई मांग लेकर मोर्चे पर निकलता है तो उसका लाठी गोलियों से स्वागत होता है।केरल बंगाल में भाजपा के हिन्दू कार्यकर्ता मारे जाते हैं भाजपा अपनी केंद्र में सरकार होते हुए उनको सजा दिलाने के लिए कुछ नहीं करती।मेवात , कैराना , दिल्ली जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में हिन्दुओं की हत्या , महिलाओं से बलात्कार , जबरन शादी , धर्मांतरण , जमीनों पर कब्ज़ा , मंदिर तोडना आदि अपराध भाजपा की सरकार होते हुए धड़ल्ले से हो रहे हैं।
क्या हमारे देश मे माओवादी या नक्सली मुस्लिमों को मारने लगे तब भी सरकार विदेशी सरकारों की तरह बोलेगी हम क्या करें ये माओवादी हमला है।क्या मुस्लिमों को मारने दिया जाएगा।
मुस्लिमों ने पांच ग्रुप बना रखे हैं ।दुनिया पर कब्जा उनका मकसद है----
एक ग्रुप है आतंकवादी, जिनकी फंडिंग सारी मुस्लिम बिरादरी करती है।ये दुनिया की सरकारों को, अधिकारियों को, नेताओं को डराने का काम करते हैं। दूसरे धर्म के लोगों की जनसंख्या कम करने का काम करते हैं।
दूसरे हैं कूटनीतिज्ञ जो मुस्लिमों को पाक साफ बताने की लॉबिंग करते हैं ।दुनिया के सामने खुद भी पीड़ित होने का ढोंग करते हैं, मासूम बने रहते हैं और बोलते हैं हम आतंक से मिलकर लड़ेंगे।बगैर सरकारी सहायता और आम लोगों के समर्थन के इतने बड़े आतंकी ग्रुप खड़े नहीं हो सकते।
तीसरे हैं मौलवी जो समय समय पर फतवे जारी करके इन्हें कट्टर बनाये रखते हैं।दूसरे धर्म के लोगों को मारने काटने के लिए उकसाते रहते हैं।
चौथे हैं चोर डकैत जो हिंदुओ को लूट कर उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर कर रहे हैं।हिन्दू दिन रात मेहनत करके एक बच्चा नहीं पाल पा रहा है और ये खाली बैठकर भी 10-10 बच्चे पाल लेते हैं।हिन्दू मेहनत करता रह जाता है ,ये एक पल में उसकी कमाई उड़ा ले जाते हैं।
पांचवे हैं आम नीचे वाले लोग जो हिंदुओ को भ्रम में रखते हैं कि हम भाई भाई हैं, सब इंसान बराबर है, सबको सेक्युलर तरीके से रहना चाहिए।ये लोग ऐसे सेक्युलर है जो मंदिर गुरुद्वारे नहीं जाएंगे, हमारे त्योहार नहीं मनाएंगे।लेकिन हमें अपनी मज़ारों पर, मस्जिदों में,अपनी ईद में खींच ले जाएंगे।
विदेश निति के मामले में पाकिस्तान,बंगलादेश, अफगानिस्तान हमसे ज्यादा ताकतवर है।क्योंकि वो वर्षो से हिंदुओ पर जुल्म कर रहे हैं, धर्म परिवर्तन, हिन्दू महिलाओं से बलात्कार, हिंदुओ का सामूहिक कत्ले आम कर रहे हैं।धर्म के आधार पर इंसानों में फर्क कर रहे हैं ।मंदिर और गुरुद्वारे तोड़े जा रहे हैं।उन्हें त्योहार नहीं बनाने दिए जा रहे।पूजा नहीं करने दी जा रही। आतंकवाद को फैला रहे हैं। खुले आम आतंकी कैम्प चला रहे हैं। पाकिस्तान भारतीय सीमा पर रोज गोलीबारी कर रहा है।बलूचिस्तान में मानवाधिकार हनन कर रहा है।फिर भी हम आज तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसके खिलाफ एक भी प्रस्ताव नही ला पाए।कहीं उसे बैन नहीं करवा पाए।हमारा क्रिकेट बोर्ड इतना अमीर है, बोलते हैं भारत का अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद में दबदबा है । अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद में हमारे अध्यक्ष भी रहे हैं।फिर भी हम उसे क्रिकेट से बैन नहीं करवा पाए।साउथ अफ्रीका सिर्फ रंगभेद के कारण बैन हुआ था।पाकिस्तान ने तो जुल्मों की हद कर रखी है।
हम जब अपने ही देश मे मानवता की भलाई के लिए नागरिकता संशोधन बिल लेकर आये, धारा 370 और 35 ए को खत्म किया।किसी पर किसी भी तरह का जुल्म नहीं किया, फिर भी पाकिस्तान ने ऐसी लांबिग की कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे खिलाफ प्रस्ताव आने लगे।विदेशी डेलिगेशन हमारे यहाँ जायजा लेने आने लगे।हमारी जांच होने लगी।अंतरराष्ट्रीय दबाव आने लगा।हम हाथ पैर जोड़ने की स्थिति में आ गए।जबकि पाकिस्तान की किसी भी देश को जरूरत नहीं हैं, चीन को छोड़कर और हमारी चीन समेत सभी को जरूरत है अपना माल खपाने के लिए।इसका मतलब ये है कि पाकिस्तान की विदेश नीति हमसे मजबूत है।उनकी गृह नीति और भी ज्यादा मजबूत है।जैसे धरने प्रदर्शन, देशद्रोह, मीडिया का बड़बोलापन, टुकड़े टुकड़े गैंग हमारे यहां है वैसा वहां करने की ना इजाजत है, ना किसी की हिम्मत।हिन्दुओं के समर्थन में बोलने की या कुछ छापने की , हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ बोलने की सख्त मनाही है.पुलिस को भी सख्त निर्देश हैं की हिन्दुओं की कोई भी मदद ना की जाए। हमें विदेश नीति, गृह नीति मजबूत करने की जरूरत है।कोई भी देश आज हमसे संबंध तोड़ने की कोशिश नहीं करेगा।क्योंकि हम बहुत बड़ा बाजार हैं।पैसा विश्व की गाड़ी को खींचता है।अगर हम आज मज़बूत फैंसले नहीं ले पाए तो कभी नहीं ले पाएंगे।जब विश्व समुदाय पाकिस्तान, उत्तर कोरिया, चीन, ईरान आदि देशों का कुछ नहीं कर पा रहा है तो फिर हमारे खिलाफ क्या एक्शन होगा।हम क्यों डरें।
( कोरोना महामारी - मार्च - 2020 ) ----
इस कोरोना महामारी ( लोक डाउन) में सरकारी कर्मचारी अच्छा काम कर रहे हैं।जान जोखिम में डालकर लोगों की सेवा कर रहे हैं।पुलिस के लिए इतना सम्मान हमने पहली बार देखा है।परन्तु इस किये कराए पर पुलिस ने खुद ही पानी फेर दिया। लोगों को बिना वजह पीटा जा रहा है। पूछते तक नहीं वो किस काम से जा रहा है ।ये बस पंजाब, हरियाणा, दिल्ली या हरियाणा का लगता उत्तर प्रदेश में हो रहा है।बाकी देश मे नहीं।किसने पुलिस को अधिकार दिया इस तरह से मारने का।बॉलीवुड एक थप्पड़ के लिए तलाक लेने की सलाह देता है मीडिया उसे स्पोर्ट करती है। बोलते हैं ये आत्म सम्मान पर चोट है।क्या इन गरीबों का आत्म सम्मान नहीं है।
लाठी चार्ज भी जरूरी है लेकिन समय होता है। अभी तो गाँव मे भी रोज तीन चार चक्कर पीसीआर मार रही है।गाँव मे लाठी चार्ज हो रहा है ।जब कोई फरियादी दरखाश्त देता था तो बोलते थे गाँव जाने के लिए तेल का पैसा नहीं है, किराया नहीं है।फरियादी और अपराधी दोनों को थाने में बुलाया जाता था।आज तेल का पैसा कहां से मिल रहा है।गाँव वालों को फसल भी काटनी है मजदूर भी पकड़ने हैं।अगर फसल नहीं काटेंगे तो खुद भी भूखे मरेंगे और देश भी भूखा मरेगा।लोग कोई सिनेमा या मौज मस्ती के लिए बाहर नहीं निकल रहे ।सब बंद है तो कहां जाएंगे।वो कुछ न कुछ सामान खरीदने या दवाई या डॉक्टर या अपने किसी आदमी को लाने या कोई सरकारी आज्ञा लेने या बैंक में जा रहे होंगे।क्या ये गरीब लोग सिर्फ मार खाने दुनिया मे आये हैं।इनकी गलती होती है तो मार खाये , ना गलती हो तो मार खाये।जो कोरोना वायरस देश मे लेकर आये उन पर कितनी लाठियां बरसाई।उन्हें तो सरकार ने एयरलिफ्ट किया।वुहान से, ईरान से , इटली से लोगों को उठा के लाये।उन्होंने किसी गाइड लाइन को नहीं माना।उन्होंने ही वायरस फैलाया।वैसे तो देश इन्हें पिछड़ा और गन्दा लगने लगता है।पढ़ेंगे विदेश में, रहेंगे विदेश में, नौकरी विदेश में जब संकट आता है तो देश अच्छा लगने लगता है।जब देश पर संकट आता है या देश को इनकी जरूरत पड़ती है तो विदेश भाग जाते हैं।जान बुझ कर सरकार ने देश को खतरे में धकेला।जब इनकी फितरत का पता है तो क्यों इन्हें देश मे इंटर किया गया।इन लोगों पर पुलिस ने क्या एक्शन लिया।क्यों इनको लाठियां नहीं मारी गई।कनिका कपूर की पार्टी पर लाठी चार्ज क्यों नहीं किया।वायरस फैलाया अमीरों ने सजा भुगते गरीब।
शाहीन बाग़ में 3 महीने नँगा नाच हुआ।रोड जाम होने से आम लोगो को, सरकार को कितना नुकसान हुआ।प्रधानमंत्री को काटने की धमकियां दी।देश तोड़ने की धमकियां दी।देश द्रोही कृत्य हुए, तब आपकी मर्दानगी कहाँ थी ।पुलिस ने उन पर कितने लाठी चार्ज किये।आज तक के इतिहास में एक भी लाठी चार्ज अमीरों पर हुआ है क्या।सारा देश बोल रहा है कि बॉलीवुड वाले अश्लीलता फैला रहे हैं, नँगा पन फैला रहे हैं, क्या एक्शन लिया आप लोगो ने? इनकी नंगी और नशीली पार्टियों में आपने कितनी बार लाठी चार्ज किया।करोड़ो लोग नॉनवेज छोड़ने की अपील कर रहे हैं।बेजुबानों की निर्मम हत्या ना करने की अपील कर रहे हैं।पुलिस में भी शिकायत करते हैं।कितनो पर आपने लाठी चार्ज किया या पकड़ा या कोई एक्शन लिया।ये तो देशद्रोही काम करें तब भी लाठी चार्ज नहीं होता।मीडिया ने ताज होटल पर आतंकी हमले के वक्त लाइव कवरेज चला कर, हमारे वीर जवानों को शहीद करवाया उन पर तो लाठी चार्ज नहीं हुआ।ना बाद में कोई एक्शन हुआ।क्योंकि वो सैनिक गरीबों के बच्चे थे, अमीरों के होते तो देश हिल जाता।
आम आदमी तो सारी अपील मानता है लेकिन क्या आम आदमी की एक भी अपील मानी है किसी ने ।
