घर
VICHAR
MAHMAAN
RAJNITY
Movie Story
KHEL
ETIHAAS
मैं और मेरा परिवार
SAMANYA GYAN
घरेलु उपचार
SHAKHSIYAT
छोटी कहानियां
अजीब
अलग
चारित्रिक शिक्षा
PASHU
BHARAT VISHV
SAVIDHAN
SHORT MEANING
JIV VIGYAN
KHOJ
मेरी यात्रा
हरियाणवी खोवा
COMPUTER
मेरे गीत
VIDAMBNA-- APNE VICHAR
दुर्लभ तस्वीरें - सामाजिक
हरियाणवी लोक गीत
इलाज और महत्वपूर्ण निर्णय ---
विडंबना - अपने विचार
बीमा - सारी जानकारी भारत देश मे
जाट
हिन्दू--सनातन धर्म
धर्म-- अनसुनी कहानियां।
खेती किसानी


मेरी यात्रा



      जहां जहां मैंने यात्रा की वो स्थान---नरेंद्र कुमार पिता सतबीर सिंह बंदा पाना
 भाटोल जतन तहसील हांसी
          जिला हीरा (हरियाणा)

मैं मेरा नानका, माँ बाप का नानका, नाना नानी का नानका, दादा का नानका जा चुका हूँ।
अब दादी का नानका जाने का भी विचार है। 
मेरे बच्चे सोनल सक्षम पढदादा के नानके जाने वाले हैं।
 
मेरा नानका - उमरा 
माँ का नानका - भाटला 
नानी का नानका - बड़ाला
नाना का नानका - धनाना (सिर्फ गाँव में)
                              मैं उनके घर नहीं जा रहा हूँ।)
पापा का नानका - रामराय और बहन
दादा का नानका - गारनपारा
दादी का नानका - 


भिटोल जाटान, बडाला, बॉस, बकलाना, जुलाना, सहारा, रामराय, आसन, कुम्भा, थुराना, कोथ, नारनौंद, राखी गढ़ी, उचाना, नरवाना, समान, बड़छप्पर, गढ़ी, जीतपुरा, खरकड़ा, सोरखी, कुंगड़, बैनी, सीढिया, बवानी अखंड, अखंड, तालु, धनाना, चांग, ​​महम, गोदावरी, मोहना, सांगगाड़ी, जाखल, भाटला, चेनत, बरवाला, उकलाना, जाजवान, देह-मुकलान, उमरा, सुल्तानपुर, जाखली, नालवा, कृप्या, ढाया, सिवानी , राजगढ़ , साँखु , बगड़ , गिराय , हीरा , ऑक्सफोर्ड , साहिबाबाद , अग्रोहा , बहादुरगढ़ , गुडगांव , दिल्ली , भोपाल , भोजपुर , मंडीदीप , बैरागढ़ , रेली , बबी , केवला झिर , जबलपुर , श्रीनगर , सिकंदराबाद , नागपुर , बैंगलोर , कटनी , रेंगार , मैहर , अमरकंटक , मकराना , पन्ना , खजुराहो , बंदकपुर , कटनी के आस-पास के गांव, सिंहौरा, करोंदी (अनोखा ग्राम), विजयराघवगढ़, कैमूर, इलाहाबाद, बनारस, मिर्ज़ापुर, लालपुर, कानपुर, विंध्याचल, गाजियाबाद, लखनऊ, अयोध्या, फैजाबाद, बिठूर, बदरका, नेमिषारण्य, खैराबाद, काकोरी, मोहनलाल गंज, देवा सरफराज , पारिजात वृक्ष, कुंतीर, कोटवा धाम, लोधेश्वर महादेव मंदिर। बिराटनगर, मानस देवी, धरान, बिरतामोड, इटहरी, काठमांडू, तातोपानी - (चीन की सीमा), पोखरा, कोलकाता, पटना, पारा, सिवान, पारा के पास के गांव, गोपालगंज, सिधवलिया, बलिया, सागर, गिरिडीह, कहलगांव, मोकामा ,हाथीदाह , बरौनी , लखीसराय , बाढ़ , बिहार सरफराज , राजगीर , आतिथ्य , गया , बोधगया , सिलाव , तारा , गंगा , हाजीपुर , पूर्णिया , जिंक , जोगबनी , फोर्बिसगंज , दालकोला , डेहरी-ओन -सोन , आरा , बाऊर , सासाराम , ग़ाज़ीपुर, देवघर बैधनाथ धाम, जज़ीडीह, सारनाथ, रेजिन्द्र, इंदौर, त्रिपुरा, गोरखपुर, खलीलाबाद
 ,  नासिक, पेटवाड, कटहल, अम्बाला, चंडीगढ़, जीरकपुर, सनौली, लुंबिनी, मेहदावल, बखिरा, स्वाइछपार, बस्ती, राँची;गुरुग्राम, पटौदी, झज्जर, कृष्णा, दादरी , इटारसी, तिगड़ाना, चरखी, दादरी, बधवाना, बावनी स्वामी, कुंगड़, गढ़ी, मेंहदा, अलखपुरा, बोहल, सुल्तानपुर, लाडवा, दीया दादी गौरी का जन्म स्थान, बड़ी दादी गौरी का समाई स्थल, देवरी, मुजातपुर, झाखली दादी गौरी मंदिर, स्याहड़वा खांटू श्याम मंदिर मौसी का सिर यहां गिरा था, तलवंडी राणा, हरिता, बेरी, ओबालान, कागसर, पोंकरी खेड़ी, हेतमपुरा, खरेटी, खरकड़ा, सीसर, खरबला, रोशना मित्र, पंचकुला, सिंघवा, मदनहेड़ी, चेनत, भाटला, सामेन पुट्ठी, हसनगढ़, सरसौद, लिटानी, बालक, कैथल, स्टेट्सर, ज्योतिसर, पिहोवा, सीसाय, पपोसा, हिसार केंट, गंगवा, बधवाना, चरखी, दादरी, गाजियाबाद, बालसमंद, पथरेड़ी, धारूहेड़ा, सैनी, सिवानी, जयपुर, सीकर, झुंझुनूं
,निखरी, खिजुरी,जोनावास, माजरी डूडा, बरोला, देश, खंड
लजवाना कला, रिंढाना, गोहाना, बिधल, द्योग, सिसाना, बहरोड, खानक, निगानियावास, रालियावास, तावडू, सोना, भिवाड़ी, बिलासपुर, मानेसर, खेड़की दौला, चेनदानी, कनीना, पाली (हरियाणा का एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय), गढ़, कालांवाली ,काजला धाम, अग्रोहा धाम, गारनपारा, पाली (थुराना), बलियाली (बवानी समझौता), कुंभा, पनिहारी, बनभोरी,  मिर्चपुर, पुर, जीता खेड़ी, अंगनगर, हाजमपुर, सिकंदरपुर, मिलकपुर, कंडेला, ढंढेरी (Lakshya Dairy ), गगन खेड़ी, देपल, फरमाना
 
भाटोल जटान (जन्म स्थान)-- भाटोल जटान हांसी ताल हिल जिला हरियाणा राज्य भारत देश में है। यहां हैं दो ग्राम पंचायतें। भाटोल जतन और भाटोल रंगदान। भाटोल रांगड़ान में जाट, पंजाबी, कुम्हार, चमार और सेंगेंन पाए जाते हैं। दादाजी खंडेरा जी को पूजते हैं। 

गांव सबसे पहले दादा खंडेरा मंदिर के पीछे की तरफ बसा था। वहां से उजड़ कर सोरखी रोड पर बसा था, वहां एक कुआ भी है। वहां से उजड़ कर आज जहां गांव है, हांसी बास रोड पर, वहां गांव बसा। बैंड पाना एक बार यहां बसने के बाद भी उजड़ गया था, दोबारा यहां बसाव हुआ। गांव में सबसे पहले कुम्हार ग्यान बसे थे। बसा। शायद कोई अलग गांव दिया होगा। पहले भाटोल जाटान, भाटोल रांगड़ान, भाटोल खरकड़ा एक ही होते थे। कुछ बामल जाट खरकड़ा में रहने लगे और खरकड़ा नाम से गांव बन गए।

दादा खंडेरा भाटोल जाटान के बंदा पाने से थे।वो जाट थे। दो गांव में मिले थे। भटोल जातन और भाटोल रांगड़ान। औरंगज़ेब   के राज में मुसलमानों ने दादा खंडेरा जी की लकड़ी काट दी थी। लोग होते थे। दादा जी उस घटना के बाद भाटोल जतन में नहीं आए, जहां रांगड़ान में आज दादा खंडेरा मंदिर है वहीं खुले में रहने लगे। बड़ (बरगद) के पेड़ के नीचे रहने लगे। लकड़ी के टुकड़े से धर्म का नामकरण हो गया। नाम से सोमनाथ जोहड़ी बनाया गया।दादा खंडेरा का गीत भी गाया जाता है।
 

उस बरगद के पेड़ की पूजा भी की जाने लगी।उस बरगद के पेड़ के स्थान पर ही अब दूसरा बरगद का पेड़ उग आया है।
बरगद के पेड़ को सभी लोग पूज्य मानते हैं और गांव की महिलाएं बरगद के पेड़ को दादा जी का रूप मानती हैं।

दादा खंडेरा का चमत्कार -

एक चमार समाज जोहड़ में लेट्रिन के हाथ धोने लगा। उसे सांप दिखाई दिया. वो भाग गया. रास्ते में उसे टेकराम का सुरेश मिला। उन्होंने सुरेश को घटना बताई। सुरेश लाठी लेकर सांप को मारने के लिए गया। इसी तरह से चारो तरफ सांप ही दिखाई दिया और वो भाग गया।उसने इस घटना का जिक्र कर्मबीर मिस्त्री से किया।

एक दिनोद का आदमी जिसका नाम नानका खरकड़ा गांव है। 1995-96 में अपने नाना के घर आया था। भाटोल के अवलोकन पर दारू पिकर खरकड़ा की तरफ जा रहा था। दादा खंडेरा के पास उसने सोया कर ले। तब मंदिर नहीं बना था. वो जैसे ही पेशाब करने की तैयारी में था, एक बुजुर्ग आदमी आया और वो उस आदमी की धुनाई करने लगा। ज़मीन पे पटाकने लगा. आदमी वहाँ से निकला. उन्होंने ये घटना अपने नाना को बताई। नाना ने उन्हें धमाकाया और उस जगह की वैधानिक जानकारी दी। उस आदमी ने अगले ही दिन दादा खंडेरा पर गेंस ढोक मारी और माफ़ी की छूट दे दी। अब वो महीने दो महीने में दूज वाले दिन ढोक पर उतर आता है। इस घाटना का जिक्र उस आदमी ने कर्मबीर मिस्त्री से किया था। कर्मबीर मिस्त्री के दादा खंडेरा पे की दुकान थी।

यहां की भाषा हरियाणवी बोली है। यहां करीब 1000 घर है। और 3000 खेती की जमीन है। जनसंख्या 5000 के करीब है। बहुसंख्यक जाट जाति के लोग हैं। अन्य गोत्र बामल है। इसके अलावा 6-7 संप्रदाय के लोग और हैं। ब्राह्मण, खाटी, लुहार, कुम्हार, चमार, चूड़े, सामी आदि। एक व्यक्ति अंग्रेजों के घर में काला पानी जेल गया था और एक व्यक्ति आजाद हिंद फौज में था ।। दोनों दपंण पाना से संबंधित थे। यहां पर 7 तालाब हैं। चांद का जोहड़ नैनी जोहड़ नाम के दो जोहड़ हैं। चांद के जोहड़ का पानी बहुत ही सुखद होता था। उनके दूध में भी उपयोग किया जाता था। चार कुए भी थे। एक कैडर सिंह ने डेट, एक बनियो ने। दो देवदारियाँ भी हैं। एक देपैण पैना के जोहड़ पर और एक चाँद वाले जोहड़ पर। शिव मंदिर, माता रानी के दो मंदिर, हनुमान जी का मंदिर, एक बाणियों का मंदिर और एक टीला वाले बाबा (समाध वाले बाबा बिलासपुरी) के मंदिर हैं। गांव में 5 परस (थाई) है। बड़े परस में दादा खेड़ा की ढोक (पूजा) है। खेतो में नहर और राजबाया का पानी लगता है। जमीन का पानी खारा है। शमशान घाट है। मुर्दा व्यक्ति के फूल (अस्थिया) )गांधगांगा उत्तर प्रदेश में बहाये जाते हैं।वाहन के पास के मंदिर तक की जानकारी भी इसमें लिखी है।एक जानवर का अस्पताल, एक एडमियो का अस्पताल, दो प्राथमिक विद्यालय, एक 12वीं तक का स्कूल, एक राशन का सरकारी कोटा, 3 एक निजी स्कूल है। हमारे गांव में दासों के बाद एक सरकारी स्कूल खोला गया था। यहां आस-पास के 20-25 गांव के बच्चे हैं। पढ़ने आये थे, पैदल या साइकिल पर। चार गांव के बच्चे आज भी (2017) हमारे इंटर स्कूल में पढ़ें। हमारा गांव दो गांव से बिल्कुल सट्टा हुआ है। भाटोल खरकड़ा और भाटोल रंगन। तीनो गांव की पंचायत और बाकी आंकड़े अलग-अलग हैं। रंगदान में सबसे पहले मुस्लिम रहते थे। आज इस पूरे इलाके में कोई मुस्लिम नहीं है।
भाटोल में औरते बड़ ( बरगद ) के पेड़ से ओला ( परदा ) देता है।क्योंकी दादा खंडेरा जी जहां समाये थे वहां बरगद का पेड़ है।
ये गांव खाप पंचायत सतरोल में शामिल है, सतरोल में 70 गांव शामिल हैं। 

गांव में दादी हबलो थी। जिन्होंने मुग्दर उठाव का काम किया था। मुगदर के प्रतीक चिन्ह हैं जो 40/50 किलों का होता है। बाकी औरतों ने कहा कि ये मुगदर मैं उठा रही थी। तब सभी हंसने लगे। दादी को मौका दिया। तो उन्होंने सिर पर दोघड़ (दो भारी घड़े) पानी की खातिर वो मुगदर घाटी दोघड़ के ऊपर से पीछे की ओर फेंक दिया। सब लोग शर्म से लाल हो गए। शर्म के मारे सभी लोगों ने मुगदर को पारस के पास की जमीन में गाढ़ दिया जो आज तक गहा हुआ है।फिर किसी ने मुग़दर से अभ्यास नहीं किया।


गणेश को कई लोग दादा खंडेरा जी की पत्नी की तस्वीर बताते हैं। (रिसाला और सबलाल के परिवार को ठीक करें)

दादा खंड के भाई की औलाद है सारा बांगड़ पाना। (कुछ परिवार बाहर से भी जुड़े हुए हैं, छोड़ें कर) चर्चा के बारे में एक और कहावत है कि वो ना तो दादा खंडेरा की बहन थी, ना उनकी पत्नी थी, विक्की तो दादा खंडेरा के पास जो जोहरी है उसका नाम है।
 
नैनी जोहड़ी के ऊपर भैंसो के अस्पताल की तरफ पिंजोवा होता था, जहां कुम्हार ईंट पकते थे।
 
चांद के जोहड़ का घाट और तेरह दरी तेलु बनिये ने बनाई थी।
 
गनव के चारो तरफ कालेरे (खाली मैदान) होते थे।
 
बंगाड़ पाना के अबे और हीरा बनिया और एक और गांव का आदमी था, जिन्होने पाबड़ा गांव में डाला था। हीरा बनिया को बहुत ज्यादा गाने मिले थे। एक बार पूरे देपेन पाने को खतरनाक दे दी थी। सारा पाना किवाड़ बंद करके छुप गया था था.
 
महासिंह बहुत बड़ा ऐथलीट हुआ था। जिसने मिल्खा सिंह को भी हरा दिया था। किसी बड़ी प्रतियोगिता से पहले पवित्र कुछ सरदार ग्यान खतरनाक हो गए थे कि वो प्रतियोगिता से हट जाएं। उनके सामने 10000 रुपये और स्मारक राख दी गई थी और कहा गया था कि या तो खा ले या 10000 रुपये की लिफ्ट के प्रतियोगिता से बाहर हो जाये।उसने रुपये उठा लिये और मिल्खा सिंह के सामने नहीं उतरा जिससे मिल्खा सिंह जीत गये और इंटरनैशनल लेवल पर खेले।

भाटोल जतन में 4 बुजुर्गों (बूढ़े दादे) के नाम से 4 पाएं बने
1. दीपा दादा के नाम पर  दै पेण पाना।
2. सेंगा (सांगा) दादा के नाम पर सेंगा पाना।
3. बाँगा (बेंघा) दादा के नाम पर बाँड़ा पाना।
4. खाका दादा का नाम पर खड़खड़ा पाना. बाद में खरकड़ा अलग गांव बन गया। खरखड़ा को बंदा पाना में से निकला हुआ माना जाता है।
5. भाटोल रांघड़ान (छोटा भाटोल) में मुस्लिम रांघड़ान थे। जो 1947 में पाकिस्तान चला गया। पाकिस्तान से आने वाले पंजाबियों को रांघदान की जमीन बसाया गया था। कुछ सांसारिक जाति के लोग भी थे. बाद में सारी पंजाबी अपनी जमीन बेचकर आस-पास के शहरों में बस गईं। अब रांघड़ान में जाट, सांसी, कुम्हार, चमार, डूम, किसानी, पंजाबी जाति के लोग हैं।









उमरा (नांकिका) -- उमरा बहुत बड़ा गांव है। यहां हैं दो ग्राम पंचायतें। बड़ा उमरा और छोटा उमरा। ये सातबास खाप पंचायत में शामिल हैं। सातबास में सात गांव शामिल हैं। उमरा गांव में ज्यादातर जाट रहते हैं जो अमीर (गठवाले) गोत्र के हैं। यहां कुट्टी (साधुओं का चित्र 100 किल्ला जमीनें) हैं, देबी (माता का मंदिर) हैं। उमरा और सुल्तानपुर में दो शाही गांव हैं।

इस गांव को बसाने वाले उल्हाना गांव जिंदा से आए थे।
उल्हान नाम के आदमी ने उमा और उसके भाई सुल्हन ने सुल्तानपुर बसाया था। इन्ही के दो और सैनिकों ने ढढेरी और रामायण गांव बसाए थे।


हांसी--हांसी हिल्स जिला में है। यहां पृथ्वी राज चौहान जी का अंतिम किला (असीगढ़) है। ये किला तेरहवें स्मारक में फैला हुआ है। किले के बाहर पत्थर पर घोड़े के पद चिह्न हैं। जो पृथ्वी राज चौहान जी के घोड़े के बारे में बताएं। हांसी शहर में पांच गेट हैं- दिल्ली गेट (पूर्व), पर्यटक गेट (पश्चिम), गोसाई गेट (उत्तर-पश्चिम), बूढ़ी गेट (दक्षिण) और उमरा गेट (दक्षिण पश्चिम)। राजा अनंगपाल के पुत्र द्रुपद ने यहां तलवार बनाने का कारखाना लगाया था। ये तलवारें अरब देशों का उपनिवेश थीं। इस किले से 40 किलों का नियंत्रण किया गया था। यहां अंग्रेजी की बोनी थी। हांसी में अंग्रेजों की सेना का केंट और कैंटीन अभी तक भी सिल्वा के रूप में स्थापित था। जो 2014-15 में टोडा गया। अफरोज शाह तुगलक ने एक सुरीला हीरा से हांसी तक बनवाया था। हांसी कर्नल जेम्स स्केनर सीबी का मुख्यालय था। हांसी के पेड़े बहुत प्रसिद्ध हैं।

