1. इंसयोरेन्स या बीमा के बारे में सारी जानकारी --
इंसयोरेन्स कंपनी और इंसयोरेन्स करवाने वाले व्यक्ति के बीच मे एक अनुबंध होता है जिसे इंसयोरेन्स कहते है।
क्योंकि जब हमे बीमा की जरूरत होती है तो कोई हमे बीमा नही देता।जैसे किसी के एक्सीडेंट होने पर , कोई अंग भंग होने पर, गंभीर रूप से बीमार होने पर हमें बीमा नही मिलता । बीमा हम समय रहते ही ले ले तो अच्छा है।
2. बीमा के प्रकार ---
1- लाइफ या जीवन बीमा-ये सिर्फ जीवित व्यक्ति को ही मिलता है।ये बचत योजना भी है और दुर्घटना घटने पर लाभ भी मिलता है।
2- जनरल इंसयोरेन्स या सामान्य बीमा- जीवन बीमा को छोड़कर सारे बीमे इसमे होते है।जैसे- गाड़ियों के , मकान, दुकान आदि के बीमे।ये बचत योजना नही है।
3- हेल्थ इंसयोरेन्स या स्वास्थ्य बीमा- ये व्यक्ति की बीमारी से सम्बंदित है।अगर बीमार होगा तो ही लाभ मिलेगा।नही तो कुछ नही मिलेगा।ये बचत योजना नही है।
3. बीमा के सिद्धांत - --
1- परम सद्भाव का सिद्धांत- इसमे बीमा करवाने वाले व्यक्ति को सारी जानकारी सच सच बतानी होती है। बीमा करवाने वाले व्यक्ति शराब पीता है, कोई बीमारी है,कोई जोखिम वाला काम करता है तो वो सारी बाते पहले ही बता देनी चाहिए उसके बाद कंपनी फैंसला करती है उस व्यक्ति को पालिसी देनी है या नही या कुछ शर्त के साथ पालिसी देनी है।यदि व्यक्ति जानकारी छुपाता है और कंपनी को बाद में पता चलता है तो कंपनी को 3 साल तक उसकी पालिसी रद्द करने का अधिकार है।3 साल के बाद कंपनी को कुछ भी पता चलता रहे कंपनी पालिसी रद्द नही कर सकती।
2- बीमा हीत का सिद्धांत - जिस चीज के ना होने से हमे नुकसान हो हम उसका बीमा पालिसी ले सकते है।जैसे अपने बच्चों के नाम , पति पत्नी के नाम,हमने जिसको कर्ज दिया है उसके नाम से,मकान, दुकान,गाड़ी,कारोबार आदि पर हम पालिसी ले सकते है।क़िस्त हमे भरनी पड़ेगी और उसका फायदा भी हमे ही मिलेगा।
3- क्षति-पूर्ति का सिद्धांत - जितने की हमारी हानि हो कंपनी उतने की ही भरपाई करेगी।जैसे गाड़ी जितनी टूटी है कंपनी उतना ही पैसा देती है।
4. बीमा के उत्पाद ---
1-ट्रेडिशनल या परंपरागत बीमा- इसमे एक निश्चित लाभ मिलता है।
2-नॉन ट्रेडिशनल या गैर परंपरागत बीमा- ये शेयर मार्केट पर आधारित होता है।इसमें लाभ हानि फिक्स नही है।
5. म्रत्यु दावा या पालिसी खत्म (मैच्योरिटी) होने पर क्या मिलता है ---
1- सम असुरड़ या बीमा धन मिलता है।( बीमा धन वो होता है जो कंपनी पालिसी देते वक्त एक राशि तय करती है जिस राशि को आधार मान कर सारे बोनस या ब्याज कंपनी द्वारा दिये जाते है। ये आपके प्रीमियम या क़िस्त का 10 गुना तक होता है) या जितने की प्रीमियम राशि है उसका 11 गुणा या जितने प्रीमियम भरे उसका 105% इन तीनो में से जो ज्यादा होगा वो मिलेगा म्रत्यु दावा में और मैच्योरिटी पर बीमा धन मिलेगा।
2- गारंटेड बोनस- जो 20 साल से ऊपर की पालिसी में बीमा धन का 30% और 20 साल से कम की पालिसी में 25% तक मिलता है।
3- रिविज़्नेरी बोनस- ये हर साल बीमा धन का 4% या ज्यादा मिलता है।