हम तो हमेशा देश के साथ खड़े हुए है संकट की घड़ी में भी और शांतिकाल में भी।ये सेना के जवान, पुलिस के जवान, नर्स हम गरीबों के घरों के बच्चे ही हैं अमीरों के बच्चे नहीं हैं।भले ही आप वर्दी पहन के अमीर बन गए हो।वर्दी पहनने से पहले के दिन याद करो।हमेशा आप अपने ही बिरादरी के लोगों पर अत्याचार करते हो, उन पर ही लाठियां बरसाते हो।शर्म आनी चाहिए आपको।
अगर आम लोगो ने पुलिस हमला कर दिया या आंदोलन कर दिया तो कहां जाओगे आप।पहले तो मौसम ने फसल खराब की, अब आप काटने मत देना, फिर बिकेंगी नहीं।लॉक डाउन खुलने वाला नहीं है।इसलिए इन्हें विरोध करने पर मजबूर मत करो।गाँव वाले गाँव से बाहर जाते नहीं, कोई बाहर से गाँव मे आता नहीं , गाँव मे कोई कोरोना मरीज नहीं है तो कैसे कोरोना फैलेगा।
5-7 पुलिस वाले जाते होंगे गाँव मे अगर गाँव वालों ने या इन आम लोगों ने घेर कर मारना शुरू कर दिया तो भागने की जगह नहीं मिलेगी।सरकार एडवाइजरी जारी करती है या कानून बनाती है तो हर चीज लिख नहीं सकती।कुछ चीजें हमे अपने दिमाग से भी करनी पड़ती हैं।अपना विवेक भी इस्तेमाल करना पड़ता है।
चारों तरफ कोरोना वायरस का हाहाकार मचा हुआ है ।रो रहे हैं चिल्ला रहे हैं, घरों में दुबक गए हैं।बेबस होकर जिंदगी की भीख मांग रहे हैं।क्या कभी उन बेजुबानों को , मासूमों को बेरहमी से काटते हुए आपके हाथ कांपे।उन्हें खाते वक्त दया आयी।जब वो दयनीय नज़रों से हमारी तरफ देखते थे तो हमने उन्हें बचाया।जिस तरह इंसान के लिए सरकार ने राहत अभियान चलाया है या कड़े कदम उठाए हैं वैसे कभी उन बेबस जानवरों की रक्षा के लिए अभियान चलाये ।कोरोना से तो जीत जाओगे लेकिन कोई और आएगा इससे भी बड़ा भयानक उससे नहीं जीत पाओगे।
ये बॉलीवुड-मीडिया वाले अब लॉक डाउन से तो आज़ादी नहीं मांग रहे क्योंकि इनकी जान पर बनी है।नहीं तो हर अच्छे सुझाव पर आज़ादी के नारे लगाते हैं।चाहे शिक्षा व्यवस्था बदलने की बात करो, चाहे शाकाहार की बात करो, चाहे नग्नता-अश्लीलता छोड़ने की बात करो, चाहे हिन्दू जीवन पद्धति की बात करो, चाहे जंक फूड बंद करने की बात करो , चाहे भारतीय संस्कृति की बात करो हर अच्छी चीज अच्छे विचार से इन्हें आज़ादी चाहिए।प्रधानमंत्री जी ने थाली ताली का आह्वान किया 99% मुस्लिम और मीडिया ने नहीं बजाई।मीडिया वाले बॉलीवुड वालों के घर के आगे खड़े थे।इनकी सोच देख लो।जब मुस्लिम देश के किसी भी आयोजन में शामिल नहीं होते और बॉलीवुड को हमारी सभ्यता-संस्कृति से दिक्कत है तो फिर इन्हें हम पाल क्यों रहे हैं? नागरिकता किसलिए? गणतंत्र दिवस में ये शामिल नहीं, स्वतंत्रता दिवस पर ये शामिल नहीं, राष्ट्र गान में ये शामिल नहीं , त्योहारों में ये शामिल नहीं।किसी भी राष्ट्र प्रेम में हिस्सा नहीं लेते हैं।इनकी सेना में अलग बटालियन बनाई थी वहां इन्होंने गद्दारी की।जब जब सत्ता इनके हाथ मे आयी इन्होंने खून की नदियां बहाई, बलात्कार किये ।मुस्लिम शासन में तो हुआ जो हुआ , आज़ादी के बाद भी इनका एक गृह मंत्री बना तो कश्मीर में हिंदुओं को मारा काटा, बलात्कार किये।इतना बड़ा हिन्दू देश कुछ नहीं कर पाया।हिन्दू प्रधानमंत्री कुछ नहीं कर पाए।आज़ादी के बाद एक मुस्लिम शिक्षा मंत्री बने तो उन्होंने शिक्षा तहस नहस कर दी।प्रधानमंत्री भी एक मुस्लिम ही थे नेहरू।इन दोनों ने पूरा इतिहास बदल दिया।नेहरू की भारत एक खोज किताब पूरा झूठ का पुतला है।पूरा इतिहास उलट दिया ।हमारे धार्मिक ग्रंथ स्कूलों में बैन कर दिए। उसके बाद जितनी भी सरकार आई उनकी हिम्मत नहीं हुई उस शिक्षा व्यवस्था को छेड़ने की ,कहीं असहिष्णुता के आरोप न लग जाएं।
बॉलीवुड वाले भाग के सबके गले मिलते थे, औरत मर्द भी आपस में एक दूसरे के गले मिलते थे।कोरोना से डर कर इन्हें नमस्ते से प्यार हो गया।सिर पर चुन्नी ओढ़ने और पर्दा करने पर हमारी ग्रामीण महिलाओं का मज़ाक उड़ाते थे , नङ्गे घूमते थे ,आज पूरा शरीर ढक कर चल रहे हैं।मुझे लगता है नॉनवेज भी छोड़ ही दिया होगा ।आज भारतीय संस्कृति कैसे याद आई।अब आज़ादी नहीं चाहिए।मौत का खौफ़ सिर पर है तो जान बचाने के लिए भारतीय जीवन पद्धति अपनाएंगे , नहीं तो उसमें से इन्हें बू आती है। रूढ़िवाद और पिछड़ी हुई लगती है।
हीरोइने राक्षसों वाले नाखून रखती हैं जैसे इन्हें दीवार नौचनी हैं।अब कोरोना के डर से नाखून काटने पड़ेंगे। उनको देखकर देश की ज्यादातर महिलाएं बड़े नाख़ून रखने लगी। भारतीय जीवन पद्धति नाखून साफ रखना, छोटे रखना सिखाती है।
( जाति व्यवस्था ) --
सभी जातियां अपने आप पर गर्व करती हैं।अपनी उपलब्धियां उन्हें पता है और उनका वो प्रचार प्रसार करते हैं।लेकिन आप दलितों ने देश के लिए क्या किया है ये आपको खुद नहीं पता।कैसे आप गर्व करोगे।आपने कभी अपना इतिहास नहीं लिखा, किसी ने लिखा भी होगा तो आप लोगों ने उसे पढ़ा ही नहीं।मैं बताता हूँ आपने देश के लिए क्या किया है ।जितने भी देश मे निर्माण कार्य होते हैं बिल्डिंग,भवन, फैक्ट्री सब मे आपका खून पसीना लगा है।खेतों में मजदूर के रूप में आपकी मेहनत लगी है।मिलों में जो भी माल बनता है उसमें आपका खून पसीना लगा है।अमीर लोग पैसा लगा सकते हैं लेकिन वो अपने हाथ से मज़दूरी नहीं कर सकते।काम करने के लिए आपकी जरूरत होती है।किसान और जवान की तो बात होती है लेकिन मज़दूर की बात कभी नहीं होती।तीसरा कन्धा आप ही हैं और आपके बगैर देश खड़ा नहीं रह सकता।इसलिए खुद पर विस्वास करो।गर्व से अपने धर्म ,अपनी जाति का नाम लो दूसरे खूद ब खुद आपकी इज्जत करेंगे।
लोग आपका 10-20 साल में नाम बदल कर झुंझना थमा देते हैं।और आप खुश हो जाते हैं कि अब कुछ बदलेगा।बदलेगा उस दिन जिस दिन आपको अपनी जाति का नाम लेने में शर्म नहीं आएगी।अपनी जाति को छोटी मत समझो ।आप खुद गर्व से अपनी जाति का नाम लोगे तब बाकी लोग भी मजबूर होंगे।कंभी आप दलित, कभी बाल्मीकि, कभी भीम बन जाते हैं।क्या होगा ऐसे नाम बदलने से।आपका डीएनए तो नहीं बदलेगा।सब को पता है चूड़े ,चमार ,सेंसी कौन थे, दलित कौन थे, बाल्मीकि-भीम कौन हैं।आपकी पुरानी पहचान आपके साथ चलेगी।इसलिए आप सरकार, कानून या लोगों के बहकावे में न आकर खुद अपनी पहचान बनाइये। बाल्मीकि-भीम जी को मानिए महापुरुष के रूप में और अपने भगवानों को मानिए भगवान के रूप में ।किसी के बहकावे में आकर उन्हें गालियां मत दीजिए।जब आप बाल्मीकि जी को मानते हैं , तो राम जी को क्यों नहीं?
जाति व्यवस्था पर बड़े बड़े भाषण दिए जाते हैं।मरने मारने को तैयार हो जाते हैं।आजकल तो जाति का नाम लेने से जेल हो जाती है और जमानत भी नहीं मिलती, ये और बात है कि बलात्कारी और कातिल खुले घूम रहे हैं।जब आज तक लोग जाति व्यवस्था को बनाये रखते हुए साथ रह रहे थे तो आज क्यों नहीं।हमारे बुजुर्गों ने कुछ सोच समझ कर ही जातियां बनाई होंगी।आपस मे समाज को चलाने के लिए लोगों में काम को बांटा गया था।जिम्मेदारियां तय की गई, पदवी दी गयी।किसी को सैनिक(क्षेत्रीय) बनाया, किसी को शिक्षक(ब्राह्मण) बनाया किसी को कोई और जिम्मेवारी दी।उनकी औलादें भी वही काम करती गई।इस तरह जातियां बन गयी।उन्होंने किसी को बड़ा छोटा नहीं बनाया।बड़ा छोटा आने वाली पीढ़ियों की सोच ने बनाया।आज भी तो लोगों में काम बांटा जाता है।बस फर्क इतना है कि आज कैटेगरी में,ग्रुप में, विभागों में बांट दिया।क्या कोई बताएगा एक ग्रुप डी के आदमी से ग्रुप ऐ का काम क्यों नहीं करवाया जाता? आखिर वो भी इंसान है।असलियत ये है कि हम फर्जी आधुनिकता में हमारे बुजुर्गों को घटिया साबित करना चाहते हैं।और खुद को उनसे श्रेष्ठ समझने की भूल करते हैं।हम किसी भी मुकाबले में उनके आस पास भी नहीं हैं।सभी जातियां सही हैं, अच्छी हैं।हम अपनी अपनी जगह, अपनी अपनी रस्मे, शादी ब्याह के रीति रिवाज,धार्मिक मान्यताएं निभाते हुए एक साथ रहें तो क्या दिक्कत है।जाति इंसान का इतिहास बताती है।उसकी पहचान है।जाति जीन्स की पहचान है।जाति इंसान का स्वभाव बताती है।आज वैज्ञानिक पहले के लोगों का पूरा इतिहास पता कर लेते हैं।उनके जीन्स से पता चलता है कि वो कहाँ के मूल निवासी थे , उनका स्वभाव, उनका काम धंधा आदि और भी बहुत कुछ।जो घालमेल आज हो रहा है उससे वैज्ञानिक तो क्या खुद भगवान भी पता नहीं कर पाएंगे कि उनकी पूंछ कहाँ है और सिर कहाँ।
ग्रुप ए वाला अधिकारी ग्रुप डी वाले अधिकारी से अपने बच्चों की शादी क्यों नहीं करता है। या मुख्यमंत्री मंत्री जज अपने बच्चों की शादी चपड़ासी से क्यों नहीं करते हैं।चपड़ासी को ग्रुप ए या जज वाला रुतबा, इज्जत, फायदे क्यों नहीं मिलती है।कोई महानुभाव ज़वाब देगा।ये भी तो एक तरह से जाति हैं।
लेकिन बुद्धिजीवी लोग इसे व्यवस्था बोलेंगे।