चार कुतुब--हांसी में चार कुतुब का अस्तित्व कायम है। कहते हैं इस चार कुतुब में 4 मौलवी एक ही परिवार के हो गए थे, अगर एक और मौलवी एक ही परिवार के हो जाएं तो ये बहुत पवित्र स्थान बन जाते हैं।   


हिलेरा--   हिरात शहर को चॉकलेटशाह तुगलक ने बसाया था। यहां पर हैं गूजरी महल और किले आदि ऐतिहासिक इमारतें। हिलेरा शहर हरियाणा का प्रसिद्ध और प्राचीन शहर है। ये वोट के लिए मशहूर है। यहां जिंदल का कारखाना है। यहां जिंदल अस्पताल में सम्मिलित का जाल बिछा हुआ है। यहां बड़े-बड़े अस्पताल और लैब के कारखाने हैं। ये शहर शिक्षा का भी बड़ा केंद्र है। यहां पर सेना- अर्धसैनिक बल के प्रशिक्षण शिविर और सेना का केंट भी है। यहां हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी और गुरु जम्बेश्वर यूनिवर्सिटी हैं। हिटलर का रिसर्च सेंटर भी है।  हिलेरी  भारत का सबसे बड़ा जस्ती लोहा उत्पादक  शहर  है। इसे  शहर के नाम से भी जाना जाता है। औद्योगिक पशु फार्म के लिए विशेष दस्तावेज़ है          

यहां जल आपूर्ति करने वाली घग्घर एकमात्र  नदी  है। यमुना नहर जिले से जाना जाता है। 

 

जिंद--  जींद  हरियाणा  में स्थित एक प्रमुख शहर है।  महाभारत  की कई कथाएँ जिंद से जुड़ी हुई हैं। इसके अलावा  वामन पुराणनारद पुराण  और  पद्म पुराण  में भी जीन्द का उल्लेख है। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने यहां विजय देवी की जयंती के लिए देवी का मंदिर बनवाया था। युद्ध में कौरवों को पता चला कि उन्होंने इसी मंदिर में पूजा की थी। देवी के नाम पर ही इसका नाम जयन्तपुरी रखा गया था। समय के साथ मेरा नाम जयन्तपुरी से मयंक जिन्द हो गया।


रामराय--रामराय सुपरमार्केट जिले में स्थित है। ये जाटों का गांव है जहां दुल्ल गोत्र के लोग रहते हैं। भगवान परशुराम ने अपने पूर्वजो को प्रसन्न करने के लिए रक्त के पांच कुंड (तालाब) भर दिए थे, इसलिए इसका नाम रामहरदा या संत तीर्थ रखा गया। रामहरदा से रामराय नाम पेड। परशुराम जी का यहाँ एक प्राचीन मंदिर है। भगवान कृष्ण जी और राम जी ने यादवो सहित यहां पर पान निवासियों को स्नान कराया था।  


कोथ कला -- कोथ कला क्षेत्र जिले में स्थित है। यहाँ दादा मेहर जी का निवास है। एक बार असल डेरे का बाबा शेर पर सवार इस डेरे में आ दादा जी दिवार बैठे थे, शोरूम डेरे में उनकी गाए चार रही थी। बाबा के स्वागत में दिवार चलने लगी, दादा जी बाबा से बोले शेर को ठीक मेरे पास आ जाओ। बाबा बोले शेर मालिक को खा जाओ. दादा जी ने शेर को गाय बना दिया। 

दादी गौरी जी मंदिर--दादी गौरी जी मंदिर, ढाहिया, जाखली गांव में है। अगर किसी को सांप काट ले तो दादी गौरी जी तुरंत ठीक कर देते हैं। 

 
 

 
1 हनुमान जी का मंदिर (2016)--नालून रोड पर दोपहर से 1 बजे तक एक हनुमान जी का मंदिर है जहां पहले एक पीपल का पेड़ था, पेड़ पर पेड़ लगाने वालों ने मंदिर अनुष्ठान मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति बनाई। उस मूर्ति के बगल में आप एक मूर्ति और बन गए। बिल्कुल पहले वाली जैसी मोहनलाल गंज में है प्राचीन शिव मंदिर। लखनऊ से 20 किलोमीटर दूर। राजा काशी प्रसाद ने 1960 में इसका निर्माण कराया था। बीच में बड़ा मंदिर है चारों ओर छोटे-छोटे मंदिर हैं। मंदिर के मुख पर बड़ा सा घंटा है. 


2. पारिजात पेड (जून-2016) - पूरे विश्व में ये अकेला पेड़ है। इसके पत्ते और फूल तोड़ना मन है। इस साल में सिर्फ एक बार जुलाई में फूल आते हैं। इस वृक्ष के फूल- विक्रेता और बीज आदि से दूसरे वृक्ष के फूल की बहुत कोशिश की गई। भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा इसकी सुरक्षा की जाती है। रिज़ॉर्ट से बडोसान (30 कि.मी.) बडोसेना से (12 कि.मी.) बडोसेना से 1 किलोमीटर और पारिजात (बिलोरिया) 3 किलोमीटर है। या तो लखनऊ से सफदरगंज 40 किलोमीटर, सफदरगंज से बदो 17 किलोमीटर है। इस पेड़ के बारे में यह सिद्धांत है कि महाभारत काल में माता कुंती अर्जुन के लिए इस पेड़ को स्वर्ग से लेकर आई थीं। इसके फूलों से भगवान शिव की पूजा की जाती है। एक सिद्धांत ये भी है भगवान कृष्ण के इस पेड को सत्यभामा के लिए लेकर आए थे। हरिवंश पुराण के अनुसार पारिजात पेड एक कल्प वृक्ष है जो सिर्फ स्वर्ग में पाया जाता है। हर मंगलवार को यहाँ मेला लगता है।  









बाऊर--यहाँ पर शिवलिंग की स्थापना माता कुंती ने की थी। आज भी कोई अंजान आदमी हर इस शिवलिंग की पूजा के दरवाजे पर रोज बंद होता रहता है। ये अपनी तरह का इकलौता ऐसी लिपि है। पारिजात के पत्तो से सबसे पहले इसी लिंग की पूजा की गई थी। 
 






कोटवा धाम -- जगजीवन दैस जी महाराज ने कोटक वन में तपस्या की थी। आश्रम के बगल में अंध-हरण तीर्थ है। वो विवाह शुदा बाल बच्चेदार थे। ये धाम पारिजात पेड से तीन किमी दूर है।

3.  महदेवा--अचानक  (30 किलोमीटर) जिले  में  आमेर  तहसील में स्थित पांडव कालीन लोधेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना,  पांडवों  ने अज्ञातवास के दौरान की थी, फाल्गुन का मेला यहां खास है, पूरे देश से लाखो श्रद्धालू यहां कावड़ लेकर शिवरात्रि वाले दिन   शिवलिंग  पर जल चढ़ाते हैं, यहां पर पांडव कूप भी हैं। जहां का पानी पीने से सारे रोग दूर हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि वेदव्यास मुनि की प्रेरणा से पांडवो ने रुद्र महायज्ञ का आयोजन किया था और  घाघरा  नदी  के  किनारे कुल्छत्तर नदी तट पर यह यज्ञ आयोजित किया गया था, महादेव से 2 किमी दूर नदी तट पर आज भी कुल्छत्तर में यज्ञ  कुंड के प्राचीन चिह्न विद्यमान हैं। उसी दौरान इस  शिवलिंग  की स्थापना  पांडवो  ने की थी।  वर्षावन को बारह वन कहा जाता था और यहाँ घने और विशाल जंगल थे। 4. 51 शक्ति पीठ मंदिर (2015)-------------------------------------------------------- ही बताइये, यह स्थान लखनऊ से 20 किलोमीटर दूर इकियवन शक्ति मंदिर है। जहां सभी इकइयवन शक्ति पीठ की रज स्थापित है। 51 माताओ की मूर्ति स्थापित है, सभी शक्ति पीठों के सामने भगवान शिव जिस रूप में पहरेदार के रूप में प्रतिष्ठित हैं, उसी रूप की मूर्ति यहां स्थापित की गई है। सभी शक्ति पीठों का विस्तृत विवरण यहाँ लिखा गया है। बनाया गया है तीन दीवारी मंदिर. 5. चन्द्रिका. देवी (2015)--  नाचल-नई दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग-24 पर स्थित बशी का तालाब मंदिर से 11 किमी अंदर की ओर स्थित चंद्रिका देवी तीर्थ धाम की महिमा अपरम्पार है।  तेरहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध से यहां बना है मां चंद्रिका देवी का भव्य मंदिर। प्रत्येक मास के सामान को मेला लगता था, कॉमर्स ट्रेड आज भी जारी है।  महीसागर संगम तीर्थ के पुरोहित और यज्ञशाला के आचार्य ब्राह्मण हैं। माँ के मंदिर में पूजा-पछुआ देव के स्थान (भैरवनाथ) पर अल्पायु जनजाति वर्ग के मालियों द्वारा किया जाता है। ऐसा उदाहरण दूसरी जगह मिलना मुश्किल है। स्कन्द पुराण के द्वापर युग में घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने महीसागर संगम में स्थित माँ चन्द्रिका देवी धाम की स्थापना की थी। 








 
   
बगल के तालाब में शिव जी की सबसे बड़ी मूर्ति है। चंद्रिका देवी मंदिर से थोड़ी दूर हनुमानगढ़ी है।
जुए में द्रोपदी को हारून के बाद भीम इस तीर्थ पर आये थे। उन्होंने बिना हाथ पैर धोए महीसागर संगम तीर्थ में प्रवेश किया तो बारिबीक ने उन्हें छोड़ दिया। कहा कि स्थिर जल में ऐसे प्रवेश नहीं किया जाता है। मैं रोज इसी जल से माँ को करवाता हूँ। भीम जब नहीं माना तो बर्बरीक और भीम में मलय युद्ध हुआ। भीम डाउनलोड. बर्बरीक भीम को कंधे पर उठाकर सागर में फेंके गए तो वहां शिव जी प्रकट हुए, जहां उनके सबसे बड़े देवता महीसागर संगम तीर्थ के बीच में स्थापित है। शिव जी ने बार्बीक और भीम का परिचय दिया कि तुम दोनों दादा पोता हो। और दोनों को गले मिलवाया. 







6. बदरका गांव -- बदरका गांव उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में है, जहां चंद्र शेखर आजाद के पूर्वज रहते थे। हाईवे से करीब 10 किलोमीटर अंदर हैं ये गांव। जहां मैं मार्च 2016 में गया था। सड़क बिल्कुल टूटी फूटी थी. गांव की गलिया सांकरी थी। आज़ाद जी की एक मूर्ति गाँव के मैदान में लगी थी। वैसे उनका जन्म भाभरा गांव अलीराजपुर जिला मध्य प्रदेश में हुआ था। क्योंकि उनके पिता जी वहाँ व्यवसायी बस गये थे। 

7.  बिठूर  (2016) --  बिठूर   उत्तर प्रदेश में कानपुर से 22 किमी दूर एक छोटा सा स्थान है। बिठूर में सन 1857 में स्वतंत्रता संग्राम का श्रीगणेश हुआ था।     

 ये  नानाराव  और  तात्या टोपे  जैसे लोग अपनी धरती पर रहते हैं। झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई का बचपन बीता।

यहां ब्रह्मावर्त घाट है। ब्रह्मा जी ने स्नान और यज्ञ करके सृष्टि की रचना की थी। इसका वर्णन यह भी है कि ध्रुव ने भगवान विष्णु की तपस्या की थी। महर्षि वाल्मिकी की तपोभूमि बिठूर को प्राचीन काल में ब्रह्मावर्त नाम से जाना जाता था। पौराणिक ग्रंथ रामायण की रचना के बाद पौराणिक संत वाल्मिकी ने तपस्या की थी। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा नदी के  किनारे कार्तिक मेला लगता है।       

आश्रम आश्रम के लिए यह पवित्र आश्रम का बहुत महत्व है। यही वह स्थान है जहां रामायण की रचना की गई थी। संत वाल्मिकी आश्रम में रहते थे। राम ने जब सीता का त्याग किया तो उन्होंने भी निवास स्थान बना लिया। इसी आश्रम में सीता ने लव-कुश नामक दो पुत्रों को जन्म दिया। यह आश्रम वॉलपुट पर बना है, जहां पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। इनमें स्वर्ग जाने की सीढ़ी भी कही जाती है। लव कुश ने अश्वमेघ यज्ञ को धारण किया था। लव कुश ने हनुमान जी और सुग्रीव  जी को बंधक बनाया था। जो सीता जी के दर्शन पर मुक्त हो गये  थे । 






     आश्रम आश्रम के पास एक बाबा जी ओम सितारामकार जी महाराज अपने आश्रम में तपस्या करते थे। एक दिन उन्होंने सपने में सीता जी से पूछा कि आपकी स्थापना में मैं कहां हूं? सीता जी की जिस जगह पर सीता जी की सबसे बड़ी मूर्ति स्थापित की गई है। विद्यार्थी हैं जब उनकी मूर्ति की स्थापना की जा रही थी तो बाबा जी दूर से दौड़ कर आए और चिल्लाने लगे की मेरी माता जी आ गई हैं। लोगो को उस मूर्ति के हाथ से ऐसे एहसास हुआ जैसे जिंदा आदमी का जन्म होता है। आज बाबा जी गुजरात गए हैं लेकिन आज भी वो आश्रम में घूमते हुए दिखाई दिए हैं।


ब्रह्मावर्त घाट--  इसे  बिठूर का सबसे पवित्रतम घाट माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा जी ने इस स्थान पर 99  बार   यज्ञ किया था एवं प्रतीक स्वरूप इस स्थान पर एक खूंटी गाड़  दी थी जिसे   ब्रह्मा जी की खूंटी कहा गया है।  यहां यघ करने के बाद उन्होंने अपने एक पैर से मनु और एक पैर से सतरूपा को जन्म दिया जो  दुनिया  के पहले स्त्री पुरुष थे।इस प्रकार सृष्टि की रचना हुई।  भगवान ब्रह्मा के सानिध्य गंगा नदी में पूजन-अर्चन करने के बाद यहां उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। यह भी कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने यहां एक लिंग स्थापित किया था, जिसे ब्रह्मा जी के नाम से जाना जाता है।




पाथर घाट
--  यह घाट लाल पत्थर से बना है। अद्वितीय निर्माण कला के प्रतीक इस घाट की स्थापना अवध के मंत्री मास्टर राय ने की थी। घाट के नजदीक ही एक विशाल शिव मंदिर है, जहां पर पत्थर से बने शिवलिंग स्थापित हैं।

ध्रुव टीला-ध्रुव टीला वह स्थान है, जहां बालक ध्रुव ने एक पैरोडी तपस्या की थी। ध्रुव की तपस्या से प्रसिद्ध भगवान  विष्णु  ने उन्हें एक दैवीय तारे के रूप में सदैव चमकाने का श्रृंगार दिया था। ध्रुव टीला गंगा नदी के किनारे है जो धीरे-धीरे नदी में बहता जा रहा है। अब थोड़ा सा ही टीला बचा है। 


नाना साहब स्मारक --- जहाँ कभी पेशवाओ का किला था वहाँ आज शहीद स्मारक है। किले को ब्रिटिश ने तोप से उड़ा दिया था। किले का भव्य द्वार है, किले के अंदर पार्क है, नाना साहब की बहुत बड़ी मूर्ति है। मूर्ति दर्शन में ही उनकी वीरता का एहसास होता है। तायता टोपे जो नाना साहब के सेनापति थे, उनके भव्य मूर्तिमान हैं। जब पेशवाई नासा से बिठूर आई तब ये किला बना था। झाँसी की रानी भी परछाई रही थी। नाना साहब के साथ उनका बचपना। पढ़ाई लिखाई हुई. 









इस्कॉन मंदिर - राधा कृष्ण का भव्य मंदिर है।

 
 
माधवबिहारी मंदिर (2016) -- कई भिक्षुओं में विराजित है। बहुत ही भव्य मंदिर है। इसके अंतर्गत राधा कृष्ण का मंदिर, शिव पार्वती मंदिर, गेट पर छोटे पत्थर के हाथी हैं। अर्जुन का रथ,अर्जुन-गणेश-,राधा कृष्ण की गौ माता के साथ भव्य मूर्तियाँ हैं। .एक गुफा है जहां वैष्णो देवी, मोरंगत, भैरोनाथ की गुफाएं बनाई गई हैं। गुफा में गाय का दूध पिता कृष्ण, राम-लक्ष्मण-सबरी की मुर्तिया आदि हैं। 








8. देवा शरीफ दरगाह ( 2016 ) -- लखनऊ से 40 किलोमीटर दूर है. ये वारिस अली शाह की दरगाह है. अंग्रेज देवा नामक जगह पर दिन में रेल की पटरी बिछाते थे. और वारिस अली शाह जी रात में उसे उखाड़ देते थे. कई बार ऐसा हुआ अंग्रेजो ने बाद में पटरी बिछाना बंद कर दिया. वो हैरान थे अकेला आदमी ऐसा कैसे कर सकता है.ये कहानी आम लोगों में प्रचलित है। असलियत में ये सच है या झूठ इसके बारे में कुछ कह नहीं सकते।  
 

 9. काकोरी ( 2015 ) -- अंग्रेजी राज में काकोरी लखनऊ से 20 किलोमीटर दूर है. काकोरी रेलवे स्टेशन से क्रांतिकारी रेल में बैठे और थोड़ी दूर जंगल में जाकर रेल  को रोक कर सरकारी खजाना लूट लिया. आज वहां शहीद स्मारक  है जहाँ पर हैं सभी क्रांतिकारियों की फोटो लगी हैं. काकोरी स्टेशन पर भी शहीदों की मूर्ति स्थापित है. लखनऊ में काकोरी शहीद पार्क है जहाँ शहीदों की मूर्ति और उनका विवरण है, पार्क में अमर जवान ज्योति है. 