4- टर्मिनल बोनस- पालिसी की पूरी अवधि में कंपनी एक बार इस बोनस की घोषणा करती है जो बीमा धन का 24% मिलता है।
6. कूलिंग या फ्री लुक पीरियड - पालिसी लेने के 15 दिन के अंदर हम उसे वापिस कर सकते है और कंपनी से अपना पैसा वापिस ले सकते है।
7. ग्रेस पीरियड -- जीवन बीमा में क़िस्त चार प्रकार से भरी जाती है। हर महीने, हर तीन महीने में, हर छह महीने में , साल में एक बार। जनरल और हेल्थ बीमा में सालाना क़िस्त ही जमा होती है।जीवन बीमा में यदि किस्त तिमाही,छमाही या सालाना है तो क़िस्त जमा करने की तारीख के 30 दिन बाद तक हम क़िस्त जमा कर सकते है।और यदि महीना वारी है तो 15 दिन बाद तक।उसके बाद भी हम क़िस्त नही भरते तो पालिसी लेप्स हो जाती है।लेप्स पालिसी को हम 3 साल के अंदर अंदर दोबारा शुरू कर सकते है।उसके बाद पालिसी शुरू नही हो सकती।
8. अगर हम पालिसी बंद करवाते है -- 3 साल तक पालिसी बंद करवाने पर कुछ नही मिलेगा । उसके बाद बंद करवाने पर बहुत ही मामूली पैसा वापिस मिलेगा जितना हमने भरा है वो भी पूरा नही मिलेगा।
सुसाइड या आत्महत्या- अगर पालिसी लेने के एक साल के अंदर कोई आत्महत्या कर लेता है तो कोई लाभ नही मिलेगा।दूसरी क़िस्त जमा करने के बाद कोई आत्महत्या कर लेता है तो पूरा लाभ मिलेगा।
पालिसी लेने के बाद एक्सीडेंटल डेथ या नार्मल डेथ कुछ भी हो पूरा लाभ मिलेगा।
9. मिसिंग केस - यदि कोई पालिसी होल्डर सात साल तक लापता है कोर्ट उसे मुर्दा मान लेती है तो कंपनी उस पालिसी का सारा क्लेम देने के लिए बाध्य है बशर्ते उसकी उन सात सालों के दौरान क़िस्त भरी गई हो।
10. प्रोपोज़र-- जो व्यक्ति पालिसी लेना चाहता है उसे प्रोपोज़र कहते है।
11. पालिसी होल्डर- जिस व्यक्ति ने पालिसी ली है उसे पालिसी होल्डर कहते है।
12. अंडरराइटर या जोखिमानकन - कंपनी एक स्टाफ नियुक्त करती है जो ये तय करता है किसे पालिसी दी जाए और किसे नही या किन शर्तो पर दी जाए।
13. कंपनियों के लिए नियम ---
भारत मे 24 कंपनी लाइफ बीमा, 28 कंपनी जनरल बीमा और 6 कंपनी स्वास्थ्य बीमा करती है।
हर कंपनी को इरडा में सिक्योरिटी जमा करनी पड़ती है बीमा लाइसेंस लेने के लिए।
जीवन बीमा सलाहकार या एजेंट बनने के लिए किसी भी कंपनी में 50 घंटे की ट्रेनिंग लेकर एग्जाम पास करना पड़ता है।बीमा कंपनी अपॉइंटमेंट लेटर देगी जो जीवन भर के लिए वैध है।अगर कोई जनरल बीमा सलाहकार बनना चाहता तो उसे 75 घंटे की ट्रेनिंग और एग्जाम पास करना पड़ता है।या फिर जीवन बीमा सलाहकार 25 घंटे की ट्रेनिंग लेकर जनरल बीमा सलाहकार बन सकता है।
हेल्थ बीमा कंपनी किसी भी जीवन बीमा सलाहकार को लाइसेंस दे सकती है।
14. राइडर - मुख्य पालिसी के साथ हम कुछ राइडर भी ले सकते है।जिससे हमें दुगना फायदा हो।इसकी क़िस्त मुख्य पालिसी क़िस्त के अलावा 1000-500 रुपये ज्यादा देने होते है।एक पालिसी में हम सभी राइडर एक साथ ले सकते है।बशर्ते राइडर की क़िस्त मुख्य क़िस्त से 30%से ज्यादा न हो और राइडर का बेनिफिट अमाउंट मुख्य पालिसी के अमाउंट से ज्यादा न हो।