तो जिसे आप जातियां बताकर हमें लड़ा रहे हो, वो भी सामाजिक व्यवस्था थी और है। जिस तरह ये सभी लेवल के अधिकारी पारिवारिक और वैवाहिक संबंध ना बनाते हुए एक साथ रहते हैं या काम करते हैं, उसी तरह हम भी एक साथ समाज को आगे बढ़ाते थे।समाज की सरंचना चलाते थे।
कुछ हाई प्रोफाइल महिलाओं से अगर पूछ लो खाना बनाना आता है या घर का काम करना आता है।तो बोलती हैं हम बाई थोड़े ही हैं।या कुछ सीरियल में, न्यूज चैनल पर किसी घरेलू महिला की कहानी दिखाई जाती है तो ताना मारा जाता है की इस औरत से घर की बाइयों की तरह काम करवाया जाता था।क्या बाई औरत नहीं, क्या वो सम्मानित नहीं।क्या ये सोच जाति नहीं दिखाता।
सरकारी दस्तावेज में जाति का नाम लिखना गाली नहीं है।आम आदमी किसी को जाति से बुला दे तो गाली बन जाती है।
सरकार ने जो ग्रुप या पोस्ट बनाए हैं वो भी तो एक तरह से जाति ही हैं।जैसे चपड़ासी की गालियां दी जाती हैं, चपड़ासी को हीन पदवी समझा जाता है।तो चपड़ासी भी बोल सकता है कि मुझे आइए एस वाला दर्जा दो।क्या सरकार देगी।
क्लर्क, मैनेजर भी बोल सकते हैं कि मुझे जज के बराबर बनाओ।क्या सरकार बनाएगी।
ग्रुप डी, ग्रुप सी ,ग्रुप ए से क्या झलकता है।एक छोटा, एक बड़ा।कितनी ही व्यवस्थाएं बना लीजिए ये झलकेगा।ये होगा।आप खत्म नहीं कर सकते।क्योंकि हम उनमें स्वाभिमान नहीं, हीन भावना भरते हैं।और जब तक स्वाभिमान नहीं होगा कितने ही नाम बदल लीजिए हीन भावना खत्म नहीं होगी।
इन्हे स्वाभिमान और गर्व से अपनी जाति का नाम लेना सिखाइए।कोई जाति छोटी बड़ी नहीं रहेगी।कोई अपने जाति को गाली नहीं समझेगा।
गांधी जी ने अनेक आंदोलन किए,लोगों को एकत्रित किया।एक मुहिम शुरू की।लेकिन उनके बहुत काम मन में शंका पैदा करते हैं।कैसे वो भारत में आते ही अचानक आजादी का मुख्य चेहरा बन गए।जबकि बहुत से नेता,बहुत से वीर वर्षो से आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे।कैसे उनके आंदोलन इतने सफल हो रहे थे।कैसे कांग्रेस उनके इशारों पर चलने लगी।कैसे अंग्रेजों ने उन्हें कभी गिरफ्तार नहीं किया, उन पर कोई लाठीचार्ज नहीं किया।कैसे नेहरू उनके प्रिय हो गए।कैसे सुभाष चंद्र बोस जी को उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष नहीं माना।कैसे भगत सिंह के लिए उन्होंने आवाज नहीं उठाई।कैसे आजाद हिंद फौज का उन्होंने समर्थन नहीं किया।कैसे सुभाष जी , चंद्रशेखर आजाद जी की बलिदानी पर उन्हें दुख नहीं हुआ,कैसे उन्होंने पाकिस्तान बनवा दिया,कैसे उन्होंने सरदार पटेल को प्रधानमंत्री स्वीकार नहीं किया।इन मसलों पर सोचने की हमें उस वक्त फुरसत नहीं थी।ना बाद में सोचा गया।अगर किसी ने सोचा भी होगा तो बोल नहीं सकता,पता नहीं कौन सी धाराएं लग जाएं।नीचे नीचे ज्यादातर लोग गांधी के खिलाफ हैं, लेकिन सार्वजनिक रूप से अभी बोल नहीं सकते।
गांधी देश में क्यों आया था, किसने उसे बुलाया था और किसने उसे ऊपर उठाया था, इसकी पूरी और निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।क्योंकि ना तो उसने कभी आजादी मांगी थी, ना उसने सुभाष जी, भगत सिंह जी, लाला लाजपतराय जी आदि वीरों का साथ दिया।ना उसे कभी लाठीचार्ज का सामना करना पड़ा, ना बाकी देशभक्तों की तरह गंदी जेलों में सड़ना पड़ा।
तुर्की खलीफा का समर्थन कर गांधी ने मुस्लिम विस्तारवाद का अपना एजेंडा 100 साल पहले जाहिर कर दिया था फिर भी हमारी आंखे नहीं खुली।फिर बंटवारा करवा कर जाहिर किया उसके बाद भी हमारी आंखे नहीं खुली।
मुस्लिम विस्तारवाद एक साइलेंट कम वॉयलेंस मुहिम है जो डायरेक्ट युद्ध ना करके छुपा हुआ युद्ध है।लोग या तो समझना नहीं चाहते या समझ कर भी अनजान बन रहे हैं।इसी युद्ध ने 57 देश बना दिए और सिलसिला जारी है।
जब से गांधी कांग्रेस में घुसाया गया था , भारत में ये शुरू हो गया था।मुगलों के अत्याचारों को, उनके युद्धों को तो हम झेल गए।लेकिन इस साइलेंट मुहिम को हम समझ ही नहीं पाए।जैसे गांधी और गांधी के वंश ने हमें चलाया हम चलते रहे।
गांधी ने मुसलमानों को देश का रहनुमा बनाने की कोई कसर नहीं छोड़ी।कितने धर्मगुरु मुसलमानों ने मार दिए, कितने पलायन हुए, कितने जबरदस्ती हिन्दू से मुसलमान बनाए गए उन्होंने कभी भी इन अत्याचारों का जिक्र नहीं किया।कभी इनके खिलाफ नहीं बोले।
उल्टा उन्होंने ऊंच नीच के नाम पर हिंदुओ को बांट दिया और मुसलमानों को एक सुरक्षित रास्ता दे दिया दोबारा सत्ता हथियाने का।वो तो जिन्ना और गोडसे गड़बड़ कर गए नहीं तो पूरा भारत अब तक मुस्लिम बन चुका होता।
पहले हमें प्राण मिले थे अंग्रेजो के आने से, फिर प्राण मिले पाकिस्तान बनने से।
जातियां ऊंची नीची होती हैं ये गांधी ने हमें बताया।दलितों में हीन भावना उन्होंने भरी।कभी हरिजन, कभी वाल्मिकी, कभी दलित शब्दों का झुनझुना थमा दिया।और हमें लड़वाते रहे।
हम उन्हे दलितों का मसीहा मानते हैं।उनकी सारी सच्चाई छिपा ली गई।अगर वो दलितों के मसीहा थे तो जो मुस्लिम पाकिस्तान गए उनकी जमीन दलितों को क्यों नहीं दी।वो वक्फ बोर्डों में क्यों बांटी।नियम ये था जो यहां से पाकिस्तान गए उनकी जमीन वहां से आने वालों को दी जानी थी लेकिन दे दी गई वक्फ बोर्ड को।
सच्चाई ये है कि उनका एकमात्र मकसद मुस्लिम राष्ट्र बनाने का था। हमें अहिंसा सिखाते रहे और मुस्लिमों को कट्टरता ।क्या उन्होंने कभी गौ हत्या का विरोध किया, क्या बकरीद का विरोध किया। हमें ऊंच नीच में लड़वाते रहे और मुसलमानों को मजबूत करते रहे।एक तरफ आजादी की लड़ाई चल रही थी,दूसरी तरफ हिंदुओ को मुस्लिम बनाया जा रहा था।क्या उन्होंने विरोध किया।जबकि उनका खुद का बेटा भी मुस्लिम बन गया था।
लेकिन उन्होंने स्वामी श्रद्धानंद का विरोध जरूर किया जो हिंदू से मुस्लिम बने लोगों की हिंदू धर्म में वापसी करवा रहे थे शुद्धि आन्दोलन के जरिए।क्यों ?
स्वामी श्रद्धानंद जी ने ही गांधी के आंदोलनों को आर्थिक सहायता पहुंचाई थी,फिर भी गांधी स्वामी श्रद्धानंद के विरोधी हो गए।जब मुस्लिमों ने स्वामी श्रद्धानंद की हत्या की तो गांधी ने विरोध का एक शब्द नहीं बोला।उल्टा उन्हे मुस्लिमों की चिंता हुई।
कोई जाति ऊंची नीची नही है।ये समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए वर्ग बनाए गए थे।जो हर जगह होते हैं और रहेंगे।किसी को न्यायमूर्ति, किसी को जज, किसी को माई लॉर्ड आदि क्यों कहा जाता है।ये भेदभाव क्यों।
किसी को चपड़ासी, किसी को सुपरवाइजर, किसी को मैनेजर क्यों कहा जाता है।ये भेदभाव क्यों।
क्यों एक अनपढ़ को या कम पढ़े लिखे को जिलाधिकारी या जज नहीं बनाया जाता।वो भी तो भेदभाव का इल्जाम लगा सकता है।
क्यों आरक्षण में, फायदा उठाने की जगहों पर जाति का नाम लिखा जाता है।क्यों एस सी एस टी और जातियों के कालम बनाए गए हैं।क्यों जाति आधारित आरक्षण है। फलां जाति एस सी है और फलां जाति एस टी है ये क्यों लिखा हुआ है। और उन लिखने वालों को सजा क्यों नहीं मिलती।
जाति का नाम लेने से लोगों को जेल में डाल दिया जाता है। हद हो गई। ये लड़वाने वाले काम नहीं हैं क्या।ये हमें आपस में खत्म करवाना चाहते हैं और एजेंडा वही चल रहा है इस्लामिक राष्ट्र का जो गांधी ने देखा था।
दलित या बाकी अन्य भाइयों से मैं कहना चाहूंगा कि आप पहले अपनी इज्जत, अपनी जाति की इज्जत खुद करो तभी दूसरे आपकी इज्जत करेंगे।आपको खुद अपनी जाति का नाम लेने में शर्म आती है तो दूसरों से आप क्या उम्मीद करते हो।आप कितने ही नाम बदल लो दलित, बाल्मीकि, भीम लेकिन आपकी पहचान नहीं बदलेगी।आपकी इज्जत नहीं बदलेगी।जिस दिन आप सीना ठोक के कहोगे हम फलां जाति के हैं उस दिन आपकी इज्जत होगी।एक दलित भाई को यूट्यूब चैनल पर देखा था, गर्व से अपनी जाति का नाम बोल रहा था और अपनी जाति पर उसने गाना भी बनाया था।कितने लोग हैं जो वो गाना सुनते हैं या बजाते हैं?कोई नहीं, तो ऐसे कैसे इज्जत मिलेगी।
हमारे पूर्वजों ने अलग अलग वर्ग बनाए थे।सबके लिए काम बांटा गया था।यहां तक कि औरत मर्द के लिए भी काम बांटा गया था।लेकिन आज 4 अंग्रेजी अक्षर पढ़कर हमने हमारी संस्कृति,सभ्यता,शिक्षा,चिकित्सा,प्राकृतिक खेती, जीन सब खो दिया है।बीज बांझ हो गए,पशु पक्षी बांझ हो गए,मनुष्य बांझ होने की कगार पे खड़ा है।बिना दवाई हम जी नहीं सकते,बिना ऑपरेशन हम ठीक नहीं हो सकते,बिना सिजेरियन के बच्चा नहीं जन सकते,बिना IVF के गर्भवती नहीं हो सकते।
कहते हैं हर इंसान समान है।कैसे समान है? हर किसी की शारीरिक बनावट अलग है,रंग रूप चेहरा अलग है,खून अलग है, डी एन ऐ अलग है,काम करने की क्षमता अलग है,समझने सोचने की क्षमता अलग है।
