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जाट
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जाट
 
 
 

जाट--

     
जाट  का मतलब अभीर होता अभीर का मतलब निडर होता है, भगवान यदु ने साँप का दमन किया था तब से
          जाट को चौधरी कहा जाता है.

 

   जाट हिन्दू ,सिख और मुस्लिम तीनों में पाए जाते हैं।जाट उत्तरी भारत और पाकिस्तान की एक जाति है। वर्ष 2016 तक, जाट, भारत की कुल जनसंख्या का 2 प्रतिशत हैं।प्यार से चाहे जान ले लो लेकिन अड़ गए तो अड़ गए।जाट छैल- छबिले और रोबदार बोली केे धनी  होते हैं।सभी जाट हिन्दू थे लेकिन जब सिख धर्म की शुरुवात हुई तो कई जाट सिख हो गए। मुगलों के शासन में जब जबरदस्ती हिंदुओं का धर्म परिवर्तन हुआ तो कई जाट मुस्लिम बन गए। आज जो जाट सिख और मुस्लिम हैं वो सभी पहले हिन्दू थे. 

    जाट जिद्दी होते हैं।किसी की नही सुनते।किसी का नेतृत्व स्वीकार नही करते।एकता नहीं है।सारे ही अपने आप मे नेता हैं।चालाक हैं।हंसी ठिठोली, मज़ाक,चुटकुले और एक दूसरे पर नकल (डाट ) मारना आदि गुण हैं।हाज़िर जवाब ऐसे की कोई मुकाबला ना कर पाए।ताकतवर हैं।पुलिस फौज और खेलों में नाम हैं।खेलों में लगभग मैडल जाटों के नाम हैं।दूध,दही,घी,लस्सी,गेहूं की रोटी,बाजरे की रोटी मुख्य खाना है।यहां तो सब्जी में छोंक भी घी से लगता है।बाजरे को ओखली में अच्छी तरह से कूटते हैं, उसके बाद नाज तैयार होता है उसे पका कर खाते हैं।गुड़ के मीठे चावल खाते थे।खीर में गुड़ या शक्कर डाल के खाते थे।गुड़ की मीठी चाय बनाते और पीते थे।जो बहुत ही स्वादिष्ट होती थी।हाथ की मशीन से स्याई (गेहूं के आटे की सेवई ) बनाई जाती थी जो पका कर घी और मीठे के साथ खाई जाती थी।सारी की सारी पोष्टिक चीजें खाई जाती थी इसीलिए लोग इतने मज़बूत होते थे।

नोट--चमार-चुड़ो ( वाल्मीकियों ) और जाटों के गोत्र एक जैसे ही होते हैं।


जाट/जट का अर्थ होता है चौधरी ...........!
 
#बारह_बरस_ले_कुकुर_जीये_औ_सोलह_ले_जिये_सियार।
#बरस_अट्ठारह_क्षत्रिय_जिये_त_ओकरे_जीये_पे_धिक्कार।।
 
कभी दलितों पर उत्पीड़न का दोषी बताते हैं। कभी खाप पंचायतों को तुगलकी बताते हैं। कभी अत्याचारी बताते हैं। अजी साहब बहुत भेदभाव हुआ दलितों के साथ, उनसे खेतों में काम कराया गया , बेगारी  कराई गई, गोबर उठवाया गया, उन्हें शिक्षा से वंचित रखा गया, यह बात बहुत जोरों से सोशल मीडिया, मास मीडिया के माध्मय से लोगो को बताई जा रही है। जहाँ मौका मिले जाटो को कभी आरक्षण, तो कभी उनके बोलचाल के ढंग, तो कभी किसी अन्य कारण से टारगेट करते हैं।उन्हें लुटेरा , असभ्य और घटिया बताया जाता है।और जब देश पर कोई आक्रमण होता है तो सबसे पहले उन्हें ही लड़ाई में भेजा जाता है। ऐश कोई और करता है और क़ुरबानी जाट देते हैं। फिर उनकी कुर्बानियों का कहीं कोई  जिक्र भी नहीं होता। 
 
1400 साल पहले जब मक्का से इंसानी खून की प्यासी इस्लाम की तलवार लपलपाते हुए निकली तो एक झटके में ही ईरान, इराक, सीरिया, मिश्र, दमिश्क, अफगानिस्तान, कतर, बलूचिस्तान से ले के मंगोलिया और रूस तक ध्वस्त होते चले गए।स्थानीय धर्म  परम्पराओं का तलवार के बल पर  लोप कर दिया गया और सर्वत्र इस्लाम ही इस्लाम हो गया ।
 
शान से इस्लाम का झंडा आसमान चूमता हुआ अफगानिस्तान होते हुए सिंध के रास्ते हिंदुस्तान पहुंचा ।पर यहां पहुंचते ही इस्लाम की लगाम आगे बढ़ के जाट क्षत्रियों ने थाम ली जिसके कारण भीषण रक्तपात हुआ ।आठ सौ साल तक जाट राजवंशों से ले के आम क्षत्रियों तक ने इस्लामिक आक्रांताओं की ईंट से ईंट बजा दी। इनका साथ दिया रजपूतो ने,गुज्जरों ने, यादवों ने, ब्राह्मणों ने, वैश्यों ने ! 
 
पर सबसे ज्यादा जाट ही फ्रंटलाइन पर रहे क्योंकि इनकी उपस्तिथि दिल्ली से पंजाब तक थी !असली लड़ाई जाटों (क्षत्रिय) ने ही लड़ी !जिसका नतीजा यह हुआ के इस्लाम यहीं फंस के रह गया और आगे नही बढ़ पाया । 
 
परिणामतः-- चाइना, कोरिया,जापान, नेपाल ,भूटान और भारत के पूर्वी राज्य इस्लाम के हमले से बच गए ।
 
इतना सब कुछ झेलने के बाद भी कहीं किसी इतिहास में ये नही मिलेगा कि इस्लाम के खिलाफ लड़ाई में जाटो ने खुद न जा के किसी और जाति को मरने के लिए आगे कर दिया । हाँ जहाँ जाट नहीं थे वहां राजपूत मराठा गुज्जर यादव भी लड़े ।
 
जाट अपने नाबालिग बेटे कुर्बान करते रहे पर कभी अपने कर्म से विमुख न हुए ।  सामाजिक जातीय वर्ण व्यवस्था का पूरा ख्याल रखा । जिसके वजह से आज की हिन्दू पीढ़ी मुसलमान होने से बची रह गई ।
 
जाट राजपूत मराठो में आपसी मतभेद होने की वजह से मुसलमानों का भारत पे अधिकार तो हो गया लेकिन वो पाए 800 सालों में भी भारत को इस्लामिक देश नही बना पाए ।जब तब जाटों के नाम से ही मुगल थरथराते रहे । कभी महाराज सूरजमल तो कभी महाराज रणजीत सिंह के नाम से।वो जाट ही थे जिन्होंने मुगलो को मरने के बाद भी चैन नहीं लेने दिया ।
जाटों कभी मुगलो के साथ वैवाहिक संबंध नहीं रखे।
 
 
बाकी तो हर जगह जाटो को अत्याचारी ही बताया गया है रही सही कसर बॉलीवुड ने पूरी कर दी हर फिल्मों में इन्हें रूढ़िवादी अनपढ़ चौधरी साहब दिखा दिखा के लोगो के दिमाग मे इनकी गलत छवि पेश की गई ।
 
लेकिन ये नही दिखाया कि जब मुस्लिम तलवारे रक्त मांगती थी तब पहला सिर इन जटवाड़ी माँओ ने अपने पति और बेटों का दिया है। कद्र करो इनकी सभी लोग और अहसान मानो ये न होते तो आज किसी मस्जिद में नमाज पढ़ रहे होते।
 
जिनके दादा परदादा जटवाड़ी तलवार के छत्रछाया में न केवल जिंदा रहे बल्कि अपने धर्म को बचाये रखने में कामयाब रहे आज वही लोग जाटो पर जातिवाद का आरोप लगाते है। इतिहास पता करो जाटो को गाली देने से पहले। हिंदुत्व की रक्षा में इस कौम ने अपनी संतानों की बलि चढ़ा दी धन्य है वो जाट वीरांगनाएं ।
 
धन्य है धरा जिसका स्वाभिमान कभी झुका नहीं,
बिक गया जहाँ सारा, पर जाट कभी बिका नहीं,
महाराजा सूरजमल कैसे मुगलो की छाती पर डोला था,
कैसे वीर गौकुला सिहं ने अपनी शक्ति से औरँगजेब को तोला था,
कैसे महाराजा रणजीत सिंह ने काबुल से तिब्बत तक झंडा गाड़ा था,
कैसे जाटवान सिहं मलिक ने प्रथम बलिदान देकर ऐबक को धरती से पाड़ा था,
राजा देवपाल राणा ने तैमूर को कैसे हराया था,
हरवीर सिहं गुलिया ने उसकी छाती में भाला चढ़ाया था,
गजनी भी भागा था, गौरी भी मारा था,
जिसने सिकन्दर को हराया, जिसने हूणों को मिटाया वो जाट वीर हमारा था
अंग्रेजो का सूर्यास्त किया वो जाट का जाया था,
अपना कमाकर खाता है नहीं किसी का खाया था,
 
धन्य है ऐसे जाट वीरों को जिनके शब्दकोष में डर शब्द नही था।
मेरा हमेशा नमन रहेगा जाटो आपको और आपके वंश को
 
इतना लड़ने के कारण जाटो की भाषा थोड़ी अखड़ हो गयी । क्योंकि यह जरूरी भी था बच्चो को बचपन से ही मरने मारने की बात सिखाई जाती थी । आज शांति काल है तो वही भाषा लोगो को अच्छी नहीं लगती पर यह भाषा हमारी ,हमारे देश की सुरक्षा है इस पर गर्व करो ।
 
आज भी भारतीय सेना में जाट रेजिमेंट के शौर्य से कौन अनजान हैं ?
 
पूरा समाज सदा ही जाटों का ऋणी रहेगा।
 
  
जाट मुख्य हस्ती -- आज भारत मे खेलों में जितने भी मैडल हैं आधे से ज्यादा जाटों के पास हैं।उन्होंने खुद बिना किसी सरकारी सहायता के ये मकाम हासिल किया है ।
   
     धर्मेंद्र,सनी देवल,रणदीप हुडा,दारा सिंह,महिमा चौधरी,जिम्मी शेरगिल,सुशांत सिंह,सिमी ग्रेवाल,मनीषा लाम्बा,माही गिल आदि बहुत से जाट अभिनेता हैं।

     देवीलाल,ओमप्रकाश चौटाला,भूपेंद्र हूडा,चरण सिंह,महेंद्र सिंह टिकैत,अजित सिंह आदि जाट नेता मुख्य हैं।

कृष्णा 
पुनिया ( डिसकस थ्रोवर  )  शिखर धवन (क्रिकेटर) साक्षी मलिक (कुश्ती ओलम्पिक पदक) सुशील कुमार (कुश्ती ओलम्पिक पदक) विजेंदर सिंह (बॉक्सिंग) वीरेंदर सहवाग ( क्रिकेटर ).

       सूरजमल,जवाहर सिंह आदि कई वीर राजा हुए हैं।

दारा सिंह अपने जमाने के एक कुशल अभिनेता व कुश्ती के प्रसिद्ध खिलाड़ी रहे हैं।
दारा सिंह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई नामी-गिरामी पहलवानों को कुश्ती में हरा चुके हैं। इनमें पहलवानी के इतिहास के कई बड़े नाम शामिल हैं जैसे स्टानिलॉस जिबिस्को, लू थेज और यूएस के कई पेशेवर पहलवान। साल 1996 में दारा सिंह को रेसलिंग ऑब्जर्वर न्यूजलेटर हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया।

भारत के इतिहास में 
महाराजा सूरजमल  जी को 'हिंदुस्तान का प्लेटो' कहकर भी सम्बोधित किया गया है।
जाट-राष्ट्र का सृजन एवं पोषण एक आश्चर्यजनक सीमा तक इस असाधारण योग्य पुरुष का ही कार्य था।
बहुत समय तक जाटों पर लुटेरा और बर्बर होने का कलंक लगा रहा। पुरानी कहावत अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा और पढ़ा जाट खुदा जैसा........