राइडर के प्रकार-
1- एक्सीडेंटल डेथ बेनिफिट या दुर्घटना म्रत्यु लाभ- यदि बीमित व्यक्ति एक्सीडेंट में मारा जाए तो जितने की उसकी पालिसी लाभ है लगबग उतना ही एक्स्ट्रा पैसा उसे राइडर का मिलेगा।
2- क्रिटिकल इलनेस या गंभीर बीमारी- यदि कोई गम्भीर बीमारी हो जाये तो कंपनी उसका इलाज करवाएगी और उसकी पालिसी का लाभ तो वैसे का वैसा उसे मिलना ही है।
3- टर्म राइडर- किसी भी तरह से म्रत्यु हो तो मुख्य पालिसी लाभ के साथ इसका भी लाभ मिलेगा । व्यक्ति को पालिसी का लगभग दुगना पैसा मिलेगा।
4- वायर ऑफ प्रीमियम- पति पत्नी एक दूसरे के लिए , मा बाप अपने बच्चों के लिए ले सकते है। यदि प्रीमियम भरने वाला व्यक्ति काम करने लायक नही रहता या मर जाता है तो उस पालिसी के आगे के सारी क़िस्त माफ हो जाती है और पालिसी चलती रहती है, पालिसी पूरी होने पर पालिसी होल्डर को पूरा पैसा मिल जाता है जितने की उसकी पालिसी होती है।
माइक्रो बीमा- ये गरीब लोगों के लिए है।इसमें 5000-से-50000 रुपये तक जीवन बीमा होता है।स्वास्थ्य बीमा या औधोगिक बीमा 5000-से-30000 तक होता है।इसमे क़िस्त साप्ताहिक भी भर सकते है।
15. हेल्थ बीमा - स्वास्थ्य बीमा बीमारी पर ही लाभ देता है।यात्रा या अलाइड बीमा और पर्सनल एक्सीडेंट बीमा भी हेल्थ बीमा कंपनियां ही करती है।यदि कोई व्यक्ति स्वस्थ रहते हुए लगातार पालिसी ले रहा है क़िस्त भर रहा है तो बीमार होने पर कंपनी उसकी क़िस्त लेने से या पालिसी देने से या उसे लाभ देने से मना नही कर सकती।इसमे भी राइडर की तरह टॉपअप प्लान होते है।जिससे एक्स्ट्रा बेनिफिट मिलते है।जैसे गर्भ अवस्था, गंभीर बीमारी, ओपीडी,धन रहित इलाज।
इसमे पोर्टेबिलिटी लागू है।आप एक कंपनी से दूसरी कंपनी में जा सकते है।आपके साल शरू से ही गिने जाएंगे।
16. बीमा की शुरुआत ---
दुनिया मे बीमा की शुरुवात सन्न1583 में समुद्री जहाजो के बीमे से हुई थी।पहली कंपनी लॉयड कॉफी हाउस लंदन थी।भारत मे 1870 में जीवन बीमा की शुरुवात हुई।सन्न 1870 से 1956 तक 245 बीमा कंपनी भारत मे थी।इन 245 मे से 170 कंपनी जीवन बीमा और 75 म्यूच्यूअल फण्ड कंपनी थी।भारत सरकार ने 1956 में सारी कंपनी लाइफ इंसयोरेन्स कारपोरेशन में मर्ज का दी।सन्न 1993 में बीमा पर सर्वे के लिए मल्होत्रा कमेटी बनाई गई।और 1999 में इंसयोरेन्स रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी या बीमा नियंत्रण एवम विकास प्राधिकरण के गठन हुआ।जिसने 01 अप्रैल 2000 से काम करना शुरू किया।अप्रैल 2014 में इसके नाम के आगे इंडिया (भारत) और जोड़ दिया गया।भारत की पहली कंपनी ओरिएंटल इंसयोरेन्स कंपनी थी।
17. शिकायत करने के नियम और प्राधिकरण ---
अगर हमे बीमा कंपनी से शिकायत है तो हम संबधित कंपनी में शिकायत कर सकते है।यदि कंपनी 30 दिन तक शिकायत नही सुनती तो हम इरडा (इंसयोरेन्स रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया) के इंटीग्रेटेड ग्रीवेंस मैनेजमेंट सिस्टम में शिकायत कर सकते है।