सरकार और कानून की मान भी लें कि सब बराबर हैं तो सबके लिए नीतियां,नियम और कानून बराबर क्यों नहीं हैं।कहीं तो एक स्टैंड पे खड़े हो।आप खुद कन्फ्यूज हो, दूसरों को भी कन्फ्यूज कर रहे हो।
अगर सब बराबर हैं तो सबको DC बना दो या प्रधानमंत्री बना दो।कोई विशेष आदमी ही प्रधानमंत्री,DC या चपड़ासी क्यों बनते हैं।क्यों कार्यालयों में नीचे उच्चे पद हैं,क्यों सैल्यूट सिस्टम बनाया गया।
ये षड्यंत्र हैं हमारे सभ्यता,संस्कृति,जीवन पद्धति और रहन सहन को चौपट करने के लिए।
( मिलावट ) --
आज हर चीज में मिलावट का खेल हो गया है।हर सामान का नकली सामान हमारे देश मे बनता है और धड़ल्ले से बिकता है।कपड़ा, गाड़ी,पुर्जे, जूते, चप्पल इन चीजों की मिलावट या नकल तो फिर भी बरदास्त हो जाती है।लेकिन खाने पीने के सामान का क्या? पहले तो उगाया ही जहरीले बीजों से जाता है।उसके बाद हद से ज्यादा यूरिया आदि डाले जाते हैं।जबकि जमीन को दूसरे विटामिन भी चाहिए ।कई लोग पानी भी गंदा लगाते हैं।जहरीले पेस्टिसाइड, कैमिकल का कीट खत्म करने के लिए अंधाधुन छिड़काव किया जाता है।कई किसान तो छिड़कते छिड़कते मर जाते हैं।सब्जियों में , फलों में जहरीले इंजेक्शन लगाए जाते हैं।हर फसल अनाज या सब्जी खेत से ही जहरीली निकलती है।उसके बाद व्यापारी उनमें जहर भरते हैं।उन्हें चमकाए रखने के लिए केमिकल्स का प्रयोग किया जाता है।जिस तरह इंसान मेकअप का प्रयोग करता है।जो चहरे की चमक को खा जाता है।स्किन की बीमारियां हो जाती हैं।सोचिए हम प्रत्येक दिन कितना जहर खा रहे हैं।पशुओं का चारा भी सुरक्षित नहीं है ।वो बीमारियों का शिकार हो रहे हैं।उनका दूध पीकर हम बीमार हो रहे हैं।चारा केमिकल युक्त है, खल- बिनौला नकली और कैमिकल युक्त है।कई लोग या डेयरी वाले इंजेक्शन लगा कर दूध निकालते है ।वो इंजेक्शन जहरीला होता है और उसका पशुओं पर , उनके दूध पर बुरा असर पड़ता है।फिर उस दूध में व्यापारी मिलावट करते हैं।उसमें नकली कैमिकल से, शैम्पू से बनाया दूध मिलाया जाता है और बाजार में बेचा जाता है।कई लोग तो पूरे का पूरा ही नकली दूध बेचते हैं।उसी दूध की मिठाईया वैगरह बनती हैं।मार्किट में बिकने वाला हर खाने पीने के सामान में मानकों से ज्यादा जहर है।कैसे आदमी स्वस्थ रहेगा।कैसे लंबी जिंदगी जियेगा।जो जहरीली चीज उगाते हैं या जो उनमें मिलावट करके बेचते हैं वो खुद भी सुरक्षित नहीं हैं।वो खुद भी कुछ ना कुछ मिलावटी खा रहे हैं।उनके बच्चे मिलावटी खा रहे हैं।मैं कोई नकली प्रोडक्ट दूसरे को देता हूँ, तो दूसरा भी मेरे को नकली प्रोडक्ट ही देता है।मिलावटखोर भी कुछ ना कुछ तो बाज़ार से खरीदता ही है। हर कोई एक दूसरे को टोपी पहना रहा है।
नकली दवाइयां बन रही हैं।दवाइयों में मिलावट हो रही है।जहरीले कैमिकल बन रहे हैं फलों, अनाज, सब्जियों पर छिड़कने के लिए,कीटनाशक किट मारने के लिए, फल सब्जियां जल्दी पकाने के लिए, ये कितना हानिकारक है ।अनाज, फल सब्जियों में पहले वाला स्वाद नहीं रहा।शरीर को नुकसान, ज़मीन को नुकसान हो रहा है , ज़मीन के पानी को नुकसान हो रहा है।ये जो नकली चीजें बनाते हैं या इस ज़हर का इस्तेमाल करते हैं ये खुद भी इनके शिकार होते हैं।इन्हें भी बीमारियां घेरती हैं, मरते हैं लेकिन वर्तमान फायदे को देखते हुए इनकी आंखे बंद हैं।
हद तो ये है कि जहर मापने वाली मशीन भी नकली आ गयी हैं।जहर ही नहीं बाकी शुद्धता का पैमाना मापने वाले उपकरण भी नकली आ गए हैं।बीमारियों की जांच, खून की जांच, किसी चीज में हानिकारक लेवल नापने के उपकरण सब घटिया किस्म के आ गए हैं।
शर्म नहीं आती इन पुलिस वालों को, खाद्यान्न विभाग , लैब , बीज-पेस्टिसाइड को मंजूरी देने वाले को या और जांच एजेंसियों को जो नकली सामान, मिलावटी सामान बिकने में मदद करते हैं ।आप कौन सा विदेश से मंगवा के खाते हो।आप भी वही मिलावटी, जहरीला खाते हो।जब शरीर निरोगी नहीं रहेगा, जिंदगी नहीं रहेगी, आपके बच्चे स्वस्थ नहीं रहेंगे, आप या आपके परिवार वाले बेमौत मरेंगे तो क्या उस रिस्वत के पैसे को चाटोगे।आप देश के तो ना हुए कम से कम अपने परिवार का तो सोचो।
सरकार अकेली कुछ नहीं कर सकती।काम करना अधिकारियों का काम है।सरकार को इन कैमिकल पर, जहरीली दवाइयों पर बैन लगाना चाहिए।जहरीले शैम्पू, साबुन, मेकअप का सामान हर वो चीज जिसमे खतरनाक कैमिकल मौजूद हैं उन्हें बंद करना चाहिए।
इंसान हर चीज से छेड़छाड़ कर रहा है।प्रकृति को अशुद्ध, अपवित्र कर रहा है। बार बार प्रकृति सजा भी देती है लेकिन हम सुधर नहीं रहे।ज्यादा पैदावार के लालच में हाइब्रिड बीज या बीजों का क्लोन बना दिये।बीजों से छेड़छाड़ करके कई जहर उसमें भरे गए।जिससे इंसान का शरीर खराब हुआ, मिट्टी-पर्यावरण खराब हुआ।खाद्यान- फलों का स्वाद खत्म हुआ।कीटनाशक बनाये गए।जिसने फसलों के मित्र किट भी खत्म कर दिए।पेड़ो के क्लोन बना दिये।तरह तरह के पेड़ का मिश्रण कर दिया।ये आने वाले समय में जरूर तबाही लेकर आएंगे।पशुओं के क्लोन बना दिये।जिससे पशुओं को तो बीमारी हो ही रही होंगी, इंसान भी उनका दूध पीकर बीमार हो रहे हैं।उनकी शरीर की सरंचना भविष्य में बिल्कुल खत्म हो जाएगी।भैंसों को कृत्रिम गर्भाधान करा रहे हैं।उनसे उनका प्राकृतिक संभोग का हक छीना जा रहा है।कृत्रिम गर्भाधान से शरीर में भी गड़बड़ हो रही होगी।गौ माता को कृत्रिम गर्भाधान करवाया जा रहा है।सिर्फ बछड़ियाँ पैदा की जाएंगी। कितना बड़ा प्राकृतिक खिलवाड़ है।अगर बैल-सांड नहीं होंगे तो क्या होगा।गौ माता से प्राकृतिक संभोग का हक छीन लिया।बछड़े बछड़ियों को दूध नहीं पिलाया जाता।ज्यादा दूध लेने के लिए जहरीले इंजेक्शन लगाए जाते हैं।मच्छलियों को भी कृत्रिम गर्भाधान करवाया जा रहा है। 72 घण्टे में मच्छलियों से बच्चा पैदा किया जाएगा। वो मच्छली इंसान के शरीर में जाकर कितने नुकसान कर सकती है।क्या इसका कोई आंकड़ा है।
इंसानों से शुरू हुआ कृत्रिम गर्भाधान का ये खेल पता नहीं कहाँ रुकेगा।जो बच्चे कृत्रिम रूप से पैदा हो रहे हैं उनपर क्या प्राकृतिक प्रभाव पड़ेंगे या उनका शरीर किस तरह वास्तविक प्राकृतिक शरीर से अलग होगा इसके भी शोध बाकी हैं।कोई ना कोई विस्फोट जरूर होगा।गलत खानपान- रहन सहन ने हमारी शरीर की सरंचना बिगाड़ी जिससे बच्चे पैदा करने की शक्ति खत्म होती जा रही है।यही हाल अब पशुओं में सामने आ रहे हैं। कृत्रिम गर्भाधान करवाने से भैंसों की बच्चेदानी खराब हो रही हैं।और वो एक भ्यांत - दो भ्यांत के बाद बच्चे देना बंद कर देती हैं। आज ऐसी घटनाएं दिन ब दिन बढ़ती जा रही हैं , लेकिन हम सुधर नहीं रहे।
लोग बोलते हैं कि कोई साइड इफेक्ट नहीं होंगे? क्या ऐसा हो सकता है कि हम प्रकृति से छेड़छाड़ करें और कोई नुकसान ही ना हो।
Shadyantra -
कंपनी कोई भी प्रोडक्ट बनाने से पहले उसे बेचने का बाज़ार तैयार करती है। पहले माहौल बनाया जाता है, उसके लिए रिस्वत दी जाती है, अपने पक्ष में नीति बनवायी जाती है, लोगो को डराया जाता है या लोभ लालच दिखाया जाता है। इसे उदाहरण के जरिए समझेंगे।
1. इन्वर्टर या जनरेटर - सिस्टम को रिस्वत खिलाकर पहले बिजली कटौती करवाई जाती है। जब लोग बिजली कटौती से परेशान हो जाते हैं तो इन्वर्टर, जनरेटर, बैटरी बेच दी जाती है।
2. ड्रोन - अब किसानों को ड्रोन के फायदे बताए जा रहे हैं। उनको फ्री ट्रेनिंग, सब्सिडी, फ्री ड्रोन का लोभ दिखाया जा रहा है। क्योंकी ड्रोन बिकवाने हैं। ड्रोन कम्पनियो ने करोड़ों रुपये रिस्वत दी है। ड्रोन के हमें नुकसान ही होने वाले हैं। सबसे बड़ा नुकसान तो ये है कि मजदूरों की रोजी रोटी छीन जाएगी। सरकार बोल रही है ड्रोन से ड्रोन पायलट को रोजगार मिलेगा। वो ये नहीं बताते कितने मजदूर बेरोजगार होंगे। कोई भी आपके घर में कुछ भी फैन्क के चला जाएगा , आपको पता भी नहीं चलेगा। वो नशा और हथियार भी हो सकते हैं।
3. सोलर - सिस्टम ने सोलर के प्रति जबरदस्त क्रेज बनाया है। सब्सिडी दी जा रही है. क्या हमें सोलर की सही कीमत पता है। हम सस्ता समझ कर खरीद रहे हैं। हो सकता है योजना सही हो लेकिन सिस्टम की इतनी रुचि क्यों है। क्योंकी रिस्वत मिली है. फ़ायदा तो खाद्यान्न से भी है क्या सिस्टम उसे बेचने के लिए भी इतना ही तत्पर है। खाद्यान्न खेतो में या गोदमो में सड़ता रहता है, क्या सिस्टम उसे बचाने में उतना ही तत्पर है, नहीं क्योंकि यहां कंपनी द्वारा (किसान) रिस्वत नहीं दी गई।
सब्सिडी वाला सोलर मार्केट रेट से महंगा पड़ता है। जितना पैसा नागरिको से जमा करवाया जाता है, सिर्फ वही बाजार दर से ज्यादा होता है, उसके ऊपर सब्सिडी का पैसा और जोड़ दे तो कीमत डेढ़ गुना हो जाती है।लूट तो सामने दिखाई दे रही है.
