पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ किया था. रोहिणी दक्ष की सभी कन्याओं में से सबसे अधिक सुदर थी. चंद्रमा रोहिणी को अधिक प्रेम करते थे. इस बात से दक्ष की अन्य पुत्रियां रोहिणी से बैर रखने लगीं. जब यह बात प्रजापति दक्ष को पता चली तो उसने क्रोधित होकर चंद्रमा को धीरे- धीरे क्षीण (खत्म) होने का श्राप दे दिया. इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान ब्रह्मा ने चंद्रमा को प्रभास क्षेत्र जहां पर सोमनाथ का मंदिर है वहां पर भगवान शिव की तपस्या करने को कहा.
चंद्रमा ने सोमनाथ में शिवलिंग की स्थापना करके उनकी पूजा की. कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने शाप से मुक्त कर दिया और अमरत्व का वरदान दिया. शंकर जी के वरदान के कारण ही चंद्रमा कृष्ण पक्ष को एक-एक कला क्षीण (खत्म) होता है और शुक्ल पक्ष को एक-एक कला बढ़ता है और हर पूर्णिमा को पूर्ण रूप को प्राप्त होता है. पंचांग इसी आधार पर कार्य करता है. शाप से मुक्ति मिलने के बाद चंद्रमा ने भगवान शिव को माता पार्वती के साथ सोमनाथ में ही रहने की प्रार्थना की. तब से भगवान शिव सोमनाथ में ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास करते हैं.
6.
?#️सम्राट_शांतनु ने विवाह किया एक मछवारे की पुत्री सत्यवती से।उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।
?सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए #भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा?
?#महाभारत लिखने वाले #वेदव्यास भी मछवारे थे, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो।
?#विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे, #हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई #विदुर_नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है।
?भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया।
?श्री कृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे,
?उनके भाई बलराम खेती करते थे, हमेशा हल साथ रखते थे।
?#यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और #श्री_कृष्ण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया।
?#श्री_राम के साथ वनवासी #निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे।
?उनके पुत्र लव कुश #महर्षि_वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे
✅️तो ये हो गयी #वैदिक_काल की बात, स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था,सबको शिक्षा का अधिकार था, कोई भी पद तक पहुंच सकता था अपनी योग्यता के अनुसार।
?वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे वो बदले जा सकते थे, जिसको आज इकोनॉमिक्स में #डिवीज़न_ऑफ़_लेबर कहते हैं वो ही।
?प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा वो जाति से नाई थे ।
?#नन्द_वंश की शुरुवात महापद्मनंद ने की थी जो की राजा के नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये।
?उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरुआत #चन्द्रगुप्त से हुई,जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे और एक ब्राह्मण #चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया । 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा।
?फिर #गुप्त_वंश का राज हुआ, जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे।140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा।
?केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़ कर 92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं तो शोषण कहां से हो गया? यहां भी कोई शोषण वाली बात नहीं है।
?फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है, इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम आक्रमणकारियो का समय रहा और कुछ स्थानों पर उनका शासन भी चला।
?अंत में मराठों का उदय हुआ, बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया, चरवाहा जाति के होलकर को मालवा का राजा बनाया।
?#अहिल्या_बाई होलकर खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थी। ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये।
?#मीरा_बाई जो कि राजपूत थी, उनके गुरु एक चर्मकार #रविदास थे और रविदास के गुरु ब्राह्मण #रामानंद थे|।
✅️यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है।
?मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से #पर्दा_प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी चीजें शुरू होती हैं।
?1800 -1947 तक अंग्रेजो के शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ । जो उन्होंने #फूट_डालो और #राज_करो की नीति के तहत किया।
?अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब "#कास्ट_ऑफ़_माइंड" में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।
?इन हजारों सालों के इतिहास में देश में कई विदेशी आये जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं, जैसे कि मेगास्थनीज ने इंडिका लिखी, फाहियान, ह्यू सांग और अलबरूनी जैसे कई और लेखको में से किसी ने भी नहीं लिखा की यहां किसी का शोषण होता था।
?#योगी_आदित्यनाथ जो ब्राह्मण नहीं हैं, गोरखपुर मंदिर के महंत हैं, पिछड़ी जाति की उमा भारती महा मंडलेश्वर रही हैं।
7. श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं। इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक का जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।
एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा-
नारद- बालक तुम कौन हो ?
बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।
नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ?
बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ ।
तब नारद ने ध्यान धर देखा।नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी।
बालक- मेरे पिता की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?
नारद- तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।
बालक- मेरे ऊपर आयी विपत्ति का कारण क्या था ?
नारद- शनिदेव की महादशा।
इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर जीने वाले बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।
नारद के जाने के बाद बालक पिप्पलाद ने नारद के बताए अनुसार ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने जब बालक पिप्पलाद से वर मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति माँगी।ब्रह्मा जी से वर्य मिलने पर सर्वप्रथम पिप्पलाद ने शनि देव का आह्वाहन कर अपने सम्मुख प्रस्तुत किया और सामने पाकर आँखे खोलकर भष्म करना शुरू कर दिया।शनिदेव सशरीर जलने लगे। ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया। सूर्यपुत्र शनि की रक्षा में सारे देव विफल हो गए। सूर्य भी अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जलता हुआ देखकर ब्रह्मा जी से बचाने हेतु विनय करने लगे।अन्ततः ब्रह्मा जी स्वयम् पिप्पलाद के सम्मुख पधारे और शनिदेव को छोड़ने की बात कही किन्तु पिप्पलाद तैयार नहीं हुए।ब्रह्मा जी ने एक के बदले दो वर्य मांगने की बात कही। तब पिप्पलाद ने खुश होकर निम्नवत दो वरदान मांगे-
1- जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा।जिससे कोई और बालक मेरे जैसा अनाथ न हो।
2- मुझ अनाथ को शरण पीपल वृक्ष ने दी है। अतः जो भी व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएगा उसपर शनि की महादशा का असर नहीं होगा।
ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह वरदान दिया।तब पिप्पलाद ने जलते हुए शनि को अपने ब्रह्मदण्ड से उनके पैरों पर आघात करके उन्हें मुक्त कर दिया । जिससे शनिदेव के पैर क्षतिग्रस्त हो गए और वे पहले जैसी तेजी से चलने लायक नहीं रहे।अतः तभी से शनि "शनै:चरति य: शनैश्चर:" अर्थात जो धीरे चलता है वही शनैश्चर है, कहलाये और शनि आग में जलने के कारण काली काया वाले अंग भंग रूप में हो गए।
सम्प्रति शनि की काली मूर्ति और पीपल वृक्ष की पूजा का यही धार्मिक हेतु है।आगे चलकर पिप्पलाद ने प्रश्न उपनिषद की रचना की,जो आज भी ज्ञान का वृहद भंडार है.