भारत में पहली बार जाट जाति से चौ० चरणसिंह प्रधानमन्त्री बने हैं ।

सर छोटूराम का जन्म 24 नवम्बर 1881 में झज्जर के छोटे से गांव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण जाट परिवार में हुआ (झज्जर उस समय रोहतक जिले का ही अंग था)। छोटूराम का असली नाम राय रिछपाल था।

क्षत्रिय शिरोमणि वीर श्री बिग्गाजी महाराज- गौमाता के नाम से पूजी जाने वाली गाय जिसके शरीर में तैंतीस करोड़ देवी देवता निवास करते हैं कि रक्षा दुष्ट चोरों से करने के लिए भगवान ने इस देश की सबसे पवित्र कौम जाट के घर
वीर श्री बिग्गाजी महाराज के रूप में अवतार लिया और गायों की रक्षा की।

लोक देवता तेजा जी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहर जी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था।तेजाजी की गौ रक्षक एवं वचनबद्धता की गाथा लोक गीतों एवं लोक नाट्य में राजस्थान के ग्रामीण अंचल में श्रद्धाभाव से गाई व सुनाई जाती है।

महाराजा नाहर सिंह बल्लभगढ़ रियासत के राजा तथा तेवतिया खानदान से थे जो 1857 में देश की आजादी के लिए शहीद होने वाले पहले राजा थे ।

महाराजा महेन्द्र प्रताप मुरसान-अलीगढ़ (उ.प्र.) रियासत के राजा थे और ठेनूवा वंश से सम्बन्धित थे । जिन्होंने देश की आजादी के लिए रियासत की बलि देकर 33 साल विदेशों में रहकर देश की आजादी के लिए अलख जगाई ।

जाट शासकों में महाराजा सूरजमल (शासनकाल सन 1755 से सन् 1763 तक) और उनके पुत्र जवाहर सिंह (शासन काल सन् 1763 से सन् 1768 तक ) ब्रज के इतिहास में बहुत प्रसिद्ध हैं ।

पाकिस्तान में भी जाट नेता विशिष्ट राजनेता हैं जैसे 
आसिफ अली ज़रदारी और हिना रब्बानी खार

 
1. राजा नाहर सिंह *तेवतिया जाट* को ;*आयरन गेट ऑफ़ दिल्ली* कहा गया
   
2. सुशील कुमार *सोलंकी जाट* कुश्ती में ;देश का इकलौता दो बार का ओलंपिक विजेता;
  
3. साइना *नेहवाल जाट* बेडमिंटन में देश की सबसे पहली ओपलम्पिक विजेता;
  
4. विजेंद्र सिंह *बेनीवाल जाट* ओलंपिक में बॉक्सिंग का सबसे पहला विजेता;
  
5. दलबीर सिंह *सुहाग जाट* भारत का थल सेनाध्यक्ष;
  
6. सुनील *लाम्बा जाट* भारत का नौ सेनाध्यक्ष;
  
7. कबड्डी के 8 वर्ल्ड कप में 8 के 8 गोल्ड मैडल *जाटो* के योगदान ने दिलवाए
 
 8. होशियार सिंह *दहिया जाट* ;इकलौता जीते जी परमवीर चक्र विजेता
 
  9. दारासिंह *रंधावा  जाट* ; अपराजेय कुस्ती योद्धा;
 
 10. आचार्य देवव्रत *गाहल्याण जाट* हिमाचल के राज्यपाल
 
 11. चौ. चरण सिंह *तेवतिया जाट* भारत के अग्रणी किसान ह्रदय सम्राट प्रधानमंत्री रहे;
  
12. चौ. देवीलाल *सिहाग जाट* दो बार के देश के उप-प्रधानमंत्री और जिनको देश ने प्यार से ताऊ की उपाधि दी;
  
13. निर्मलजीत सिंह *शेखों जाट* देश का इकलौता वायुसेना का परमवीर चक्र विजेता;
  
14. साक्षी *मलिक जाट* ओलिंपिक मे कुश्ती में ;देश की इकलौती और सबसे पहली महिला विजेता।
 
15. धर्मेंद्र सिंह *देओल जाट* फिल्म जगत में अपने अभिनय योगदान के लिए ;*लाइफ टाइम अचिएवमेंट अवार्ड* और भारत के राष्ट्रपति द्वारा *पद्म भूषण* ;विजेता अभिनेता
 
 
16. पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध में सब से ज्यादा *जाटों* की शहादत
  
17. *सिख रेजीमेंट* के 21 *जाटों* की;सारागढ़ी की ऐतिहासिक लड़ाई ,,,और 1965 की डोगराई लड़ाई पन्नों में दब के रह गयी ,,,,,जो इतिहास की स्वर्णिम लड़ाई कही जाती है
  
18. *फौगाट जाट* परिवार की एक ही परिवार की तीन सगी बहनें जो कुश्ती में देश की सबसे पहले नेशनल चैंपियन बनी
  
19. चौ. बंसीलाल *लेघा जाट* देश के किसी भी राज्य के एक एक गाँव में बिजली पहुँचाने का करिश्मा करने वाला मुख्यमंत्री
 
 20. दीनबन्धु सर चौ. छोटूराम *ओहल्याण जाट* अंग्रेजों के समय में 36 बिरादरी के हक़ में कानून बनवाये और कृषि मंत्री रहते हुए पंजाब हरियाणा हिमाचल की खेती की आन बान शान और लाइफलाइन भाखड़ा बांध बनवाया और 22 साल जॉइंट पंजाब (आज का हरियाणा, हिमाचल प्रदेश , पंजाब और पाकिस्तान में मौजूदा पंजाब राज्य) पर राज कर चुकी यूनियनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक और हर मज़हब जाति के रहबर कहलाये.
 
 
21. महाराजा सूरजमल *सिनसिनवार जाट* का भरतपुर का लोहागढ़ का किला भारत का आज तक का इकलौता अविजित किला है ।
 
 
22. अल्का *सिरोही जाट*  संघ लोक सेवा आयोग की अध्यक्षा बनी जो 1974 बैच की IAS अफसर हैं ।
  
23. राजा राजाराम *सिनसिनवार जाट* जिसने मुग़ल सम्राट अकबर की कब्र से उसकी हड्डियां निकाल कर जलाई थी ।
  
 
 24. भारत के राष्ट्रपति की सिक्योरिटी में 150 जवान होते हैं जिसमे से 66% *जाट और सिख जट्ट* होते है, ये अनुपात प्रतिबद्ध है। (SPECIAL PROTECTION GUARD PRESIDENT)
 
 ;25. चौ. गोकुला सिंह *अघा जाट* जिसने महाक्रूर अत्याचारी औरंगज़ेब के धर्म परिवर्तन के जुल्म के खिलाफ 7000 खाप के किसानों के साथ एक जनवरी 1670 को शहादत दी थी
  
26. हरफूल सिंह *श्योराण जाट* (जुलानी वाला) हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा गौरक्षक जिसने जाने कितने गऊ हत्थे तोड़े और गऊ कसाई काटे।
  
27. जग्गा *विर्क जाट*, ज्यानी चोर *मोर जाट* व दुल्ला *भट्टी जाट* छत्तीस कौम के गरीबों के रॉबिनहुड
 
 28. चौ. महेंद्र चौधरी *बल्हारा जाट* फिजी देश के पूर्व प्रधानमंत्री जो देश से बाहर जाकर प्रधानमंत्री बने।
  
 
29. राजा महेंद्र प्रताप सिंह *ठेणुआ जाट* 1915 में अफगानिस्तान के सबसे पहले राष्ट्रपति बने।
 
 
30. कैप्टन हवासिंह *श्योराण जाट* बॉक्सिंग में दो बार का एशिया चैंपियन और देश का इकलौता 11 बार का राष्ट्रीय चैंपियन।
 
 31. उदयचंद *भैरों जाट* देश का सबसे पहला अर्जुन अवार्डी जिसने कुश्ती विश्वचैम्पियनशिप में देश को सबसे पहला मेडल दिलाया
 
 32. महाराजा रणजीत सिंह * *संधावालिया जाट* मुग़लों को काबुल कंधार तक पीट पीट कर आया।
  
33. लीलाराम *सांगवान जाट* 1958 कॉमनवेल्थ में कुश्ती में देश को सबसे पहला मेडल दिलाया।
  
34. देवेंद्र *झांझड़िया जाट* दो बार का रिकॉर्ड पैरालम्पिक में भाला फेंक में स्वर्ण पदक विजेता।
  
35. वीरेंद्र *सहवाग जाट* दुनिया के जाने माने विस्फोटक बल्लेबाज जिसने भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में चार चाँद लगाए। इकलौते दो तेहरे शतक लगाने वाले भारतीय बल्लेबाज. अर्जुन अवार्ड, पदमश्री अवार्ड
  
36. राजा महेंद्र प्रताप सिंह *ठेणुआ जाट*, निरंजन सिंह *गिल जाट*, ;प्रीतम सिंह *ढिल्लों जाट*, मोहन सिंह *जाट* गुरबक्श सिंह *ढिल्लों जाट* आजाद हिंद फौज के संस्थापको में से एक थे।
  
37. सोहन सिंह भाकना *शेरगिल जाट* ;ग़दर पार्टी के संस्थापक थे और उनका साथी करतार सिंह *ग्रेवाल जाट* थे।
  
38. राजा नाहरसिंह *तेवतिया जाट* , गालम सिंह *किल्होद जाट*, बख्तावरसिंह *ठाकराण जाट*, उद्धमीराम *सरोहा जाट*, बाबा शाहमल सिंह *तोमर जाट*, मोहरसिंह *नरवाल जाट* जो 1857 की क्रांति के महान क्रान्तिकारी और शहीदों में शामिल हैं
  
39. डी.एस. *हुड्डा जाट* उत्तरी चीफ कमांडर आर्मी , बी. एस. *धनोवा जाट* वाईस चीफ ऑफ़ एयरफाॅर्स , एस.पी.एस *चीमा जाट* चीफ ऑफ़ वेस्टर्न नेवी कमांड
  
40. अमर शहीद लोठू *निठरवाल जाट* 1857की क्रांति से पहले अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो की अलख जगाने वाले।
  
41.शहीद भगतसिंह *सन्धु जाट* हिंदुस्तान की आज़ादी के महान क्रांतिकारी जिन्होंने हँसते हँसते भारत माँ के लिए फांसी पर झूल गया।
  
42. महाराजा जवाहर सिंह *सिनसिनवार* जो मुगलो की दिल्ली जीत कर उनके लाल किले के दरवाजे, मुगल सिंहासन और नजराना को जीत कर लाये थे।
 
 43. कृष्णा पूनिया पहली महिला एथलीट जिसने कांमनबैलथ खेलो मे स्वर्ण पदक जीता व राजस्थान कि पहली जाट महिला जिसको पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 
  
44 चौ. महेंद्र सिंह टिकैत लंबे समय तक  भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष रहे,खेत में बैठ कर केंद्र सरकार को हिलाने वाले जाट.
  
45 .जाट रेजिमेंट में 100% सिपाही *जाट* भर्ती किये जाते हैं , सिख रेजीमेंट में भी लगभग *जाट* भर्ती किये जाते हैं , राजपुताना राइफलस में 40% *जाट* और इसके अलावा ग्रन्डियर , J&k राइफल्स , पैराशूट मिलिट्री , आर्म्ड और दूसरी फोर्सेज में भी अच्छी संख्या में *जाट* होते हैं.  
 
 46. जाट छाजूराम जी जिन्होंने अनेकों स्कुल-कॉलेज खोले। 

47. वो जाट ही थे जो सोमनाथ मंदिर का लुटा हुआ खजाना वापिस लेकर आये थे।

48. वो जाट रामलाल खोखर ही था जिसने पृथ्वी राज चौहान के हत्यारे मोहम्मद गोरी को सिंध में जाकर मारा था।

49. वो जाट महाराजा रणजीत सिंह ही था मुगलों को काबुल, कंधार में जाकर पीटा था।

50. वो जाट वीर गोकुला और माड़ू जाट ही थे जिन्होंने औरंगजेब की मरोड़ तोड़ी थी।

51. वो जाट चूड़ामल ही था जोे जोधपुर के महाराज अजित सिंह की पुत्री को फरुखसियर पठान से छुड़ा कर लाया था।

52. जाट राजा नहर सिंह 1857 क्रांति के पहले शहिद थे।

53. जाट करतार सिंह ग्रेवाल 19 साल की उम्र में फाँसी पर झूल गया।

54. जाट भगत सिंह संधू 23 साल की उम्र में फाँसी पर झूल गया।

55. जाट छोटूराम ने किसानों की जमीन की कुर्की बन्द करवाई, फसलों के दाम बढ़ाये,अन्य कई हित कारी काम किये।वो सभी गरीबों के मसीहा थे।

56. जाट ताऊ देवीलाल ने प्रधानमंत्री पद छोड़ और विवि गिरी को प्रधानमंत्री बनवाया।किसान और गरीबों के लिए अनेक कानून बनाये, अनेक अच्छे काम किये। गरीब, बुढो और जच्चा के लिए पेंशन की घोषणा की।सायकल, रेडियो टैक्स माफ किये।

57. जाट किसान चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत राजनीति में ना होते हुए भी सरकारें हिला देते थे।

58. जाट जग्गा डाकू अमीरों को लूटकर गरीबों में धन बांट देता था।

59. जाट हरफूल जाट जुलाणी ने अंग्रेजी राज में मुस्लिमों के कई गौ हत्थे तोड़े थे।जहां गौ माताओं और जानवरों को काटा जाता था।

60. जाट बाबा ज्याणी ( ज्याणी चोर ) ने अदली खान की कैद से नार महकदे को छुड़ाया था।और अमीरों को लूटकर गरीबों में धन बांटा था।जो चुनौती देकर अमीर और राजा को लूट के ले आता था।
 
 
फ़ौज में जाट रेजिमेंट :-  
 
                        ⚜ जाट  रेजिमेंट  के  बारे में  पाकिस्तानी  की  राय -  "जाट" नहीं  होते तो क्या होता ? 
 