4. बेलर मशीन - पराली को इकट्ठा करने वाली मशीन बिकवाने के लिए प्रदूषण का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय बनाया गया। किसानो के खेत में एक महीना पराली जलती है, वो भी केवल25%, बाकी किसान इस्तेमाल कर लेता है। खेत में पराली जलती है तो प्रदूषण फैलता है। लेकिन 12 महीने फैक्ट्री चलती है, वहां प्रदूषण नहीं फैलता। उनको इतना बदनाम नहीं किया जाता बल्कि उन्हें इनाम, लोन, कर्ज माफी मिलती है। यहां तक कि ये पराली के गठर फैक्ट्री में जाकर ईंधन के रूप में साल भर जलाये जाते हैं। तब प्रदूषण नहीं होता, खेत में जलाई जाए तो प्रदूषण होता है। ये षड्यंत्र 50-50 लाख की मशीन बिकवाने के लिए हो रहा है।
5. मेडिकल - कोई नई बिमारी इजाद की जाती है। उसकी दवा, जांच उपकरण बनाये जाते हैं। रिस्वत खिलाकर सिस्टम को एक्टिव किया जाता है। बिमारी वायरल कर दी जाती है। वास्तव में बिमारी होती नहीं है, उसको रंग रूप दे दिया जाता है। आज अस्पताल में घुसते ही 10 टेस्ट लिख दिए जाते हैं। जिनका कोई मतलब नहीं होता. अगर वो साधारण बुखार भी बिना टेस्ट के नहीं बता सकता, तो क्या चीज़ का डॉक्टर है।। लोग मजबूर हैं. एक रुपये की चीज़ 100 रुपये में बेची जाती है। दवा और मशीन पहले से ही तैयार होती हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों से साठ गांठ करके आयुर्वेद ख़तम कर दिया। नाड़ी वैद्य ख़तम कर दीये। हमारे गांव देहात के नाड़ी वैद्य को ये झोला छाप बोलते हैं, उन्हें जेल में डाल देते हैं। क्योंकि वो फ्री में इलाज करते हैं और सही इलाज करते हैं। वो लूट तंत्र का हिस्सा नहीं है. नामी हॉस्पिटल करोड़ों रुपया लूट कर भी मरीज को ठीक नहीं कर पाते, जिंदगी नहीं बचा पाते उन्हें सिस्टम कुछ नहीं कहता। जो आयुर्वेद को बढ़ावा देता है, ये उसे भी ख़त्म करने की कोशिश करते हैं। तीनो स्तंभ मिलकर उसे इतना परेशान करते हैं कि वो इनके आगे घुटने टेक दे। अब पतंजलि के पीछे लगे हैं। इसे बंद करवाएंगे. मांस-चमड़ा उद्योग से सांठ गांठ करके, रिस्वत लेकर भैंसो को बांझ बनाया जा रहा है। जब से अस्पताल में बीज रखने का चलन शुरू हुआ है तब से हमारी भैंस बांझ बन गई है। बांझ इसलीए बनाई गई ताकी वो मीट-चमड़ा इंडस्ट्री को सप्लाई की जा सके।
पिछले कुछ सालों से डॉक्टर भी मांस को प्रमोट करने लगे। वो मरीज को दाल, मशरूम, सोयाबीन खाने की सलाह नहीं देते बल्कि मांस खाने की सलाह देते हैं। इसीलिये लोग भी मांस को सबसे ताकतवर खुराक मनाने लगे हैं। जिस देश में जीव हत्या पाप मानी जाती थी, वहां डॉक्टरों के जरीये लोगो का दिमाग बदला गया।
( गाँव देहात ) ---
आज गाँव से ब्राह्मण,खाती,नाई,लुहार,डूम पलायन कर रहे हैं।ये देखकर बहुत दुःख होता है।क्योंकि कभी इन लोगों को हमारे बुजुर्गों ने गाँव में बसाया था।इनके साथ साथ चमार,सैसी,चूड़े आदि जातियाँ भी कभी हमारे बुजुर्गो द्वारा गांव में लाई गई थी।उनको घर,ज़मीन दी गई थी।उनकी सुरक्षा की गारंटी भी हमारी ही थी।उनकी जीविका भी हम ही मिलकर चलाते थे।जैसे नाई हमारे बाल काट देते हम उन्हें गेहूं तूड़ी दे देते।लुहार हमारे हल कि फाली लगा देते।डूम हमारी भैंस के सींग बना देते, हमारा मनोरंजन कर देते,गाना बजाना सुना देते।चमार हमारे खेतों में काम करवा देते।हम नाज तूड़ी दे देते।किसी त्यौहार पर या ख़ुशी के मौके पर तील और नकद दे देते।उनके घरों में शादियां होती तो पूरा गांव थोड़ी थोड़ी मदद कर देता।ऐसे ही वो हमारे सहारे गुजर बसर करते।आज हम उनको बुरा बला कहने लगे।उनको ताने मारने लगे।वो आज बोझ बन गए हैं।उनकी मदद करने में हमारे बुजुर्ग दरीद्र नहीं हुए तो हम कैसे दरीद्र होंगे।वो हमारा घर उठा के नहीं ले जाते, हम जो देते हैं वहीं लेते हैं।ब्राह्मणों के बारे में भी बहुत गलत बोला जाता है।वो कभी हमारे घर मांगने नहीं आते।हम उनके घर जाते हैं,ताकि हम पर कोई बुरी बला ना आए।हमारे पितृ खुश रहें।ब्राह्मणों के बहुत एहसान हैं हम पर।हम वेद पुराणों को जिंदा रखा,धर्म को जिंदा रखा,हमारी रक्षा की, हमारा मार्गदर्शन करते हैं,जब भी हम नया काम शुरू करते हैं तो हमारी सुख - शांति - उन्नति की प्रार्थना करते हैं।इसलिये हमें गलत नहीं बोलना चाहिए।जो चढ़ता है वो पड़ता भी है। माना आज खर्चे बढ़ गए,महत्त्वाकांक्षा बढ़ गई।लेकिन हमारा फर्ज है उन्हें रोकना।वो गांव से चलें गए तो कई परेशानियां हमें भी होंगी।
हमारे बुजुर्ग दो वजह से उनको गांव में लाए थे।एक तो कई कामों के लिए हमें उनकी जरुरत थी।उन्होंने हमारा हाथ बटाया हमने उनकी मदद की।
दूसरा अहम कारण था मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या, हिंदुओ पर हमले,हिन्दुओ की जमीन पर कब्जे।मुसलमानों से सुरक्षा के लिए हिन्दुओ की तादाद बढ़ाना जरुरी था।तब हमारे बुजुर्ग ऊपर लिखित जातियों को भी गांव में लाए और कई अन्य गौत्र वाले जाट या यादव लाकर भी बसाये गए थे।उनको खेती की
ज़मीन भी दी गई थी।
कोई भी मांगने खाने वाला गांव में आता है तो बहुत कुछ लेकर जाता है।गडरिये भी अलग अलग गांव में डेरा जमाये रहते हैं।उनकी जीविका भी हम गांव वालों के सहारे चल रही है।अनाज और तूड़ी का हम सहारा देते हैं।सांगी भाइयों का परिवार भी हम गांव वालोंं के भरोसे चल रहा है।वो हमारा मनोरंजन करते हैं और हम उनका रुपए पैसे से मान सम्मान करते हैं।
हमारी कमाई हमारी फसल हमने हमेशा बाँट कर खाई है।गरीबों को तो हमने दिया ही है।उसके अलावा हम नए अनाज का गऊ शाला में दान देते हैं।अनाज की मुट्ठी से ही भगवान की पूजा करते हैं।पक्षी भी हमारे खेतों से दाना पानी चूगते हैं।पक्षियों को दाना भी डालते हैं।गांव के बेसहारा पशुओं को भी हम चारा खिलाते हैं या हमारे खेतों में चरते हैं।गांव के कुत्तों को भी हम रोटी खिलाते हैं।हमारा अनाज हर किसी का पेट भरता है।खुद खाने से पहले हम अपने अनाज का हिस्सा कइयों में बांटते हैं।इसीलिए किसान को भगवान सम्मान बताया गया है।
ये विडंबना ही है जो हम हमारे बुजुर्गों के चलाये रास्ते से भटक रहे हैं।उन्होंने जिनको बसाया आज हमारी नासमझी के कारण वो गांव छोड़कर जा रहे हैं।
हमें लोभ लालच छोड़कर सबका भला करना चाहिए।हमारे संस्कारों को बचाना चाहिए।भगवान हमको देने वाला बनाए रखे, मांगने वाला नहीं।
ब्राह्मणों को आज नई पीढ़ी बहुत गलत तरीके से देखती है।कोई इज्ज़त नहीं करता, गलत भाषा का इस्तेमाल करते हैं।उनको लालची, कपटी और अपने टुकड़ो पर पलने वाला मानते हैं।अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं, राजाओं के झगडे का कारण उन्हें बताते हैं,देश के विनाश का कारण ब्राह्मणों को बताते हैं।
मौस दूज, कनागत,शादी,मृत्यु, अन्य धार्मिक या कर्मकांड में ब्राह्मणों को कुछ कपड़ा,दूध,खीर ,खाना देकर हम डांट मारते हैं कि ब्राह्मण हमारा दिया खाते हैं।हमारे धन पर पल रहे हैं।ये हमारा भ्रम है।उल्टा वो हमारी बुरी बलायें अपने सिर पर लेते हैं।हम अपनी मुसीबत में उन्हें याद करते हैं।ताकि हमपे जो विपतियां आने वाली हैं वो टल जायें।हम अपने फायदे के लिए उनका इस्तेमाल करते हैं।आदमी का स्वाभाव ऐसा है कि बिना स्वार्थ के हम ना बात करते हैं,ना मिलते हैं,ना सम्बन्ध रखते हैं।इसलिए कृपया ब्राह्मणों को गलत बोलना बंद करें।वो हैं तो सृष्टी है।वो हैं तो धर्म है।वो हैं तो जीवन है।
ब्राह्मण अगर स्वार्थी और लालची होते तो आज बहुत सी जमीनों और संसाधनों के मालिक होते।क्योंकि राजाओं के वे खास होते थे और राजा उनकी सारी बात मानते थे।वो फायदा उठा सकते थे।लेकिन उन्होंने हमेशा राजाओं को सिर्फ अच्छी सलाह देने का काम किया।राज्य के भले के लिए यज्ञ किये।धर्म की शिक्षा दी।राज्य के लिए बलिदान दिए।
ब्राह्मणों ने कभी धन दौलत और जमीनों का लालच नहीं किया।क्योंकि राजा और प्रजा उनका पूरा ख्याल रखते थे।खाना,कपड़ा,घर,पढ़ाई सब मिल जाता था उससे ज्यादा उन्होंने कभी चाहा नहीं,कभी जरूरत महसूस नहीं हुई।
लेकिन आज बदलते माहौल में बेचारों की ना इज्ज़त रही, ना धन है, ना जमीनें हैं।किसी किसी के पास हैं तो उनको जी तोड़ मेहनत करनी पड़ी,अपना जो मुख्य काम था वो छोड़ना पड़ा।और समाज के हिसाब से खुद को डालना पड़ा।
फिल्मों ने हमेशा पंडितों को गलत दिखाया है।क्योंकि उनका निशाना हमारा धर्म रहा है।उनके सम्बद्ध अंडर वर्ल्ड से रहे हैं और उन्होंने अंडर वर्ल्ड के इशारों पर काम किया है।अंडर वर्ल्ड के डॉन मुस्लिम रहे हैं।कुछ लोगों ने और भोग वाद ने हमारे दिमाग में ब्राह्मणों के प्रति ज़हर भर दिया है।
ब्राह्मणों और दलितों के पास एक जैसे संसाधन हैं।दोनों सिर्फ मजदूरी करके खा सकते हैं।दोनों के पास ज़मीन नहीं हैं ( खेती की ). दोनों को पहले गांव के रसूखदार लोगों से सहायता मिलती थी, जो अब बंद हो गई है।रसूखदार लोग वो थे जिनके बीच खेती की और गांव की सारी जमीनें बांटी गई थी।इसलिए जिस तरह सरकार ने दलितों को आरक्षण और अन्य आर्थिक सुविधाएं दी हैं, वैसी ही ब्राह्मणों को भी दी जाएं।
( पशु क्रूरता ) --
पशु क्रूरता कानून - पता नहीं क्या है इस कानून की परिभाषा।किसे क्रूरता माना जाता है, किसे नहीं।दिन दहाड़े सड़को पर , बाज़ारों में पशु-पक्षियों को बेदर्दी से मारा काटा जाता है।खाया जाता है।किसी को नहीं पकड़ा जाता।किसी के पास पशु-पक्षियों को मारने का स्टैंडर्ड तरीका नहीं है।उन्हें तड़फा तड़फा कर मारा जाता है।लाठी डंडों से, हथौड़ों से पिट पीटकर मारा जाता है।क्यों पशु क्रूरता कानून बना रखा है।क्या इसका औचित्य है जब इस तरह की क्रूरता हो रही है।पता नहीं ये कानूनी है या नहीं।पशु-पक्षियों को मारना कानूनी है तो पशु क्रूरता कानून किस लिए? इतनी बेरहमी से मारा जाता है तो कानून किसलिए? जिन अधिकारियों पर इसे लागू करने की जिम्मेवारी है वो क्या करते हैं? क्या इंस्पेक्शन करते हैं। क्या आफिस में बैठे बैठे जिम्मेवारी पूरी होती है।आप बाजार से भी गुजरते होंगे, कत्लखानों का भी इंस्पेक्शन करते होंगे।सिर्फ उन मारने वालों के हाथ खून से नहीं रँगते, उन बेसहारा , बेबस,बेजुबानों की हाय आपको भी लगती है।सिर्फ रिस्वत से जिंदगी पूरी नहीं होती, कर्मो का फल यहीं भुगत के जाना पड़ता है।
( चिट्ठी ) ---
बॉलीवुड बैन - बॉलीवुड अश्लीलता और नग्नता की चरम सीमा पर पहुंच चुका है।फ़िल्म, गाने,फैशन शो,रियल्टी शो,सीरियल,स्टेज शो हर जगह सिर्फ सेक्स ही परोसा जाता है।महिलाओं का अपमान, महिलाओं को भोग विलास की चीज दिखाया जाता है।पुरे देश की महिलाओं-लड़कियों को गलत रास्ता दिखाया जाता है। महिलाओं के साथ कास्टिंग काउच, मी टू और बलात्कार होते हैं।नशे का कारोबार होता है।अंडरवर्ल्ड से रिश्ते हैं।अंडरवर्ल्ड आगे आतंकवादियों से जुड़ा है।देश द्रोहियों की तरफ दारी करते हैं। इनको राष्ट्रीय सम्मान भी मिलने बन्द हों। सम्मान कला के लिए शुरू किए थे इन कुकृत्यों के लिए नहीं।
पशु पक्षी क्रूरता--- पशु पक्षी क्रूरता बन्द होनी चाहिए।मांस बन्द हो क्योंकि ये इंसान के शरीर के लिए और पर्यावरण दोनों के लिए घातक है।पशु पक्षियों को बेरहमी से काटा जाता है।तड़फा तड़फा कर मारा जाता है. उनमें भी जान है दर्द उन्हें भी होता है।चिड़िया घर में बेरहमी से छोटे छोटे पिंजरो में पशु पक्षियों को बंद किया जाता है जो बहुत ही गलत है।कौन सा गुनाह किया है उन्होंने जो ऐसी घुटन भरी जिंदगी जियें।
आर्टिकल 30--- इस आर्टिकल को ख़त्म किया जाए । कितने शर्म की बात है, बहुसंख्यक हिन्दू अपने ही देश में, अपने ही धर्म का शिक्षण संस्थान नहीं खोल सकते।अपने धर्म की शिक्षा नहीं दे सकते।अनादि काल से हिन्दू देश , हिन्दू लोग, हिन्दू धर्म है की धरती रही है ये फिर फिर किस आधार पर ये बेतुका कानून बनाया गया है।
हिन्दू विवाह अधिनियम को बदला जाए। ग्रामीण 70% आबादी के हिसाब से इसे बनाया जाए, ना कि कुछ उच्च वर्ग के लोगों को ध्यान में रखकर पश्चिमी संस्कृति के हिसाब से।हिंदी को काम काज की भाषा बनाया जाए, सरकारी- निजी शिक्षण संस्थानों में संस्कृत को अनिवार्य किया जाए।हिन्दुओ को कुछ विशेषाधिकार दिए जाएं ताकि वो बच सकें।
शिक्षा में सुधार -- शिक्षा पद्दति को बदला जाए। पुरानी गुरुकुल परंपरा शुरू की जाए। जहां नैतिक शिक्षा, योग शिक्षा, युद्ध कला,जीवन संघर्ष,धर्म, राजनीति, जीविका कमाने की शिक्षा दी जाती थी।स्कूलों को बंद करके और मैकाले की शिक्षा व्यवस्था बन्द करके गुरुकुल शुरू हो।
इतिहास--- इतिहास दोबारा लिखा जाए।इतिहास में झूठे तथ्य डाल दिये।मुग़लो की बहादुरी के किस्से भर दिए।भारतीय वीर राजाओं को गायब कर दिया।इतिहास में भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान,बांग्लादेश तक कि घटनाएं, राजाओं के शौर्य, उनके संघर्ष और त्याग की गाथाएं हों।
माता पिता- औलाद ---- माता पिता का सन्तान पर पूर्ण अधिकार होना चाहिए।ये कौन सा कानून है कि बालिग होते ही अपने फैंसले खुद करे।इससे दोनों एक दूसरे से कट जाते हैं।परिवार टूटते हैं।शादी अपनी मर्जी से करते हैं, दरार वहीं से शुरू होती है।बुढ़ापे में औलाद सेवा नहीं करती। आज बेटा मां-बाप को मार देता है, मां-बाप बेटे बेटियों को मार देते हैं।ये सब गलत कानूनों का, गलत शिक्षा का, फिल्मी- पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव है।
व्यभिचार कानून--- व्यभिचार कानून को खत्म करना चाहिए।महिला किसी के साथ भी सम्बद्ध बनाये पति या कोई और कुछ नहीं कर सकता। ये कैसा कानून है।आप महिलाओं को सशक्त बना रहे हो या व्यभिचारी, आप घर जोड़ रहे हो या तोड़ रहे हो।इस कानून से आप महिलाओं का कौन सा भला कर रहे हो।
समलैंगिग कानून--- समलैंगिग कानून को खत्म करना चाहिए। 1000-2000 लपटि कपटी लोगों के लिए इस तरह के कानून बनाना कहाँ तक जायज है।ये सम्बन्ध तो वैज्ञानिक रूप से, धार्मिक रूप , सामाजिक रूप से हर तरह से नाजायज हैं।फिर कानूनी रूप से जायज कैसे? करोड़ो लोगों की संस्कृति, विवाह प्रथा के हिसाब से कानून नहीं बनते और 1000-2000 लोगों के लिए कानून बन जाते हैं।कितने शर्म की बात है।
हिन्दू उत्पीड़न -- हिन्दुओं पर अत्याचार बन्द होना चाहिए।एक तरफ हिन्दु अगर हिन्दू नाम के पोस्टर लगा लें,दुकान का हिन्दू नाम रख लें तो कार्रवाई, दूसरी तरफ मुस्लिम अपनी दुकान का मुस्लिम नाम रख सकते हैं,कोई भी पोस्टर लगा सकते हैं, हिन्दू दुकानो का बहिष्कार कर सकते हैं, हिन्दू देवी देवता को गालियां देना, अभद्र भाषा का प्रयोग, हिन्दुओ को बलात्कारी दिखाना, डाकू आतंकवादी दिखाना उस पर भी कोई कार्रवाई नहीं। इतना सौतेला व्यवहार क्यों?