इसके अलावा ग्राहक 30 दिन के बाद और एक साल के अंदर कोपा या कंज़्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट और बीमा लोकपाल (ऑम्बड्समैन) और सिविल कोर्ट और उपभोक्ता अदालत में भी शिकायत कर सकते है।सिविल कोर्ट और उपभोक्ता अदालत में कभी भी शिकायत कर सकते है।कोपा 1986 में लागू हुआ।लोकपाल के भारत मे 12 आफिस है।ये इरडा के अधीन है।लोकपाल सिर्फ 20 लाख तक के मामले देखते है।उससे ऊपर के मामले सिविल कोर्ट या उपभोक्ता अदालत में देखे जाते है।बीमा कंपनी लोकपाल का फैसला मानने के लिए बाध्य है।ग्राहक उसके खिलाप अपील कर सकता है।लोकपाल को 90 दिन में केस का निपटारा करना जरूरी है।और फैंसला कंपनी के खिलाफ आने पर कंपनी को एक महीने के अंदर ग्राहक का पैसा देना जरूरी है।यदि ग्राहक ने पहले कोर्ट में मुकदमा कर दिया तो लोकपाल उसके बाद उस केस की सुनवाई नही कर सकता।
सिविल कोर्ट और उपभोक्ता कोर्ट में 20 लाख तक के मामले जिला स्तर पर, 20 लाख से एक करोड़ तक के मामले राज्य स्तर पर और एक करोड़ से ऊपर के मामले राष्ट्रीय स्तर पर दायर हो सकते है।
18. बीमा के फायदे ---
1- बचत हो जाती है।बैंक से ज्यादा ब्याज मिलता है।बैंक में आप जितना पैसा डालोगे उसी पर ब्याज मिलेगा जबकि बीमा में जितने की पालिसी (बीमा धन) होता है उस पर ब्याज या बोनस जुड़ता है।ना कि क़िस्त या प्रीमियम राशि पर।
2- अगर आदमी गुजर जाता या पूरी तरह अपंग हो जाता है तो पूरा पालिसी अमाउंट उसके परिवार को मिलता है चाहे उसने एक ही क़िस्त भरी हो।
3- टैक्स में छूट मिलती है।
19. पालिसी के प्रकार-
1- टर्म इंसयोरेन्स- यह एक साल का होता है।आप एक बार क़िस्त भरेंगे उस दौरान आपको म्रत्यु या स्थाई विकलांगता होती है तो लाभ मिलेगा नही तो कोई लाभ नही मिलेगा।
2- होल लाइफ बीमा- ये आपको सारी उम्र सुरक्षा की गारंटी देता है।इसमें भी आपको म्रत्यु लाभ मिलता है उसके अलावा कोई लाभ नही मिलता।
3- एंडोमेंट पालिसी- इसमे आपको जीवित रहने पर और मरने पर दोनों तरह से लाभ मिलता है।
4- मनी बैक पालिसी- इसमे समय समय पर पैसा मिलता रहता है।और मैच्योरिटी पर बाकी पैसा मिलता है।अगर म्रत्यु या स्थाई विकलांगता हो तो भी पैसा मिलता है।
5- चिल्ड्रन प्लान- इसमे मा बाप अपने बच्चों के नाम पालिसी ले सकते है।अगर पालिसी लेने वाला (प्रोपोज़र या प्रस्तावक) मर जाए या स्थाई विकलांग हो जाये तो आगे की क़िस्त माफ हो जाती है और बच्चे को पालिसी खत्म होने पर पूरा लाभ मिलता है।
6- एन्युइटी या पेंशन प्लान - इसमे बुढ़ापे में पेंशन मिलती है और कुछ प्लान में पेंशन और म्रत्यु होने पर परिवार को पैसा भी मिलता है।
7- यूनिट लिंक्ड इंसयोरेन्स पालिसी या यूलिप - इसमे लाभ शेयर मार्केट आधारित होता है । म्रत्यु और स्थाई विकलांगता लाभ भी मिलता है।
8- म्यूच्यूअल फण्ड- ये भी शेयर मार्केट पर आधारित होता है।इसमें लाभ हानि दोनों हो सकते है।
9- प्योर एंडोमेंट प्लान- इसमे आदमी अगर जीवित रहे पालिसी अवधि तक तो ही पैसा मिलता है । मरने या विकलांगता पर कुछ नही मिलता।