 

10. नैमिषारण्य ( 2015-16 ) -- नैमिषारण्य एक घना जंगल ( अरण्य ) होता था। यहाँ पर ऋषि शौनक आदि 88000 ऋषियों ने तपस्या की थी।नैमिषारण्य गोमती नदी के किनारे है.लखनऊ से करीब 100 किलोमीटर दूर सीतापुर रोड  पर सिधौली से 40 किलोमीटर दूर है.सीतापुर से 25 किलोमीटर दूर है। भगवान राम यघ करने नेमिसार में आये थे. यघ के बाद उन्होंने सीता जी के नाम पर सीतापुर की जमीन ब्राह्मणो को दान दी थी.  'नैमिष' की व्युत्पत्ति  'निमिष' शब्द से बताई जाती है. 
 नैमिषारण्य का प्राचीनतम उल्लेख वाल्मीकि रामायण के युद्ध-काण्ड में प्राप्त होता है। लव और कुश ने गोमती नदी के किनारे राम के अश्वमेध यज्ञ में सात दिनों तक वाल्मीकि रचित काव्य का गायन किया। 
नैमिषारण्य भारत का ही नही विश्व का सनातन आदि तीर्थ हैं।भारत के समस्त तीर्थ,देवी देवता एंव ऋषि मर्हिष
नैमिषारण्य के 84 कोस मण्डल में विराजमान है। कुरूक्षेत्र युद्ध के पश्चात्‌ पांडव ने दोपदी सहित नैमिषारण्य में 12 वर्षो
तक सोमावती अमावस्या के लिए तपस्या की थी, सोमावती अमास्या न पड़ने पर पांडव ने श्राप दिया तुम कलयुग में
बार-बार पडोगी.जहां पर पॉडव ने तपस्या की वही स्थान आज श्रीहनुमान गढी़,पांडव किला के नाम से विख्यात हैं।भीम के पौत्र बर्वरीक जो श्रीश्याम प्रभु खाटूवाले के नाम से विखयात हैं, जिन्होंने अपना शीश भगवान श्रीकृष्ण को महाभारत युद्ध के समय दान दे दिया था, उनका भी यहाँ भव्य मन्दिर हैं.

यहाँ सात तीर्थ है- चक्र तीर्थ , गोदावरी तीर्थ , मिश्रिख तीर्थ ( दधीचि कुंड ), काशी तीर्थ , पंच प्रयाग तीर्थ ,हवन कुंड तीर्थ और हत्याहरण तीर्थ (संडीला ) .चक्र तीर्थ में गौ घाट है ये वही गौमाता है जिसने दधीचि ऋषि का हड्डियां दान करने से पहले शरीर चाट कर पवित्र किया था और जमीन  में समा गई थी.मान्यता है कि वो गौ माता आज भी चरने के लिए यहाँ आती है।  



हत्याहरण, देवदेवेश्वर, रुद्रावर्त,सीताकुण्ड,कुशावर्त, ब्रह्मकुंड आदि अन्य महत्वपूर्ण तीर्थ है। ब्रह्मावर्त-
सूखा सरोवर, गंगोत्तरी, पुष्कर- सरोवर आदि तीर्थ है.

चक्र तीर्थ --- ऋषि शौनक आदि 88000 ऋषियों ने भगवान ब्रह्मा से यज्ञ और तपस्या करने के लिए उपयुक्त स्थान की मांग की थी तो ब्रह्मा जी ने एक चक्र निकाला था और कहा था कि ये चक्र पृथ्वी पर जहां गिरेगा वही यज्ञ और तपस्या करने के लिए उपयुक्त होगा . वो चक्र चक्रतीर्थ में ज्ञान गिरा था। यंहा भूमि से एक कुंड में पानी रहता है। सत्य है भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से इस तीर्थ का निर्माण हुआ था। नैमिषारण्य घने जंगलों का स्थान था, यहां ऋषि मुनि तपस्या करते थे। इस वन में कई राक्षस रहते थे जो ऋषियों को परेशान करते थे। इसलिए ऋषियों की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने चक्र से राक्षसों का नाश किया था और उस चक्र से यहां धरती पर एक कुंड बन गया था जिसमें चक्र तीर्थ बने थे। नैमिषारण्य में भगवान राम और भगवान कृष्ण दोनों आये थे।
 




भूतेश्वर नाथ मंदिर --- यह मंदिर चक्र तीर्थ तीर्थ में शामिल है। इसमें 88000 ऋषियों और 33 करोड़ देवताओं की स्थापना हुई थी। ये शिवलिंग एक मुखी है. शिव लिंग सुबह बाल के रूप में, दो को रोष के रूप में और शाम को भक्ति के रूप में दिखाई देता है। इस शिवलिंग के दिन में तीन रूप देखने को मिलते हैं।
 

जानकी कुंड---वाल्मीकि रामायण के अनुसार यहां सीता माता पृथ्वी की गोद में समा गई थी। यह जानकी कुंड माता सीता की हमें याद दिलाता है।

सुतगड्डी -- महर्षि सूत जी ने शौनक आदि 88000 ऋषियों और अन्य संतों को पुराणों का उपदेश दिया।

ललिता देवी मंदिर--पुराणों में नैमिषारण्य में लिगं धारिणी नामक देवी का वर्णन है।
नैमिषारण्य में ललिता देवी की 105 देवी प्रार्थनाओं का वर्णन है

को लेकर इधर-उधर विचरण करने लगे।विष्णु भगवान ने देवी के
शरीर को विखंडित कर दिया।सती के शरीर के 105 टुकड़े कर डाले इसी शरीर के अंग जिन स्थान पर स्थापित होकर वहां
पर देवी शक्ति पीठ बन गईं। नैमिषारण्य में भी शरीर का हृदय गिरा दिया गया था, यहां पर भी सिद्धपीठ के नाम से विख्यात हुआ।
जब ऋषियों ने भगवान ब्रह्मा से प्रार्थना की कि इस अरण्य में उनकी रक्षा के लिए कोई उपाय किया जाए तो ब्रह्मा जी ने ललिता देवी
को ये काम नहीं दिया। ललिता देवी सत्ती के हृदय से महिलाओं के रूप में परिवर्तित हुई और ऋषियों की रक्षा की। इसी रूप में
नैमिषारण्य में स्थापित हुई ब्रह्मा जी के आदेश पर ललिता देवी ने देवासुरबेट में असुरो का नाश किया।
इसका वर्णन पूर्ण शक्ति पीठ द्वारा निर्मित ग्रंथ (गायओ का पवित्र ग्रंथ) में भी है।


हनुमान गढी-- हनुमान गढी में हनुमान जी की 21 हाँथ की दक्षिणा विमुख पत्थर की बड़ी मूर्ति है.जिस पर एक कंधे पर लक्ष्मण जी,
दुसरे कंधे पर श्रीराम जी बैठे हैं. अहिरावण को मIरने के बाद हनुमान जी यही पर पाताल से निकले थे।कहते है ये मूर्ति पहले
हवा में लटकी हुई थी. बाद में उसके निचे मंदिर बनाया गया हैं. ये मूर्ति पहाड़ पर धरती से 20- 25 फ़ीट ऊपर है.
मान्यता है कि एक दिन लंका में राम जी की सेना में सुबह हाहाकार मच गया।क्योंकि राम जी और लक्ष्मण जी गायब थे। हनुमान जी उस समय
पहरे पर थे उन्होंने कहा कि, रात्रि के समय केवल विभीषण जी आये थे, विभीषण ने कहा कि मैं तो शाम से यही था।
विभीषण जी जान गये मेरा रूप केवल पाताल का राजा अहिरावण ही बना सकता है ,वही राम और लक्ष्मण को चुरा ले गया।
वहाँ श्री पवन पुत्र ही जा सकते है। हनुमान जी तुरन्त पाताल पहुंचे। वहाँ मकरध्वज द्वार पर थे उनसे युद्ध करके उनको
अपनी पूंछ में बाँध दिया और अदंर प्रविष्ट हो गये। तभी देवी जी अर्न्तध्यान हो गयी तथी हनुमान जी देवी के स्थान पर विराजमान हो गये।
और बड़ी ही तीव्रगति से गरजने लगे. अहिरावण ने समझा कि आज देवी बहुत ही प्रसत्र है। उसने देवी की
विधिवत पूजा प्रारम्भ की। पूजा समाप्ति के बाद  उसने राम और लक्ष्मण को मंगवाया ।
काल के गाल में पडा हुआ अंहकारी असुर बोला अब कुछ ही देर में तुम दोंनों भाई देवी
की भेंट चढा दिये जाओगे। अपने इष्ट को याद कर लो। प्रभु को मौन देखकर लक्ष्मण जी
अत्यन्त विस्मित थे।अंजनी नंदन ने इतनी तीव्र गति से गर्जना की, ऐसा लगा मानो आकाश फट जायेगा।
पाताल काँप गया अहिरावण की आँखे बन्द हो गयी. इतनी ही देर में हनुमान जी ने अहिरावण से तलवार
छीनकर एक ही वार में अहिरावण का सर अलग कर दिया।श्री राम चन्द्र जी ने हनुमान पुत्र मकरध्वज को
पाताल का राज्य दे दिया और हनुमान जी राम लक्ष्मण को कधों पर बिठाकर पातालपुरी से नैमिषारण्य में प्रकट हुए।

हनुमान गढी पर ही पांडवों का बनाया हुआ द्वापर युग का कुआ है। इस कूप का उल्लख पुराणों में भी आता है।
पदम पुराण में यज्ञ बाराह कूप का उल्लेख मिलता है। पांडव कुरुक्षेत्र युद्ध के पश्चात नेमिषारण्य  में तपस्या
हेतु आये! उसी समय पांडवों ने रात भर में इस कूप का निर्माण किया।मान्यता है कि महा-बारुणी
पर्व पर कुछ क्षण के लिए इस कूप के जल का दूध बन जाता है।


राजा विराट का किला-- यहाँ पर पांडव वनवास के समय रहे थे. राजा विराट ने ये किला उन्हें दे दिया था.
चक्रतीर्थ के दक्षिण पश्चिम की ओर, आप गोमती नदी के किनारे पर पांडव किला देख सकते हैं। भगवान कृष्ण और पांडवो की सुंदर प्रतिमाओं को यहां देखा जा सकता है ।
 


दशाश्वमेघ घाट ---- भगवान राम ने जहाँ से अश्व मेघ यघ छोड़ा था वो जगह भी हनुमान गढ़ी के पास है जहाँ एक छोटा सा
मंदिर बना हुआ है.गोमती नदी के किनारे श्री रामचन्द्र जी ने दशम् अश्वमेघ यज्ञ किया था । जिसके कारण इसका नाम
दशाश्वमेघ घाट पड़ा यहाँ पर राम़, लक्ष्मण, जानकी एवं सिद्धेश्वर महादेव जी का अति प्राचीन मन्दिर हैं ।
लव कुश ने यहीं पर अशवमेघ यघ  के समय रामायण का पाठ किया था. 


पुराण मानव माँ आनन्दमयी आश्रम -- यहाँ पर 4-वेद,18- पुराण,6-शास्त्र, अन्य उपनिषद रखे हैं। ये विश्व का एक मात्र मंदिर हैं
जहाँ वेद-पुराण रखे हुए हैं.यहाँ माँ आनन्दमयी आश्रम है,अखण्ड ज्योति है.
यहाँ पर भगवान की मूर्ति है जिसे पुराण मानव कहते हैं। ये भगवान विष्णु का एक रूप है. सारे पुराण भगवान विष्णु के रूप हैं।

 

पंच प्रयाग --महर्षि दधिचि को स्नान कराने हेतु देवताओं के द्वारा समस्त तीर्थों को नैमिषारण्य में बुलाये जाने पर
प्रयाग राज नहीं आयें, क्यों कि वह समस्त तीर्थों के राजा थे, इस कारण वश पाँच तीर्थों का जल मिश्रण कर पंचप्रयाग
तीर्थ देवताओं द्वारा निर्मित किया गया| ये ललिता देवी मंदिर के सामने है. 

 

व्यास गढ़ी -- यही पर वेद व्यास जी ने 6 शास्त्र, 18 पुराण ,चार वेद, सत्यनारायण कथा लिखी थी .
यहाँ पर एक वट वृक्ष है और ऋषियों के मंदिर हैं. ये वट वृक्ष  5000 वर्ष पुराना है इसके नीचे व्यास जी, 
शांडिल्य जी, मुद्गल जी, सुकेतु जी, भृगु जी ने  साधना की थी. यहाँ परिक्रम करने से सारे रोग दूर होते हैं. 
 

मनु - सतरूपा मंदिर -- सृष्टि का निर्माण करने के बाद  ब्रह्मा जी ने सबसे पहले मनु - सतरूपा जी को ही इंसान के रूप में उत्पन्न किया था। वो दुनिया के पहले इंसान थे।ब्रह्मा जी ने बिठूर में गंगा जी के किनारे 99 बार यघ करने के बाद मनु जी (पुरुष ) और सतरूपा जी (औरत ) को उत्पन्न करके स्रष्टि की रचना की थी. ये मंदिर व्यास गढ़ी के पास है यहाँ पर मनु सतरूपा जी ने 23000 साल तपस्या की थी.उन्होंने ब्रह्म जी (निरंकार भगवान) की तपश्या की थी.तब ब्रह्म ने उन्हें दर्शन दिए और दोनों से वर मांगने को कहा।मनु  ने भगवान को अपने बेटे के रूप में पाने की इच्छा जाहिर की।तब ब्रह्म जी ने सतरूपा से उनका विचार पूछा। उन्होंने कहा जो मेरे पत्ती ने माँगा है वही मेरी भी इच्छा है.   
भगवान ने उन्हें उनकी इच्छा पूरी करने का वचन  दिया।
त्रेता युग में मनु जी ने दशरथ जी और सतरूपा जी ने कौशल्या जी के रूप में जन्म लिया.और उनके यहाँ भगवान विष्णु
ने राम जी के रूप में जन्म लिया.  
 

मिश्रिख --  मिश्रिख नैमिषारण्य से 10 किलोमीटर दूर हैं . यहाँ पर दधीचि ऋषि हुए थे . दधीचि जी वैदिक ऋषि थे।
इनके जन्म के संबंध में अनेक कथाएँ हैं। ये अथर्व के पुत्र हैं। 
पुराणों में इनकी माता का नाम 'शांति' मिलता है। इन्हीं की हड्डियों से बने धनुष द्वारा इंद्र ने वृत्रासुर का संहार किया था।
कुछ लोग आधुनिक मिश्रिख तीर्थ (
सीतापुर)
को इनकी तपोभूमि बताते हैं। इनका प्राचीन नाम 'दध्यंच' कहा जाता है।
देवासुर संग्राम विजय के बाद देवताओ ने अपने
शस्त्र दधीचि ऋषि के पास छोड़ दिए थे। जब कई साल तक देवता उन्हें लेने नहीं आये तो दधीचि 
जी ने वो सारे शस्त्र अपने 
शरीर में समाहित कर लिए। जब असुरो का आतंक बढ़ा और देवता अपने अस्त्र लेने आये तो उन्हें मालूम हुआ.
तब सभी देवताओ ने ऋषि से उनकी हड्डियां अस्त्र बनIने के लिए 
दान में मांगी
. ऋषि ने 84 कोष में पड़ने वाले सारे तीर्थ देखकर 
अपनी हड्डियां दान देने की इच्छा जाहिर की. तब भगवान शंकर ने अपने सेनापति वीरभद्र को इस काम के लिए नियुक्त किया।
वीरभद्र ने सभी तीर्थो की यात्रा करवाई और उनका परिचय करवाया। खुश होकर दधीचि ऋषि ने वीर भद्र  को वरदान दिया की
तुम सदा मेरे आश्रम में विराजमान रहोगे और जब तक लोग तुम्हारी परिकर्मा नहीं करेगे उन्हें किसी तीर्थ का फल नहीं मिलेगा।
 सारे तीर्थो की यात्रा करने के बाद 
ऋषि ने अपने शरीर पर नमक  का लेप लगाकर गौ माता से शरीर को चटवाया और शुद्ध हुए।आश्रम में बने कुंड में देवताओ ने साढ़े तीन करोड़ तीर्थो का जल लाकर डाला, फिर आश्रम के कुंड के पानी में ऋषि ने स्नान किया
फिर पांच प्रयाग तीर्थ  में स्नान करने के बाद अपनी हड्डियों का दान दिया। उनकी हड्डियों से चार शस्त्र बनाये गए।प्रथम शस्त्र गांडीव भगवान अग्नि देव के लिए , दूसरा शस्त्र पिनाक शिव जी के लिए , तृतीय शस्त्र सारंग विष्णु भगवान के लिए बनाया गया, चतुर्थ शस्त्र वज्र भगवान इन्द्र के लिए बनाया गया.









 

11. 
खैराबाद (2016)-- सीतापुर के खैराबाद में टाट--दरी बनाई जाती है. जो विदेशो में सप्लाई होती हैं.
 

12. अयोध्या (2015-2016) -- अयोध्या ( उत्तर प्रदेश - भारत ) भगवान श्रीराम जी का जन्म स्थान है। ये हिन्दुओं का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है।यह नगर 21 बार उजड़कर दोबारा बस चूका है।आखिरी बार इस नगर को वीर चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य जी ने बसाया था।इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर जी ने मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया था। उन्होंने सिर्फ अयोध्या ही नहीं पुरे देश के प्राचीन मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया था जो मुस्लिमों द्वारा तोड़ दिए गए थे। सबसे पहले अयोध्या को मनु जी ( दुनिया के पहले इंसान ) ने बसाया था।

यह नगर सरयू नदी (घाघरा ) के किनारे बसा है. कहावत है कि एक काला  बाबा बनारस से रोज़
काले घोड़े पर तेज गति से अयोध्या आता था। सीधा घोड़े समेत सरयू नदी में छलांग लगा देता था।

 बाबा जी नदी से बाहर निकलते थे तो घोड़ा और बाबा जी दोनों सफेद रंग के हो जाते थे।उस बाबा जी को कोई आम आदमी पकड़ नहीं सकता था.

एक दिन  विक्रमादित्य जी ने ये नज़ारा देखा और बाबा जी का पीछा किया। बाबा जी को उन्होंने पकड़ कर रहस्य पूछा।

बाबा ने विक्रमादित्य को तुरंत पहचान लिया. उन्होंने राजा को अयोध्या के बारे में बताया और अयोध्या को
दोबारा बसाने का अनुरोध किया. तब विक्रमादित्य ने अयोध्या को बसाया.प्राचीन काल में इसे 'कौशल देश'
कहा जाता था।वेदों में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। यह नगरी सरयू के तट पर बारह योजन लम्बाई ,तीन योजन चौड़ाई में बसी थी । कई शताब्दी तक यह नगर
सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर है।
यहाँ पर अनगिनत मंदिर हैं और अखाड़े हैं ।
 बौद्ध और जैन धर्म के लोग भी इसे अपना धार्मिक स्थल मानते हैं। जैन धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं। जैन मत के अनुसार यहां आदिनाथ सहित पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था।


 

हनुमानगढ़ी मंदिर के पास ही जामवंत किला, सुग्रीव किला और रामलला का भव्य महल भी था. अयोध्या में राम जानकी मंदिर , राधा कृष्णा मंदिर ,दशरथ महल जहाँ दशरथ जी दरबार लगाते थे. दशरथ समाधि जहाँ दशरथ जी की समाधि है. भरत महल. लव कुश महल . श्री  मनीराम  दास  छावनी, राजा मंदिर , राम कथा पार्क , हनुमान गुफा , तुलसी स्मारक संग्राहलय , तुलसी उद्यान , अंतर्राष्ट्रीय संग्राहलय स्थित हैं।







अयोध्या के चार तीर्थ ----


राम जन्म भूमि  तीर्थ -- जिस जगह पर राम जी (भगवान विष्णु जी का 7 वां अवतार ) का जन्म हुआ था वहां पर राम मंदिर था 

 जिसे तोड़कर बाबर ने बाबरी मस्जिद  बनवाई थी। मंदिर के अवशेष बाबर ने मस्जिद के अंदर ही दफना दिए थे.
 1992 में  कार सेवको ने  बाबरी मस्जिद तोड़कर वहां राम -सीता की मुर्तिया स्थापित कर दी. जब मस्जिद तोड़ी गई
तो पुराने मंदिर के अवशेष वहीँ पर मिले। आज वहां पर राम सीता की मुर्तिया हैं और उनके उप्पर तिरपाल  की छत है।
 चारो और बेरिकेटिंग है, पुलिस  है.पूरी अयोध्या छावनी  में तब्दील है. तीन जगह चेकिंग के बाद ही मंदिर तक पहुंचा जा  सकता है.  
नया मंदिर बनाने के लिए साधुओं ने पत्थरों का निर्माण कर लिया है हूबहू पुराने मंदिर जैसा नखशा  बना लिया है.
कोर्ट की रोक हटते ही मंदिर निर्माण शुरू हो जाएगा. आस पास राजा  दसरथ के पुराने महल हैं. जैसे कैकई महल,
लव कुश मंदिर,शीश महल।  शीश महल में हनुमान  जी  की  लेटी हुई मूर्ति है. उस मूर्ति की परिक्रमा करनी होती है.