बहुसंख्यक हैं तो क्या मीडिया, कानून, पुलिस, अदालत, सरकार, सहिष्णु,तथाकथित बुद्धिजीवी उन्हें मुस्लिमों के हाथों मरवाएँगे।
धर्म परिवर्तन करवाएंगे।उनकी कमाई का सारा पैसा अल्पसंख्यक पर उड़ाएंगे।मेवात, कश्मीर,केरल, बंगाल, आंध्र, तेलंगाना, दिल्ली, कैराना, मुज्जफरनगर, अलीगढ़,पालघर,औरंगाबाद कहाँ कहाँ से पलायन करेगा हिन्दू।कितनी महिलाओं से बलात्कार होंगे। हिन्दुओ की हत्याओं, बलात्कार, मन्दिरो पर कब्जे, मंदिरों को तोड़ना, हिन्दू की जमीन हड़पने की इन क्षेत्रों में तो रिपोर्ट तक दर्ज नहीं होती है , कार्रवाई तो दूर की बात है।
सरकारी कर्मचारियों पर लगाम ---- पुलिस और बाकी विभाग में सजा का प्रावधान किया जाए।अगर गलत रिपोर्ट लिखे,गलत पेपर बनाये,गलत पकड़े या सजा दे,गलत जुर्माना लगाए, गलत चालान करे,किसी भी विभाग का कोई कर्मचारी अगर किसी को झूठ के आधार पर फंसाता है तो उसे हर्जाना भरना पड़े,पीड़ित जो केस लड़ता है उस केस का खर्च पीड़ित को दिलाया जाए, अधिकारी को जेल हो।अभी तो पीड़ित अदालतों के चक्कर काटता है।अगर निर्दोष साबित हो भी गया तो अधिकारी का तो कुछ नहीं बिगड़ता।पीड़ित मुकदमे के अलावा और भी पीड़ाएँ उठाता है।आर्थिक, मानसिक, शारीरिक और समय खराब होता है।घरेलू हिंसा-बलात्कार- दहेज प्रथा के कानूनों में सुधार किया जाए।अगर कोई महिला झुठा मुकदमा दायर करती है तो उसे सजा मिलनी चाहिए।अभी अगर साबित भी हो जाये कि महिला ने झुठा मुकदमा किया है तो भी महिला का कुछ नहीं होता।पुलिस की इन्वेस्टीगेशन सही है नहीं।जिसने पैसे दिए उसकी तरफ हो जाती है।दोनों पैसा दे दें तो समझौता करवा देती है।दोनों पार्टी लूट पिट के घर बैठ जाती हैं या मुकदमों में उलझी रहती हैं।
जनसंख्या नियंत्रण--- जनसंख्या नियंत्रण बहुत ज्यादा जरूरी है।एक तो देश के संसाधन खत्म हो रहे हैं, पर्यावरण को नुकसान, जल खत्म,आर्थिक तौर पर नुकसान,जमीन खत्म,खाद्यान्न खत्म हो रहा है। दूसरे धार्मिक दृष्टि से भी जरूरी है।हिन्दू एक बच्चा पैदा कर रहे हैं अगर पहले लड़कीं हो गई तो दो बच्चे हो जाते हैं।वो अपने बच्चों को अच्छी जिंदगी देना चाहते हैं।मुस्लिम 4 शादी 15-20 बच्चे पैदा करते हैं।आधे घर चलाते हैं, आधे अपनी कौम पर कुर्बान हो जाते हैं।कई वीडियो आये हैं जिनमे बच्चों को गलत शिक्षाएं दी जाती हैं।सोचो वीडियो में ये है तो वीडियो के अलावा क्या क्या सिखाते होंगे।जब तक अल्पसंख्यक रहते हैं चुप रहते हैं, जैसे ही बहुसंख्यक हुए हिन्दुओ को मारना, जमीन कब्जाना, हिन्दू महिलाओं के बलात्कार, मंदिर तोड़ना, हिन्दुओ को इलाके से भगाना , अपहरण शुरू हो जाता है।क्योंकि ये इन्हें शुरू से सिखाया जाता है।मजे की बात ये है कि दिन रात कमा के टेक्स कोई और भरता है और उस पैसे से पेट कोई और भरता है।ये कहाँ से टैक्स भरेंगे ये तो देश को कब्जाने के चक्कर में हैं।
खाप पंचायत--- खाप पंचायत का इतिहास सदियों पुराना है।जहां आपसी भाईचारे से, सबकी सहमति से , निशुल्क दोनों पक्षों का फ़ैसला करवाया जाता है।अगर कोई एक पंचायत से सहमत नही है तो दूसरी ( बड़ी ) में जा सकते हैं।सभी जगह निशुल्क व्यवस्था है।कोई भी अप्राकृतिक या शारीरिक सजा नहीं दी जाती।सिर्फ सामाजिक बहिष्कार किया जाता है।वैसे भी तो देश का हर नागरिक स्वतंत्र है वो किससे बात करे किससे नहीं, किससे सम्बन्ध रखे, किससे नहीं। तो पंचायतें किस प्रकार से गलत हैं।इनको मान्यता मिलनी चाहिए।
मंदिरों और पुरानी ऐतिहासिक इमारत---- देश में जितनी भी हमारे पूर्वजों द्वारा बनवाई गई ऐतिहासिक इमारतों को मुगलों ने मुस्लिम नाम दिए हैं उनकी स्वतंत्र जांच करके दोबारा अपने मूल अस्तित्व और मूल नाम से स्थापित किया जाए।जितने भी मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई हैं उन्हें दोबारा मंदिरों के हवाले किया जाए।मस्जिदों को तोड़कर दोबारा मंदिर बनाये जाएं।देश पर आक्रमण करने वाले, बलात्कार करने वाले, हिन्दू महिलाओं को बंधक बनाने वाले, जोहर के लिए मजबूर करने वाले, हमारे वीर राजाओं को मारने वाले कुकर्मियों के महल,मकबरे, उनके नाम के रोड़ , इमारते, मज़ार सबको देश से हटाया जाए।कितने शर्म की बात है जिन्होंने हमारा खात्मा किया, हमारी अस्मिता को रौंदा हम उनकी मज़ारों पर माथा टेकने जाते हैं।और वो उसी जगह-उसी भूमि पर बनी हुई हैं जहां हमारे वीरों ने बलिदान दिया।
हलाल सर्टिफ़िकेट--- ये कोई सरकारी सर्टिफिकेट नहीं है।ये मुस्लिम निजी संस्था द्वारा दिया जाता है।और जो फीस का पैसा मिलता है उस पैसे से जिहादियों, देश के गद्दारों की मदद की जाती है। मुस्लिम लोग हलाल सर्टिफिकेट वाला ही सामान खरीदते हैं।इसलिए सभी कंपनियों को लेना जरूरी है। अगर हिन्दू बोले कि मै मुस्लिम से नहीं खरीदूंगा तो उसे जेल मिलती है।एक सेक्युलर देश मे एक धार्मिक निजी सर्टिफिकेट कैसे चल सकता है। सामान बेचने की इजाजत सरकार देती है कोई निजी संस्था कैसे सामान बेचने की इजाजत दे सकती है।
हलाला-- हलाला एक तरह से कानूनी बलात्कार है।जो औरत की इच्छा के विरुद्ध किया जाता है।औरत को धर्म के नाम पर ये पाप करने को मजबूर किया जाता है।हलाला से औरत के आत्म सम्मान को चौट पहुंचती है।उसे मजबूरी में ऐरे-ग़ैरे लोगों, रिश्तेदारों, मौलवियों, बुजुर्गों के साथ शारीरिक सम्बंध बनाने पड़ते हैं।इसलिए इस कुरीति को बंद किया जाए।
वक्फ बोर्ड़--- वक्फ बोर्ड़ को भंग किया जाए।जो जमीनें वक्फ बोर्ड के पास हैं वो दलितों में बांटी जाए। 1947 के बंटवारे के वक्त जो मुस्लिम यहां से पाकिस्तान गए उनकी जमीन वहां से आने वाले हिन्दुओ में नहीं बांटी गई बल्कि वक्फ बोर्डों को दे दी।जबकि उन जमीनों पर पहला हक पाकिस्तान से आये हिन्दुओ का था।
एक और काला कानून है आज भी वक्फ बोर्ड अगर किसी जमीन पर हाथ रख दे तो वो जमीन लगभग वक्फ बोर्ड की हो जाती है।क्योंकि वक्फ बोर्ड ही जमीन पर दावा करता है और वही सुनवाई करता है, वही फैसला करता है।आज तो ठीक है इनकी जनसख्या कम है लेकिन कल जब जनसंख्या बराबर होगी तो इसी कानून के सहारे हिन्दुओ को जमीनों से बेदखल किया जाएगा।अभी भी मुस्लिम बहुल इलाकों में ये हो रहा है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड--- मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को भंग किया जाए। जब यहां के मूल निवासियों के लिए उनका अपना बोर्ड नहीं है।जब वो अपनी विवाह पद्दति नहीं अपना सकते है।जब वो अपने धर्म के अनुसार नहीं जी सकते हैं।जब वो अपने धर्म की शिक्षा नहीं दे सकते।जब वो अपने फैसले अपने धर्म के अनुसार नहीं ले सकते तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड क्यों?