          पाकिस्तानी  रिटायर्ड  मेजर जनरल  फैजल  मुकीम खान ने अपनी  पुस्तक Pakistan crisis in command में लिखा कि जाट रेजिमेंट भारतीय सेना का एक अभिन्न अंग होते हुए भी भारतीय सेना  जाटों  के  शौर्य  से  अनजान ही रही क्योंकि "घर की  मुर्गी  दाल बराबर "अर्थात  भारतीय  सेना को   जाट  की वीरता से  कभी  सीधा  वास्ता नहीं  पङा था केवल  दुश्मनों को  ही  पङा  था और उन्होंने  उनकी शौर्यगाथाएं  भी लिखी है । 
 
         पाकिस्तानी  मेजर मुकिम खान ने अपनी  पुस्तक के  पृष्ठ 250 पर जाटों के साथ हुई अपनी  1971 की  मुठभेङ पर  लिखते हैं कि  हमारी  हार का मुख्य कारण है "हमारा जाटों के साथ  आमने सामने  युद्ध  करना " था।हम  उनके  सामने  कुछ भी करने में  असमर्थ थे।जाट बहुत  बहादुर  हैं ।ये  कई गुना  सेना  को भी  परास्त कर  सकते हैं ।
  
       वे  आगे  लिखते हैं कि "3 दिसंबर 1971 को हमने अपनी  पुर्ण  क्षमता के साथ भारतीय सेना  पर हुसैनीवाला के समीप  आक्रमण किया ।हमारी  इस ब्रिगेड में पाकिस्तानी  लडाकू  बलूच  और अन्य रैजिमेंट्स भी  थी। ओर हमने कुछ  क्षणों में  भारतीय  सेना के  पांव  पसार  दिए थे और  सेना  को काफी  पिछे  हटने  पर मजबूर कर दिया ।उनकी महत्वपूर्ण  चौकियां हमारे  कब्जे में  थी।अब हमारी सेना के शेर हिन्द पोस्ट के  समीप  पहुंच चुके थे लेकिन  भारतीय  सेना की एक  छोटी सी  टुकङी जाट रेजिमेंट  वहाँ पर तैनात  थी.  इस छोटी सी  टुकङी ने लोहे  की  दिवार बनकर  हमारा  रास्ता  रोक लिया ।उन्होंने  हम पर भुखे शेरों की  तरह आक्रमण किया । सभी  सैनिक  जाट थे। यहां  एक  आमने सामने की  लङाई हुई और जाट रेजिमेंट  की  इस छोटी सी  टुकङी ने हमारे सारे सपने तोङ दिए।"
  
 
⚜केवल  यही नहीं  गजनी स्थित  महमूद  गजनवी की  मजार से  दरवाजा  उखाङ लाई थी जाट बटालियन :-
 
              1842 में प्रथम अफगान युद्ध के दौरान बंगाल नेटिव आर्मी की एक  जाट  बटालियन गजनी स्थित महमूद गजनवी की  मजार से  6 सितंबर को  दरवाजा  उखाङ  लाई। और इसे आगरा के  किले में  लाकर रख दिया ।  इस  घटना  से  ब्रिटिश सरकार  भी  हिल गयी थी ।  
 
  

महाराजा सूरजमल जी--- 


भरतपुर में जाट राजा सूरजमल का राज था।
मुगल, मराठे, राजपूत व अंग्रेज इन्हें कोई नहीं हरा पाया। 
 
 ?भरतपुर के राजा महाराजा सूरजमल सिंह जाट - कद =7 फुट 2 इंच ,वजन =3 क्विंटल 18 किलो । 
  
             दोनों हाथों से एक साथ तलवार चलाने में माहिर थे।इनकी सेना में सारे सैनिक 170 किलो वजन से ऊपर वजन के थे।            20 अगस्त 1748 में बागरू की लड़ाई में भारी बारिश के बीच 50 घाव होने के बावजूद अकेले ही 160 दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया  था। एशिया के बहुत से देश इनसे मदद मांगने आते थे। सारे  राजपूत व मुस्लिम आक्रमणकारी इनसे खौफ खाते थे।   
 
           इनके अलावा इनके उत्तराधिकारी बेटे महाराजा जवाहर सिंह जाट ने दिल्ली जाकर मुगलों को बड़ी  बेरहमी से  पीटा  और मुगलों का सुरक्षा कवच कहे जाने वाले लाल किले के दरवाजे को उखाड़ कर भरतपुर में ला पटका जो अब भी भरतपुर के लोहागढ़ किले में रखा है।


     यही हैं वह चित्तौड़गढ़ के किले के अष्टधातु के कपाट, जिनको अल्लाउद्दीन खिलजी वहाँ से उखाड़ दिल्ली ले आया था:और सन 1764 में दिल्ली से जाट, अहमदशाह अब्दाली की नाक तले से उखाड़ भरतपुर ले आये थे|फिर इनको भरतपुर से वापिस पाने हेतु चित्तौड़गढ़ ने आज की कीमत में लगभग नौ करोड़ रूपये की पेशकश की थी| परन्तु सवाई महाराजा भारतेन्दु जवाहरमल ने कहलवाया कि, "स्वाभिमान की कोई कीमत नहीं होती, फिर भी किवाड़ चाहियें तो वैसे ही ले जाएँ, जैसे जाट दिल्ली के लालकिले से उखाड़कर लाये हैं"!

 इन कपाटों को लालकिले से उखाड़ने का जुनूनी किस्सा अपने आप में रोंगटे खड़े कर देने वाला है|

 इन किवाड़ों के फाटक को तोड़ने के लिए पहले हाथी के माथे पर गुड़ तैयार करने वाले लोहे के बड़े कढाहे बाँध धक्के लगवाए गए| परन्तु जब उनमें से भी किवाड़ों की कीलें पार कर हाथियों को चुभने लगी तो तब महाराजा के मामा बलराम जी ने आदेश दिया कि उनको खुद हाथियों के माथे पे बाँधा जाए| यह था उनका अपने जीजा महाराजाधिराज सूरजमल सुजान के प्रति प्रेम कि उनकी धोखे से की गई हत्या के बदले के जूनून के आगे उनको अपनी मौत भी छोटी लगी| और जब किवाड़ों की यह कीलें उनके सीने में धंस गई तो हाथी पूरा जोर लगा पाए और ऐसे बलराम जी की शहादत के ऐवज में दिल्ली के लालकिले में लगे यह किवाड़ खोले गए, लालकिला लूटा गया, अफ़ग़ान-मुग़ल यह "जाटगर्दी" अवाक खड़े देखते रह गए और इस तरह लालकिले के दीवान-ए-ख़ास में लगे मुग़लों के सिंहासन समेत जाट यह चित्तोड़गढ़ी किवाड़ भी उखाड़ भरतपुर ले आये| इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि महाराजा सूरजमल सुजान की धोखे से की गई हत्या से जाट इतने रूष्ट हुए थे कि पूरी दिल्ली में यूँ तांडव मचा था.
  
आज भी यह कपाट भरतपुर शहर के दिल्ली-गेट की शोभा बढ़ा रहे हैं| कभी उधर जाना हो तो इनको जरूर देखकर आएं, अपने गौरवशाली इतिहास और पुरखों पर अभिमान महसूस होगा|
  
दिल्ली की इस जीत पर कवि जयप्रकाश घुसकानी लिखते हैं:
  
कौन कहँ थे जाट लुटेरे, तारीख के पाठों में, 
लूटने के लिए ताकत चाहिए, जो थी बस जाटों में! 
मुग़लों का सिंहासन जाट, दिल्ली से उखाड़ लाये, 
साथ में नजराना और चित्तौड़गढ़ के किवाड़ लाये! 
धोखा पट्टी सीखी नहीं, जंग में पछाड़ लाये,
 
 

 

 

 

जाट बाईसी  -- महम चौबीसी से तो हम सभी परिचित हैं, ये जाटों के 24 गाँवों की खाप है जिसमें सह-जातियाँ भी सम्मिलित होती हैं। लेकिन जाट बाईसी का नाम बहुत कम लोगों ने सुना होगा । जाट बाईसी पूरी ऐतिहासिक घटना पर आधारित है। बम्बई से 180 कि. मी. दूर महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले की मालेगांव तहसील में जाटों के इकट्ठे छोटे-छोटे 22 गाँव हैं। 
 
पानीपत की तीसरी लड़ाई में पेशवा ब्राह्मण व मराठे लगभग 4 हजार परिवार अपने साथ लाये थे। जब लड़ाई में इनकी हार हुई तो कुछ परिवार मारे गये और बचे-खुचे परिवारों ने भरतपुर नरेश महाराजा सूरजमल के राज क्षेत्र व किलों में पनहा ली थी। महाराजा सूरजमल ने कड़कती सर्दी (जनवरी 1761) में इनको पूरे अतिथि सत्कार के तहत घायलों आदि की देखभाल की तथा इन परिवारों को इनके घरो तक सकुशल पहुंचाने के लिए अपनी सेना के रोहतक व हिसार जिले के जाट सिपाही साथ भेजे जो उन्हें बड़ी इज्जत और सम्मान के साथ वहाँ उनके घरों तक ले गये, जो उस समय किसी भी कल्पना से परे था।
 
 महाराजा सूरजमल और रानी किशोरी की शानदार मेहमानबाजी तथा इन हरियाणवी सिपाहियों की जिन्दादिली इंसानियत पर मराठा समाज कायल हो गया और इस समाज ने ऐसे नेक सिपाहियों, जिनकी शादियां नहीं हुई थी, को अपनी बेटियां देकर अपनी जम़ीन पर बसाने का फैसला लिया। समय अपनी गति से चलता रहा और आज लगभग 250 वर्ष बाद इनके 22 गाँव आबाद हो गये जो आज किसानी करके अपना निर्वाह करते हैं। इनके साथ भी वही हुआ जो आन्ध्रप्रदेश के गोलकुण्डा किले के विजेताओं के साथ हुआ या हो रहा है। क्या विश्व के इतिहास में ऐसा कोई दूसरा भी उदाहरण हैं? महाराजा सूरजमल की आलोचना करने वालों के मुंह पर यह एक तमाचा है।
 
यहाँ के तोखड़ा गाँव में फिल्म अभिनेता व नेता धर्मेन्द्र जी ने अपनी माता सन्तकौर देवी के नाम हाई स्कूल बनवाया है। धर्मेन्द्र जी ने मुम्बई महानगर में पहली बार जाट सभा व जाट भवन की स्थापना की जिस पर जाट जाति को गर्व होना चाहिए। 
 
इन जाटों के गोत्र हैं - मान, जाखड़, सिहाग, सहरावत, दहिया, बिजानियां, झिंझर, नीमड़िया, पूनिया, गिल, बैनीवाल और सांगवान (70 परिवार) आदि, इस जाट बाईसी के वर्तमान में चौ. धनसिंह सहरावत प्रधान हैं जिनका पता हैं:- गाँव - नारादाना, डाकखाना - कलवाड़ी, तहसील - मालेगांव जिला नासिक (महाराष्ट्र राज्य)
 