भरत कुंड (कूप ) 
तीर्थ --- अयोध्या से 20 किलोमीटर दूर  नंदीग्राम नाम की जगह पर भरत ने जमीन के 8-10 फ़ीट निचे तपस्या की थी.

जब राम जी को वनवास हुआ और भरत को राजा बनाया गया तब उन्होंने इसी जगह पर 14 साल तपस्या  की और 

यही से राज चलाया।  सिहासन पर राम जी की पादुकाएं रखी गई. आज भी वहां पादुकाएं हैं, असली हैं या नकली पता नहीं।
 जमीं के नीचे भरत जी की बड़ी अच्छी मूर्ति है. ऊपर मंदिर है. इसी जगह पर राम जी और भरत जी का  
वनवास के बाद मिलन  हुआ था. यही पर भरत जी और हनुमान जी का मिलन हुआ था.   
जब हनुमान जी संजीवनी पर्वत लेकर भरत कूप के ऊपर से जा रहे थे तो भरत जी ने उन्हें बाण मारकर नीचे गिरा दिया।
नीचे गिरते हुए उनके मुँह से राम राम के शब्द निकले ।जिससे भरत जी को अहसास हुआ कि वो राम भक्त है।
उन्हें राम जी की पादुका से पानी पिलाया गया जिससे हनुमान जी होश में आ गए।

सूरज कुंड 
तीर्थ -- सूरज कुंड अयोध्या से 10 किलोमीटर दूर भरत कूप के रास्ते पर दर्शन नगर में  स्थित है. 

 बड़ा तालाब , चारो और बॉउंड्री और घाट बनाए गए हैं. इसे राजा दर्शन सिंह ने बनवाया था.
तालाब  के किनारे  सूरज भगवान का मंदिर है. 

गुप्तार घाट 
तीर्थ -- गुप्तार घाट फैज़ाबाद में छावनी एरिया में है.इसे राजा दर्शन सिंह ने 19 वीं शताब्दी में बनवाया था.  

यहीं पर राम जी ने जल समाधि ली थी. ये सरयू नदी के किनारे पर है. जहाँ उन्होंने अपनी पादुकाएं
निकाली थी वहां पादुका स्थान है.
राम जी का  मन्दिर है. घाट पर और भी मंदिर हैं. 

 

एक धर्मशाला और मंदिर परिसर है जिसका बहुत बड़ा भारी दरवाजा है। फ़ैज़ाबाद की स्थापना अवध के पहले नबाव सादत अली ख़ाँ ने 1730 में की थी और उन्होंने इसे अपनी राजधानी बनाया, लेकिन वह यहाँ बहुत कम समय व्यतीत कर पाए।
तीसरे नवाब शुजाउद्दौला यहाँ रहते थे और उन्होंने नदी के तट 1764 में एक दुर्ग 
मोती महल (खँडहर ) का निर्माण करवाया था; उनका और उनकी बेगम का मक़बरा इसी शहर में स्थित है। 1775 में
अवध की राजधानी को लखनऊ ले जाया गया। 19वीं शताब्दी में फ़ैज़ाबाद का पतन हो गया। 

 


अन्य स्थान --

रामघाट -- सरयू नदी के तट पर है. यहाँ अनेको मंदिर हैं. जिनमे आज लोग रह रहे हैं.
एक तरह से उनका कब्ज़ा हो गया है. स्वर्ग द्वार ,नागेश्वर नाथ मंदिर, सीता घाट भी यहीं पर है. 

रामकोट - शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थित रामकोट अयोध्या में पूजा का प्रमुख स्थान है। यहां भारत
और विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का साल भर आना जाना लगा रहता है। मार्च-अप्रैल में मनाया
जाने वाला रामनवमी पर्व यहां बड़े जोश और धूमधाम से मनाया जाता है।

त्रेता के ठाकुर -- यह मंदिर उस स्थान पर बना है जहां भगवान राम ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था।
लगभग 300 साल पहले कुल्लू के राजा ने यहां एक नया मंदिर बनवाया। इस मंदिर में इंदौर की महारानी 
अहिल्याबाई होल्कर ने 1784 में और सुधार किया। उसी समय मंदिर से सटे हुए घाट भी बनवाए गए।



हनुमान गढ़ी ---  यह मंदिर अयोध्या में सबसे ऊँचा है। मंदिर में पहुँचने के लिए 76 सीढ़ियां बनाई गयी हैं।इस मन्दिर मे विराजमान हनुमान जी को वर्तमान अयोध्या का राजा माना जाता है ।
कहते हैं कि हनुमान जी यहाँ एक गुफा में रहते थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे।मुख्य मंदिर में बाल हनुमान के साथ अंजनि माता  की प्रतिमा है। यहाँ हनुमान जी की ६ इंच की प्रतिमा है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस मंदिर में आने से उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।मान्यता है कि भगवान राम जब लंका जीतकर अयोध्या लौटे, तो उन्होंने अपने प्रिय भक्त हनुमान को रहने के लिए यही स्थान दिया. साथ ही यह अधिकार
भी दिया कि जो भी भक्त यहां दर्शन के लिए अयोध्या आएगा उसे पहले हनुमान 
जी का दर्शन-पूजन करना होगा.

जब राम जी साकेत गए तब हनुमान जी का राज्याभिषेक हुआ था और वो अयोध्या के राजा बने।उन्हें  अयोध्या में राजा हनुमान कहा जाता है।

कहते हैं कि एक बार नवाब का पुत्र बहुत बीमार पड़ गया. पुत्र के प्राण बचने के कोई आसार न देखकर नवाब ने
बजरंगबली के चरणों में माथा टेक दिया. संकटमोचन ने नवाब के पुत्र के प्राणों को वापस लौटा दिया,
जिसके बाद नवाब ने न केवल हनुमानगढ़ी मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया, बल्कि ताम्रपत्र पर लिखकर यह
घोषणा की कि कभी भी इस मंदिर पर किसी राजा या शासक का कोई अधिकार नहीं रहेगा और
न ही यहां के चढ़ावे से कोई टैक्‍स वसूल किया जाएगा.

 
 

  



नागेश्वर नाथ मंदिर --- 
नागेश्वर नाथ मंदिर को भगवान राम के पुत्र कुश ने बनवाया था।
माना जाता है जब कुश सरयू नदी में नहा रहे थे तो उनका बाजूबंद खो गया था। बाजूबंद एक नाग कन्या
को मिला जिसे कुश से प्रेम हो गया। वह शिवभक्त थी। कुश ने उसके लिए यह मंदिर बनवाया।
कहा जाता है कि यही एकमात्र मंदिर है जो विक्रमादित्य जी के काल के पहले से है। शिवरात्रि पर्व यहां
बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।


कनक भवन --- हनुमान गढ़ी के निकट स्थित कनक भवन अयोध्या का एक महत्वपूर्ण मंदिर है।
इस मंदिर में सीता जी और राम जी की मूर्तियां सोने के मुकुट पहने हुए हैं। इसी कारण बहुत बार
इस मंदिर को सोने का घर भी कहा जाता है। यह मंदिर टीकमगढ़ की रानी ने 1891 में बनवाया था।
कैकई द्वारा ये महल सीता जी को उपहार स्वरुप दिया गया था जब वो पहली बार ससुराल आयी थी। 


 

कलकत्ता किला -- जिसे राजा दर्शन सिंह ने बनवाया था, बड़ा किला है. उसके अंदर शिव जी का प्राचीन मंदिर है.

तुलसी दास मंदिर --- तुलसीदास जी का नया मंदिर बना है. कहते है की इसी जगह पर उन्होंने रामचरितमानस को लिखा
था. उसी के बगल में बड़े हनुमान जी का मंदिर है जहाँ हनुमान जी की बड़ी मूर्ति स्थापित है.
यहाँ रामसेतु का पत्थर भी है जो पानी के ऊपर तैर रहा है. 

सीता रसोई --- जहाँ सभी भक्तो को मुफ्त खाना खिलाया जाता है. ये रसोई कभी बंद नहीं होती.
सीता रसोई वास्‍तव में एक शाही रसोई घर नहीं बल्कि एक मंदिर है.

 


यज्ञशाला --- सिंहेश्वर (मधेपुरा बिहार) में राजा दशमीर में पुत्र प्राप्ति यज्ञ श्रृंगी ऋषि द्वारा किया गया था। उसी का प्रतिरूप यहां यज्ञशाला अयोध्या में बनाया गया है। यहां यज्ञ में ऋषियों की, दशरथ जी की, उनकी सभी राणियों की मुर्तिया शामिल हैं। अग्नि देव के भी आदर्श हैं। राम नवमी को यहां यज्ञ होता है, यहां पूरे साल उनके राख की पुड़िया मनाई जाती है। जिससे उन्हें संत या पुत्रप्राप्त हो। बेटे के बाद लोग यहां पर घंटा बांध कर जाते हैं। यज्ञ के पवित्र राख का उपयोग करने का उपाय-- मंगलवार के दिन पति-पत्नी को सुबह ना धोकर सूर्य को जल चढ़ा कर (सूर्य नमस्कार) दो तुलसी के पत्तों पर थोड़ी गहरी राख का उपयोग करना एक पत्ता खाना है। 24 घंटे अन्न खाना नहीं है. 

मणि पर्वत---जब हनुमान जी लक्ष्मण जी को बचाने के लिए संजीवनी बूटी लेकर जा रहे थे तो उन्होंने इसी स्थान पर थोड़ी देर के लिए दर्शन किया और उनके कुछ हिस्से को छूट दी गई। जिसे मणि पर्वत कहा जाता है। छोटा सा पहाड़ के ऊपर मंदिर है.  
दूसरी बात यह है कि राजा नानक जी ने सीता जी का कन्यादान किया था। और उन्होंने इतनी मणि दान में दी जिससे एक पर्वत बन गया। मणि पर्वत कहा गया। पहले इसका नाम अशोक पर्वत था। यही पर सीता जी ने सावन में कन्यादान किया था। राम जी के साथ झूला झूला था।

13. लखनऊ -- (जून - 2015) -- यह शहर कभी अवध के नवाबों की राजधानी था आज उत्तर प्रदेश की राजधानी है। ये शहर के नवाबों, चिकन की कढ़ाही, कब्बाब, दशहरी आम,  नहरी कुलचे,  मुजरा  के लिए जाना जाता है। मलीहाबादी दशहरी आम दशहरी नामक गांव में होता है। पूरे नोएडा जिले में आम होते हैं। और मलिहाबाद क्षेत्र में दशहरी आम होता है। यहाँ आम शोध संस्थान भी है। रेत वीर्य केंद्र भी है. राम चन्द्र जी ने श्रीलंका विजय के बाद लक्ष्मण जी को तोहफे में दिया था। लखनऊ को लखनपुर, लक्ष्मण पुर, लक्ष्मणपुर,  लक्ष्मणावती  के नाम से जाना जाता था। इस क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। शहर के बीच से अलास्का नदी निकलती है। लखनऊ के केसरबाग (ओलाना) में नवाबों के महल, मकबरे, मस्जिद और बड़े बड़े गेट बने हैं।  बड़ा इमामबाड़ा--  बड़ा इमामबाड़ा  केसरबाग में है। इस इमामबाड़े का निर्माण आसफउद्दौला ने 1784 में राहत परियोजनाओं के लिए किया था। यह विशाल गुंबदनुमा हॉल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। ये हॉल दुनिया का सबसे बड़ा हॉल है जो बिना किसी पिलर के खड़ा है। इस इमारत के पुरा के बाद भी नवाब ने इसकी साज सज्जा पर ही चार से पांच लाख रुपये प्रति व्यक्ति खर्च कर दिया था। इस इमामबाड़े में एक आइसाफी मस्जिद भी है जहां गैर मुस्लिम लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं है। मस्जिद परिसर के आंगन में दो मीनारें हैं। इमामबाड़े के सामने नौबत खाना है। पास में ही वह शीशम महल था जो अब ध्वस्त है। संग्रहालय है जहां पर नवाबों से जुड़ी रिकॉर्ड्स की सूची दी गई है। संग्रहालय के पास एक घंटा घर है। जो चुभता है.   






शाही बावली -- इसका निर्माण नवाब आसिफ-उद दौल्ला ने 1784-1794 में  करवाया था. अकाल के समय यहाँ से भी जनता को मदद दी गयी. ये बावली नदी से जुडी हुई है. इसलिए इसमें पानी बना रहता है. ये एक बहुमंजिला ईमारत है. 
ऊपर से पानी में देखने पर रंगीन तस्वीर दिखाई देती थी 
. ये बड़े इमामबाड़े के अंदर ही है. ये पानी स्टोर करने के लिए बनाई गई थी. और इसमें रॉयल गैस्ट हाउस बनाए गए थे . 


भूल भुलैया -- भूल भुलैया बड़े इमामबाड़े के ऊपर  है. ये तीन मंजिला है, और 489 गेट है. इसमें संकरी गलिया है. सारे रास्ते सारे गेट आपस में जुड़े हुए हैं. यहाँ आदमी रास्ता भूल जाता है. इसकी दीवारे खोखली हैं. एक जगह अगर हल्की सी भी आवाज की जाए तो वो दूसरे कोने पे सुनाई देती है.यहाँ तक कि अगर माचिस की तिल्ली जलाई जाए तो उसकी आवाज बिलकुल दुसरे छोर पर खड़े व्यक्ति को सुनाई देती है.


छोटा इमामबाड़ा --- छोटा इमामबाड़ा मुहम्मद  अली  शाह ने बनवाया था, यहाँ उनका और उनके परिवार का मकबरा है. आस पास और भी कई मकबरे और इमामबाड़े है. 

 

बारह दरी -- एक बारह दरी केसर बाग में है. यहाँ पर कई फिल्मों की सूटिंग हुई है. जैसे उमराव जान का गाना। एक बारह दरी चिड़िया घर में है.    

 



चिड़िया घर ---




रूमी दरवाजा -- लखनऊ
 में बड़ा इमामबाड़ा की तर्ज पर ही रूमी दरवाजे का निर्माण भी अकाल राहत प्रोजेक्ट के अन्तर्गत किया गया है। नवाब आसफउद्दौला ने यह दरवाजा 1783 ई. में अकाल के दौरान बनवाया था ताकि लोगों को रोजगार मिल सके। यह इमारत 60 फीट ऊंची है।



रेजीडेन्सी -- ये एक ब्रिटिश छावनी थी। 1857 की क्रांति में इस पर हमला हो गया था. जहाँ गोलियों के निशान आज भी है. यहाँ पर एक म्यूज़ियम भी है. अंग्रेजो के घर , रसोई और एक मस्जिद भी है. 

कारगिल शहीद पार्क और  स्मारक , टीले वाली मस्जिद , गोमती नदी , जरनैल कोठी भी इसी एरिया में है. 

हनुमान सेतु मंदिर -- यहाँ पर नीम करोली ( करोरी ) बाबा ने साधना की थी. ये मंदिर गोमती नदी के किनारे है. उन्होंने ही हनुमान जी का नया मंदिर बनवाया था. यहाँ एक पुराना मंदिर है और एक नया मंदिर. यहाँ पर नीम करोरी बाबा की मुर्तिया और शिव जी की बड़ी मूर्ति भी है. नीम करोरी बाबा के कई मंदिर है. इनके भक्त विदेशो में भी फैले हैं. इनका मुख्य आश्रम कैंची नैनीताल में है. इनके बारे में कहावत है कि एक बार ये ट्रैन में बैठे थे. टीटी ने टिकट न होने की वजह से इनको नीम करोरी स्टेशन पर उतार दिया. बाबा के नीचे उतरने के बाद रेल चल ही नहीं पाई जब कई घंटो तक रेल नहीं चल पाई तो लोगो ने बाबा से रेल में बैठने की विनती की। बाबा के रेल में बैठने पर ही रेल आगे बढ़ पाई.नीम करौली बाबा या नीब करौरी बाबा या महाराजजी की गणना बीसवीं शताब्दी के सबसे महान संतों में होती है.इनका  जन्म स्थान अकबरपुर फ़िरोज़ाबाद जिला उत्तर प्रदेश है जो की हिरनगाँव से 500 मीटर दूरी पर है। 
 
रामकृष्ण मठ मंदिर -- दूसरी मंजिल पर स्वामी विवेकानंद और उनके माता पिता की बड़ी बड़ी मुर्तिया है. ये लखनऊ यूनिवर्सिटी रोड पर है. 
 
सूरजकुंड -- केसरबाग में है. ये सूर्यवंशी राजाओ द्वारा बनवाया गया था. अमावस्या को यहाँ स्नान का अलग ही महत्व है. 

बिजली पासी किला -- बिजनौर के राजा बिजली पासी ने बनवाया था. उनमे बिजली जैसी फुर्ती थी इसलिए उनका नाम बिजली पासी पड़ा। 

अम्बेडकर पार्क ( ये गोमती नदी के किनारे है. ), रमाबाई अम्बेडकर पार्क , कांशीराम स्मारक स्थल में बड़े - बड़े पत्थर के हाथी  बनाए गए है. दलित नेताओं की बड़ी बड़ी मुर्तिया बनाई गयी है. ये पार्क मायावती ने बनवाए हैं. इनमे मायावती , कांशीराम , अम्बेडकर, रमाबाई अम्बेडकर, ज्योतिबा फुले , बिरसा मुंडा आदि की पत्थर की मुर्तिया है. सारे पार्क में चमक दार पत्थर लगाए गए है. जिन पर पैर  भी फिसल जाता है. सारे  पार्क बहुत ही भव्य हैं.