मदरसे--- मदरसों को अनुदान मिलना बंद होना चाहिए।जब हिन्दू गुरुकुल नहीं खोल सकते, जब हिन्दू अपने धार्मिक स्कूल नहीं खोल सकते तो मदरसे किसलिए।मदरसों में सिर्फ धार्मिक पढ़ाई होती है।चरमपंथ की पढ़ाई होती है।छापे मारे जाते हैं तो आपत्तिजनक चीजे मिलती हैं।देश द्रोह के काम चलते मिलते हैं।मौलानाओं को सरकारी तनख्वाह मिलना बंद हो।जब हिन्दू पुजारियों को नहीं मिलती तो मौलाना को क्यों मिलती है। हिन्दू तो इसी देश के निवासी हैं, क्या इसीलिए उनके साथ अपने ही देश मे सौतेला व्यवहार होगा।मुस्लिम छात्रों को छात्रवर्ती बंद होनी चाहिए ।एक तो 15-20 औलादें पैदा करेंगे फिर उनको खिलाये-पढ़ाये-पहनाए देश के हिन्दू करदाता।देश के संसाधन ख़त्म हो जायेंगे लेकिन इनका पेट नहीं भरेगा।
( सन्देश ) ---
इस ग्रुप म भाई सारे राष्ट्र वादी लागो हो। एक आपणी संस्कृति बचाण का काम भी कर दो। आसान भी है। कोई आंदोलन भी कोनी करना।
जन्मदिन या सालगिरह तो सब मनाते होंगे।वैसे मैं इन चोंचलों के खिलाफ हूँ , आजकल और भी बहुत से फंड चाल पड़े।ये सब उत्सव मनाने के लिए केक भी लाते होंगे, खाने का जुगाड़ भी करते होंगे और दारू भी पिलाते होंगे। तो भाई यें अनाप शनाप खर्चे छोड़ के कुछ धर्म का काम कर लो।इन लंगवाड़ा न दारू पिलाण का कोई फायदा ना होव।
वो पैसा किसी गरीब को दे दो। या भाई आज कल इस डीजे न, फिल्मी गाना न और फिल्मी नाच न आपने हरियाणा की संस्कृति , अपने लोक गीत , लोक नाच खत्म कर दिया।उसको बचाने के लिए कुछ सहयोग करो।
तो लड़कीं , मां या घरवाली के जन्मदिन प लुग्गाईयां छोरियां का हरियाणवी गीतां प , हरियाणवी नाच का आयोजन करवाओ। जो अच्छा करे उसे पहले नंबर वाली को या पहली तीन को कोई नकद इनाम दो या घी दे दो। जो खर्चा आप केक-दारू - फ़िल्म देखन - खान-पान प करो हो उतना ए कर दो।
लड़के या बाप या खुद के जन्म दिन प लड़को और बूढ़ों का नाचन का प्रोग्राम कर दो या लुगाईयां का ए कर दो , जो आपको अच्छा लगे।
कम त कम आपणी संस्कृति तो बचेगी। मैं भी अबकी बार कर रहा हूँ।
( फिल्मों का मूल्यांकन ) --
सांड की आंख फ़िल्म एक सत्य घटना पर आधारित है।दादियों ( चंद्रो तोमर जी और प्रकाशी तोमर जी जोहरी गांव बागपत उत्तर प्रदेश ) की उपलब्धि बेमिसाल है।कई मेडल जीते।अपनी पोतियों को और बाकी लोगों को भी उन्होंने आगे बढ़ने के लिए उत्साहित किया।एक बात जो उन्होंने फिल्म में बोली कि पेंट में तो सभी खेलते हैं अलग बात तो तब होगी जब हम दामण में खेलेंगी।और उन्होंने साबित कर दिया पहनावा कोई रुकावट नहीं है।फ़िल्म में मेडल को छोड़कर सारे तथ्य झूठे दिखाए गए हैं।ये फिल्मों वाले पैसे के लिए किसी भी हद तक गिर जाते हैं।और नसीहत दूसरों को देते हैं।हर जगह अपना कमीनापन दिखाते हैं।हम पॉइंट वाइज गलत तथ्यों की पड़ताल करेंगे।
1.दादियां रोज निशानेबाजी सीखती हैं किसी को पता नहीं चलता।मेडल जीत के लाती हैं किसी को पता नहीं चलता।गाँव मे जहां कोई छींक भी दे तो पूरे गाँव को पता चल जाता है।इतनी बड़ी बात पूरे गाँव से और उनके अपने घर के मर्द बच्चों तक से छुपी रह गई।हज़ारों बार उनका पोता साथ मे गया और उसे पता नहीं चला अजीब तर्क है।
2.कहीं दादियों को फालतू में पर्दे में दिखाया गया कहीं सिर से लता ही गायब है। दादियों को पर्दा करने की जरूरत नहीं होती।पर्दा ससुर या जेठ से किया जाता है।इनकी उम्र के हिसाब से ससुर कोई जिंदा नहीं होगा।जेठ पूरे गाँव मे कुछ ही होंगे।जो सबसे बड़े वाली है उसे तो पर्दे की जरूरत ही नहीं।फिर भी उसे पूरी जिंदगी पर्दे में दिखाया गया है।
3.दादियों को बुढ़ापे में भट्ठे पर,खेत में काम करते दिखाया है।कौन दादियों से काम करवाता है।और कौन सी दादी खेत मे काम करती है।घर में हुक्म दादियों का ही चलता है।
4.पंचायत होती है।औरतें शामिल होती हैं।दादियों की जिस तरह की जिरह दिखाई गई है, उसे देखकर जिस तरह के बाहुबली सरपंच दिखाए गए हैं वो पंचायत में ही गोली मार देते।जब आज महिलाओं का पंचायत में जाना बंद है तो उस जमाने में महिलाएँ पंचायत में कैसे कड़ी हुई ? सरपंच पंचायत का मुखिया नहीं होता।अपने ही केस का तो कोई भी मुखिया नहीं बनता।
5.सीमा तोमर विदेश से मेडल जीत के आती है तो दादियों को बोलती है कि वहां लडकिया आधे कपड़ो में घूमती हैं।क्या बॉलीवुड या मीडिया लड़कियों की आज़ादी का मतलब नङ्गे घूमना मानता है।क्यों ये लोग औरतों को नँगा देखना चाहते हैं।एक तो सीमा ने ये बात असल जिंदगी में कही नहीं, दूसरी अगर कहि होगी तो वहां के रहन सहन के परिपेक्ष्य में कही होगी, आज़ादी के परिपेक्ष्य में तो बिल्कुल नहीं।
6.एक दादियों का संवाद है कि हमने जिंदगी जी नहीं, काटी है।कैसे नहीं जिंदगी जी, उनका भरा, पूरा परिवार, अच्छा बड़ा घर,खेत, अच्छा कारोबार,अच्छा पहनना, अच्छा खाना,घी-दूध।गाँव की ऐसी जिंदगी के लिए हजारों जन्म लेने पड़ते हैं।और दादियां जो ट्वीट करती हैं अपनी जिंदगी के पुराने दिन,पुराने फ़ोटो, गाँव की जिंदगी को याद करती हैं उससे साफ जाहिर है कि इन फिल्मी कीड़ों ने अपनी संस्कृति ,अपने विचार थोपने के लिए गाँव की 70% आबादी को घटिया बोला है।और बोलते रहे हैं,बोलते रहेंगे।इतनी प्रसिद्ध और आमिर होने के बावजूद आज भी वो गाँव में रहती हैं।
देश- धर्म -
देश से प्रेम अच्छी बात है। लेकिन मुझे लगता है देश से ज्यादा महत्वपूर्ण है धर्म। आपने अपने धर्म के लिए क्या किया? धर्म है तो देश है, लोग हैँ तो देश है। क्या बिना लोगों के कोई देश हो सकता है, क्या बिना लोगों के कोई कानून हो सकता है, क्या बिना लोगों के कोई संविधान हो सकता है?
देश बदल जाता है, उसकी सीमाएं बदल जाती हैँ। आपका प्रेम जो आज इन सीमाओं के लिए है, कल उन सीमाओं के लिए होगा।
पहले राजा महाराजा होते थे।उनके राज पाट का क्षेत्र घटता बढ़ता रहता था।उसी के हिसाब से उनका राष्ट्र प्रेम भी कभी किन्ही सीमाओ के लिए, कभी किन्ही सीमाओ के लिए बदलता रहता था।
जैसे कोई भारतीय अमेरिका, इंग्लैंड गया, वहां आम इंसान, उद्योगपति, सरकारी सेवक, मंत्री, प्रधानमंत्री बन गया। तो उसका राष्ट्र प्रेम अमेरिका या इंग्लैंड के प्रति होगा।वो उस देश की खुशहाली, उसके वातावरण, वहाँ के सम्बन्धो के बारे मे सोचेगा क्योंकि उसके काम वही आएंगे।लेकिन धर्म उसका वही रहेगा जो भारत मे था। धर्म के प्रति लगन, धर्म के काम, धार्मिक मान्यताएं वही रहेंगी।
जैसे आज आप किसी x गांव मे रहते है तो आपकी सोच, आपका कार्य उस गाँव की तरक्की के लिए होगा। कल आप शहर चले जाते है, किसी दूसरे गाँव मे बस जाते हैँ तो आप उस शहर या गाँव के लिए सोचेंगे। उसका विकास चाहेंगे। उस शहर या गाँव के लोगों से अच्छे सम्बन्ध बनाएंगे। इसी तरह लोग दूसरे देश मे बस जाते हैँ तो उनका राष्ट्र प्रेम उस देश के लिए हो जाता है। लेकिन एक चीज है जो नहीं बदलती वो है धर्म। चाहे आप गाँव बदलो, चाहे देश बदलो धर्म आपके साथ रहता है।इसीलिए धर्म बचाओ, धर्म के लिए जीओ, धर्म के लिए काम करो। धर्म रहेगा तो आप, आपकी पीढ़ियां रहेंगी।
जैसे एक धर्म के लोग देश से ऊपर धर्म को मानते हैँ। आज वो पूरे विश्व मे छा चुके हैँ।दूसरे धर्म के लोग भी उस धर्म को अपनाते हैँ तो वो भी देश से ऊपर धर्म को मानने लग जाते हैँ। तो जब आप उस धर्म मे जाके सोच बदलते हो तो पहले ही अपनी सोच बदल लो ताकि आपको धर्म बदलने की नौबत ना आये।
विडंबना ---
अल्पसंख्यक आयोग किसने बनाया, हिन्दुओं ने।
मुस्लिमों को विशेषाधिकार किसने दिए, हिन्दुओं ने।
वक्फ, मस्जिद, मदरसे को विशेषाधिकार किसने दिए, हिन्दुओं ने।
वक्फ बोर्ड,पहली मस्जिद, मदरसे बनाए किसने, हिन्दुओं ने।
गुरुकुल के खिलाफ क़ानून किसने बनाए, हिन्दुओं ने।
मंदिर सरकारी कब्जे में किसने दिए, हिन्दुओं ने।
हिन्दू देवी देवताओं के मज़ाक कौन बनाता है, ज्यादातर हिन्दू ही।
एस-सी एस-टी क़ानून किसने बनाया, सवर्णों ने।
अंबेडकर जी को संविधान निर्माता किसने बनाया, सवर्णों ने।
आरक्षण किसने लागु किया, सवर्णों ने।
अम्बेडकर को पढ़ाया किसने? बड़ोदा राज्य के महाराजा सायजीराव गायकवाड़ ने। आज दलित सवर्णो को गालियां दे रहे हैँ।
महिलाओं को अधिकार किसने दिए, पुरुषों ने।
महिलाओंं को आरक्षण किसने दिया, पुरुषों ने।
महिलाओंं के हित्त में एकतरफा क़ानून किसने बनाए, पुरुषों ने।
दलितों को, नाई, लुहार, कुम्हार आदि को गांव मे बसाया किसने? ऊँची जातियों ने बाहर से लाकर लाकर अपने गांव में बसाया। घर, जमीन, पानी, अन्य सामान सब दिया। काम धंधा दिया, सुरक्षा की। आज वो आँखे दिखाने लगे।
जब जंग लड़ने का समय आता है तो लड़ते हैँ क्षत्रिय। चाहे मुगल हो, अंग्रेज हो, मुस्लिम आक्रांता हो या अन्य लड़ाईया । हर जगह क्षत्रियो ने अपनी छातियां अड़ाई हैँ।लेकिन जब देश के संसाधन लूटने हो, जब कानून का फायदा उठाना हो तो वो दुबके हुए लोग पहली पंक्ति मे खड़े मिलते हैँ। जंग के वक्त कहाँ मर जाते हैँ वो लोग? देश गुलाम होने वाला होता है तब वो लोग लड़ने क्यों नहीं आते? जब शांतिकाल मे देश उनका है, संसाधन उनके है, कानून उनके हैँ तो लड़ाई के वक्त ये देश सिर्फ क्षत्रियों का कैसे हो जाता है।
फिर भी बदनाम वही हैं जिसने अधिकार दिए।मारे वही जा रहे हैं जिसने अधिकार दिए।
इतिहास गवाह है कि आदमी ने अपने पैरों पे कुल्हाड़ी खुद मारी है।खुद बदनाम हुआ,खुद मिटा।
Tax -
अंबानी ने इतना टैक्स दे दिया, अडानी ने इतना दे दिया। अक्षय कुमार ने इतना दे दिया। नाम है उनका टैक्स कोई और देता है. प्रिसिधि मिलती है उनको और जो असलियत में टैक्स देते हैं उनको कोई पूछता भी नहीं। किसी उत्पाद पर टैक्स लगता है तो इस्तेमाल करने वाली कंपनी आपसे वो टैक्स वसूलती है और सरकार में जमा कर देती है। जैसे साबुन पर टैक्स लगा तो साबुन बनाने वाली कंपनी अपनी जेब से वो टैक्स नहीं देती वो आपसे यानि ग्राहक से (आम जनता) से लेती है। इसी तरह जो सेवा प्रदान करते हैं जैसे डॉक्टर हैं, कोचिंग वाले हैं, सीए हैं वो जनता से वसूलते हैं सरकार को दे देते हैं। नाम होता है उनका और टैक्स भरते हो आप।
Kisan andolan ke liye do baatein bol rahe hain kyonki desh ko gumrah karna hai.