खाप पंचायत ----

जाटों में खाप पंचायत न्याय और आपसी भाईचारे की एक बहुत पुराणी व्यवस्था है।खाप दो शब्दों से मिलकर बना है। ये शब्द हैं ‘ख‘ और ‘आप‘. ख का अर्थ है आकाश और आप का अर्थ है जल अर्थात ऐसा संगठन जो आकाश की तरह सर्वोपरि हो और पानी की तरह स्वच्छ, निर्मल और सब के लिए उपलब्ध अर्थात न्यायकारी हो। 

    प्रमुख खाप पंचायत और संगठन ---  सर्व गोत्रीय जाट खाप का मुख्यालय आगरा जनपद के बिचपुरी गाँव में है। इस खाप में जाटों के अनेक गोत्रीय गाँव शामिल  हैं।दो बड़ी गोत्र खाप पंचायत हैं- अहलावत खाप,मलिक खाप (सबसे बड़ा गाँव भैंसवाल ) . अभी एक जाटों का राष्ट्रीय स्तर पर संगठन बनाया गया है जिसका नाम--अखिल भारतीय जाट महासभा। 

 
अहलावत खाप --- 
 
अहलावत गोत्र - हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब मे फैला बडा गोत्र है अहलावत बहुत बिखरा हुआ गोत्र है यह आपको जोधपुर मे भी मिल जायेगा और पंजाब मे भी , परंतु मुख्य तौर पर अहलावत गोत्र देशवाली बैल्ट मे ज्यादा फैला है, 
  
रोहतक, झज्झर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर जिलो मे अहलावत गोत्र के काफी गांव है बाकि अहलावत गोत्र के गांव पुर्वी उ०प्र० मे बलरापुर और सुल्तानपुर मे भी मिलते है इनका इतनी बडी तादात मे बिखराव होने के कई कारण दिये जाते है, कुछ कहते है कि ये राजाओ की तरफ से युद्ध लडते थे  तो कुछ अलग अलग कारण देते है 
 
उत्तर प्रदेश मे अहलावत गोत 525 गांवो मे मिलता है जो लिखित रूप मे रायपुर नंगली (छोटी भैंसी) मे रिकार्ड के तौर पर मौजूद है अहलावत खाप के दो चौधरी है एक चौधरी डीघल गांव से है जो समस्त हरियाणा के अहलावतो के चौधरी है और दूसरे उ०प्र० मे रायपुर नंगली (मुजफ्फरनगर) मे चौधरी गजेन्द्र अहलावत जी है.
 
 अहलावत गोत्र के कुछ गांव काफी प्रसिद्ध गांव है  हरियाणा मे डीघल और गोछी , उत्तर प्रदेश मे भैंसी और दौराला.
  
मुजफ्फरनगर जिले मे अहलावतो के 38 गांव है जोकि देशवाली और सिख दोनो जाट्ट है सबसे मुख्य गांव भैंसी है और सिख अहलावतो का मुख्य गांव लडवा और सिम्रथी जट्ट है सिख अहलावत पंजाब के फिरोजपुर से आये थे, परंतु मुजफ्फरनगर मे दोनो अहलावतो मे आपसी भाईचारा है 
  
अहलावत गोत्र के गांव राजस्थान मे भी काफी संख्या मे है झुन्झूनू से सांसद अहलावत गोत्री जाट्ट ही है.
  
अहलावत गोत्र का इतिहास बहुत प्राचीन है ये लडाकू कबीला था जिनका राज दक्षिण भारत मे भी था, फिर इनका राज्य उजड गया , ये इधर उधर बिखर गये, पुलकेशन द्वितीय अहलावत गोत्री जाट ही बताते है भैंसी गांव के बुजुर्ग इस बात का जिक्र करते थे कि राजा पुलकेशिन अहलावत गोत का था जो बडा वीर और पराक्रमी था, लोक कहानियों में , बुजुर्गों की कहानियों में ये जिक्र मिलता है। सौरम खाप मे भी और भी कई  जगह इस बात के प्रमाण है कि पुलकेशिन अहलावत गोत्री ही थे, 
  
  
    कहते है जब शक भारत आये थे उस समय अहलावतों के कई कबीलों का दक्षिण भारत पर राज था और कुछ कबीले इंडोनेशिया तक पहुंच गये थे शैलेन्द्र जाट राजा बहुत प्रसिद्ध थे .
  
अहलावत गोत्र के हरियाणा मे 112 गांवो मे निवास मिलता है और उत्तर प्रदेश मे 525 गांवो मे.

डीघल गांव ( अहलावत गोत्र )--

झज्जर-रोहतक नेशनल हाईवे पर स्थित डीघल गांव 1181 में चौधरी डीघा अहलावत ने बसाया था।
आज इस गांव की आबादी 35000 है डीघल अहलावत गोत्र बहुल गांव है, गांव हरियाणा के बडे और वीआईपी गांवो मे आता है।राजस्थान के अलकांद से शरीया, बीनिया और डीघा तीनो भाई पानी की कमी के कारण अजमेर आकर बस गये,वहां से भी पानी की कमी के कारन पलायन करना पड़ा। फिर जहाँ आज शेरिया है वहां पर बस गये ।
शरिया भाई शेरिया मे ही रहा और बीनिया ने कुछ दूर चलकर बरहाणा गांव बसाया और डीघा ने कुछ दूर चलकर डीघल गांव बसाया ।
 
डीघल गांव देशसेवा मे बहुत आगे है घर घर से देशसेवा मे इस गांव का बहुत बडा योगदान है।
इस गांव के लोगो ने विशव युद्ध से लेकर सभी छोटे बडे युद्धो मे योगदान दिया है ।
देशसेवा मे कुछ शहीद भी हुये हैं जिसके सम्मान मे गांव मे ही वीर सैनिक यादगार स्मारक बना हुआ है जिस पर सभी शहीदो के नाम अकिंत हैं।
गांव मे ही बाबा मोहजमा का मन्दिर है जहाँ आसपास के गावं तक के लोग यहाँ आते है।
डीघल से कई वीआईपी भी निकले है इस गांव मे एक सिपाही से लेकर बडे से बडे पद पर मिल जायगें .
जाटो का इतिहास लिखने बाले कप्तान दलीप सिहँ अहलावत भी इस गांव से ही थे जिन्होने जाटो की गाथा 1987-88 मे लिखी जो देशभर मे सराही गयी ।
 
डीघल गांव मे छोटे से लेकर बडे स्कुल, अस्पताल, अहलावत पचांयत भवन से लेकर ऐतिहासिक इमारत हैं तथा गांव मे सभी सुविधा है.

गांव मे अहलावत खाप के कुलदेव दादा साधु की मान्यता है देश मे जहाँ भी अहलावत गोत्र के लोग रहते है वह यहाँ दादा साधु के मन्दिर मे आकर माथा जरूर टेकते हैं.डीघल गांव से खेल कूद मे भी युवाओ का दबदबा रहा है डीघल के पहलवान बहुत मशहूर रहे हैं. 7-8 फीट के पहलवान इस गांव मे हुये है जिन्होने डीघल बसाया चौधरी डीघा वे भी तगडे पहलवान थे.
रोहतक जिले के डीघल, शेरिया, गोच्छी, धान्दलाण, लकड़िया, गांगटान, भम्बेवा, बहराणा, गूगनाण, मिलवाण - ये सब अहलावत गोत्र के ग्राम हैं .

अहलावत गोत्र के सबसे दबंग गांव मुजफ्फरनगर जिले में माने जाते हैं, मुजफ्फरनगर में अहलावत गोत्र के कुल 27 गांव है उनमें 2 गांव सिख जाटों के हैं जो पंजाब से आये थे और बाक़ी के गांव हरियाणा से आये थे. बिजनौर मे अहलावतो के 65-70 गाँव है । कुछ गांवों की नस्ल की बात ही अलग होती हैं, ऐसे ही दो गांव है अहलावत गोत्र के मुख्य गांव दोराला (मेरठ), भैंसी (मुजफ्फरनगर) हैं. दोनों गांव की जनसंख्या 10 हजार से उपर हैं. दोराला में 16 हजार और भैंसी में 11 हजार जनसँख्या है. इन दोनों गांवों का निकाड डीघल गांव से है. इसलिए पश्चिमी उ०प्र० की खाप चौधराहट रखने की लड़ाई भी इन दोनों गांवों में हुई थी. फिर भैंसी गांव के अहलावतो ने नया गांव बसाकर रायपुर नंगली उसमें अपनी चौधराहट रखी. ये दोनों गांव एक बाबा के बेटो के ही बसाये हुए गांव है. इसी कारण इन दोनों गांवों में प्रेम और प्रतिद्वंद्विता दोनों बनी रहती हैं और बाक़ी के अहलावत गांव अलग अलग जगहों से आये हैं. 
 
अहलावत गोत्र हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उ०प्र० की प्रसिद्ध और काफी फैली हुई गोत्र है. अहलावत गोत्र की दो खापे हैं, हरियाणा में डीघल गांव में और पश्चिमी उ०प्र० में भैंसी में,  जिन्होंने रायपुर नंगली गांव बसाकर वही पर अपना निवास स्थान बना लिया है. अहलावत खाप के उत्तर प्रदेश के खाप चौधरी भी रायपुर नगँली के ही है । जो चौधरी गजेन्द्र सिहँ अहलावत जी है. हरियाणा में इस गोत्र के 112 गांव है और उ०प्र० में 554 गाँव हैं. अहलावत गोत्र के अधिकतर गांव हरियाणा से आये हैं सबसे ज्यादा अहलावत गोत्र के गांव बिजनौर जिले मे है जो आज भी अपने आप को डीघलिया कहते हैं.
 हरियाणा में डीघल स्थित अहलावत खाप के प्रधान चौ* जय सिंह नम्बरदार है जो खाप के साथ चौ छोटूराम विचार मंच गढ़ी साम्पला के कार्यक्रमों को भी सम्भालते है।
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जघीना गाँव --- राजस्थान के भरतपुर जिले में सबसे बड़ा जाट बहुलता वाला गांव जघीना है। इस गाँव में कई जाट नेता और हुनरमंद लोग हुए हैं।पूर्व विदेश मंत्री कुंवर नटवर सिंह इसी गाँव के थे। उनको 16 भाषाओं का ज्ञान था।यहां पर दो गोत्र हैं- सोगरवाल और भागौड। इस गांव की जनसंख्या 30000 है।राजस्थान के पूर्व महानिदेशक शांतनु कुमार भी इसी गांव के थे।इतिहासकार ठाकुर देशराज सोगरवाल भी इसी गांव के थे।जिन्होंने जाट इतिहास लिखा है, इन्होंने 1934 में जाट-इतिहास नाम की पुस्तक लिखी।किसानों को जागृत करने का काम किया है।इनके नाम से स्कूल भी हैं। ये चौधरी छोटूराम के साथी थे।विधायक जगत सिंह (नटवर सिंह के बेटे) इसी गांव के हैं।जघीना गाँव के मुख्य चौराहे पर राजा खेमकरण सोगरिया की मूर्ति लगी है।
 
 
हरियाणवी जाट रहन सहन --  इनकी भाषा एकदम लठमार (खड़ी बोली) है।खेती करना,पुलिस और फौज में भर्ती होना या खिलाड़ी बनना ये चार मुख्य काम हैं।मेहनत से जी नही चुराते।चार बजे उठ जाते हैं।मर्द खेतों में चले जाते हैं।युवा रेस और वर्जिश मारके आते हैं।जाट कितना ही बड़ा नेता बन जाये लेकिन खेत मे काम खुद करेगा।लेकिन आज मशीनी युग आ गया है।पहले बैलों से खेत की बहाई होती थी आज ट्रेक्टर से होती है।पहले खेत से सिर पर भैसों का चारा (भारी गठड़ी) लेकर आते थे।दिन में तीन-चार-पांच चक्कर खेतों के पैदल मारते थे। फिर बैलगाड़ी से लाने लगे और अब ट्रेक्टर या मोटर साइकिल से लाते हैं।पहले फसलों को झाड़ के निकाला जाता था।कई कई महीने लग जाते थे।आज मशीनों से निकल जाता है।गेहूं हाथ से खुद ही काटते थे।जून बना के बांधते थे।फिर मज़दूरों से करवाने लगे।आज कंबाइन आ गई है जो गेहूं और तूड़ी कुछ घंटे में बना देती है।पहले बैलगाड़ी से खुद ही तूड़ी ढोते थे।आज ट्रेक्टर से और मज़दूरों से तूड़ी ढुलाई होती है।खेत मे पानी लगाना  ,बहाई,बुवाई,फसल काटना, झाड़ना या निकालना और फिर घर पर लाना सारे काम पहले किसान खुद करते थे आज मशीन और मज़दूर करने लगे हैं।हरियाणा में मज़दूर भी आजकल उत्तर प्रदेश और बिहार से आ गए है।सिर्फ खेत मज़दूर ही नही ये लोग बढ़ई,मिस्त्री आदि जितने भी हाथ से होने वाले काम है सब मे छा गए हैं।जाट औरते चार बजे उठ कर एक दो किलोमीटर दूर स्थित सरकारी नल से पानी लाती थी।जो एक डेढ घंटे चलता था।एक साथ तीन चार मटके पानी ले आती थी।आज घर घर नल हो गया है।खेत से चारा सिर पर लाती थी।आज दूसरे साधन हो गए हैं।भैंसों का गोबर सिर पर ढोती थी।आज बैलगाड़ी या ट्रेक्टर पर खेत मे ले जाते हैं।चरखे पर सुत कातती थी।जो अब बंद हो गया है।दरी बनाती थी जो अब बंद हो गई है।हाथ से दूध बिलोती थी।अब मशीन से बिलोया जाता है।हाथ चक्की  से गेहूं पिसा जाता था।आज बिजली वाली चक्की आ गई है।हाथ से चारा काटा जाता था।आज बिजली वाला गंडासा आ गया है।कपास खुद चुगते थे।टिंडे तोड़ कर घर की छतों पर खिलाते थे।आज मज़दूरों से कपास चुगाई जाती है।  खेती पहले बारिश पर निर्भर थी फिर नहर-रजबाया और फिर ट्यूबवेल आ गए।
  