जनेश्वर मिश्रा पार्क -- ये गोमती नदी के किनारे है. जनेश्वर जी समाजवादी पार्टी के संस्थापक थे। ये पार्क अखिलेश यादव ने अपने मुख्यमंत्री काल में बनवाया था. यहाँ जनेश्वर मिश्रा की पत्थर की बड़ी मूर्ति बनी हुई है. ये एशिया का सबसे बड़ा पार्क है.


बेगम हज़रत महल --- बेगम हज़रत महल लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह की पत्नी थी.  लखनऊ  में 1857 की क्रांति का नेतृत्व बेगम हज़रत महल ने किया था। अपने नाबालिग पुत्र बिरजिस कादर को गद्दी पर बिठाकर उन्होंने अंग्रेज़ी सेना का स्वयं मुक़ाबला किया। उनमें संगठन की अभूतपूर्व क्षमता थी और इसी कारण अवध के ज़मींदार, किसान और सैनिक उनके नेतृत्व में आगे बढ़ते रहे।
 
 
14. बैंगलोर (2009) --- इस्कॉन  राधा कृष्णा मंदिर  एक भव्य मंदिर है ये पहाड़ी पर स्थित है. लाल बाग़ बैंगलोर का बड़ा पार्क है. 

 
15. हावड़ा ब्रिज (2009) -- हावड़ा ब्रिज प्रसिद्ध और काफी पुराना ब्रिज है.ये लोहे का बना हुआ है। इसका नाम  रविंद्र सेतु है जो रविंद्र नाथ टेगोर के नाम पर है. यह पूल हुगली नदी पर बना है. जो हावड़ा और कोलकाता को जोड़ता है. ये अपनी तरह का छटा सबसे बड़ा पूल है.  इसका मूल नाम "नया हाव दा पुल" था. लेकिन आस पास बहुत गन्दगी है.  

16. भोपाल ( 2003 ) -- भोपाल मध्य प्रदेश राज्य की राजधानी है। भोपाल को झीलों की नगरी भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ कई छोटे-बडे ताल हैं। यहाँ की बड़ी झील एशिया की सबसे बड़ी झील है. यह शहर अचानक सुर्ख़ियों मे तब आ गया जब 1984 में अमरीकी कंपनी यूनियन कार्बाइड से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसाव से लगभग बीस हजार लोग मारे गये थे। भोपाल गैस कांड का कुप्रभाव आज तक वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, जल प्रदूषण के अलावा जैविक विकलांगता एवं अन्य रूपों में जारी है।

भोपाल का प्राचीन नाम भूपाल है. एक मत यह है कि इस शहर का नाम एक अन्य राजा भूपाल या ( भोजपाल ) के नाम पर पड़ा है।

 

भोजपुर  मंदिर -- यह प्राचीन स्थान भोपाल से 28 किमी की दूरी पर स्थित है। यह स्थान भगवान शिव को समर्पित भोजेश्‍वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। भोजपुर की स्थापना परमार वंश के राजा भोज ने की थी। इसीलिए यह स्थान भोजपुर के नाम से चर्चित है। यह स्थान भगवान शिव के शानदार मंदिर और साईक्लोपियन बांध के लिए जाना जाता है। यहां के भोजेश्‍वर मंदिर की सुंदर सजावट की गई है। मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना है, जिसके गर्भगृह में लगभग साढे तीन मीटर लंबा शिवलिंग स्थापित है। इसे सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है. यह मंदिर अधूरा ही बन पाया इसका ऊपर  का हिस्सा आज भी नहीं बन पाया है.    


लक्ष्मी नारायण मंदिर ( 
बिड़ला मंदिर )  -- भोपाल के अरेरा पहाड़ी पर पाँच दशक पूर्व स्थापित बिड़ला मंदिर वर्षों से धार्मिक आस्था का केन्द्र रहा है। मंदिर में भगवान श्रीहरि विष्णु एवं लक्ष्मीजी की मनोहारी प्रतिमाएँ हैं। करीब 7-8 एकड़ पहाड़ी क्षेत्र में फैले इस मंदिर की ख्याति देश व प्रदेश के विभिन्न शहरों में फैली हुई है।

इस मंदिर का शिलान्यास वर्ष 1960 में मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ॰ कैलाशनाथ काटजू ने किया था और उद्‍घाटन वर्ष 1964 में मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र के हाथों संपन्न हुआ। मंदिर के अंदर विभिन्न पौराणिक दृश्यों की संगमरमर पर की गई नक्काशी दर्शनीय है , उन पर गीता व रामायण के उपदेश भी अंकित हैं।मंदिर के अंदर विष्णुजी व लक्ष्मीजी की प्रतिमाओं के अलावा एक ओर शिव तथा दूसरी ओर माँ जगदम्बा की प्रतिमा विराजमान हैं। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने बना विशाल शंख भी दर्शनीय है।जन्माष्टमी पर यहाँ श्रीकृष्ण जन्म का मुख्य आयोजन होता है.

महावीर गिरी जैन मंदिर -- मनुआ भान की टेकरी भोपाल से 4 किलोमीटर दूर लालघाटी पर एक बहुत ही भव्य जैन मंदिर है. जिसे ओसवाल वंश की साधना स्थली के रूप में भी जाना जाता है. यहाँ पर महावीर जैन की भव्य मूर्ति है.


17. वाराणसी ( 2005 AND 2014 ) --- इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। हिन्दू , बौद्ध एवं जैन धर्म में इसे पवित्र स्थान माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है।हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। 

वाराणसी नाम  यहां की दो स्थानीय नदियों वरुणा नदी एवं असि नदी के नाम से मिलकर बना है। ये नदियाँ गंगा नदी में क्रमशः उत्तर एवं दक्षिण से आकर मिलती हैं।  

काशी विश्वनाथ मंदिर -- काशी विश्वनाथ बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर हजारों वर्षों से वाराणसी में स्थित है। महाराजा रंजीत सिंह द्वारा 1853 में 1000 कि.ग्रा शुद्ध सोने की परत मंदिर की चोटी पर लगवाई गई थी. ये मंदिर गंगा नदी के किनारे है. यही पर सतयुग में राजा हरिशचन्द्र ने गंगा नदी के घाट पर कब्रिस्तान में नौकरी की थी. 

काल भैरव मन्दिर -- मान्यता  है कि बाबा विश्वनाथ ने काल भैरव जी को काशी का क्षेत्रपाल नियुक्त किया था। 

 

यहाँ रविवार एवं मंगलवार को अपार भीड़ आती है। यहाँ बाबा को प्रसाद में  शराब पान का विशेष महत्व है।

18. सारनाथ (2005) --- सारनाथ वाराणसी के 10 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित प्रमुख बौद्ध तीर्थस्थल है। ज्ञान प्राप्ति के पश्चात भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था जिसे "धर्म चक्र प्रवर्तन" का नाम दिया जाता है . यह स्थान बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थों में से एक है (अन्य तीन हैं: लुम्बिनीबोधगया और कुशीनगर )। इसके साथ ही सारनाथ को जैन धर्म एवं हिन्दू धर्म में भी महत्व प्राप्त है।
 


19. इलाहाबाद  ( 2011- 2012-2013 ) -- इलाहाबाद का प्राचीन नाम प्रयागराज है। इसे 'तीर्थराज' ( तीर्थों का राजा ) भी कहते हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है।कुम्भा मेला चार जगह इलाहाबाद , नासिक , उज्जैन ,हरिद्धार में लगता है. 


संगम पर यमुनाजी और गंगा जी का पानी बिलकुल अलग अलग दिखाई देता है. एक सफ़ेद और एक नीला। संगम से थोड़ी दूर किला है. किले के पास लेटे हुए हनुमान जी की मूर्ति है. कहते हैं की हर साल गंगा जी हनुमान जी को सावन के महीने में नहलाकर जाती है. जब गंगा जी में बाढ़ आती है. कहावत है की कनौज के एक बड़े व्यापारी को संतान नहीं होती थी. वह विंध्याचल गया और वहां पर पत्थर से हनुमान जी की मूर्ति बनाई. फिर उस मूर्ति को कई तीर्थो में स्नान करवाया। जब वह व्यापारी प्रयाग में  स्नान करवाने आया तो रात में उसने सपना देखा की अगर वह ये मूर्ति यहीं पर स्थापित कर देता है तो  उसकी सारी इच्छाएं पूरी होंगी. उसने यही किया. उसको संतान की प्राप्ति हुई. बाद में संत बालगिरी  और अन्य लोगो ने ये मूर्ति यहाँ से हटाकर किले में स्थापित करने की कोशिश की लेकिन मूर्ति को हिल्ला नहीं पाए.

20. विन्ध्याचल ( 2005-2006 ) -- विन्ध्याचल 51 शक्ति पीठों में से एक है. यहाँ माता विन्ध्यवासिनी का मंदिर है।विंध्याचल में ही विंध्याचल पर्वत श्रंखलाये है।मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, विन्ध्यवासिनी ने महिषासुर का वध करने के लिये अवतार लिया था। यह नगर गंगा के किनारे स्थित है। भारतीय मानक समय ( IST ) की रेखा विन्ध्याचल के रेलवे स्टेशन से होकर जाती है।यहाँ  कालीखोह टेम्पल ,अष्टभुजा  देवी  टेम्पल ,रामगया  घाट  एंड  तारादेवी  टेम्पल ,सीता  कुंड , गेरुआ  तालाब , नारघाट  माँ  काली मंदिर आदि कई मंदिर हैं। माँ विंध्यवासिनी मंदिर सभी शक्ति पीठों में मुख्य है.
 

21. केवला झिर  ( 2013-14 )-- केवला झिर गांव भोपाल से 100 किलोमीटर दूर बाड़ी से 20 किलोमीटर दूर है. यहाँ पर एक बाबा जी का आश्रम हैं. उनके वरदान के कारण यहाँ कभी भी ओला नहीं गिरता है. वो भविष्य वक्त और सिद्ध महात्मा थे। एक बार उन्होंने मेरे मामा के गावं के आदमी की भविष्यवाणी की थी कि उसके दो बेटे और एक बेटी होंगी। उस वक्त उसको एक बेटा और एक बेटी थी. उम्र ३५ साल के आस पास थी। उनकी पत्नी का ऑपरेशन हो चूका था। सबको आश्चर्य हुआ ये कैसे होगा. बाबा जी ने बोला तुम्हारी दूसरी शादी होगी उससे एक लड़का और होगा. भविष्य में ये भविष्य वाणी सही साबित हुई, पहली पत्नी मर गई, उस आदमी की दूसरी शादी हुई और एक लड़का हुआ. 

22. जबलपुर (2007 -  2013-14 ) -- जबलपुर नर्मदा नदी के तट पर है. यहाँ पर मार्बल मिलता है. थलसेना की छावनी के अलावा यहाँ भारतीय आयुध निर्माणियों के कारखाने तथा पश्चिम-मध्य रेलवे का मुख्यालय भी है। पुराणों और किंवदंतियों के अनुसार इस शहर का नाम पहले जबालिपुरम् था, क्योंकि इसका सम्बंध महर्षि जाबालि से जोड़ा जाता है। 

भेड़ाघाट -- धुंआ धार में  नर्मदा नदी का दूधिया ठण्डा पानी थोड़ी ऊंचाई से गिरता है जिसकी वजह से ये पर्यटक स्थल है। यहाँ कई फिल्मों की शूटिंग हुई है. भेड़ाघाट में कई प्राचीन मंदिर है. एक मंदिर पहाड़ी पर गोलाई  में बना है. जहाँ माता के सारे रूप की मुर्तिया हैं.

ग्वारी  घाट--यहाँ कई मंदिर है , गुरुद्वारा है .

23. सेंटर पॉइंट ऑफ़ इंडिया -- ( 2014 ) --- 
करौंदी ( मनोहर गांव ) नामक  गांव में भारत का सेंटर पॉइंट है. जो कटनी से 100 किलोमीटर , जबलपुर से 100 किलोमीटर , सिहोरा तहसील में सिहोरा से 50 किलोमीटर दूर है. करीब दो एकड़  जमीन  में खेतों के बीच में ये पॉइंट बना है. जहाँ भारत के राष्ट्रीय चिन्ह चार शेरो की मूर्ति स्थापित है. चारो और बॉउंड्री है , पर्यटकों के बैठने की व्यवस्था है. ये जगह एक दम सुनसान जगह पर  है. चारो  और जंगल है.सेंटर पॉइंट के सामने एक घर है. यहाँ पर कई एकड़ जमीन अंग्रेजो की है. उनका एक आश्रम  भी बना है. जहाँ पर अंग्रेज आकर साल- छ महीने रहकर जाते है. अंग्रेजो के अलावा इसमें अंदर कोई नहीं जा सकता। यह  सेंटर  पॉइंट  डॉ.  लोहिया  जी  ने  मापा  था . वो  यहाँ  एक  अंतर्राष्ट्रीय  गांव  बसाना  चाहते  थे  जहाँ  पुरे  देश  से  किसान  इस  गांव  में  आकर  बसे  और  अपनी - अपनी  संस्कृति  के  हिसाब  से  रहे . लोहिया  जी   की  याद  में  इसका  नाम  मनोहर  गांव  रखा  गया . यहाँ  भारत   के  तत्कालीन  प्रधान -मंत्री  चंद्र  शेखर  जी भी  आ  चुके  हैं . सेंटर  पॉइंट   के  सामने  महर्षि  विश्वविद्यालय  है  जहाँ  वेध - पाठ  की  पढ़ाई   होती  है . पुरे  देश   से  ब्राह्मण  यहाँ  आकर  पढ़ाई  करते  हैं .

आज़ादी  से  पहले  नागपुर  भारत  का  सेंटर  पॉइंट  था . जिसका  नाम   अंग्रेजो  ने  जीरो  माइल   स्टोन  रखा  था .. इस  पॉइंट   को  ब्रिटिश  हुकूमत  ने  स्थापित  किया  था  जिसका  उसे  उपयोग वो भारत  में  सब  जगह  की  दूरी  मापने  के  लिए  करते  थे . यहाँ   पर  एक  पिलर  ( सैंडस्टोन ) और  चार  घोड़े  ( हॉर्स ) बनाये  गए  हैं . अंग्रेज  हुकूमत   के  अनुसार  नागपुर  भारत ( भारत - बांग्लादेश - पाकिस्तान ) के  मध्य  में  स्थित  है . इसलिए   उन्होंने  इसे  सेंटर  पॉइंट  माना  था .
  


24. बांदकपुर ( 2014 ) --- नागेश्वर महादेव मंदिर बांदकपुर दमोह जिला मध्य प्रदेश में है.ये मंदिर दमोह से 10 किलोमीटर , कटनी से 100 किलोमीटर दूर है। यहाँ शिव जी का मंदिर है. कहावत है कि जब  एक किसान खेतों में हल जोत रहा था तो हल शिवलिंग से टकरा गया. तभी से यहाँ मंदिर बना। ये बढ़ता हुआ शिवलिंग है. हर साल बढ़ता रहता है. जब मैं यहाँ गया तो ये शिवलिंग करीब दो बिलांत  ऊँचा और घफी में आ जाये इतना मोटा था. शिव जी के मंदिर के सामने 20-30  फ़ीट की दुरी पर  पार्वती जी का मंदिर है. कहते हैं की महाशिवरात्रि को यहाँ मेला लगता था और कावड़ चढ़ती थी. एक लाख कावड़ चढ़ने पर शिव जी के मंदिर की धजा और पार्वती जी के मंदिर की धजा अपने आप आपस में मिल जाती थी और उनमे गाँठ लग जाती थी. जब मैंने मंदिर के सामने  के एक दूकानदार से पूछा जिसकी उम्र 50 साल थी तो उसने बताया की उसने कभी ऐसा होते देखा नहीं है. लेकिन बुजुर्गो से सुना है. 

25. कटनी  ( 2011-2014 ) -- कटनी 'चूना पत्थर के शहर' के नाम से लोकप्रिय है मुड़वाड़ा, कटनी, छोटी महानदी और उमदर यहां से बहने वाली प्रमुख नदियां हैं। कटनी का स्लिमनाबाद गांव संगमरमर के पत्थरों के लिए प्रसिद्ध है।कटनी नगर का नामकरण कटनी नदी के नाम पर हुआ है।

 

26. विजयराघवगढ़ ( 2013 )  -- यह ऐतिहासिक स्थल कटनी से लगभग 30 किमी. दूर है। राजा प्रयागदास के काल में यह एक विशाल और लोकप्रिय नगर था। विजयराघवगढ़ किला यहां का मुख्य आकर्षण है। भगवान विजयराघव को समर्पित एक मंदिर भी यहां देखा जा सकता है।  विजयराघवगढ़ - बरही सड़क मार्ग पर पूर्व मे कटनी की जीवनरेखा ' छोटी महानदी ' बहती है। यहाँ देवी शारदा का मंदिर है। जिसका महत्व मैहर की देवी शारदा के समान माना जाता है।अंग्रेजी राज में रियासत के किशोर राजा सरयूप्रतापसिंह ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ विद्रोह कर दिया था।उन्होंने प्रमुख सहायक सरदार बहादुर ख़ान को लेकर मुड़वारा कटनी मेँ अंग्रेजोँ से मुक़ाबला किया। किशोर राजा को सुरक्षित कर बहादुरखान ने अपने प्राणोँ का बलिदान कर वफ़ादारी की मिसाल कायम की . आज भी कटनी मेँ महिला महाविद्यालय के बाजू मेँ शहीद की मज़ार है। यह युद्ध प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अवधि मेँ हुआ। किले में एक मज़ार है, कहते है कि जिसकी ये मज़ार है उन्होंने राजा को श्राप दिया था उनकी पीढ़ी ख़त्म हो जायेगी, आज उनकी पीढ़ी ख़त्म हो चुकी है. 

 


27. मैहर ( 2013-2014 ) --
 मैहर मध्य प्रदेश के सतना जिले में एक छोटा सा नगर है। यह एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थस्थल है। मैहर में शारदा माँ का प्रसिद्ध मन्दिर है. जो कैमूर तथा विंध्य की पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में है.यह मंदिर तमसा नदी के तट पर त्रिकूट पर्वत की पर्वत मालाओं के मध्य 600 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह ऐतिहासिक मंदिर 103 शक्ति पीठों में से एक है। यह पीठ सतयुग के प्रमुख अवतार नरसिंह भगवान के नाम पर 'नरसिंह पीठ' के नाम से भी विख्यात है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर आल्हखण्ड के नायक आल्हा व ऊदल दोनों भाई मां शारदा के अनन्य उपासक थे। जो आज भी रोज माता रानी की पूजा करके जाते हैं। पर्वत की तलहटी में आल्हा का तालाब व अखाड़ा आज भी विद्यमान है।मंदिर तक पहुँचने के लिए 1100 सीढ़ियां बनी हुई है.
 