1. Sirf haryana Punjab ke kisan hi kyon andolan kar rahe hain baki desh me kya kisan nahi hain.
2. Kisan andolan me Sirf jaat kisan hain. Baki jatiya kyon nahi. Kya wo kisan nahi.
Taklif to sabko hoti hai lekin ladne ka sahas kisi kisi me hota hai. Mughlo se muthi bhar log hi lade the. Soch agar sab ladte to kya mugal bharat pe hamle karte kya raaz kar paate. Angrejo se muthi bhar log hi lade the . Agar sab ladte to kya wo raaz kar paate. Tab unhone bhi yahi bola Tha muthi bhar logo ko hi kyon taklif ho rahi hai. Kya hamare krantikari pagal the jo apna Jeevan balidaan de gaye. Wo bhi yahi soch lete Baki nahi lad rahe to ham bhi na lade. Aazadi unke kaam thode hi aai. Wo to aazadi se pahle hi balidan ho Gaye. Unhe kya mila?
Har koi itna hoshiyar nahi hota ki wo sajish samajh jaaye. Har koi netartav karne wala bhi nahi hota. Koi koi hota hai jo netartav kar sake. Pahle wo pahle wo ke chakkar me to koi samne nahi aa payega isliye jaat pahle aage badhte hain.
Ab sarkar ki mansikta ki baat karte hain.
Kisano ki raah me kile bichcha di. Unhe dilli nahi jaane de rahe . Kisan shantipurvak dilli kyon nahi ja sakte.
Baki logo ko to sarkar nahi rokti. Karmchari har dusre mahine andolan karte hain. Sarkar kuch nahi kar Pati. Turant unki salary badha deti hai. Sachai ye hai ki ye milke desh ko lut rahe hain.
Shahin bagh me log kitne din baithe rahe sarkar ne koi action nahi liya.
Supreme Court me SC St act radd kiya to SC St wale sadko pe uttar gaye sarkar ne unke raste me kile nahi bichai . Tab to sarkar turant jhuk gai.
1000 samlenging dharna dete hain sarkar unke kanoon bana deti hai. Unke aage jhuk jaati hai.
Pahle bollywood ne desh ki sanskriti ko khatm kiya ab sarkar kanoon aise bana rahi hai desh me Bharatiya sanskriti naam ki chij nahi bachegi.
Ab aakhir me baat karte hain sarkar desh ki sabse bahadur kaum ko khatm kyon aur kaise karna chahti hai.
Agar ladne wale nahi rahenge to sarkaar manmani kar sakegi. Lutte rahenge.
Sabse bahadur kaum hai jaat. Puri dunia apni sarvshresht chij to bachana chahti hai. Unke liye vishesh prabhand karti hai. Aur hamare desh me use nasht nasht kiya jata hai.
Jaise jaivik kheti, ayurveda, Gurukul, Nadiya baidh , hamari vaidik science . Sarkar sab khatm kar chuki hai.ab Bains garbh nahi thahar raha hai, banjh ho rahi hain.jab se hasptal me beej aaya hai tab se ye dikkat shuru hui. Aage Aage insan bhi banjh hote ja rahe hain. Kya inme sajish ki bu nahi aati.
Ab baari hai jaat nasl ki. Jaato ko kaise khatm kiya ja raha hai wo dekhiye.
Kuch nasl khas hoti hain jaise Murah , sher ,Jat . Unhe bachane ke prayash hone chahiye.
1. Kheti ki Jamin eqwire - haryana punjab chhote chhote rajya hain. Yahan ki saari Jamin hadaf li jaayegi. Ab ye Kisano ko bhi samajh nahi aa raha hai. Unhe achcha paisa mil raha hai wo dhadadhad bech rahe hain. 4-5 saal me paisa bhi khatm Jamin bhi khatm, naukri bhi nahi milegi.
Hamari Jamin factory sadak highway housing society ke naam pe hadafi ja rahi hai. Jahan road ki khas jarurat nahi vahan bhi road nikale ja rahe hain. Kyonki Jamin hadfani hai. Jab aapke paas Jamin hi nahi rahegi to us road ko kya chatoge kya karoge uska us road pe chal ke kahan jaoge. Fasal to rahegi nahi jo use bechne jaoge. Housing society me aapko ghar milenge nahi. To ye societies aapke kya kaam aayenge. Factory me aapko naukri nahi milegi. Jyada se jyada ek pidhi ko naukri de denege. Agli pidhi kahan jaayegi. Tumhare baap daada Jamin chhod ke gaye to aaj tum ijjat ki jindgi ji rahe ho. Factoriyo se jitno ko rojgaar milte hain usse jyada berojgar hote hain.bhavishya usi ka hai jiske pass jamine hongi . Tumhari jamine hadaf li jaayengi.
2. Aapko videsh me bhagaya ja raha hai. Punjab videsh me settle ho chuka hai. Ab haryana vidhesh ki taraf bhag raha hai. Aadhe bachche raste me maare jaate hai. Aadhe manzil par pahunchne ke baad maare jaate hain, kyonki vahan wo galat raah pakad lete hain ya galat logo ko fans jaate hain. Unke parijan yahan unki yaad me maare jaate hain. Jo unki Jamin ghar baar yahan hai un par Kal kiske kabje honge. Aap videsh ja nahi rahe aapko beja ja raha hai. Ek to aapki Jamin hadfane ke liye dusra bahadur kaum ko khatm karne ke liye.
3. Nasha - aapko nashe ka aadi banaya ja raha . Punjab nashe ki girfat me hai. Aadha haryana girfat me aa chuka hai. Jo Kisano ki raah me kil bichha sakte hain, jo love marriage walo ko vvip Security de sakte hain, jo owner killing pe gaav ko chhavani bana sakte hain, jo corona ka marij milne pe gaav ko chhavani bana sakte hain, jo SC St me gaav ko chhavani bana sakte hain, Kya Nasha nahi rok sakte? Lekin ye kyon rokenge inhe to hamari nasl khatm Karni Hai. Jo inke khilaf bolega use pakad lenge.
4. Anterjatiya Vivah - ye bhi ek sajish hai. jaato (Sikh ya haryanvi) ki shadi dusri jaati me hogi to nasl kharaab hogi. Aulad kamjor aur budhihin paida hogi. Jaat ladaku hain aur ladaku inhe pasanad nahi. Agar ye sajish nahi hai to fir ye anterjatiy shadiyo pe paisa kyo de rahe hain.ab kuch bolenge ki ye jaato ko khatm kyon karna chahenge inhe sainik bhi to chahiye. Bhai bhavishya me yudh robot Dron misail ladengi . Ab kuch bolenge ki jaati jaati khel raha hai. Bhai jaati jaati to wo khelte hain jinhone sanvidhan me jaati like Rakhi hai aur ham jaati ka naam le to jail. Jo jaation ke naam pe vot, aarakshan, fayda nuksan, jatigat janganana ka khel khel rahe hain aur ham jaati ka naam le to jail me daal date hain. Jaatiya jaruri hain. Bujurg pagal nahi the. Aaj bhi inhone group, blood group Vibhag , pad, unit etc. ye sab bana rakhe hain.hamare bujurgo ne jaatiya banai thi achche ke liye. Kisi ko uncha nicha dikhane ke liye nahi. Kuch log kisi chij me parangat hote hain kuch log kisi chij me. Sabka apna apna hunar hai . Aur ek desh ko baniye bhi chahiye, bahadur ladake bhi chahiye. Shankarachary ji ne wo 5 Sikh hi kyon banaye. Vahan to unke Kai anuyayi baithe the. Kisi ko bhi Sikh bana dete.
Jaatiya isliye banai thi taaki desh apna sarvshresht kar sake. Kshatriy yudh ladenge to jitne ke chance badh jayenge. Wo apna sarvshresht denge . Vaisya vyapar karega to desh ki economy highest Jayegi. Majdur majduri karega to usme kabiliyat hai makan ya factory ki ninv ko dusro se jyada mazbut karega.
Jab karodo varsho se ham jaatiyo me rahte aa rahe the, apni jatiyo ki Rashm nibha rahe the, apni jatiyo me shadiya kar rahe the tab koi dikkat nahi hui aaj 50-60 saal me kaun si aafat aa gai. Ye aafat aai nahi Lai gai hai.
Ek varg hai Parsi jo paras (iran) se bhag kar aaye the. Vyapari varg hai ladaku nahi. Unko bachane ke liye sarkar vishesh yojna chala rahi hai. Parsi Parsi se shadi karega to 5 lakh rupye diye jayenge. Parsi bachcha paida karega to 5 lakh rupees diye jayenge . Ye yojna desh ki sarvshresht nasl ko bachane ke liye kyon nahi chala rahe. Kyonki inhe vyapari chahiye jo inki jholiya Paise se bhar sake . Ladaku nahi jo inki galat nitiyon ka virodh kare.
5. SC St act- jaati kyo jaruri hai ye Maine aapko upar Bata diya. SC St act hame aapas me khatm karne ke liye laya gaya hai. Aap log jante hi ho ye case kitne sahi hain kitne jhuth. Is case se pidhito ki sankhya badhti ja rahi hai. Ek din aisa aayega Puri samanya jaatiya jail me hongi. Ya aapas me ladenge marenge. Kyonki kisi ek varg pe mukadme honge aur kahi uski sunwai nahi hogi to wo kya karne ki sochega. Aap khud samajhdar ho.
Yahi inki chal hai ki ham aapas me hi Marne katne lag jaaye. Inki satta chalti rahe.
1. Khan Panchayat khatm kar di. Pahle ham apne fainsle panchayat ke madhyam se karte the.aaj kanoon bich me hai. Hamne lutne ke liye vahan jana padta hai. Jo jhagda panchayat me sulajh sakta hai uske liye thana tahsil me jao. Vahan kharcha aur samay dono lagte hain.
Jab ye apne matter party meeting, committee, vhip, udhog sangathan me aapas me suljha sakte hain to ham kyon nahi. Bollywood me bhi aisa hi ek sanstha bani hui hai.
2. Gaav me tarah tarah ke log aate hain. Chori, khun, bachcho ki kidnepping hoti hai. Aur Jab koi panchayat ye fainsla karti hai ki hamare gaav me koi aira gaira nahi ghusega ya gaav ka hi koi galat aadmi hai uska hukka paani band Kar diya jaata hai to kanoon aa jaata hai. Kyon. Jab saare desh me savaidhanik sansthao me fainsle bahumat se hote hain to gaav me kyon nahi. Sansad kourt chunav har jagah bahumat mana jata hai. Aap bhi sansad se sansadho ko bahar kar dete ho. Kya us sansadh ko chunane wale logo se puchhte ho. Court me bhi fainsle bahumat se liye jaate hain. Aapke office me, desh ki property sansad me, aapke rihaishi ilaako me , aapki societies me kisi ko ghusne nahi diya jata. Security bitha Rakhi hai. To gaav walo ki jindgi sasti hai kya. Gaav wale ye Tay nahi kar sakte Unhe kisse milna hai kisse baat Karni Hai. Do bade bollywood star ek dusre ka boycott karte hain aap vahan kanoon kyon nahi leke jaate. Do bade tennis star aapsi dushmani me bharat ke liye ek saath tournament nahi khelte desh haar jaata hai. Aap Unhe kyo nahi pakdte. Do bade cricketer ek dusre ko nicha dikhane me ek ko bahar bitha deta hai (apni kaptani me ) desh haar jaata hai Aap use kyon nahi pakadte.
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