 
जाटों के रीती रिवाज ---

  भैंस हर घर मे है।पहले बैल होते थे अब किसी किसी के पास हैं।गाय भी किसी किसी के घर मे है।जाटों ने खेती करके धरती से सोना उगाया है।मेहनत की है।बाकी कई जगह किसान आत्महत्या कर रहे हैं।लेकिन हमारे यहां फसल से लाभ कमाया जाता है।अगर सरकार साथ दे तो फायदा ही फायदा है।मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ या कहीं और जहां भी जाट गए खेती को फायदे का सौदा बनाया।इन प्रदेशो के किसान उसी जमीन पर ठीक से खेती नही कर पाए।या उनके पास साधन सुविधाएं कम थी।लेकिन जब हरियाणा के जाटों ने इन प्रदेशो में जमीन खरीदी तो गज़ब की खेती की।जमीन को उपजाऊ बना दिया।जाटों ने उसी जमीन से लाभ कमाया।

  जाटों के बड़े बड़े गांव होते हैं।गांव में और भी जातियां होती हैं।लेकिन खेती की जमीन ज्यादातर जाटों के पास ही हैं।आलीशान मकान होते हैं।पहले बड़ी बड़ी भेली होती थी।चारो और से बंद और बीच मे चौक होता था।चौक पर लोहे के सरियों का जाल होता था।बड़े भारी भरकम दरवाजे होते थे।कड़ियों की छत होती थी।उसके बाद बीच मे आंगन छोड़ना और पीछे के हिस्से में सोपे बनाने का रिवाज आया।घर मे एक बुखारी होती थी जिसमे अनाज रखा जाता था।अनाज के ऊपर बालू रेत डाल दिया जाता था जिससे अनाज खराब नहीं होता था।अभी दो तरह के मकान बनाये जाते हैं।एक तो कोठी जो चारों और से बंद होती है।कुछ कुछ पुराने जमाने की तरह।दूसरे मकान में पीछे दो कमरे,उसके आगे बरामदा(बरंडा),बरामदे में एक कमरा, उसके आगे 
एक सीध में रसोई,फिर भैंसों के लिए,फिर चारे के लिए,फिर चक्की और गंडासे के लिए,एक बैठक और लैट्रिन बाथरूम आदि बनाये जाते हैं।एक साइड आँगन छोड़ा जाता है। शाल की कड़ियों की छत,गाटर पत्थर की छत,लेंटर की छत और ईंटो की डॉट की छत चलन में है।दरवाजे थोड़े हल्के होते हैं।मैन दरवाजा लोहे का होता है।पहले पतली ईंटो ( टाइल से भी छोटी ईंटे )  के घर बनते थे।दीवार 18 इंची 24 इंची मोटी होती थी।मिट्टी की चिनाई होती थी।बाद में मोटी ईंटे आई लेकिन दीवार उतनी ही मोटी बनाई जाती थी।आजकल 9 इंची या 4 इंची दीवार बनाई जाती है।दीवारों में लेंटर डाला जाता है।कोले लेंटर के बनाये जाते हैं।सीमेंट की चिनाई होती है।
  
  
   पंचायत सिस्टम है।आपसी झगड़े पंचायतों में सुलझाए जाते हैं।पहले कुनबा, फिर रिस्तेदारी,फिर पाना इक्कठा होता है।जब बात नही बनती तो गांव की पंचायत, फिर अगल बगल के दो तीन गांव ( गुवाहन्ड--आपसी भाईचारे वाले गांव) , फिर पांच सात गांव की पंचायत और फिर कई गांव की पंचायत इक्कठी होती हैं।और मामले को सुलझाया जाता है।कोई पंचायत का फैंसला नही मानता उसका हुक्का पानी बन्द किया जाता है।यानी कि कोई उससे सम्बद्ध नही रखता।तपा पंचायत,सातबास पंचायत,चौबीसी पंचायत,सतरोल पंचायत आदि कई पंचायते हैं।मलिक गोत्र की खाप सबसे बड़ी खाप है।मलिकों का सबसे बड़ा गांव भैंसवाल गांव है।खाप पंचायत किसी गोत्र विशेष की भी होती है और कई गांव की भी होती है।सोरम गांव खाप पंचायतों का मुख्यालय है।जो उत्तर प्रदेश में है।औरतों को  प्यरस (थाई) में नहीं जाने दिया जाता है। पंचायत में  सिर्फ मर्द ही हिस्सा लेते हैं।
 
मेहमान नवाजी में भी आगे हैं।मेहमानों को आते ही दूध दिया जाता है।हुक्का पीने वाले को हुक्का पिलाया जाता है।लस्सी-हलवा या खांड-मीठा के साथ रोटी दी जाती है।  
    शरीर को हष्ट पुष्ट रखने के लिए घरों में कई खाद्य सामग्री बनाई जाती हैं जैसे सुखा हलवा, कसार, गोंद के लड्डू,मेथी के लड्डू,तिल के लड्डू,काली मिर्च के लड्डू,गाजरपक-खोवा आदि कई तरह की मिठाईया देशी घी में बना कर खाई जाती है।सर्दी सर्दी तो ये स्वास्थ्य वर्धक पदार्थ खत्म ही नही होते।
 
   मुख्य खाना नाज(बाजरे का होता है) और दलिया (गेहूं का होता है) होता था।जो रात में बनाया जाता था।रात को दूध और घी के साथ और सुबह लस्सी के साथ खाया जाता था।लस्सी के साथ नाज बहुत स्वादिष्ट लगता है।लहसुन की चटनी और मक्खन (टीण्डी का घी ) बाजरे की रोटी के साथ खाने का मज़ा ही कुछ और है।बथुवा या कौंधरा का रायता,कढ़ी, कुंडी में कुट्टी हुई मिर्च की चटनी,काचर की चटनी,मेथी की चटनी,प्याज़ टमाटर की चटनी  आदि पसंदीदा खाना है।

   चावल किसी शुभ अवसर पर ही बनाये जाते हैं।पहले सिर्फ मीठे चावल ( गुड़ डालकर )  ही बनाये जाते थे।जो घी के साथ खाते थे।या चावल बनाकर बाद में चिन्नी या शक्कर और घी के साथ खाते हैं।अभी नमकीन चावल भी खाने लगे हैं।शुभ अवसर पर खीर और हलवा या मालपुड़े बनाये जाते हैं।खीर मौस और दूज को बनाई जाती है।हलवा या मालपुड़े त्यौहार  में बनाये जाते हैं।
 
   जाटों में एक ही गोत्र में या माँ,दादी और नानी के गोत्र में शादी नही होती है।आजकल कई गोत्रों के लोगों ने नानी के गोत्र में शादी करनी शुरू कर दी है।यानि अब लड़का-लड़की की शादी नानी के गोत्र के लड़का-लड़की से भी की जा सकती है। दूसरी जाति में शादियां नहीं की जाती हैं। एक ही गोत्र के गांव में,अगल बगल के गांव में या आपसी भाईचारे वाले गांव में शादियां नही होती हैं।लेकिन आज कल लव मैरिज के कारण ये परंपराएं टूटने लगी हैं।लड़कियां कम हैं ।लड़को की शादी होती नही इसलिए आजकल उत्तर प्रदेश और बिहार से लड़कियों को शादी करके लाया जाता है।लड़की के घर वालों को पैसा भी दिया जाता है।ये लड़कियां चाहे जिस जाति की हों फर्क नही पड़ता।  
    पहले नाइ रिस्ते करवाते थे।अभी रिस्तेदार या आपसी भाईचारे वाले लोग रिस्ता तय करवाते हैं।लड़का लड़की के घरवाले आपस मे एक दूसरे का घर बार देखते हैं बात बन जाये तो रिस्ता तय होता है।आजकल लड़का लड़की भी आपस मे एक दूसरे को देखने लग गए।लड़का घर वालो के साथ ही चला जाता है और दोनों आपस मे देख लेते हैं।
 
    शादी-जच्चा-बच्चा और लड़कियों की रस्मे--- शादियां ज्यादा दूर नही की जाती हैं।40-50 किलोमीटर में ही शादियां की जाती हैं।शादी तय करने से पहले जन्म पत्री का मिलान नहीं किया जाता है।शादी का मुहूर्त निकलवाना भी कोई जरूरी नही है।ऐसे ही तारीख टेक दी जाती है।पहले बारात कई कई दिन रुकती थी।जब पैदल और बैलगाड़ी का जमाना था।सात रोटी तो मेरे दादा जी के टाइम थी।सात रोटी का मतलब बारात को सात बार खाना खिलाया जाएगा।उससे पहले तो महीना महीना बारात रुकती थी।तीन खाना बारात में हमने भी खाया है।सुबह,दोपहर और शाम को बारात विदा होते वक्त।आज सिर्फ एक बार ही खाना खाया और खिलाया जाता है।पहले बारात सुबह जल्दी जाती थी शाम को लेट से आती थी।आज बारात बहुत लेट से आगे पहुंचती है।तुरंत फेरे शुरू हो जाते हैं और खाना खाकर तुरन्त वापिस।औरतें बारात में नहीं जाती थीैं।अभी दो चार जाने लगी।
   पहले शादियां एकदम बचपन मे या छोटी उम्र में हो जाती थी।अब लड़के लड़की दोनों को पढ़ाया जाता है।खिलाड़ी बनाया जाता है या 
नौकरी लगवाया जाता है फिर शादी की जाती है।शादी तय होने के बाद लड़के वाले लड़की की गोद भराई की रस्म करते हैंलड़के की तरफ से जो गॉड भराई में जाते हैं उन सभी को सम्मान स्वरुप कम्बल , चादर और पैसे दिए जाते हैं। कुछ लेन देन के रिवाज़ होते हैं।पहले गोद भराई कई महीने पहले की जाती थी,फिर कई दिन पहले और अब तो शादी वाले दिन भी गोद भराई करने लगे हैं।इसी तरह लड़की वाले लड़के की सगाई की रस्म करते हैं।जिसमे लेन देन और मिठाई-फल बांटे जाते हैं।ये भी पहले कई दिन पहले की जाती थी आजकल शादी वाले दिन भी कर देते हैं।सगाई में साधारणतय लड़के,मां-बाप और दादा की सोने की अंगूठियां दी जाती हैं।सगाई के नाम का कुछ पैसा और पूरे कुनबे के हर व्यक्ति के नाम से कुछ पैसा दिया जाता है।जिसे मिलनी कहते हैं। आजकल तो पांच दस आदमी जाते हैं और वहीं गोद भर के लड़की को माला पहना के ब्याह के ले आते हैं।
  
पहले पीले चावल दे कर ब्याह का न्योता दिया जाता था।आजकल कार्ड का चलन है। शादी होने के बाद लड़के वाले अपनी शादी
शुदा लड़कियों को बारुकाई देते हैं।जिसमे सोने का गहना,नगद पैसा या भैस वगैरह दी जाती है।
  