28. खजुराहो ( 2015 ) -- खजुराहो मध्य प्रदेश में स्थित है। यहाँ पर बड़े बड़े विश्व प्रसिद्ध मंदिर हैं।ये मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर सूचि में शामिल है।यहाँ मंदिरों पर शानदार निकाशी की गई है, जिसमे सभी मंदिरों पर कामसुत्र ( स्त्री पुरुष निजी सम्बद्ध ) की विभिन्न मुद्राएं उकेरी गई हैं। यहां बहुत बड़ी संख्या में प्राचीन हिन्दू और जैन मंदिर हैं। मंदिरों का शहर खजुराहो पूरे विश्व में मुड़े हुए पत्थरों से निर्मित मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।खजुराहो का इतिहास लगभग एक हजार साल पुराना है। यह शहर चन्देल साम्राज्‍य की प्रथम राजधानी था। चन्देल वंश और खजुराहो के संस्थापक चन्द्रवर्मन थे। चन्द्रवर्मन मध्यकाल में बुंदेलखंड में शासन करने वाले राजपूत राजा थे। वे अपने आप को चन्द्रवंशी मानते थे। चंदेल राजाओं ने दसवीं से बारहवी शताब्दी तक मध्य भारत में शासन किया। खजुराहो के मंदिरों का निर्माण 950 ईसवीं से 1050 ईसवीं के बीच इन्हीं चन्देल राजाओं द्वारा किया गया। मंदिरों के निर्माण के बाद चन्देलो ने अपनी राजधानी महोबा स्थानांतरित कर दी। लेकिन इसके बाद भी खजुराहो का महत्व बना रहा।

 

29. अमरकंटक  ( 2015 ) --- अमरकंटक  नर्मदा नदीसोन नदी और जोहिला नदी का उदगम स्थान है। यह मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में स्थित है। यह हिंदुओं का पवित्र स्थल है। यह मैकाल की पहाडि़यों में स्थित है। समुद्र तल से 1065 मीटर ऊंचे इस स्‍थान पर ही मध्‍य भारत के विंध्य और सतपुड़ा की पहाडि़यों का मेल होता है। चारों ओर से टीक और महुआ के पेड़ो से घिरे अमरकंटक से ही नर्मदाजोहिला और सोन नदी की उत्‍पत्ति होती है। नर्मदा नदी यहां से पश्चिम की तरफ और सोन नदी पूर्व दिशा में बहती है। यहां के खूबसूरत झरने, पवित्र तालाब, ऊंची पहाडि़यों और शांत वातावरण सैलानियों को मंत्रमुग्‍ध कर देते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव की पुत्री नर्मदा जीवनदायिनी नदी रूप में यहां से बहती है। माता नर्मदा को समर्पित यहां अनेक मंदिर बने हुए हैं, जिन्‍हें दुर्गा की प्रतिमूर्ति माना जाता है। अमरकंटक बहुत से आयुर्वेदिक पौधों के लिए भी प्रसिद्ध है‍, जिन्‍हें किंवदंतियों के अनुसार जीवनदायी गुणों से भरपूर माना जाता है।कहते हैं की शिव जी की पुत्री नर्मदा और ब्रह्मा जी के पुत्र सोन की शादी होने वाली थी लेकिन किसी कारण वश नहीं हो सकी और वो दोनों नदिया बन गए। शादी में प्रयोग होने वाले बर्तन आज भी वहां रखे है. जहाँ नदी का उद्गम स्थल है वहां से बून्द बून्द पानी निकलता है और एक बहुत बड़ी नदी बन जाता है.यहाँ पर गुल बकावली नाम का पेड़ पाया जाता है जिसकी दवा से आँखों की रोशनी बढ़ती है। कहते हैं कि इस दवा से आँखों चश्मा भी हट जाता है।MO. NO.9425331322 AND 9425891356.  



सोनमुण्डा -- सोनमुण्डा सोन नदी का उदगम स्‍थल है। यहां से घाटी और जंगल से ढ़की पहाडियों के सुंदर दृश्‍य देखे जा सकते हैं। सोनमुण्डा नर्मदाकुंड से 1.5 किमी. की दूरी पर मैकाल पहाडि़यों के किनारे पर है। सोन नदी 100 फीट ऊंची पहाड़ी से एक झरने के रूप में यहां से गिरती है। सोन नदी की सुनहरी रेत के कारण ही इस नदी को सोन कहा जाता है।पहाड़ पर स्थित उद्दगम स्थल से बून्द बून्द करके पानी निकलता है और निचे पानी इक्कठा होकर बड़ी नदी का रूप धारण कर लेता है। 


30. चित्रकूट -- चित्रकूट धाम मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है। शांत और सुन्दर चित्रकूट प्रकृति और ईश्वर की अनुपम देन है। चित्रकूट चारों ओर से विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाओं और वनों से घिरा हुआ है । मंदाकिनी नदी के किनारे बने अनेक घाट और मंदिर में पूरे साल श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। मान्यता है कि भगवान प्रयाग राज भी साल में एक बार यहाँ पर स्नान करने आते थे. इसलिए ये सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है. 

 भगवान राम जी ने सीता जी और लक्ष्मण जी के साथ अपने वनवास के चौदह वर्षो में ग्यारह वर्ष चित्रकूट में ही बिताए थे। इसी स्थान पर ऋषि अत्रि जी और सती अनसुइया जी ने ध्यान लगाया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने चित्रकूट में ही सती अनसुइया जी के घर जन्म लिया था।

गुप्त गोदावरी -- जब गोदावरी जी को पता चला की  भगवान राम चित्रकूट में आये है. तो वो महाराष्ट्र से चित्रकूट में आई और भगवान  राम के दर्शन किये. और इसी जगह पर बहने लगी। चित्रकूट में एक पहाड़ को काट कर भगवान राम जी ने रहने की जगह बनाई ( घर ) थी। पहाड़ काटने के निशान आज भी देखे जा सकते हैं। यहीं पर गोदावरी जी एक कुंड में बहते हुए पानी के रूप में प्रकट होती हैं , कुंड के अलावा वो पानी कहाँ से आ रहा है और कहाँ जा रहा है इसका आज तक पता नहीं चला है। नगर से 18 किमी. की दूरी पर गुप्त गोदावरी स्थित हैं। यहां दो गुफाएं हैं। एक गुफा चौड़ी और ऊंची है। प्रवेश द्वार संकरा होने के कारण इसमें आसानी से नहीं घुसा जा सकता। गुफा के अंत में एक छोटा तालाब है जिसे गोदावरी नदी कहा जाता है। दूसरी गुफा लंबी और संकरी है जिससे हमेशा पानी बहता रहता है। 

कामदगिरि पर्वत -- इस पवित्र पर्वत का काफी धार्मिक महत्व है। श्रद्धालु कामदगिरि पर्वत की 5 किमी. की परिक्रमा कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने की कामना करते हैं। जंगलों से घिरे इस पर्वत के तल पर अनेक मंदिर बने हुए हैं। चित्रकूट के लोकप्रिय कामतानाथ और भरत मिलाप मंदिर भी यहीं स्थित है।

चित्रकूट में रामघाट -- यहाँ पर गंगा नदी , मन्दाकिनी नदी और सरस्वती नदी का संगम है. मंदाकिनी नदी के तट पर बने रामघाट में अनेक धार्मिक क्रियाकलाप चलते रहते हैं। शाम को होने वाली यहां की आरती मन को काफी सुकून पहुंचाती है।कहावत है कि जब औरंगजेब यहाँ मंदिरों को तोड़ने के लिए आया तो उसने रामघाट में स्थित शिव जी मंदिर को तोड़ने के लिए हथौड़ी से मंदिर की दीवार में छिनी ठोकी तो उसकी पूरी सेना अंधी हो गयी. मंदिर की दीवार पर छिनी के निशान आज भी मौजूद हैं। तब उसने भगवान शिव की आराधना की और माफ़ी मांगी. और भगवान से अपनी पूरी सेना की रौशनी लौटाने का अनुरोध किया। भगवान शिव ने औरंगजेब की सेना की आँखों की रौशनी लौटा दी जिसके बाद औरँगजेब ने यहीं घाट पर एक मंदिर, मस्जिद की शैली में बनवाया. उसके बाद दोबारा उसकी किसी भी मंदिर को हाथ लगाने की हिम्मत नहीं हुयी।    

जानकी कुण्ड -- रामघाट से 2 किमी. की दूरी पर मंदाकिनी नदी के किनारे  जानकी कुण्ड स्थित है। जनक पुत्री होने के कारण सीता को जानकी कहा जाता था। माना जाता है कि माता जानकी यहां स्नान करती थीं। जानकी कुण्ड के समीप ही राम जानकी रघुवीर मंदिर और संकट मोचन मंदिर है।

स्फटिक शिला --- जानकी कुण्ड से कुछ दूरी पर मंदाकिनी नदी के किनारे  ही यह शिला स्थित है। माना जाता है कि इस शिला पर सीता जी  के पैरों के निशान मुद्रित हैं। कहा जाता है कि जब वह इस शिला पर खड़ी थीं, तो जयंत ने काक रूप धारण कर उन्हें चोंच मारी थी। इस शिला पर राम जी और सीता जी बैठकर चित्रकूट की सुन्दरता निहारते थे।

माता अनसुइया - ऋषि अत्रि आश्रम --- स्फटिक शिला से लगभग 1 किमी. की दूरी पर घने वनों से घिरा यह एकान्त आश्रम स्थित है। इस आश्रम में अत्रि मुनी, माता अनुसुइया, दत्तात्रेयय और दुर्वाशा मुनी की प्रतिमा स्थापित हैं। शीला के पास एक ऋषि ने सती अनसुइया का नया  भव्य  मंदिर बनवाया है. यहीं आश्रम के पीछे मन्दाकिनी नदी का उद्गम स्थल है. यहीं पर कई ऋषियों ने साधना की थी.मंदिर के मुंह पर भगवान कृष्णा की रथ और घोड़ो सहित पत्थर की विशाल मूर्ति है। 

हनुमान धारा -- हनुमान धारा एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर बनी हुई है जहाँ जाने के लिए हज़ारों सीढिया चढ़नी पड़ती हैं। पहाड़ी के शिखर पर स्थित हनुमान धारा में हनुमान जी की पहाड़ का सहारा लेकर आधी लेटी हुई विशाल मूर्ति है।लेटे हुए हनुमान जी पर ऊपर पहाड़ से पानी ( पानी की धारा ) गिरता रहता है। जैसे वो स्नान करके अपनी थकान मिटा रहे हों।कहा जाता है कि यह धारा श्रीराम ने  हनुमान जी के आराम के लिए बनवाई थी.हनुमान जी पर जो पानी गिरता है वो पानी आगे एक कुंए ( जो पहाड़ी के आधे रास्ते में बना है ) में गिरता है. आश्चर्य ये है कि कुआ कभी भी भरता नहीं है. और निचे जमीं पर भी पानी नहीं बहता है. पता नहीं ये पानी जाता कहाँ है. पहाड़ी के शिखर पर ही 'सीता रसोई' है। यहां से चित्रकूट का सुन्दर दृष्य देखा जा सकता है। 

31. पटना ( 2004 - 2011 ) --- पटना बिहार की राजधानी है। पटना का प्राचीन नाम पाटलिपुत्र था। यहाँ पर चन्द्रगुप्त मौर्या , सम्राट अशोक समेत कई राजाओं का राज रहा है। पटना और हाजीपुर के बीच में गंगा नदी पर बना पूल करीब 6 KM किलोमीटर लंबा है .गंगा नदी यहाँ पर घाघरा, सोन और गंडक जैसी सहायक नदियों से मिलती है। पटना में अगम कुआँ, गोलघर , संजय गांधी जैविक उद्यान ( चिड़ियाघर ) और तारा मंडल प्रसिद्ध  जगह हैं।पटना में तख़्त श्री पटना साहिब या श्री हरमंदिर जी सिख आस्था से जुड़ा  एक ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल है। यहाँ सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्मस्थान है।

 


32. नालन्‍दा ( 2005 - 2006 ) --- प्राचीन काल से ही भारत में तीन विश्व विद्यालय प्रसिद्ध रहे हैं जहाँ देश विदेश से लोग पढ़ने आते थे। भारत ही विश्व में शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। नालंदा , विक्रमशिला और तक्षशिला विश्वविद्यालय दुनिया के सबसे प्राचीन विश्व विद्यालय हैं।इन विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों में हमारे लाखों धार्मिक , वैज्ञानिक , सांस्कृतिक, औषद्यीय ग्रन्थ भी थे। ये पुस्तकालय दुनिया के सबसे पहले और सबसे बड़े पुस्तकालय थे। विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने हमारे तीनों  ही विश्वविद्यालयों को जला दिया था।जिसके साथ ही हमारा इतिहास, ज्ञान, विज्ञानं सब जल गया था। नालंदा बिहार में स्थित है। नालन्‍दा विश्‍वविद्यालय के अवशेषों की खोज अलेक्‍जेंडर कनिंघम ने की थी।यहाँ बिलकुल छोटी छोटी कुटिया बनी हुई हैं. जिनमे झुक कर अंदर जाना पड़ता है। जो अब खंडहर रूप में हैं . कुटिया इतनी छोटी हैं की आदमी अगर सोये तो पैर नहीं पसार सकता है। माना जाता है कि इस विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना 450 ई॰ में गुप्त शासक कुमारगुप्‍त ने की थी। 

ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल --- यह एक नवर्निमित भवन है। यह भवन चीन के महान तीर्थयात्री ह्वेनसांग की याद में बनवाया गया है। इसमें ह्वेनसांग से संबंधित वस्‍तुओं तथा उनकी मूर्ति देखी जा सकता है।


सिलाव --- यह गांव नालन्‍दा और राजगीर के मध्‍य स्थित है।  ये स्थान यहाँ बनने वाली प्रसिद्ध मिठाई खाजा के लिए प्रसिद्ध है। 


33. सासाराम ( 2006 ) --- सासाराम बिहार राज्य का एक शहर है, जो रोहतास जिले में आता है। यह रोहतास जिले का मुख्यालय भी है। इसे 'सहसराम' भी कहा जाता है। सूर वंश के संस्थापक अफ़ग़ान शासक शेरशाह सूरी का मक़बरा सासाराम में है और देश का प्रसिद्ध 'ग्रांड ट्रंक रोड' भी इसी शहर से होकर गुज़रता है।जो शेर शाह सूरी ने बनवाया था। 

34. राजगीर ( 2005 - 2006 ) --- राजगीर नालंदा जिले में स्थित एक शहर है। यह कभी मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी, जिससे बाद में मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ।राजगृह का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। इस शहर के कई नाम रहे हैं जैसे - वसुमतिपुर, वृहद्रथपुर, गिरिब्रज और कुशग्रपुर, राजगृह, राजगीर । पौराणिक साहित्य के अनुसार राजगीर बह्मा की पवित्र यज्ञ भूमि, संस्कृति और वैभव का केन्द्र तथा जैन तीर्थंकर महावीर और भगवान बुद्ध की साधनाभूमि रहा है। इसका ज़िक्र ऋगवेदअथर्ववेदतैत्तिरीय उपनिषदवायु पुराणमहाभारतवाल्मीकि रामायण आदि में आता है। जैनग्रंथ विविध तीर्थकल्प के अनुसार राजगीर जरासंधश्रेणिक, बिम्बिसार आदि प्रसिद्ध शासकों का निवास स्थान था। जरासंध ने यहीं से श्रीकृष्ण को हराकर मथुरा से द्वारका  जाने को विवश किया था।

पटना से 100 किमी उत्तर में पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच बसा राजगीर एक प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थस्थल है । यहां हिन्दुजैन और बौद्ध तीनों धर्मों के धार्मिक स्थल हैं। खासकर बौद्ध धर्म से इसका बहुत प्राचीन संबंध है। बुद्ध न केवल कई वर्षों तक यहां ठहरे थे बल्कि कई महत्वपूर्ण उपदेश भी यहाँ की धरती पर दिये थे। बुद्ध के उपदेशों को यहीं लिपिबद्ध किया गया गया था और पहली बौद्ध संगीति भी यहीं हुई थी।यहाँ पर कई धार्मिक स्थल हैं , अभी यहाँ एक आयुध निर्माणी भी भारत सरकार द्वारा लगाई गई है। 

गर्म जल के झरने -- वैभव पर्वत पर कई  गर्म जल के  झरने ( सप्तधाराएं ) हैं , जहां सप्तकर्णी गुफाओं से जल आता है। इन झरनों के पानी में कई चिकित्सकीय गुण होने के प्रमाण मिले हैं। पुरुषों और महिलाओं के नहाने के लिए 22 कुन्ड बनाए गये हैं। इनमें “ब्रह्मकुन्ड” का पानी सबसे गर्म ( 45 डिग्री से. ) होता है।

 

35. बोधगया ( 2005 - 2006 ) --- बोधगया बिहार में स्थित है।  बोधगया में ही बोधि वृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। तभी से यह स्थल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। वर्ष 2002 में यूनेस्को द्वारा इस शहर को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया।करीब 500 ई॰पू. में गौतम बुद्ध फाल्गु नदी के तट पर पहुंचे और बोधि वृक्ष के नीचे तपस्या करने बैठे। ज्ञान प्राप्त होने पर उन्होंने सारनाथ जाकर धर्म का प्रचार शुरू किया। बाद में बुद्ध के अनुयायियों ने उस जगह पर जाना शुरू किया, जहां बुद्ध ने वैशाख महीने में पुर्णिमा के दिन ज्ञान की प्रप्ति की थी। धीरे धीरे ये जगह बोधगया के नाम से मशहूर  हुई  और ये दिन बुद्ध पुर्णिमा के नाम से जाना गया।फल्गु नदी गया में हिन्दू अपने पितरों का पिंड दान करने जाते हैं। मान्यता है कि सबसे पहले यहाँ भगवान राम ने पिंड दान किया था। 

महाबोधि मंदिर ( 2005 - 2006 ) --- यह मंदिर मुख्‍य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की बनावट सम्राट अशोक द्वारा स्‍थापित स्‍तूप के समान हे। इस मंदिर में बुद्ध की एक बहुत बड़ी मूर्त्ति स्‍थापित है। यह मूर्त्ति पदमासन की मुद्रा में है। यहां यह अनुश्रुति प्रचिलत है कि यह मूर्त्ति उसी जगह स्‍थापित है जहां बुद्ध को ज्ञान प्राप्‍त हुआ था। मंदिर के चारों ओर पत्‍थर की नक्‍काशीदार रेलिंग बनी हुई है। ये रेलिंग ही बोधगया में प्राप्‍त सबसे पुराना अवशेष है। इस मंदिर परिसर के दक्षिण-पूर्व दिशा में प्रा‍कृतिक दृश्‍यों से समृद्ध एक पार्क है, जहां बौद्ध भिक्षु ध्‍यान साधना करते हैं। आम लोग इस पार्क में मंदिर प्रशासन की अनुमति लेकर ही प्रवेश कर सकते हैं।

इस मंदिर परिसर में उन सात स्‍थानों को भी चिन्हित किया गया है जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति  के बाद सात सप्‍ताह व्‍यतीत किया था। यहाँ एक विशाल पीपल का वृक्ष है जो मुख्‍य मंदिर के पीछे स्थित है इसे बोधि वृक्ष कहते हैं। वर्तमान में जो बोधि वृक्ष है वह उस बोधि वृक्ष की पांचवीं पीढी है।मुख्‍य मंदिर के पीछे बुद्ध की लाल बलुए पत्‍थर की 7 फीट ऊंची एक मूर्त्ति है। 