   लड़का शादी वाले दिन से सात दिन पहले बाने बैठता है और लड़की पांच दिन पहले।लड़का लड़की को मटना लगाया जाता है और तेल चढ़ाया जाता है।औरते आधी रात तक गीत (सांझी) गाती हैं।इन दिनों में लड़की बाहर नही निकल सकती।पहले बाने के दिन शादी वाला घर गांव वालों को हलवा - रोटी खिलाता है , गाने नाचने का प्रोग्राम होता है। बाकि दिन  अपने अलग अलग चाचा ताऊ के घर बाने बैठा जाता है और वही चाचा ताऊ गॉव वालों को हलवा-रोटी खिलाता है।जिस दिन कोई चाचा ताऊ बाना नहीं देता है उस दिन घर पर ही बाने बिठा कर ( तेल चढ़ाना  ) और नाच गाना कर लिया जाता है। जिस चाचा ताऊ के यहां बाना होता है वहां से लड़की को गीत गाकर अपने घर तक लाया जाता है।घर की लड़कियां जो शादीशुदा हैं वो पांच सात दिन पहले ही आ जाती हैं।बाकी रिस्तेदारी घुड़चढ़ी वाले दिन आती हैं।शादी वाले दिन भाती (लड़का लड़की के मामा ) आते हैं तभी खाना पीना शुरू होता है।भाई चुंदड़ी उडाते हैं और रुपये देते हैं और एक एक कर के अंदर जाते हैं।भात के नाम का पैसा,कुनबे वालों की मिलनी , कुढ़ी की मिलनी , मंदिर - नाइ - पंडित - सफाईकर्मी के नाम के पैसे दिए जाते हैं।लड़का- लड़की की माँ अपने भाइयों का घर के दरवाजे पर स्वागत करती है।जब भाई पाटड़े पर चढ़ता है तो  बहन टिक्का लगाती है एक रस्सी से मापती हैं।फिर भाई बहन को और उसी गांव में दूसरी बहन है तो उसको पैसा देकर,बहन की ननदों को पैसा देकर घर के अंदर घुसता है।जब किसी औरत के पोते पोतियों की शादी होती है तो उसके मायके वाले बड़ भाति बनके भात भरते हैं।कई जगह मिलनी सिर्फ पहले भात में ही कि जाती है।
 
     फिर शादी वाले दिन दूल्हा दुल्हन का तेल उतारा जाता है।घर की सारी औरतें बारी बारी तेल उतारती हैं।बाकी औरतें गीत गाती हैं।दूल्हे को उसकी भाभी कैलस या काजल डालती है।जिसका भाभी को दूल्हे द्वारा रुपैया दिया जाता है।फिर घोड़ी पर घुड़चढ़ी (कैसुड्डा) पूरे गांव में निकालते हैं।घोड़ी की लगाम दूल्हे के जीजा को एक बार पकड़वाई जाती है।जीजा को भी दूल्हे द्वारा लगाम पकड़ने का पैसा दिया जाता है।पहले साधारण बिन बाजा और नाचने के लिए हिजड़े लाये जाते थे।अभी डीजे पर लोग थिरकते हैं।औरते घोड़ी के पीछे गीत गाती हुई चलती हैं।घुड़सवारी के दौरान दूल्हा जहाँ जहाँ से जाता है गांव की औरतें दूध का गिलास पिलाती हैं और पैसे देती हैं।सभी रिस्तेदार,दोस्त,कुनबे के लोग दूल्हे को पैसे की माला पहनाते हैं या पैसे देते हैं।लड़के की बहन लड़के पर चावल बरसाती हुई चलती है।दूसरे दिन बारात जाती हैं।पहले बैलगाड़ी में जाती थी,फिर बस और आजकल छोटी गाड़ियों में बारात जाने लगी है।घुड़चढ़ी वाले दिन गांव वालों को खाना खिलाया जाता है।जिसमे लड्डू,जलेबी,बूंदी और रोटी सब्जी मुख्य व्यंजन होते हैं।मिठाई इतनी बनाई जाती है कि सारी रिस्तेदारी और भाई बंधुओ को पांच सात किलो जाते वक्त साथ मे भाजी  बांध के भी दी जाती है।भातियों को तो 40-50 किलो या उससे भी ज्यादा बांध दी जाती है। 
 
 
लड़की वालों की तरफ भी यही मिठाइयां बनती हैं।ऐसे ही सगे संबंधियों को दी जाती हैं।अगर दिन की बारात हो तो गांव वालों को खाना पहले दिन खिलाया जाता है।अगर रात की बारात हो तो दिन में उसी दिन खिला दिया जाता है।बारात के लिए कुछ विशेष आइटम बनवाये जाते हैं।जैसे रसगुल्ला, पकोड़ा,गुलाब जामुन,बर्फी,चावल,रायता आदि।  बारात को बैंड बाजा बजाकर और औरतें गीत गाकर विदा करती हैं।बारात जाने के बाद औरतों का विशेष प्रोग्राम खड़ खोडिया होता है।जिसमे औरतें नाच गाना करती हैं।एक औरत भोपा बनती है जो मिट्टी के मटके में बोलती है।  
बारात लड़की वालों के गांव में पहुंचकर गांव के बाहर खड़ी हो जाती है। जब सभी लोग पहुंच जाते हैं तो बैंड बाजा या डीजे बजाकर बारात ठहरने के स्थान तक ले जाया जाता है।बारात किसी स्कूल या प्यरस (थाई -एक ऐसा सार्वजनिक स्थान जहाँ पंचायत होती है) में ठहरती है।बारात को चाय पानी करवाने के बाद डूका पर लड़की के घर ले जाया जाता है।जहां लड़का लड़की एक दूसरे को माला डालते हैं।और बारात वापिस थाई या स्कूल में आ जाती है।कुछ घंटे बाद फेरों के लिए ले जाया जाता है।पंडित दूल्हे को टिक्का वग़ैरह करके कुछ मंत्र पढ़ता है।फिर दूल्हे को ट्रेक्टर पर बिठाया जाता है।आगे बाराती नाचते हुए चलते हैं।लड़की के घर तक जाने के बाद दरवाजे पर सालियां दूल्हे का फूलों से स्वागत करती हैं।साली दूल्हे की मिनती एक रस्सी या दूध बिलोने वाले न्योते से करती हैं।फिर फेरे होते हैं।लड़की का भाई फेरे लेते वक्त दूल्हा दुल्हन पर खिल बरसाता है।फेरों पर लड़की का बाप लड़की के हाथ पीले करता है।फेरों पर औरतें लोक गीत गाती हैं। गीतों के जरिये बारातियों का मजाक भी उड़ाया जाता है।       
      फेरे होने के बाद दीवार पर दूल्हा दुल्हन के हाथ के निशान लगवाए जाते हैं।एक दूसरे को एक ही गिलास में दूध पिलाया जाता है।फ़ोटो खिंचवाए जाते हैं।दूल्हे का सेहरा लड़की वाले रख लेते हैं।और उसे सालों तक टांग कर रखा जाता है।सालियाँ जूते छिपाती हैं जिसके बदले में पैसा लिया जाता है।लड़की वालों की तरफ से लड़की की माँ दूल्हे के दादा-मामा-पापा-चाचा आदि को पीठ और छाती पर हाथ का थापा लगाती हैं और पैसा देती हैं।फिर विदा होती है।सब बुजुर्ग एक जगह बैठते हैं।जहां बताया जाता है कि लड़की वालों ने लड़के को क्या क्या दिया है।सारा सामान और पैसा लड़के वालों को सौंप दिया जाता है।सभी बारातियों के नाम पैसा या गिलास आदि दिया जाता है।जुवहारी होती है।लड़का और उसके दोस्त एक जगह बैठते हैं।औरते दूल्हे-दुल्हन को पैसा देती हैं।फ़ोटो खिंचे जाते हैं।सालियाँ मज़ाक करती हैं।फिर लड़की विदा की जाती है।दहेज में लड़की वाले लड़की को कुछ सोने के गहने देते हैं।लड़के वाले भी अपनी तरफ से लड़की या दुल्हन को कुछ गहने देते हैं।बेड, अलमारी, संदूक,फ्रिज,कूलर,टीवी,वाशिंग मशीन और बर्तन आदि दिया जाता है।कुछ लोग बाइक,कार और नकद पैसा भी देते हैं।बुजुर्गों के टाइम में कोई अमीर होता था वो साइकिल और रेडियो देता था।जो लड़के सामान उतारते हैं उन्हें नेग दिया जाता है।बाकी सामान के साथ लड़के के परिवार की सारी औरतों, मर्दों और बच्चों के लिए कपड़े और मिठाइयां साथ मे दी जाती हैं।लड़की के दो-तीन भाई भी साथ मे जाते हैं।दूल्हे के गांव से अगर कोई लड़की उस गांव में ब्याही हुई है तो सारे बाराती उसे पैसे देकर आते हैं।और दूल्हे वाले उस लड़की की मिलनी करके आते हैं।जिसमे उसके सारे परिवार के सदस्यों को कुछ पैसे दिए जाते हैं।  गांव वाले शादी वाले घर की पैसे से मदद करते हैं एक तो कन्यादान लिखवा कर और दूसरा न्योन्दा लिखवाकर।न्योन्दे में पैसे दिए जाते हैं।ऐसे ही सभी एक दूसरे के यहाँ शादी में मदद करते हैं।दूल्हे के बाप से लड़की वाले नाइ,चुड़ी को 100-50 रुपये दिलाते हैं।टेंट में जो वेटर दूल्हे को खाना खिलाते हैं उन्हें दूल्हे द्वारा बख्शिश दी जाती है।       बारात से वापिस लौट कर जो सबसे पहले आता है उसे दो बड़े लड्डू उपहार स्वरूप दिए जाते हैं।दुल्हन आने के बाद उसका दरवाजे पर स्वागत किया जाता है।दूल्हा दुल्हन का लड़के के घर मे भी हाथ का थापा  दीवार पर लगवाया जाता है।अगले दिन कुछ रस्मे होती हैं।सबसे पहले तो गांव के स्थानीय मंदिर में धोक मार (पूजा) के आई जाती है।हर गांव का एक या अधिक स्थानीय देवता होते हैं।हर गांव में दो-तीन या अधिक पाने (बगड़) होते हैं सबका अपना अपना अलग देवता होता है।ये स्थानीय देवता या तो धरती में कोई समाया हुआ होता है या जिसने गांव को बसाया होता है उसे देवता के रूप में पूजा जाता है।जो मौस दूज वाले दिन खासकर पूजे जाते हैं।उसके बाद घर आकर दुल्हन के गोडो में देवर को बिठाया जाता है।दुल्हन फिर देवर को पैसा भी देती है।फिर पैंरात में पानी और दूध डालकर अंगूठी ढूंढने की रस्म की जाती है।दूल्हा दुल्हन में से जिसे अंगूठी मिली वो विजेता।उसके बाद दुल्हन के साथ कामची (तुंत की लकड़ी) मारने की रस्म खेली जाती है।पहले दूल्हा दुल्हन उसके बाद देवर आदि बारी बारी खेलते हैं।रस्मे पूरी होने के बाद दुल्हन वापिस मायके जाती है।दूल्हा और कुछ और आदमी तथा दुल्हन के भाई साथ मे जाते हैं।दिन भर वहां रहने के बाद दुल्हन के भाई वहीं रुक जाते हैं ।दुल्हन और बाकी लोग वापिस लड़के के गांव आ जाते हैं।लौटते वक्त लड़की वाले सभी लोगो को पैसे और कपड़े देते हैं।शादी के बाद लड़की जब भी मायके जाती है उसे  दूसर तीसर और छुछक दिए जाते हैं।जिसमे लड़के के सारे परिवार-कुनबे की औरतों के कपड़े,कुछ मर्द और बच्चों के कपड़े दिए जाते हैं।दूसर और तीसर साधारणतय जब लड़की दूसरी और तीसरी बार ससुराल जाती है तब दिया जाता है।छुछक जब लड़की को पहला लड़का होता है तब दिया जाता है।इसमें भी सारे कुनबे के कपड़े दिए जाते हैं।बर्तन आदि दिए जाते हैं।लड़के को, माँ बाप को अंगूठी वगैरह भी पहनाई जाती है।इसे पीलिया लेकर जाना बोलते हैं।भाई जो पीलिया (एक पिला चुनी) लेकर आता है बहन उसे पहन के गांव के कुएं या नलकूप से पानी लेकर आती है।औरते गीत गाती हुई साथ मे जाती हैं।फिर पूरे कुनबे के लोगो के नाम से कुछ पैसे भी दिए जाते हैं।जिसे मिलनी कहते हैं।  
  जब लड़की को जेठा बच्चा (पहला बच्चा) होता है, चाहे लड़की हो तब भी कुनबे के लोगो के कपड़े (तील) दिए जाते  हैं।
       जिनके घर मे लड़का होता है वो अपनी बहनों को और जीजो को,सास ससुर को कुछ सोने के आइटम उपहार स्वरूप देते हैं।कुछ लोग नही भी देते।जो बहन ( ननद )  जापा करवाती है उसे कुछ ज्यादा दिया जाता है।कई दिन तक  जच्चा - बच्चा की सेवा की जाती है।उसका गोंद देशी घी में डाला जाता है।जो घी मायके की तरफ से बच्चा होने की ख़ुशी में मिलता है।जिस घर में लड़का होता है वो अपने घर की शादीशुदा लड़कियों को कपड़े ( तील ),गहने ,भैंस ,पैसे आदि से सम्मानित करते हैं चाहे वो बहन हो या बुवा हो। जब बच्चा छह दिन का हो जाता है तो उसकी छठी गाई जाती है।छठी वाले दिन सुबह हवन होता है फिर नामकरण होता है।रात में औरते गीत गाती हैं।पड़ोसी औरतें और कुनबे की औरतें इसमे शामिल होती हैं।गीत गाने के बाद औरतों को खिल,बूंदी और लड्डू आदि बांटे जाते हैं।आजकल गिलास और कटोरी बांटने का रिवाज भी हो गया है।बच्चेे की जितनी बुवा होती हैं वो भी बारी बारी से अलग अलग दिन छठी गवाती हैं और गिलास,कटोरी,खिल,बूंदी और लड्डू आदि बांटती हैं।कुछ लोग छठी वाले दिन अपने पड़ोसियों,कुनबे वाले और दोस्तो को खाना पीना भी करवाते हैं।हरियाणा में हर दावत में देशी घी का हलवा और रोटी-सब्ज़ी खिलाई जाती थी।आजकल लड्डू,बूंदी और शराब आदि का चलन है।लड़कियों की छठी नही गाई जाती है।अभी कुछ लोगों ने लड़कियों की छठी गाना भी शुरू कर दिया है।  


     जब भी घर की शादीशुदा लड़कियां या उनके सास ससुर या पति घर आते हैं तो उन्हें पैसा दिया जाता है और लड़कियों को पैसा और तील देकर ही विदा किया जाता है।घर का कोई मर्द अपनी बहन के यहां जाता है तो बहन को और सास को पैसा देकर ही वापिस आता है।बुवा को भी पैसा दिया जाता है।इतना ही नही गांव की कोई लड़की कहीं मिल जाये तो उसे भी पैसा दिया जाता है।ये हमारे रिवाज़ हैं।बड़ी बहन अपनी छोटी बहन को,लड़की वाली समधन लड़के वाली समधन या समधी को,बुआ अपनी भतीजी को,भतीजा अपनी बुआ को,नानी अपनी द्योति या द्योते (नातिन) को,दादा दादी अपनी पोती को पैसे और तील देते हैं।और भी इस तरह के कई लेन देन हैं।
 
   सावन में कोथली दी जाती है।भाई बहन की या भतीजा बुआ की कोथली देता है।पहले पूरा परिवार सावन में सुआलि-गुलगुले और स्याई बनाने में लगा रहता था।सुआलि-गुलगुले और ग्योर (घेवर),बड़े पतासे,बड़े बिस्किट,मट्ठी तथा तील(कपड़ा) कोथली में दी जाती हैं।कोथली कुछ क्षेत्रों में नही दी जाती है।अगर घर-रिस्तेदारी या कुनबे मे कोई गुजर जाता है तो कोथली या त्योहार नही मनाए जाते हैं।
 

मनोरंजन--- लोगों का मुख्य मनोरंजन तास खेलना,हुक्का पीना,बीड़ी पीना,सान्ग सुनना और कंपीटिशन सुनना है।तास में कई प्रकार के खेल होते हैं।कंपीटिशन में कुछ औरत और मर्द कलाकार रागनी या गानों पर नाचते हैं।बीच बीच मे हंसी मजाक भी होता है।सान्ग में रागनियों के द्वारा मनोरंजन किया जाता है और इतिहास समझाया जाता है,
इतिहास में हुए वीरों का रागनियों के माध्यम से गुणगान किया जाता है। ।बीच बीच मे हंसी मजाक भी किया जाता है।कुछ मर्द औरतों के कपड़े पहन कर स्टेज पर नाचते हैं।सूर्य कवि दादा लख्मीचंद जी ने भारत के पूरे इतिहास और बाकी के मुद्दों को भी रागनियों में पिरो दिया है।रागनियों के द्वारा इतिहास को गाकर बताने या सुनाने को सांग कहते हैं।शायद ही कोई मुद्दा या घटना बची हो जिस पर सांग न बना हो।कॉम्पिटिशन और सांग देखने का पैसा नही लगता।दूर दूर से लोग देखने आते हैं।जो आयोजक होते हैं या तो खर्च वो उठाते हैं या गांव वाले चंदा करते हैं या जो देखने आते हैं वो लोग अपनी मर्ज़ी से पैसा दान दे देते हैं,या गांव से अनाज इक्कठा किया जाता है।

  पहले गांव में किसी किसी घर मे टीवी होते थे।एंटीने से सिर्फ दो चैनल डीडी वन और मेट्रो चैनल आते थे।फ़िल्म हफ्ते में तीन दिन आती थी।शुक्रवार,शनिवार और रविवार।सभी लोग उन घरों में ही इक्कठे होकर टीवी देखते थे।कोई खुशी का मौका होता था तो वीडियो और वीसीआर लाया जाता था।जिसे गली में खुले में चलाया जाता था।सभी लोग इक्कठे होकर देखते थे।ये हमारे बचपन की बातें है।धीरे धीरे गांव में डिश आई या केबल आई।
 
 
खेल--कबड्डी और कुश्ती मुख्य खेल हैं।सर्दियों में लगभग हर गांव में कबड्डी के खेल करवाये जाते हैं और इनाम बांटे जाते हैं।जिस गांव में खेल होते हैं वो पूरा गांव चंदा करके खेल का खर्चा उठाता है।देखने का कोई पैसा नही लगता।दूर दूर से लोग खेलने और देखने आते हैं।
 
  
   बचपन मे हम लोग बहुत खेल खेलते थे।जो आज गायब हो चुके हैं।हम नाम भी भूल गए हैं।जैसे पकड़म पकड़ाई, लुक छिपाई,कंचे खेलना (कंचे में भी कई तरह के खेल होते थे),पोशम्पा,रस्सी कूदना,बीजो खेलना,नुणं माई खेलना,घोड़ा कूदना,सुलिया डंडा जाल का,गोल करना,गुता खेलना,लढी झूलना,सात ठेकरी, टायर चलाना, मिट्टी के गुडे गुड़िया बनाना-बैल बनाना,गिंडी खेलना,चप्पल से टायर बनाकर उसकी बग्गी  बनाना,क्रिकेट खेलना,कुश्ती,कबड्डी,हैंडबाल,वॉलीवाल,
फुटबाल,एक टीम जगह जगह लाइन खिंचती थी और दूसरी ढूंढती थी कहाँ कहाँ कितनी लाइन खींची है,ताश खेलना,काट का तीन पहिये का रेढूआ चलाना, तीन बेरिंग की काट की लड्डी पर झूलना ,. पटास बजाना आदि बहुत सारे खेल हैं जो हमने खेले हैं लेकिन आज वो खेल हैं नहीं।
  
     नहर में या जोड़ (तालाब) में नहाना, चोरी छिपे खेतों में जामुन खा कर और गण्डे चूस कर आना।सुगर मिल का कांडा गांव में होता था उस पर गण्डे चूस कर आना, ट्रेक्टर से निकालकर गण्डे चूसना।पहले बाड़ी (कपास) ज्यादा होती थी।सारी कपास चुगने के बाद उसकी लकड़ियां काटकर उसका मरीडा (लकड़ियां इक्कठी करना) लगाया जाता था।उस मरीडा से कपास चुगकर(झिड़ा) दुकानों पर बेचते थे और चीज खाते थे।
   
   ग्यारस में लड़कियों को घर से कपास दी जाती थी चीज खाने के लिए।जिसे एक थाली या पैरान्त के नीचे दबाकर रखा जाता था।उस कपास को बेचकर वो चीज खा कर 
आती थी।  

पूजा--मोस और दूज वाले दिन दिया लगाकर प्रसाद बांटा जाता है।मोस वाले दिन घर मे और दूज वाले दिन गांव के देवता के मंदिर में दिया लगाया जाता है।खीर बनाई जाती है।ब्राह्मणों के यहां खीर पहुंचाई जाती है।दूज का दूध बिलोया नहीं जाता सारा पिया जाता है।ज्यादातर स्थानीय या ग्रामीण देवता की ही पूजा की जाती है।हनुमान जी और शिवजी की पूजा की जाती है।ग्रामीण देवता के अलावा हनुमान जी और शिवजी के मंदिर मिलेंगे।गुगा देवता और दादी गौरी को भी माना जाता है।बाकी किसी किसी गाँव मे माता का मंदिर मिल जाता है।दशहरे से दस दिन पहले रामलीला होती है।जिसमे रामलीला दिखाई जाती है।बीच बीच मे देशी मज़ाक भी चलता है।
  
 
  जब भैंस भयाती (बच्चा देती है) है तो पहला दूध गांव के मंदिर में चढ़ाया जाता है।
दो माताओं की खासकर पूजा होती है।एक कुरुक्षेत्र वाली माता और दूसरी धनाना वाली माता जो बुधवार को पूजती हैं।कुछ लोग कुरुक्षेत्र वाली माता को और कुछ लोग धनाना वाली माता को पूजते हैं।ये पूजा सिर्फ चांदनी रातों में ही होती हैं।कुछ लोग कंवारी लड़कियों से धोक नहीं मरवाते।क्योंकि हो सकता है ससुराल में दूसरी माता की पूजा होती हो।इस दिन घर के दरवाजे पर दिया लगाकर धोक मारी जाती है।देशी घी के पुड़े उतारे जाते हैं।प्रसाद बांटा जाता है।जो लड़कियां धोक नहीं मारती उन्हें प्रसाद और पुड़े नहीं खिलाये जाते।कभी भी कोई शुभ काम हो तो सात लड़कियों को खाना खिलाया जाता है।

वृत - कई तरह के वृत रखे जाते हैं।मंगलवार को हनुमान जी का वृत मर्द रखते हैं।शुक्रवार का वृत अच्छा पति मिलने के लिए औरतें रखती हैं।करवा चौथ,गुगा का वृत,जन्माष्टमी का वृत,सातम का वृत बच्चो की लंबी उम्र के लिए औरतें रखती हैं।वृत छोड़ने के भी कुछ नियम हैं जैसे कन्याओं को जिमाणा, पंडितो को जिमाणा या कुछ दान आदि देना।

समाज मे कुछ टोटके भी हैं।जैसे बुधवार और शनिवार को लड़की ससुराल नहीं जाती है।बुधवार शनिवार को तेहरामी नहीं कि जाती है।शुभ काम से या घर से निकलने से पहले छींक मारना अशुभ है।बिल्ली का रास्ता काटना अशुभ है।शनिवार को बर्तन नहीं खरीदे जाते, लोहा नहीं खरीदा जाता।शनिवार को कोई शुभ काम नही किया जाता।
 
   जाट बाबाओं के बहुत भक्त हैं।बड़े बड़े डेरे चलते हैं।ढेरों के नाम अच्छी खासी जमीन है।बहुत से साधु ढेरों में रहते हैं।बहुत से पूछा करने वाले भी हैं।जो बिगड़े काम बनाना या किसी दुश्मन का बुरा कर देने का दावा करते हैं।लगभग औरतें इनके पास जाती हैं।कुछ दवाई से लड़का पैदा करने का और भूत भगाने का भी दावा करते हैं। टुणा रखने का भी रिवाज़ है, श्रृंगार  का कुछ सामान चौराहे पर एक ठेकरी मे रखा जाता है, ताकि बुरी बला टल जाए।   अगर किसी को नजर लग गई है तो उस पर से सात बार लाल मिर्च फेरकर आग में डाल दी जाती है जिससे नजर उतर जाती है। ऐसा करने से नज़र लगी है तो वो उतर जाती है।कई तरह के देशी टोटके या देशी इलाज प्रचलित हैं।जिनसे आदमी सही में ठीक भी हो जाता है। 
 