 

36. वैद्यनाथ मन्दिर, देवघर ( 2005 - 2006 ) --- इसे बाबा बैधनाथ धाम भी कहते हैं ये झारखण्ड राज्य में देवघर शहर में स्थित है।शिव जी का ये शिव लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। जहाँ पर यह मन्दिर स्थित है उस स्थान को "देवघर" अर्थात देवताओं का घर कहते हैं। यह ज्‍योतिर्लिंग एक सिद्धपीठ है। कहा जाता है कि यहाँ पर आने वालों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस कारण इस लिंग को "कामना लिंग" भी कहा जाता हैं।यहां पर एक ही परिसर में मुख्य मंदिर के इर्द गिर्द अनेक मंदिर हैं। 

इस लिंग की स्थापना का इतिहास यह है कि एक बार राक्षसराज रावण ने हिमालय पर जाकर शिवजी की प्रसन्नता के लिये घोर तपस्या की और अपने सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ाने शुरू कर दिये। एक-एक करके नौ सिर चढ़ाने के बाद दसवाँ सिर भी काटने को ही था कि शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हो गये। उन्होंने उसके दसों सिर ज्यों-के-त्यों कर दिये और उससे वरदान माँगने को कहा। रावण ने लंका में स्थापित करने की आज्ञा मांगी । शिव  जी ने रावण को एक शिवलिंग दिया और कहा कि रास्ते में अगर इस शिवलिंग को कहीं धरती पर रख दिया तो ये वहीँ स्थिर हो जायेगा। रावण शिवलिंग लेकर चला पर मार्ग में उसे लघुशंका निवृत्ति की आवश्यकता हुई। रावण उस लिंग को एक अहीर को थमा लघुशंका-निवृत्ति करने चला गया। इधर उस अहीर से उसे बहुत अधिक भारी अनुभव कर भूमि पर रख दिया। फिर क्या था, लौटने पर रावण पूरी शक्ति लगाकर भी उसे उखाड़ न सका . सभी श्रद्धालु सुल्तानगंज से पवित्र गंगा का जल उठाकर  अत्यन्त कठिन पैदल यात्रा कर बाबा को जल चढाते हैं। मन्दिर के समीप ही एक विशाल तालाब भी स्थित है। 

जसीडीह -- देवघर के बगल में जसीडीह है। जहाँ काफी पुराना रेलवे स्टेशन है। जसीडीह में  ईसाई मिशनरियों का आश्रम भी है  जो कि  सुनसान जगह पर स्थित है। आश्रम काफी साफ़ सुथरा है और आश्रम तक जाने के लिए पक्का रास्ता  बना हुआ है। यहाँ कई विदेशी लोग रहते हैं। यहाँ पर बहुत मर्यादा में  रहना पड़ता है। बोलते समय आवाज़ धीमी रखनी पड़ती है। विदेशी लोग ( मिशनरी ) मुंह पर मास्क लगाकर रखते हैं। 

 

 
37. नेपाल ( 2007 - 2011 ) -- नेपाल भारत के बगल में स्थित एक धार्मिक देश है जहाँ हिन्दू लोग रहते हैं। ये विश्व का एकमात्र हिन्दू देश है। यहाँ के लोग बहुत भोलेभाले , हष्ट पुष्ट और छोटे कद के हैं। यहाँ की भाषा नेपाली है।नेपाल और भारत के नागरिक एक दूसरे देश में बेरोक टोक आ जा सकते हैं कोई वीजा - पासपोर्ट की जरूरत नहीं है। यहाँ पर भारतीय 500 - 1000 - 2000 के नोट  बैन हैं। नेपाली नागरिक भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट में भर्ती हो सकते हैं। 

बिराटनगर --- बिराटनगर शहर राजा बिराट के नाम पर है. ये शहर राजा बिराट की राजधानी था।



धरान ---  धरान एक पहाड़ी इलाका है.ऊँचे ऊँचे पहाड़ो पर टेडी मेडी सड़कों से ऊपर चढ़ते और निचे उतरते हुए बहुत डर लगता है।  



 
पोखरा -- पोखरा एक दर्शनीय स्थल है. यहाँ कई प्रसिद्ध ताल है. खूब विदेशी पर्यटक आते है.शहर में बड़े बड़े कैसीनो है.कैसिनो में सिर्फ विदेशी नागरिक ही जा सकते हैं। 
 
मनोकामना देवी --- मनोकामना मन्दिर  एक महत्वपूर्ण देवीस्थान शक्तिपीठ माना जाता है।यह मंदिर काफी ऊंचाई पर स्थित है जहाँ रोप वे से जाना पड़ता है। यहाँ पुरानी शैली के लकड़ी के बने हुए मंदिर हैं।  यहाँ दशहरे में पूजा करने आने वाले श्रद्धालुओं कि बहुत बड़ी भीड़ लगती है। यहाँ प्रत्येक अष्टमी के दिन बली चढ़ाने की परंपरा है। मनोकामना के दर्शन से मनोकांक्षा पूरी होती है ऐसा धार्मिक विश्वास है.
 
तातोपानी -- तातोपानी नेपाल और चीन का बॉर्डर है.यहाँ पर गर्म पानी का झरना है। यहाँ जाने के लिए बहुत दुर्गम और पहाड़ी रास्ता है. दोनों देशों के बीच से बागमती  नदी गुजरती है. नदी पर पूल है. चीन की तरफ खवासा बाजार है. चाइनीज सामान बनता है जो बहुत सस्ता मिलता है। नेपाली नागरिक को खवासा बाजार तक बिना वीजा जाने दिया जाता है।  



काठमांडू -- काठमांडू समुद्र तल से 1400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.यहाँ पर लगभग रोज़ बारिश होती है. हर वक्त ठण्ड रहती है. यहाँ पंखे नहीं है. यह शहर चार पहाड़ियों से गिरा है शिवपुरी , फूलचोकि , नागार्जुन , चंद्रगिरि। शहर में कई बड़े बड़े कैसीनो है.कैसिनो में सिर्फ विदेशी नागरिक ही जा सकते हैं।कैसिनो में  सारी खाने पिने की चिचे मुफ्त में मिलती है.ग्राहक को टैक्सी मुफ्त में मिलती है.शहर में नेपाल नरेश ( राजा ) के महल है - हनुमान ढोका , राज दरबार , संग्रहालय है.हनुमान ढोका राजा का महल था जो लकड़ी का बना हुआ है। यहाँ सभी मंदिर एक अलग शैली में लकड़ी के बने हुए हैं। थमेल बाजार सबसे महंगा बाजार है.यहाँ पर धार्मिक एंटीक वस्तुएं मिलती हैं. मुख्य खान पान मोमो , चाउचाउ आदि है।  
 







विष्णुस्थान ( बुढा नीलकण्ठ ) -- यहाँ पर भगवान विष्णु की लेटी हुई मूर्ति है. ये मूर्ति अपने आप जमीन से उबरी थी. 
 
स्यंभू -- यहाँ पर एक पिरामिड पर भगवान बुद्ध  की मूर्ति है जिस पर चढ़ने के लिए 2000 के आस पास सीढ़ियां है. 
 
 


धरहरा टावर --  धरहरा टावर 61.88 मीटर ऊँचा था. जो अप्रैल 2015 के भूकम्प में ढह गया. 
 
दक्षिणकाली मंदिर, दरबार स्क्वायर आदि अन्य देखने लायक स्थान हैं।      

पशुपतिनाथ मंदिर -- पशुपतिनाथ मंदिर में चार मुखी शिवलिंग है. शिव जी के 12 ज्योतिर्लिंग शिव जी के शरीर के बाकि हिस्से हैं और पशुपति नाथ उस शरीर का सिर है. मंदिर परिसर बहुत बड़ा और खूबसूरत है।मंदिर परिसर में घास के मैदान हैं।  मुख्य मंदिर के चारों ओर एक घेरे में बाकि मंदिर भी हैं।पशुपतिनाथ नेपाल की राजधानी काठमांडू के तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के किनारे पर स्थित एक हिंदू मंदिर है। पशुपतिनाथ में मुख्य रूप से हिंदुओं को मंदिर परिसर में प्रवेश करने की अनुमति है। गैर हिंदू आगंतुकों को बागमती नदी के दूसरे किनारे से इसे बाहर से देखने की अनुमति है। यह मंदिर नेपाल में शिव का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। 15 वीं सदि के राजा प्रताप मल्ल से शुरू हुई परंपरा है कि मंदिर में चार पुजारी ( भट्ट ) और एक मुख्य पुजारी ( मूल-भट्ट ) दक्षिण भारत के ब्राह्मणों में से रखे जाते हैं। पशुपतिनाथ में शिवरात्रि त्योहार विशेष महत्व के साथ मनाया जाता है। किंवदंतियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था किंतु उपलब्ध ऐतिहासिक रिकॉर्ड 13वीं शताब्दी के ही हैं। इस मंदिर की कई प्रतिबिंबों का भी निर्माण हुआ है, जिनमें भक्तपुर (1480 ), ललितपुर ( 1566 ) और बनारस ( 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में ) शामिल हैं। मूल मंदिर कई बार नष्ट हुआ। इसे वर्तमान स्वरूप नरेश भूपलेंद्र मल्ला ने 1697 में प्रदान किया।नेपाल के राजा खुद को भगवान विष्णु का अवतार मानते थे. पशुपति नाथ मंदिर के पीछे ही हिन्दुओं का शवदाह होता है। 

 

दिल्ली ---  दिल्ली भारत की राजधानी है। यमुना नदी के किनारे स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं। महाभारत काल में इसका नाम इन्द्रप्रस्थ था। यहाँ कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता हैं। 1639 में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने दिल्ली में ही एक चारदीवारी से घिरे शहर का निर्माण करवाया जो 1679 से 1857 तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रही।

लाल - किला --- दिल्ली के किले को लाल - किला भी कहते हैं, क्योंकि यह लाल रंग का है। यह भारत की राजधानी नई दिल्ली से लगी पुरानी दिल्ली शहर में स्थित है। यह युनेस्को विश्व धरोहर स्थल में चयनित है।


कमल मंदिर ( lotus temple) --- कमल मंदिर भारत की राजधानी दिल्ली के नेहरू प्लेस के पास स्थित एक बहाई उपासना स्थल है।यह मंदिर कमल की आकृति में बना हुआ है। यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। यहाँ पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड किया जाता है, इसके विपरीत यहाँ पर विभिन्न धर्मों से संबंधित विभिन्न पवित्र लेख पढ़े जाते हैं।

जामा मस्जिद --- जामा मस्जिद का निर्माण  सन् 1656 में सम्राट शाहजहां ने किया था। यह पुरानी दिल्ली में स्थित है। यह मस्जिद बलुआ पत्थर और संगमरमर के पत्थरों की बनी हुई है। लाल किले से महज 500 मी. की दूरी पर जामा मस्जिद स्थित है, जो भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है। इस मस्जिद का निर्माण 1650 में शुरु हुआ था। इसे बनने में 6 वर्ष का समय और 10 लाख रु.लगे थे। बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से निर्मित इस मस्जिद में उत्तर और दक्षिण द्वारों से प्रवेश किया जा सकता है। पूर्वी द्वार केवल शुक्रवार को ही खुलता है। इसका प्रार्थना गृह बहुत ही सुंदर है। इसमें ग्यारह मेहराब हैं जिसमें बीच वाला महराब अन्य से कुछ बड़ा है। इसके ऊपर बने गुंबदों को सफेद और काले संगमरमर से सजाया गया है।


कालका जी मंदिर --- कालका जी मंदिर लोटस टेम्पल के पास स्थित है। ये मंदिर काफी पुराना और प्रसिद्ध है। यहाँ तक पहुँचने के लिए काफी संकरी गलिया हैं।

गुरुद्वारा बंगला साहिब --- यह गुरुद्वारा बहुत प्रसिद्ध गुरुद्वारा है। गुरूद्वारे के गुम्बद शिखर स्वर्ण मंडित हैं। यह नई दिल्ली के बाबा खड़गसिंह मार्ग पर गोल मार्किट में स्थित है।यह गुरुद्वारा जयपुर के महाराजा जयसिंह बंगला था। सिखों के आठवें गुरु गुरु हर किशन सिंह यहां अपने दिल्ली प्रवास के दौरान रहे थे। उस समय स्माल पॉक्स और हैजा की बिमारियां फैली हुई थीं। गुरु ने उन  बिमारियों के मरीजों को इस बंगले के कुएं  से जल और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराईं थीं। मान्यता है कि कुएं के जल से लोगों की बीमारियां ठीक हो गयी। इस कुएं का जल आज भी पवित्र, स्वास्थ्य वर्धक, आरोग्य वर्धक माना जाता है और इस जल में गुरु की कृपया मानी जाती है।सभी श्रदालु इस जल को घर लेकर जाते हैं और पीते  हैं।यह गुरुद्वारा अब सिखों और हिन्दुओं के लिए एक पवित्र तीर्थ है।

इस्कॉन मंदिर -- ये मंदिर काफी सुन्दर है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण और राधा जी की पूजा होती है। इसे श्री श्री राधा प्रथा सारथि मंदिर भी कहते हैं।इस मंदिर का उद्घाटन अटल बिहारी बाजपाई जी ने किया था। 


38. गोरखपुर --- ( 2017 ) --- गोरखपुर उत्तरप्रदेश में है।गोरखपुर में विश्व का सबसे लंबा रेलवे प्लेटफार्म है। गोरखपुर में गुरु गोरखनाथ का भव्य मंदिर है। उन्ही के नाम पर इस शहर का नाम गोरखपुर पड़ा। मंदिर परिसर में एक तालाब है जहाँ पर्यटक बोटिंग का मजा लेते है।मंदिर परिसर बहुत बड़ा और साफ़ सुथरा है।यहाँ पर सभी  पीठाध्यक्ष साधुओं की एक ही परिसर में मूर्तियां लगी हुई हैं।गोरखपुर शहर राप्ती नदी और घाघरा नदी के किनारे पर बसा हुआ है। गोरखनाथ मंदिर में गुरु गोरखनाथ जी तपस्या ने की थी और गोरक्ष पीठ और नाथ सम्प्रदाय की स्थापना की थी। यहाँ पर कई साधुओ ने तपस्या की है और निरंतर ये चलन आज भी जारी है। यहाँ पर गौ शाला और निशुल्क चिकित्सालय भी है। यहाँ महाभारत कालीन भीम जी की लेटी हुई प्रतिमा है। जब वो गुरु गोरखनाथ जी से मिलने आये थे तो उन्होंने यहीं पर विश्राम किया था. 







39. कुशीनगर ( 2017 ) -- कुशीनगर गोरखपुर से 45 किलोमीटर दूर है।भगवान बुद्ध ने यहाँ पर महापरिनिर्वाण लिया था.  शहर में एक दूसरे से सटे हुए भगवान बुद्ध के तीन चार मंदिर हैं। बौद्ध शैली में एक स्तूप बना हुआ है। एक मंदिर में भगवान बुद्ध की विश्राम करते हुए ( लेटे हुए ) की बड़ी मूर्ति बनी है। जो करीब 15 फ़ीट लम्बी है।यहाँ पर एक संग्राहलय भी है .  







40. मगहर ( 2017 ) -- यहाँ पर संत कबीर दास जी ने महापरिनिर्वाण लिया था. एक कहावत थी कि जो काशी में मरेगा उसे स्वर्ग और जो मगहर में मरेगा उसे नरक मिलेगा.संत कबीर ने इस धारणा को बदलने के लिए मगहर में प्राण त्यागे। उनका जन्म बनारस ( कशी ) में हुआ था। संत कबीर अपने आखिरी दिनों में मगहर में आकर रहे और यही पर प्राण त्यागे।वो मुस्लिम थे। उनकी मौत के बाद हिन्दू और मुस्लिम उन्हें अपने अपने तरीके से दफनाना चाहते थे। जब लाश से कपड़ा हटाया तो उनका शरीर गायब मिला . उनके शरीर की जगह दो फूल मिले जो एक हिन्दू और एक मुस्लमान ने ले लिया.जहाँ उन्होंने प्राण त्यागे हिन्दुओ ने वहां मंदिर बनाया और मुस्लिमो ने मस्जिद बनवाई। मगहर गोरखपुर से 3० किलोमीटर दूर  और खलीलाबाद से 6 किलोमीटर दूर है. संत कबीर नगर जिला संत कबीर जी के नाम पर ही है।  


41. लुम्बिनी ( 18-03-2018 ) -- लुम्बिनी उत्तर प्रदेश के सनौली से करीब 25 किलोमीटर दूर  नेपाल में है।कपिलवस्तु यहाँ  से 27 किलोमीटर दूर है।कपिल वस्तु कभी शाक्य गण की राजधानी था और लुम्बिनी उसका हिस्सा थी।लुम्बिनी में ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था।कपिलवस्तु और तिलौराकोट को विद्वान एक ही मानते हैं।बुद्ध शाक्य गण के राजा शुद्धोदन और महामाया ( मायादेवी ) के पुत्र थे। उनका जन्म लुंबिनी वन में हुआ जिसे अब रुम्मिनदेई कहते है।जब उनकी माता जी का काफिला कहीं जा रहा था तो रास्ते में इसी वन में उनका जन्म हुवा था। जहाँ उनका जन्म हुआ आज वहां पर कई बौद्ध मंदिर बने हैं , कई धार्मिक स्थल बने हैं। जगह जगह उनकी पीतल की मूर्तियां लगी हैं।यहां राजा अशोक आये थे और उन्होंने एक स्तंभ भी बनवाया था।और लुम्बिनी के लोगो के कर भी कम कर दिए थे।लुम्बिनी पहले जंगल था।जिस परिसर में भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था वहां एक खंडहर उनकी याद में आज भी वैसे का वैसा है।और लोग वहां दर्शन करने जाते हैं।एक पीपल का पेड़ भी पूजनीय है।इस जगह को मायादेवी मंदिर कहते हैं।एक भगवान बुद्ध की पत्थर की मूर्ति भी है।इस मंदिर के आस पास हज़ारो एकड़ जमीन में सिर्फ जंगल और भगवान बुद्ध के मंदिर ही मंदिर हैं,जो अलग अलग देशों ने बनवाये हैं।जैसे जापान,म्यांमार,कोरिया आदि।मंदिर और उनमें रखी पीतल और पत्थर की मूर्तियां बहुत ही शानदार और बड़ी बड़ी हैं।बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ गौतम था।कपिलवस्तु में महलों के अवशेष हैं।लुम्बिनी को यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल किया है।एक बहुत बड़ा एरिया ( लगभग पूरा शहर ) जो चारों तरफ से दीवार से घिरा है उसके अन्दर सारे मंदिर हैं।लुम्बिनी में बस अड्डा और पार्किंग बहुत ही बड़ी बनाई गई है।वहां पर गाड़ी खड़ी करके टिकट लेनी पड़ती है।गाड़ी पार्किंग की 50 रुपये की टिकट,मंदिर परिसर में जाने की 300 रुपये की टिकट गाड़ी की, और प्रत्येक आदमी की 16 रुपये नेपाली की टिकट लगती है।उपरोक्त फ़ीस सिर्फ भारतीयों के लिए है , बाकि विदेशियों के लिए अलग से फीस है। नेपाली फ्री में जा सकते हैं।लेकिन नेपाली गाड़ी की 300 रुपये की टिकट है।






MAYADEVI MANDIR



















ASHOK SATAMBH AT MAYADEVI MANDIR




MAYADEVI MANDIR




42. जमशेदपुर (2018-19) --- जमशेदपुर की स्थापना पारसी व्यवसायी जमशेदजी नौशरवान जी टाटा ने की थी । उन्ही के नाम पर इस शहर का नाम जमशेदपुर और टाटानगर पड़ा। उन्होंने यहाँ वीरान जंगल में  १९०७ में टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनी ( टिस्को ) की स्थापना की। इससे पहले यह साकची नामक एक आदिवासी गाँव हुआ करता था। यहाँ की मिट्टी काली होने के कारण यहाँ पहला रेलवे-स्टेशन कालीमाटी के नाम से बना जिसे बाद में बदलकर टाटानगर कर दिया। शहर की पूरी जमीन टाटा घराने के नाम है। जिसे टाटा ने लोगों को लीज पर दे रखा है। कानून व्यवस्था को छोड़कर शहर की सारी  व्यवस्था टाटा ग्रुप ही देखता है।रोड, बिजली पानी हर चीज की व्यवस्था टाटा स्टील करती है। शहर में टाटा के कई कारखाने हैं और अगर बगल के शहरों में माइंस और कारखाने हैं। शहर में मनोरंजन का प्रमुख साधन जुबिली पार्क टाटा स्टील ने बनवाया है। ये बहुत  बड़ा पार्क है, इसके अंदर झूलों की व्यवस्था है, लेज़र लाइट शो है, चिड़िया घर है और एक म्यूजियम है।जमशेदपुर में डिमना झील है जहां से शहर में पानी सप्लाई होता है।इस कृत्रिम झील का निर्माण टाटा द्वारा ही किया गया है। जमशेदपुर में साकची बाजार, बिस्टुपुर बाजार मुख्य है।बिस्टुपुर में पुराना राम मंदिर है।सिदगोड़ा में शिव मंदिर है, उसी प्राँगल में राम मंदिर बनाया गया है। जहाँ बड़े बड़े हाथी और कृष्ण जी के साथ घोड़ो की बड़ी बड़ी मूर्तियां बनी हैं।
पूरी दुनिया में भारतीय ज्ञान, अध्यात्म और दर्शन की पताका फहराने वाले स्वामी विवेकानंद देश को विज्ञान और तकनीक का सहारा लेते हुए स्वदेशी ज्ञान व कौशल के जरिये देश को आत्मनिर्भर बनाने के पक्षधर थे। देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने टाटा को भी उन्होंने इस विषय में अपनी सलाह दी थी। तब टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी नसरवान जी टाटा स्वामी विवेकानंद की विज्ञान, तकनीक, अर्थशास्त्र, उद्योग और खनिजों के संबंध में गहरी जानकारी से दंग रह गए थे। स्वामी विवेकानंद के कहने पर ही जमशेदजी ने देश की प्रतिष्ठित टाटा स्टील कंपनी की बुनियाद जमशेदपुर शहर में रखी थी। टाटा स्टील कंपनी के संग्रहालय में उपलब्ध दस्तावेज में स्वामी विवेकानंद और जमशेदजी के बीच हुई बातचीत का ब्यौरा है।

 
दस्तावेजों के अनुसार 1893 में स्वामी विवेकानंद शिकागो के धाॢमक सम्मेलन में शामिल होने शिप (पानी के जहाज) से जा रहे थे। उसी शिप में जमशेदजी नसरवानजी टाटा भी सवार थे। इस यात्रा के दौरान दोनों में लंबी बातचीत हुई थी। स्वामीजी ने जमशेदजी को पानी के जहाज में ही लौह खनिज संपदा और संसाधनों की जानकारी दी थी। इसके लिए उन्होंने सिंहभूम में ही फैक्र्ट्री लगाने की भी सलाह दी थी।  जिस वक्त स्वामीजी ने ये सुझाव दिया था, उस समय उनकी उम्र महज 30 वर्ष थी, जबकि जमशेदजी टाटा 54 वर्ष के थे।
 
जमशेदजी ने बताया था कि वो भारत में स्टील इंडस्ट्री लाना चाहते हैं। तब स्वामी विवेकानंद ने उन्हेंं सुझाव दिया कि टेक्नोल़ॉजी ट्रांसफर करेंगे तो भारत किसी पर निर्भर नहीं रहेगा, युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। स्वामीजी ने ही टाटा को जमशेदपुर की राह दिखाई थी।
जमशेदजी और स्वामी विवेकानंद के बीच हुई यह चर्चा इसलिए भी अहम थी, क्योंकि उस वक्त स्वामी विवेकानंद शिकागो के उसी धार्मिक सम्मेलन में भाग लेने जा रहे थे, जिसक बाद पूरी दुनिया ने भारतीय ज्ञान का लोह माना। उधर, जेएन टाटा भारत में लोहा-इस्पात का कारखाना लगाने के लिए विशेषज्ञों से मिलने शिकागो जा रहे थे। एक आध्यात्मिक क्रांति की चेतना जगाने निकला था, जबकि दूसरा औद्योगिक क्रांति। जमशेदजी टाटा अपनी परिकल्पना को साकार व मूर्तरूप देने के लिए जर्मनी, इंग्लैंड होते हुए अमेरिका जा रहे थे। जलयान पर एक दूसरे के सामने बैठे हुए दोनों के बीच बातचीत आरम्भ हुई तो सिलसिला काफी लंबा चला।स्वामी विवेकानंद ने जेएन टाटा को छोटानागपुर इलाके में न केवल लोहा-इस्पात उद्योग के लिए आवश्यक खनिज संपदा होने की जानकारी दी, बल्कि मयूरभंज (ओडिशा) राजघराने में कार्यरत भूगर्भशास्त्री प्रमथनाथ बोस से मिलने की भी सलाह दी। जेएन टाटा ने वहीं से अपने बड़े पुत्र दोराबजी टाटा को पीएन बोस से मिलने की सलाह दी। इसके बाद जमशेदजी की परिकल्पना को साकार रूप देने के लिए पुत्र दोराबजी टाटा भूगर्भ शास्त्रियों पीएन बोस व सीएम वेल्ड के साथ निकल पड़े। इस दौरान उनके मित्र श्रीनिवास राव भी साथ रहे। खनिज पदार्थों की पड़ताल पूरी होने के बाद दोराबजी ने दिसंबर 1907 में जिस स्थान का चुनाव किया, वह जमशेदपुर था।

 

 
देवरी माता मंदिर - जमशेदपुर से 75 किलोमीटर और रांची से 60 किलोमीटर दूर देवरी माता मंदिर है।जो काफी प्रसिद्ध मंदिर है।  












 

 

43.  थानेसर  - ( 13/12/201 ) - मुख्य तीर्थ मानेसर में हैं ,ये कुरुक्षेत्र के पास स्थित है।थानेसर महाराजा हर्षवर्धन की राजधानी थी।ये भूमि महाभारत युद्ध और गीता के उपदेश के लिए प्रसिद्ध है।कुरुक्षेत्र शहर सरस्वती नदी के किनारे पर बसा है।पांडवो के पूर्वज राजा कुरु के नाम पर इसका नाम कुरुक्षेत्र पड़ा।उन्होंने ही मानव कल्याण के लिए कुरुक्षेत्र भूमि की बार बार जुताई की।भगवान इंद्र ने देवताओं की तरफ से राजा को कहा कि जो भी व्यक्ति यहां युद्ध करते हुए मारा जायेगा या निराहार रहेगा वो स्वर्ग की प्राप्ति करेगा।यहां पर 48 कोस की परिधि में अनेकों तीर्थ हैं।करनाल,पानीपत,कुरुक्षेत्र,कैथल, जींद की भूमि महाभारत काल से जुड़ी हुई है।
 
सन्निहत तीर्थ मानेसर - ऐसा माना जाता है कि अमावस्या और सूर्य ग्रहण के दिन समस्त तीर्थों का जल इस तीर्थ में जमा हो जाता है।इसे सरस्वती नदी की सात विभिन्न शाखाओं का संगम भी कहा जाता है। महर्षि दधीचि ने यही स्नान करके अपनी हड्डियां देवताओं को दान की थी।जिससे राक्षसों का वध करने के लिए हथियार बनाए गए।




 
नाभा हाउस मानेसर - इसका निर्माण नाभा पंजाब के महाराजा हीरा सिंह द्वारा उन राजाओं के ठहरने के लिए बनवाया गया था जो सूर्य ग्रहण में यहां स्नान करने आते थे।
 
ब्रह्म सरोवर मानेसर - भगवान ब्रह्मा द्वारा यहां पर शिवलिंग स्थापित किया गया था।जिसे सर्वेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।यह बहुत बड़ा सरोवर है।यह सरोवर महाराजा कुरु द्वारा बनवाया गया था।सूर्य ग्रहण के समय यहां पर स्नान करना हजारों अश्वमेघ यज्ञों के सम्मान लाभ देता है।
 
श्रीकृष्ण म्यूजियम मानेसर - यहां पर भगवान श्रीकृष्ण और महाभारत से संबंधित फोटो गैलरी है। उस काल से संबंधित प्राचीन अवशेष जो खुदाई में मिले हैं वो यहां रखे गए हैं।हाथ से बनाई गई पेंटिंग आदि हैं।ये तीन चार मंजिला म्यूजियम है और इसे देखने के लिए 30 रुपए की टिकट है।इसी के साथ लगता महाभारत काल से संबंधित पैनोरमा हाल म्यूजियम है।
 
ज्योतिसर तीर्थ ज्योतिसर गांव - यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।ये जगह मानेसर से करीब 10 किलोमीटर पिहोवा रोड पर है।
 
44.  पृथुदक तीर्थ पिहोवा ( सरस्वती तीर्थ ) - कुरुक्षेत्र से 40 किलोमीटर या जींद कैथल चंडीगढ़ रोड पर स्थित है।पिहोवा का पुराना नाम पृथुदक था।
 
पुण्यामाहु कुरुक्षेत्र कुरुक्षेत्रात्सरस्वती। सरस्वत्माश्च तीर्थानि तीर्थेभ्यश्च पृथुदकम।
 
कुरुक्षेत्र पवित्र है और सरस्वती उससे भी पवित्र है। किन्तु पृथूदक इनमें सबसे अधिक पावन व पवित्र है।
 
महाभारत, वामन पुराण, स्कंद पुराण, मार्कण्डेय पुराण आदि अनेक पुराणों एवं धर्मग्रन्थों के अनुसार इस तीर्थ की रचना भगवान ब्रह्मा ने पृथ्वी, जल, वायु व आकाश के साथ सृष्टि के आरम्भ में की थी। 'पृथुदक' शब्द की उत्पत्ति का सम्बन्ध महाराजा पृथु से रहा है। इस जगह पृथु ने अपने पिता की मृत्यु के बाद उनका क्रियाकर्म एवं पिंडदान किया था। पृथु ने अपने पिता को उदक यानि जल दिया। पृथु व उदक के जोड़ से यह तीर्थ पृथूदक कहलाया।


45. धनाना ( 2022, 2021 ) --- यह गांव भिवानी से करीब 20 किलोमीटर और मुंढाल से करीब 10 किलोमीटर दूर है , भिवानी जींद रोड़ पर। जिस जमीन पर मंदिर बना है।उस जमीन का मालिक अंधा था।एक दिन वो खेत में गया हुआ था।खेत में माता जी ने प्रकट होकर उसे कहा कि यहां पर दो ईंट जोड़कर मंढ़ी बना दे।उस आदमी ने कहा वो तो देख नहीं सकता ।माता ने कहा फिर भी वो जैसे तैसे बना दे।जैसे ही उस आदमी ने मढ़ी बनाई उसकी आंखों को रोशनी आ गई।इस घटना के बाद उस परिवार ने अपने खेत का सवा किला माता के मंदिर के नाम कर दिया।यह मंदिर माता फुलनदे के नाम से जाना जाता है।

 
एक आदमी मंदिर के बाहर खिलाने बेचता है वो धनाना गांव का ही है। मैं जब 02-02-2021 को मंदिर में गया तो उस आदमी से मुलाकात हुई।उसने अपने बचपन की घटना बताई।वो जब छोटे थे तो शौच करके उसने और उसके साथियों ने मंदिर की जमीन मे बने जोहड़ में हाथ धो लिए।जिसके बाद उन सभी की आंखे बहुत ज्यादा सुज गई।जब घर वालों ने कड़ाई से पूछताछ कि तो उन लोगों ने सच सच बताया।घर वालों ने सभी बच्चों से एक हफ्ते तक मंदिर की सफाई करवाई, माता से प्रार्थना की तो उन बच्चों को आंखे ठीक हो गई।

मोतिजारा,लिकाडा या टाईफाईड के मरीज यहाँ ठीक होते हैं।दुबारा ये बिमारी नहीं होती।माता का प्रसाद देसी घी के पुड़े ( मालपूवे ) हैं.
पूड़े का प्रसाद मंदिर में चढ़ाना चाहिए और पंडितों को खिलाना चाहिए।एक मढ़ी धनाना गांव के जोहड़ पर है,जो माता रानी का पुराना स्थान माना जाता है।मोतिजारा,लिकाडा या टाईफाईड की धोक यहीं पर लगती है।


 
46. तिगड़ाना (02-02-2021) - यह गावं भिवानी से करीब दस किलोमीटर दूर भिवानी जींद मार्ग पर है।यहां बाबा परमहंस जी का  मन्दिर और गुफा हैं।यहां पर बाबा जी ने तपस्या की थी और लोगों की सेवा की थी।उनके आशीर्वाद से लोगों के सभी कष्ट दूर हो जाते थे।
 

47. सोहना ( 03-03-2023 ) - सोहना गुरुग्राम जिला हरियाणा मे है।इसे शिव नगरी के नाम से जाना जाता है।ये अरावली की पहाड़ियों मे बसा हुआ शहर है।ये शहर पहाड़ी के निचे बसा हुआ है।यहाँ की गलियां बहुत ज्यादा संकरी हैं ।सोहना मे मुख्य बाजार मे शिव कुंड के नाम से धार्मिक स्थल है।जहाँ पहाड़ो से एक नल मे गर्म पानी आता है।उसमे नहाने से चर्म रोग ठीक होते हैं ।यहाँ पुरुष और औरतों के नहाने की जगह अलग अलग बना रखी है।यहाँ तक पहुँचने के रास्ते बहुत ज्यादा तंग हैं ।एक मान्यता के अनुसार ऋषि सोनक के नाम पर इस जगह का नाम सोहना पड़ा।दूसरी मान्यता के अनुसार राजा सावन सिंह ने इस शहर को बसाया था और उनके नाम पर इसका नाम सोहना पड़ा।

 
2002 से शिव कुंड के प्राकृतिक झरने को बंद कर दिया गया था।उसकी जगह बोरिंग करवाई गई।अब बोरिंग टूबवेल के पानी मे भक्त स्नान करते है।जिससे चर्म रोग दूर होते हैं ।

48. काजला धाम - (2022) - यहाँ पर हनुमान जी का प्रसिद्ध मंदिर है।यहाँ सवा रुपये का प्रसाद चढ़ाने की परम्परा है।यहाँ पर सालासर से हनुमान जी की मूर्ति लाकर स्थापित की गई है।इसलिए ये धाम प्रसिद्ध है।
 
49. अग्रोहा धाम ( 2022 - 2023 समेत कई बार) - यह स्थान वैश्य समाज का उदगम स्थल माना जाता है। यहा पर महाराजा अग्रसेन का राज होता था।यहाँ वैश्य समाज ने प्रसिद्ध मंदिर बनाया हुआ है। हनुमान जी की बहुत ऊँची प्रतिमा है, मुख्य मंदिर मे कई देवताओं के मंदिर और महाराजा अग्रसेन का दरबार है, जो की एक ऊँचे चबूतरे पर बना है।तीसरी मंजिल पर अमरनाथ और वैष्णो देवी गुफा है। यहा महाराजा अग्रसेन का किला भी होता था।अभी एक नया मंदिर बनाया गया है। जिसमे एक कुंड है जिसमे कई पवित्र तीर्थो से पानी लाकर भरा गया है।



50. बनभोरी - एक अरुणा सर नाम का दैत्य था उसने भगवान ब्रह्मा की बहुत कठोर तपस्या की थी । उसकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मदेव प्रकट हुए भगवान ब्रह्मदेव ने अरुण राक्षस से पूछा कि तुम क्या मांगना चाहते हो तब उसने कहा कि मुझे अमरता का वरदान दीजिए इस पर ब्रह्मदेव ने कहा कि यह संभव नहीं है। इस पृथ्वी पर जिसने जन्म लिया है , उसका मरना निश्चित है, अमर होना संभव नहीं है। इसलिए मैं तुम्हें यह वरदान  नहीं दे सकता। इसके बाद ब्रह्मदेव ने कहा कि तुम कुछ और वरदान मांग लो तब अरुण राक्षस ने कहा कि आप मुझे ऐसा वरदान दीजिए की ना तो मुझे कोई पुरुष या कोई स्त्री मार सके, ना कोई दो पैरों।

 
अहंकार से भरने के बाद अरुण राक्षस संत- महात्माओं और जो समाज में अच्छे लोग थे उन पर अत्याचार करने लगा ।
 
सभी देवता मिलकर मां भगवती की आराधना करने लगे देवताओं की कठोर तपस्या के बाद माता भगवती प्रकट हुई । माता भगवती के छह पैर थे और उनके चारों तरफ भंवरों का झुंड मंडरा रहा था।
 
उनके हाथ में भी भंवरे ही भंवरे थे ।जिसके कारण देवताओं ने उनका नाम भ्रमरी माता रख दिया। इसके बाद देवताओं ने उन्हें भ्रमरी नाम से संबोधित किया। इसके बाद देवताओं ने बनभौरी माता को अरुण राक्षस के बारे में बताया कि किस प्रकार उसने ब्रह्मदेव से वरदान पाकर उत्पात मचाया हुआ है ।उन्होंने भ्रमरी माता से कहा कि अब आप ही हमारी रक्षा कर सकती हो। इसके बाद भ्रमरी माता ने कहा कि आप लोग चिंता मत कीजिए, उस राक्षस को उसके पापों का फल जरूर मिलेगा इसके बाद भ्रमरी माता ने अपने भंवरों को आदेश दिया कि दैत्य अरुण का वध कर के आओ ।इसके बाद पूरे ब्रह्मांड में भंवरे ही भंवरे छा गए।उन भंवरो ने राक्षक का वध कर दिया। तभी से इस जगह का नाम बनभोरी ( भ्रामरी ) पड़ा।



   



 

 

Today, there have been 24 visitors (64 hits) on this page!
This website was created for free with Own-Free-Website.com. Would you also like to have your own website?
Sign up for free