राधा स्वामी ब्यास और धन धन सतगुरु सिरसा बड़े डेरे हैं।इन डेरों के हरियाणा में ही नहीं पूरी दुनिया में लाखों भक्त हैं।  
 
  पहनावा--औरतें सलवार कुर्ता सिर पर लता (चुनरी या वेल) ओढ़ती है।ससुराल में बढो से पर्दा करती हैं।हाथों में चूड़ी पहनती हैं।नाक में सोने का कोका और कानों में बाले पहने जाते हैं।मर्द सफेद कुर्ता पायजामा पहनते हैं।अभी पैंट शर्ट,टीशर्ट-लोअर पहनी जाने लगी है।बूढ़ी औरतें कुर्ता और दामण पहनती हैं।हाथ मे लाठी रखती हैं और पैरों में चांदी या स्टील के मोटे कड़े पहने जाते हैं।बूढ़े मर्द कुर्ता,धोती और खंडका पहनते हैं।पैर में जूती पहनते हैं।और हाथ मे डोगा रखा जाता है।    पीने के पानी का मुख्य स्रोत कुएं या फिर बोरिंग के नल हैं।कपड़े झोड़ (तालाब), राजबाया या खाल में धोए जाते हैं।भैंसों को झोड़ में नहलाया जाता है।  
 
गर्मियों में छतों पर सोया जाता है।खाट पर सोते हैं।खाट पर गुदड़ा बिछाया जाता है।जो फटे पुराने कपड़ो से बनता है।खेस ओढा जाता है।सर्दियों में सोड़ ओढी जाती है और सोडिया बिछाया जाता है।जो रुई से बनाये जाते हैं।मेहमानों के नीचे दरी और चादर बिछाई जाती है।
   लड़कियां सावन में रात को गली में गीत गाती थी और नाचती थी।नाचने के बाद झोड़ में नहा कर आती थी।
जिसे सावन नहाना बोलते हैं।अभी ये देखने को नही मिलता।हर घर की एक चूड़ी और चूड़ा (नोकर टाइप) तथा डुम, खाती होते थे कुछ आज भी हैं।उनसे कुछ काम करवाया जाता था ।बदले में उन्हें अनाज दिया जाता था।त्योहार पर तील (कपड़ा) आदि दिया जाता था।जो आज भी दिया जाता है।
   पशु पालन -- मुख्यतया भैंस पालते हैं। कहीं कहीं गाय भी पालते हैं. पहले हर घर में बैल होते थे लेकिन अब जब से ट्रेक्टर आया है बैल लगभग ख़त्म हो गए हैं. कुछ लोग खेतों से हरा चारा ढ़ोने  के लिए इक्का दुका बैलों को रखे हैं. भैंस जब ब्याति है तो शुरू में 5-7 दिन खीस बनाकर खाया जाता है।जो दूध को फाड़कर बनता है और स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है।भैंस के गोबर के उपले (थेपडी और गोसे) बनाये जाते हैं।जो जलाने के काम आते हैं।उपलों से बिटौड़े बनाये जाते हैं।एक एक गोसे से चिनाई करके पिरामिड टाइप का बना दिया जाता है जिसे बिटौड़े कहते हैं।
 
 
शिक्षा--- पहले शिक्षा का एकमात्र जरिया सरकारी स्कूल थे।सारे बच्चे उन्ही में पढ़ते थे।पढाई का स्तर ऐसा था कि बच्चे कई कई बार फैल होते थे और ७ वीं - ८ वीं क्लास में ही बच्चे इतने बढे होते थे कि मास्टर को भी पिट देते थे।मास्टर जी भी बहुत क्रूर होते थे, आज भी हैं, लेकिन आज प्राइवेट स्कूल आने से क्रूरता पर कुछ अंकुश लगा है।अभी सारे बच्चे प्राइवेट स्कूलों में जाते है।जो बिल्कुल गरीब है वही अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाता है।स्कूलों में कई तरह के प्रोग्राम भी होते हैं।खासकर 15 अगस्त और 26 जनवरी को।  बच्चो को अखाड़ों में भी छोड़ा जाता है।पढ़ाई और खेल कूद साथ साथ हो जाती है।
  
म्रत्यु---  लाश को नहलाया जाता है।उसे नए कपड़े पहनाए जाते हैं।फिर अर्थी पर लेटाया जाता है।सारे कुनबे वाले अगर मरने वाला मर्द होता है तो चादरा और औरत होती है तो चुन्दड़ी उढ़ाते हैं।रिश्तेदारियां जब गोडा मोड़ने आती हैं तो आटा वैगरह भी लेके आती है ।सभी मोहल्ले वाले लाश को जलाने का सामान एक जगह इक्कठा करते हैं।कोई गोसे और कोई लकड़ी का योगदान देता है।चिता में देशी घी (5-10किलो) डाला जाता है ताकि लाश अच्छी तरह जल जाए।घर मे थोड़ी राख बिछा कर उसे थाली से ढक दिया जाता है।अगले दिन थाली हटा कर देखा जाता है कि राख पर किस जीव जंतु के पैरों के निशान हैं।मान्यता है कि जिस जीव जंतु के निशान मिलेंगे मरने वाला उसी योनि में जन्म लेगा।
जब कोई गुजर जाता है तो 13 दिन की तेहरामी होती है।सारे जान पहचान वाले गोडा मोड़ के जाते हैं।जिस दिन व्यक्ति गुजरता है उस दिन से १३ दिन तक शौक मनाया जाता है। बुधवार और शनिवार की तेहरामी नही होती है।एक दो दिन पहले तेहरामी कर दी जाती है।मृत व्यक्ति के फूल गंगा जी ( गढ़ गंगा ) मे या नहर में बहा दिए जाते हैं।बुजुर्ग व्यक्ति के मरने पर मीठा या लड्डू खिलाये जाते हैं, जो रिवाज अभी शुरू हुआ है। तेहरामी के बाद पहला महीना,दूसरा महीना और फिर छमाही मनाई जाती है।जिनमे सारी रिश्तेदारियां शामिल होती हैं।
जब घर का बड़ी उम्र का जमाई गुजर जाए तो लड़की को सोने चांदी की चुड़ी दी जाती है।
 
 त्योहार -- 

 
होली-फ़ाग---  फ़ाग हरियाणा में सात दिन मनाया जाता है।होली वाले दिन से लेकर सातम तक फ़ाग खेला जाता है।मुख्य फ़ाग होली से अगले दिन होता है।सात दिन तक बच्चे आपस मे,देवर भाभी,या दोस्त दोस्त आपस मे पानी,रंग,गोबर आदि से खेलते हैं।मुख्य फ़ाग वाले दिन तो देवर भाभी का कोरडे मारने का खेल होता है , बाकि ७ दिन भी असर रहता है। देवर भाभियों में पानी डालता है,रंग डालता है,कीचड़ में लिटा देता है,गोबर डालता है,कई बार काला तेल भी डाल दिया जाता है।भाभियाँ देवर -जेठ को कोरडा मारती हैं।कोरडा किसी रस्सी या दूध बिलोने वाला न्योता या वेल (दुपट्टा) से बना होता है।मर्द के हाथ मे लाठी या बाल्टी या खेस कंबल होता है जिससे वो कोरड़ा से अपना बचाव करता है।देवर भाभी के इसी खेल को फ़ाग बोला जाता है।बच्चे पिचकारी या गुबारों से खेलते हैं।कई बार हंसी मजाक में कोई लड़का औरतों के कपड़े पहन के किसी बुजुर्ग या मर्दो की कोरडे से धुलाई कर देता है।होली वाले दिन भी फ़ाग खेला जाता है।पटाखे बजाए जाते हैं।बंदूक में टिकिया बजाई जाती है।हलवा और पूड़े बनाये जाते हैं।रात में होलिका जलाई जाती है।कोई भी एक कुंवारा लड़का जलती होली में से प्रह्लाद को निकाल के जोहड़ में डाल के आता है।मान्यता है कि ऐसा करने से उसकी शादी हो जाती है।कई दिन पहले से गोबर की डमैल बनाई जाती हैं।जो गोल गोल एक बिलान्त की होती हैं बीच मे छेद होता है।सारी डमैल जलती होली में फेंक दी जाती हैं।बच्चे और युवा कई दिन पहले से मैदान में होली के लिए झाड़ इक्कठे करते हैं।एक गांव में कई होलियां जलाई जाती हैं।बड़ी बड़ी होली बनाई जाती है।होड़ लगती है किसकी होली बड़ी होगी। 

   दशहरा-- दशहरे वाले दिन घरों में हलवा या पुड़े बनाये जाते हैं।दस दिन पहले रामलीला शुरू हो जाती है।दशहरे वाले दिन रावण वध से रामलीला खत्म होती है।शहरों में रावण को जलाया जाता है।पटाखे जलाये जाते हैं।
 
  रक्षा बंधन-- इस दिन बहने भाई को राखी बांधती हैं और भाई उन्हें कुछ पैसा देता है।बच्चे अपने आप बड़ी बड़ी पोंची (राखी) और प्लास्टिक की घड़ियां बांध के घूमते हैं।इस दिन हलवा और पुड़े बनाये जाते हैं।  संक्रांत ( मकर संक्रांति )---इस दिन हलवा और पुड़े बनाये जाते हैं।सुबह जल्दी उठ कर घर के बाहर गोबर के उपलों से आग जलाई जाती है।भैसों और बैलों को चंदे बांधे जाते हैं।अपनी गली में,कुनबे में और मेल मिलाप वालो के यहां लड़कियों को रुपये बांटे जाते हैं।सुबह सुबह सब एक दूसरे के घरों में लड़कियों को रुपये बाँट देते हैं। 

 दिवाली  --- पहले दिन छोटी दिवाली  या गरड़ी मनाई जाती है।अगले दिन मुख्य दिवाली  मनाई जाती है।दोनों दिन बच्चे रात में हीड़ों जलाते हैं। दूधिया पौधे की लाठी पर कपड़ा बांध के मिट्टी का तेल डालकर जलाया जाता है।उसे लेकर बच्चे गली गली घूमते हैं।लड़कियों को एक मिट्टी के कापण (दक्कन) में बिनोला डाल के जला के दिया जाता है।जिसे वो घर के बाहर बैठ के जलाती हैं।दोनों दिन पूरे घर मे और छतों पर सरसों के तेल के मिट्टी के दिए जलाये जाते हैं।बच्चो के लिए खिल-गुजरी और मिठाई लाई जाती है। दिवाली वाले दिन हलवा या पुड़े या दोनों चीज बनाये जाते हैं।पटाखे,जहाज,अनार,फिरकी ,फुलझड़ी आदि बजाए और चलाये जाते हैं।
 
  तीज -- तीज से कुछ दिन पहले ही पिंग ( झूला ) घर मे डाल दिया जाता है और कुछ दिन बाद तक पिंग झूला जाता है।तीज वाले दिन हलवा या पुड़े बनाये जाते हैं।एक दिन दो दिन पहले ही पेड़ों पर पिंग घाल दी जाती है।कई लोग तो खटोला या खाट ही पिंग पर घाल देते हैं।सारा दिन उसी पर झूलते हैं।हर पेड़ पर पिंग ही पिंग नज़र आती है।पेड़ो के डाले ( टहनी ) रुकवाने के लिए झगड़ा होता है।आपस मे मिलकर एक दुसरे को झुलातेे हैं।एक व्यक्ति पिंग पर बैठता है दो व्यक्ति उस पिंग को रस्सी बांध के उसे जोर जोर से झुलाते हैं। 

 गुगा -- गुगा से पहले दिन औरतें वृत रखती हैं।गुगा वाले दिन हलवा और पुड़े बनाये जाते हैं।पोंची (राखी ) इसी दिन हाथ से खोल के गुगा को बांधी जाती है।गांव के झिमर जाती के लोग एक गुगा बनाते हैं।एक लाठी को मोर चंदे और दुपट्टे बांधकर गुगा बनाया जाता है।उसे घर घर ले जाकर दान दक्षिणा माँगी जाती है।फिर एक जगह पर स्थापित कर दिया जाता है।सभी बच्चे वहां इक्कठे होते हैं।अपनी राखियां हाथ से खोलकर गुगा को चढ़ा दी जाती हैं।झिमर लोग कुछ करतब दिखाते हैं।जैसे अपनी पीठ पर बेल या कोड़े मारना।घरों में दिया लगाकर गुगा की धोक ( पूजा ) मारी जाती है।ऐसी मान्यता है कि गुगा पूजा से सांप का डर ख़त्म हो जाता है। गुगा मेड़ी राजस्थान में मुख्य मंदिर है। 
 
 
 
 

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